कैसे सुलझे सिंधु नदी जल विवाद
पंकज चतुर्वेदी
सिंधु जल के बंटवारा फिर चर्चा में है .
इसी साल जनवरी में भारत ने पाकिस्तान को भारत
ने नदी जल बंटवारे की संधि के अनुच्छेद 12 के तहत यह नोटिस भेजा था। उसका जवाब अब आया है
जिसमें पाकिस्तान का कहना है कि वह सिंधु जल के स्थायी आयोग के स्तर पर संधि को
लेकर नई दिल्ली की चिंताओं को सुनने के लिए तैयार है।
यह सच है कि पाकिस्तान हमारी दो परियोजनाओं - किशनगंगा और रातले पनबिजली
परियोजनाओं पर तकनीकी आपत्तियों की जांच के लिए तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति करने
के 2015 के
आग्रह से खुद पीछे
हट कर मामले को मध्यस्थता अदालत में ले जाने पर अड़ा था जोकि संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिए बनाए गए
तंत्र का उल्लंघन है। इसी लिए भारत ने सितंबर 1960
में हुई सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) में संशोधन के लिए
पाकिस्तान को नोटिस जारी किया था .
गौरतलब है कि अगस्त 2021 में अपनी रिपोर्ट में
संसद की एक स्थायी समिति ने सिफारिश की थी कि आईडब्ल्यूटी पर फिर से बातचीत की जाए
ताकि जलवायु परिवर्तन के नदी में जल उपलब्धता पर पड़े असर और अन्य चुनौतियों से
जुड़े उन मामले को निपटाया जा सके जिनको समझौते में शामिल नहीं किया गया है। पाकिस्तान
के सरकार पोषित आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत ने पाकिस्तान को जाने
वाली नदियों का पानी रोकने पर विचार लंबे समय से चल रहा है, लेकिन विचार करना होगा कि क्या यह
व्याहवारिक रूप से तत्काल संभव होगा ?
पानी रोकने का काम कोई बटन दबाने वाला है नहीं और पाकिस्तान को
तत्काल जवाब दे कर ही सुधारा जा सकता है। दुनिया की सबसे बड़ी नदी-घाटी प्रणालियों
में से एक सिंधु नदी की लंबाई कोई 2880
किलोमीटर है । सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख किलोमीटर क्षेत्र
में फैला हुआ है. ये इलाका पाकिस्तान (47
प्रतिशत), भारत
(39 प्रतिशत), चीन (8
प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6
प्रतिशत) में है । अनुमान है कि कोई 30 करोड़ लोग सिंधु नदी के आसपास के इलाकों
में रहते हैं। सिंधु नदी तंत्र
की छह नदियों में कुल 168 मिलियन
एकड़ की जल निधि है। इसमें से भारत अपने हिस्से का 95
फीसदी पानी इस्तेमाल कर लेता है। बकाया पांच
फीसदी पानी रोकने के लिए अभी कम से कम छह साल लगेंगे और इसकी
कीमत आएगी 8327 करोड़।
इसमें पानी की मात्रा दुनिया की
सबसे बड़ी नदी कहलाने वाली नील नदी से भी दुगनी है। तिब्बत में कैलाश पर्वत श्रंखला
से बोखार-चू नामक ग्लेशियर (4164 मीटर)
के पास से अवतरित सिंधु नदी भारत में लेह क्षेत्र से ही गुजरती है। लद्दाख सीमा को
पार करते हुए जम्मू-कश्मीर में गिलगित के पास दार्दिस्तान क्षेत्र में इसका प्रवेश
पाकिस्तान में होता है। पंजाब
का जिन पांच नदियों राबी, चिनाब, झेलम,
ब्यास और सतलुज के कारण नाम पड़ा,
वे सभी िंसंधु की जल-धारा को समृद्ध करती हैं। सतलुज पर ही
भाखडा-नंगल बांध हैं। भले
ही भारत व पाकिस्तान के बीच भौगालिक सीमाएं खिंच चुकी हैं लेकिन यहां की नदियां, मौसम,
संस्कृति, सहित
कई बातें चाह कर भी बंट नहीं पाईं।
सिंधु नदी प्रणाली का कुल जल निकासी
क्षेत्र 11,165,000 वर्ग
किमी से अधिक है। वार्षिक प्रवाह की दृष्टि से यह विश्व की 21वीं सबसे बड़ी नदी है। यह पाकिस्तान के
भरण-पोषण का एकमात्र साधन भी है। अंग्रेजों ने पाकिस्तान के पंजाब क्षेत्र की
सिंचाई के लिए विस्तृत नहर प्रणाली का निर्माण किया था। विभाजन ने इस बुनियादी
ढांचे का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में छोड़ दिया,
लेकिन हेडवर्क बांध भारत में बने रहे, जिससे पाकिस्तान के बड़ी जोत वाले
जमींदारों में हर समय एक डर का भाव रहा है। सिंधु नदी बेसिन के पानी को बंटवारे के लिए कई वर्षों की
गहन बातचीत के बाद विश्व बैंक ने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि की
मध्यस्थता की। । सन 1947 में
आजादी के बाद से ही दोनो देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय नदियों के जल बंटवारे को ले
कर विवाद चलता रहा। कई विदेशी विशेषझों के दखल के साथ दस साल तक बातचीत चलती रही
और 19 सितंबर
1960 को
कराची में दोनों देशों ंके बीच जल बंटवारे को ले कर समझौता हुआ। भारत-पाकिस्तान के
बीच इस समझौते की नजीर सारी दुनिया में दी जाती है कि तीन-तीन युद्ध और लगातार
तनावग्रस्त ताल्लुकातों के बावजूद दोनों में से किसी भी देश ने कभी इस संधि को
नहीं तोड़ा। इस समझौते के मुताबिक सिंधु नदी की सहायक नदियों को दे हिस्सों - पूर्वी
और पश्चिमी नदियों में बांटा गया। सतलज,
ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी क्षेत्र की
नदी कहा गया। पूर्वी नदियों के पानी का पूरा हक भारत के पास है तो पश्चिमी नदियों
का पाकिस्तान के पास। बिजली, सिंचाई
जैसे कुछ सीमित मामलों में भारत पश्चिमी नदियों के जल का भी इस्तेमाल कर सकता है।
समझौता भलीभांति लागू हो इसके लिए एक सिंधु आयोग है और दोनों देशो की तरफ से
कमिश्नर नियमित बैठकें करते हैं।
यहां जानना जरूरी है कि पानी की बात
केवल सिंधु नदी की नहीं होती, इसके
साथ असल में पंजाब की पांच नदियों के पानी का मसला है। पाकिस्तान का कहना है कि
भारत को अपने हिस्से की पूर्वी नदियों का पानी रोकने और उसका पूरा इस्तेमाल करने
का पूरा हक है। सनद रहे कि भारत रावी नदी पर शाहपुर कंडी बांध बनाना चाहता था, लेकिन इस परियोजना को सन 1995 से रोका गया है। ठीक
इसी तरह से समय-समय पर भारत ने अपने हिस्से की पूर्वी नदियों का पानी रोकने के
प्रयास किए लेकिन सामरिक दृष्टि से ऐसी योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाईं। लेकिन अब
षाहपुर कंडी के अलावा सतलुज-व्यास
लिंक योजना और कष्मीर में उझा बांध पर भी काम हो रहा है। इससे भारत अपने हिस्े का
सारा पानी इस्तेमाल कर सकेगा।
वैसे भी भारत-पाकिस्तान की जल-संधि में
विश्व बैंक सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं और उन्हें नजरअंदाज कर
पाकिस्तान का पानी रोकना कठिन होगा। हां,
पाकिस्तान की सरकार का आतंकवदी गतिविधियों में सीधी भागीदारी
सिद्ध करने के बाद ही यह संभव होगा। लेकिन असल सवाल है कि हम पानी रोक सकते हैं
क्या ? यदि
हम नदी का पानी रोकते हें तो उसे सहेज कर रखने के लिए बड़़े जलाशय, बांध चाहिए और वहां जमा पानी के लिए
नहरें भी। सिंधु घाटी के नदी तंत्र को गांगेय नदी तंत्र अर्थात गंगा-यमुना से
जोड़ना तकनीकी रूप से संभव ही नहीं है। गौरतलब है कि केन-बेतवा नदियों को जोड़ने की
परियोजना 20 साल
बाद भी धरातल पर नहीं आ पाई है। ऐसे में यमुना में सिंधु-तंत्र की नदियों को
मिलाना तात्कालीक तो क्या दूरगामी भी संभव नहीं है।
यदि पानी रोकने का प्रयास किया गया तो जम्मू, कश्मीर ,
पंजाब आदि में जल भराव
हो जाएगा और इससे जमीन पर उर्वर क्षमता प्रभावित होने की पूरी
गुंजाईश है।
आजादी के इतने साल बाद भी अपने हिस्से
की नदियों का पूरा पानी इस्तेमाल करने के लिए बांध आदि ना बना पाने का असल कारण
सुरक्षा व प्रतिरक्षा नीतियां हैं। सीमा के पार साझा नदी पर कोई भी विशाल
जल-संग्रह दुश्मनी के हालात में पाकिस्तान के लिए ‘जल-बम’ के रूप में काम आ सकता
है। यहां जानना जरूरी है कि भारत में ये नदियों उंचाई से पाकिस्तान में जाती हैं।
इनके प्राकृतिक जल-प्रवाह पर कोई भी रोक समूचे उत्तरी भारत के लिए बड़ा संकट हो
जाएगा। हम पानी एकत्र भी कर लें तो हमारी उतनी ही बेशकीमती जमीन दल-दल में बदल सकती
है।
यह संकट केवल इतना ही नहीं हैं, भारत से पाकिस्तान जाने वाली नदियों पर
चीन के निवेश से कई बिजली परियोजनाएं हैं। यदि उन पर कोई विपरीत असर पड़ा तो चीन
ब्रहंपुत्र के प्रवाह के माध्यम से हमारे समूचे पूर्वोत्तर राज्यों को संकट में
डाल सकता है। अरूणाचल व मणिपुर की कई नदियों चीन की हरकतों के कारण अचानक बाढ़, प्रदूषण
और सूखे को झेल रही हैं।
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