निकोबार के विकास में विनाश के सूत्र
पंकज चतुर्वेदी
यह स्थान समृद्ध जैव विविधता और वन्यजीवों की एक असाधारण विविधता का घर है। सरकार के अनुसार, यह दुनिया में सबसे अच्छी तरह से संरक्षित उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों में से एक है। यहाँ धरती की सबसे पुरने आदिवासी आबादी रहती है . क्या विकास का नया मॉडल इन सभी नैसर्गिक उपहारों का दुश्मन बन जाएगा ? भूमि से दूर हिंद महासागर के बंगाल की खाड़ी के दक्षिण पूर्वी भाग में स्थित 572 द्वीपों का समूह अंडमान निकोबार इन दिनों ऐसे ही द्वन्द से गुजर रहा है है। ये द्वीप इंडोनेशिया और थाईलैंड के निकट स्थित हैं। 2013 में इसे यूनेस्को के जैवमंडल कार्यक्रम (ह्यूमन एंड बायोस्पियर प्रोग्राम) में शामिल किया गया था। आज वहां कंक्रीट के साथ बाहरी लोगों को बसाने की योजना तैयार की जा रही है, वह भी पर्यावरणीय कानूनों की अनदेखी कर .
ग्रेट निकोबार द्वीप में मेगा-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की शुरुआत सितंबर 2020 में नीति आयोग की तरफ से मास्टर प्लान तैयार करने के लिए रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RfP) जारी करने के साथ शुरू हुई थी। इसके तहत 72,000 करोड़ रुपए की एकीकृत परियोजना की शुरुआत की है, जिसमें एक मेगा पोर्ट, एक हवाई अड्डा परिसर, 130 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत शहर, सौर और गैस आधारित बिजली संयंत्र का निर्माण शामिल है। यहाँ आने वाले सालों में कोई चार लाख बहरी लोगों को बसाने की योजना है अर्थात मौजूदा आबादी के कई हज़ार प्रतिशत . फिर मार्च 2021 में गुरुग्राम स्थित एक परामर्श एजेंसी AECOM इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने 126-पेजों की प्री-फिजिबिलिटी रिपोर्ट (PFR) जारी की थी। इसकी रिपोर्ट पाते ही वन तथा पर्यावरण मंत्रालय से अनापत्ति लेने की औपचारिकता शुरू की और पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन (EIA) रिपोर्ट तैयार करने के लिए हैदराबाद स्थित विमता लैब्स को काम सौंपा गया। दिसंबर 2021 में मंत्रालय ने ईआईए रिपोर्ट के मसौदे को टिप्पणियों और चर्चा के लिए आम जनता के बीच रखा, जिसमें पहले चरण के पूरा होने का संकेत दिया गया था. जनवरी 2022 में अनिवार्य जन सुनवाई ग्रेट निकोबार के प्रशासनिक मुख्यालय कैंपबेल खाड़ी में आयोजित की गई थी और विमता ने अंतिम ईआईए रिपोर्ट मार्च में प्रकाशित की थी। जन सुनवाई प्रक्रिया के दौरान जमशेदजी टाटा स्कूल ऑफ डिजास्टर स्टडीज, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज में प्रोफेसर और डीन जानकी अंधारिया ने अंडमान और निकोबार द्वीप समूह प्रशासन को लिखा। इसमें कहा गया कि प्रस्तावित कंटेनर टर्मिनल एक ऐसे स्थान पर है जहां हर साल लगभग 44 भूकंप (पिछले 10 वर्षों में 444 भूकंप) आते हैं और इस प्रकार इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है। लेकिन इसको नज़रंदाज़ कर 27 अक्टूबर 22 को मंत्रालय के वन संरक्षण विभाग ने परियोजना के लिए 130.75 वर्ग किमी के प्राचीन वन के इस्तेमाल के लिए मंजूरी दे दी, जिस के बाद यह हाल के दिनों में किया गया सबसे बड़ा फॉरेस्ट डायवर्जन (परिवर्तन) बन गया, वह भी आधी अधूरी औपचारिकता के साथ .यहाँ साढ़े आठ लाख पेड़ काटे जायेंगे .
ग्रेट निकोबार पारिस्थितिक
रूप से संवेदनशील क्षेत्र है और परियोजना
के विकास से क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों को प्रभावित करने वाले वनों की कटाई
को बढ़ावा मिलेगा। इससे समुद्र में अपवाह और तलछट का जमाव भी बढ़ेगा, जो द्वीप पर मैंग्रोव के नुकसान सहित
प्रवाल भित्तियों को प्रभावित करेगा।
इस परियोजना के लिए प्रति दिन 86,600 किलोलीटर पानी (केएलडी) की आवश्यकता होने का अनुमान है, जिसमें से 45,000 केएलडी सतही जलाशयों से तैयार किया जाने वाला ताजा पानी होगा, जिसका अभी निर्माण किया जाना है। योजनाओं से उपजने वाले अपशिष्ट और अवशेष जल के निपटान या सुरक्षित पुनर्चक्रण के प्रावधान शामिल नहीं होना भी इस द्वीप के अस्तित्व के लिए खतरा है .
पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन रिपोर्ट में अंकित तथ्यहीन बातें न चिंताजनक हैं बल्कि वे इस कथित विकास परियोजना की नियत पर भे सवाल उठती हैं . इस रिपोर्ट में द्वीप का क्षेत्रफल एक स्थान पर 1,045 वर्ग किमी. के रूप में वर्णित है, जबकि यह 910 वर्ग किमी. (वर्तमान आधिकारिक आँकड़ा) है। यह बताया गया कि गैलाथिया बंदरगाह (Galathea port) क्षेत्र किसी भी प्रवाल भित्तियों को रिकॉर्ड नहीं करता है, जबकि भारतीय प्राणी सर्वेक्षण (ZSI) के अध्ययन से पता चलता है कि गैलाथिया खाड़ी (Galathea Bay) में प्रवाल भित्तियाँ 116 हेक्टेयर में फैली हुई है। गैलाथिया की खाड़ी भारत में जायंट लीथेरबैक (Giant Leatherback) नामक कछुआ प्रजाति के लिये एक प्रतिष्ठित प्रजनन और अंडे देने का स्थान है अर्थात नेस्टिंग साइट है जिसे बीते तीन दशकों में किये गए सर्वेक्षणों के तहत दुनिया का सबसे बड़ा समुद्री कछुआ कहां गया है। द्वीप में जीवों की 330 प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं, जबकि वहीं भारतीय प्राणी सर्वेक्षण के अध्ययन के अनुसार इसकी संख्या दोगुना से अधिक यानी 695 है। यह रिपोर्ट इस बात की भी भ्रामक जानकारी देती है कि ग्रेट निकोबार से दूसरी जगह किसी प्रवासी पक्षी की सूचना नहीं मिली है, जबकि यह सर्वविदित है कि यह द्वीप विश्व स्तर पर दो महत्त्वपूर्ण पक्षी फ्लाईवे का स्थान है, अ अर्थात जिस रास्ते से हो कर प्रवासी पक्षी भारत आते हैं . इसके साथ ही ग्रेट निकोबार में प्रवासी पक्षियों की 40 से अधिक प्रजातियाँ दर्ज की गई हैं।
इस रिपोर्ट
का सबसे दुखद पक्ष यह है कि इसमें स्थानीय, विरली प्रजाति की आदिवासियों के साथ भी
“शब्द_भ्रम” खेला गया है . यह रिपोर्ट विकास के नाम पर जमीन अधिग्रहण और जंगल
काटने में विशेष रूप से संवेदनशील पांच जनजातीय समूहों— ग्रेट अंडमानी ,
जरवा, ओंज, शोम्पेन
और उत्तरी सेंटिनली पर कुटिलता से वार
करती हैं . इसमें दर्ज है "आदिवासियों के अधिकारों की अच्छी
तरह से रक्षा की जाएगी और उनका ध्यान रखा जाएगा"। लेकिन बारीकी से देखें तो
यह निष्कर्ष निकलता है कि "जब भी परियोजना के निष्पादन हेतु भूमि के मौजूदा
नियमों/नीतियों/कानून से कोई छूट प्रदान करने की आवश्यकता होगी, तो यह निदेशालय सक्षम प्राधिकारी से उस प्रभाव के लिये आवश्यक छूट की मांग
करेगा"।
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