नल जल योजना बन गई है आत्मघाती भूजल के बदौलत नल रीते तो रहेंगे ही, हम बड़े खतरे को कर रहे आमंत्रित
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विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में भारत सबसे अधिक भूजल का उपयोग करता है- अमेरिका और चीन- दोनों को मिलाकर जितना इसका उपयोग किया जाता है, उससे अधिक भारत में ही इसका उपयोग हो रहा है। आईआईटी, गांधीनगर के अध्ययन के अनुसार, बीते कुछ समय में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर भारत में भूजल के स्तर में सर्वाधिक कमी आई है। अध्ययन के मुताबिक, देश में भूजल के स्तर में जितनी कमी आई है, उसमें 95 प्रतिशत कमी उत्तर भारत से है
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पंकज चतुर्वेदी
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किसी भी शहर के एक हिस्से में ही एक दिन भी नल से पानी न आने पर जो हाहाकार मचता है, उसका हम सबको अनुभव है। बुंदेलखंड और राजस्थान में ही नहीं, देश के लगभग हर हिस्से में गांवों में भी पानी के लिए लोगों को जिस तरह मशक्कत करनी होती है, वह भी हम जानते-देखते-महसूस करते ही हैं। ऐसे में 2019 में 73वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किला से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जल जीवन मिशन के तहत हर घर को नल से पानी की सप्लाई का जब ऐलान किया, तो कानों को बहुत सुकून मिला। लेकिन यह मिशन आत्मघाती सिद्ध हो रहा है।
इस मिशन के तहत भूजल (ग्राउंडवाटर) का उपयोग किया जा रहा है। विश्व बैंक के अध्ययन की ’एंड पॉवर्टी इन साउथ एशिया’ पर पिछले साल मई में प्रकाशित जॉन रूम की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर में भारत सबसे अधिक भूजल का उपयोग करता है- अमेरिका और चीन- दोनों को मिलाकर जितना इसका उपयोग किया जाता है, उससे अधिक भारत में ही इसका उपयोग हो रहा है। आज भारत में खेती-किसानी से लेकर घरेलू उपयोग तक के लिए भूजल ही एकमात्र उपयोगी रास्ता है।
2021 की सीएजी रिपोर्ट बताती है कि 2014 से 2017 के बीच ही भूजल निकालने की दर 58 से बढ़कर 63 प्रतिशत हो गई। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, केन्द्रीय भूजल बोर्ड (सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड) देश के गतिशील (डायनेमिक) भूजल संसाधनों का समय-समय पर आकलन करता रहता है और 2022 से यह वार्षिक स्तर किया जा रहा है। अभी 8 अप्रैल को ही मंत्रालय ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया है कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), गांधीनगर द्वारा किए गए अध्ययन के अनुसार, बीते कुछ समय में देश के अन्य हिस्सों की तुलना में उत्तर भारत में भूजल के स्तर में सर्वाधिक कमी आई है। अध्ययन के मुताबिक, देश में भूजल के स्तर में जितनी कमी आई है, उसमें 95 प्रतिशत कमी उत्तर भारत से है। अध्ययन में पाया गया है कि भविष्य में बारिश में वृद्धि पहले से ही समाप्त हो चुके संसाधनों के पूरी तरह से पुनर्जीवन करने के लिए अपर्याप्त होगी। शोधकर्ताओं ने यह भी पाया है कि भारत में भूजल की कमी तब तक जारी रहेगी, जब तक भूजल के अत्यधिक दोहन को सीमित नहीं किया जाता है जिससे भविष्य में जल स्थिरता के मुद्दे सामने आएंगे।
इसलिए यह नहीं माना जा सकता कि सरकार को इस मिशन से होने वाले खतरे का अंदाजा नहीं है। फिर भी, इस मिशन को न सिर्फ जारी रखा जा रहा है बल्कि इस पर जोर भी दिया जा रहा है। इस मिशन में ग्रामीण भारत के सभी घरों में 2024 तक व्यक्तिगत घरेलू नल कनेक्शन के माध्यम से सुरक्षित और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराने की कल्पना की गई है। केन्द्र सरकार ने वर्ष 2022-23 में देश भर के 3.8 करोड़ परिवारों तक साफ पीने का पानी पहुंचाने की योजना बनाई है। इसके लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस बजट में 60 हजार करोड़ रुपये ’हर घर नल’ योजना को आवंटित किए हैं।
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मध्य प्रदेश के छतरपुर जिले के लवकुशनगर का गांव परसनिया हो या नगर पंचायत वाला कस्बा हरपालपुर- दोनों जगह दूर से ही ऊंची पानी की टंकी तो दिखती है लेकिन यहां के लोग पानी के लिए तीन-चार किलोमीटर दूर किसी के कुएं से पानी निजी वाहनों से ढोकर ही लाते हैं। दोनों का कारण लगभग एकसमान है- टंकी बनी, पाईप लगे, पानी के लिए कई ट्यूबवेल खोद दिए गए लेकिन सूरज तपा तो पाताल पानी सूख गया और टंकी, पाईप, घर में लटकी नल की टोंटी- सब कुछ मुंह चिढ़ाते से दिखे। यह कहानी लगभग एक-सी है, बस गांव-मोहल्ले के नाम बदल जाते हैं।
सरकारी रिकॉर्ड में यहां घर-घर नलों से पानी की धारा बहती है। जल जीवन मिशन की हकीकत गरमी शुरू होते ही सामने आने लगी। उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलों में ऐसी योजनाएं दम तोड़ रही हैं। बिहार में टंकी बनाने और पाईप बिछाने का काम तो हो गया लेकिन घर में नल सूखे ही रहते हैं। देश में हजारों ऐसे गांव हैं जहां पानी की टंकी है, पाइप भी बिछ गए, टोंटी लग गई लेकिन यही तय नहीं हो पाया कि इसमें पानी कहां से आएगा।
दरअसल, इस तरह मिशन को लागू करने से पहले भूजल रिचार्ज के तरीके अख्तियार किए जाने चाहिए थे जो किए ही नहीं गए हैं। दूसरा, घर में नल आने के बाद वहां से निकलने वाले गंदे पानी के कुशल निबटान और उनके पुनर्चक्रण (रीसाइक्लिंग) की योजना नहीं बनी। भूजल ऐसा संसाधन है जो यदि दूषित हो जाए तो उसका निदान बहुत कठिन होता है। तीसरा, देश के अधिकांश हिस्से में जिसे भूजल मानकर हैंडपंप रोपे जाते हैं, वह असल में जमीन की अल्प गहराई में एकत्र बरसात का रिसाव होता है जो गरमी आते-आते समाप्त हो जाता है। जाहिर है, जब तक जल संचलन की स्थानीय प्रणाली विकसित नहीं होती, जब तक बरसात की हर बूंद को स्थानीय पारंपरिक पद्धतियों से सहेजने के यत्न नहीं किए जाते, तब तक हर घर नल से पानी का सपना साकार नहीं हो सकता।
न्यूनतम बरसात की दशा में भी प्रकृति हमें इतना पानी देती है कि सलीके से खर्च किया जाए तो पूरे साल हर इंसान की जरूरत को आसानी से पूरा किया जा सकता है। नदी में 365 दिन अविरल धारा बहती रहे, तालाब में लबालब पानी रहे, तो उसके करीब के कुओं से पंप लगाकर पूरे साल घरों तक पानी भेजा जा सकता है। ओवरहेड टैंक या ऊंची पानी की टंकी बना कर उसमें अधिक बिजली लगाकर पानी भरने और फिर बिजली पंप से दवाब से घर तक पानी भेजने से बेहतर और किफायती होगा कि हर मुहल्ला-पुरवा में ऐसे कुएं विकसित किए जाएं जो तालाब, झील, जोहड़, नदी के करीब हों और उनमें साल भर पानी रहे। एक कुएं से 75 से 100 घरों को पानी सप्लाई का लक्ष्य रखा जाए, तब ही मिशन सफल हो सकता है। सबसे बड़ी त्रासदी यही है कि जिला स्तर पर जितना उत्साह टंकी बनाने या पाइप डालने में दिखाया जाता है, उसमें पानी कहां से आएगा, उस पर विचार ही नहीं होता। और जब दवाब आता है तो फटाफट भूजल से टंकी जोड़कर कागजी खाना पूरी कर ली जाती है।
इसे जाम्बा के उदाहरण से समझा जा सकता है। करनाल से कैथल जाने वाले मुख्य मार्ग पर यह एक संपन्न गांव है। यहां की आबादी लगभग 1,250 की है। यहां 242 घर हैं और सभी पक्के हैं। यहां ‘हर घर जल’ योजना के तहत हर घर तक पानी की लाईन डली है। हरियाणा के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग ने एक ट्यूबवेल लगा रखा है जिस पर 25 हॉर्स पावर की मोटर है। एक कर्मचारी सुबह-शाम एक-एक घंटा इसे चलाकर घरों तक पानी पहुंचाता है। पानी को क्लोरीन से शुद्ध किया जाता है। सरकार इसके लिए महज चालीस रुपये महीना लेती है और वह भी कई ग्रामीण चुकाते नहीं। जब मैंने गांव वालां से पूछा कि क्या वे जल आपूर्ति से संतुष्ट हैं, तो बहुत से लोगों का कहना था कि पानी कम आता है। दिन में दो घंटे मोटर चलने से आठ लोगों के एक परिवार के पीने, रसोई, नहाने का पानी पर्याप्त पहुंच जाता है। लगभग हर घर में मवेशी पले हैं और ग्रामीण चाहते हैं कि ढोर के नहलाने का पानी भी नल से ही आए। हरियाणा का कैथल जिला पंजाब के पटियाला से सटा हुआ है। जिले की समृद्धि का दारोमदार खेती-किसानी को है। जब से यहां धान उगाया जाने लगा, किसानों ने जमकर भूजल उलीचा और आज यह जिला पाताल में पानी के मामले में काली सूची में है, अर्थात अब यहां का सारा पानी चुक गया है। यह पूरी सरकारी योजना जिस भूजल पर टिकी है, असल में वह किसी भी दिन धोखा दे सकती है।
यही हाल बिहार का है। हर जिले में जलस्तर आधा से एक मीटर नीचे चला गया है। सिवान जिले के बड़हरिया प्रखंड के कैल पंचायत के शिवधरहाता, नहीबाता, चुल्हाईहाता और मुसेहरी-जैसे कई गांव हैं जहां पाइप तो बिछा दी गई लेकिन नल किसी के दरवाजे पर नहीं दिखता। किसी गांव में नल लग भी गया तो जल आज तक नहीं आया। कुछ जगहों पर बोरिंग होते ही ट्यूबवेल फेल हो गया। इसी तरह छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में मई में भूजल स्रोत में गिरावट आ रही है। कई स्थानों पर 16 से 20 मीटर तक भू-जल स्तर गिर गया है जिससे 82 में से 30 नल जल योजना बंद पड़े हैं। जो चालू है, उसमें भी नियमित पानी नहीं आ रहा है।
इसी से समझा जा सकता है कि खतरा कितना बड़ा है।
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