अरावली के उजड़ने से बढ़ रहे हैं अंधड़
पंकज चतुर्वेदी
अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका 'अर्थ साइंस इंफोर मैटिक्स'
के ताजा अंक में प्रकाशित
एक शोध ने चेतावनी दी है कि अरावली पर्वतमाला में पहाड़ियों के गायब होने से
राजस्थान में रेत के तूफान में वृद्धि हुई है। भरतपुर, धोलपुर,
जयपुर और चित्तौड़गढ़ जैसे स्थान , जहां अरावली पर्वतमाला पर अवैध
खनन, भूमि अतिक्रमण और हरियाली उजाड़ने की अधिक मार पड़ी है ,
को सामान्य से अधिक रेतीले तूफानों का
सामना करना पड़ रहा है. केंद्रीय विश्वविद्यालय राजस्थान के पर्यावरण विज्ञानं के प्रोफेसर
एल के शर्मा और पीएचडी स्कॉलर आलोक राज द्वारा किए गए इस अध्ययन का शीर्षक है “
एसेसमेंट ऑफ़ लेंड यूज़ डायनामिक्स ऑफ़ थे
अरावली यूजिंग इंटीग्रेटेड”
इस साल अप्रैल और मई में, इनमें से कई इलाके बालू के
तूफ़ान और बारिश से बह गए थे, जिसमें कई लोगों की जान गई थी। अकेले 28 -29 मई को ही तेज अंधड़ से प्रदेशभर में 16 लोगों की मौत हो गई है. इनमें छह बच्चे और
सात बुजुर्ग हैं. अरावली की पहाड़ियों से घिरे टोंक जिले में सबसे अधिक 12 मौतें हुई हैं. 40 से अधिक लोग घायल हुए हैं.
गुरूवार देर रात पांच साल बाद राजस्थान में 90-100 किमी की
रफ्तार से तूफान आया. शुक्रवार को भी 50-60 किमी प्रति किमी
की रफ्तार से अंधड़ चला. इससे कई गांव-शहरों में बिजली के पोल गिर गए. पेड़ उखड़
गए. तूफान की रफ्तार के आगे मकान भी बौने साबित हुए. घरों की छतें उड़ गईं,
सैंकड़ों गांवों में कच्चे घर माटी की तरह बिखर गए. आधे राजस्थान की
बिजली गुल हुई. वर्ष 2015 की बाद ऐसे अंधड़ों की संख्या बढती जा रही है . अंधड़ से जान-माल का नुकसान तो होता ही है ,
सार्वजनिक संपत्तियों को जबर्दस्त नुकसान होता है .
असलियत तो यह है कि अकेल राजस्थान ही नहीं दिल्ली और हरियाणा का अस्तित्व ही अरावली पर टिका है. है।
इसरो का एक शोध बताता है कि थार रेगिस्तान अब राजस्थान से बाहर निकल कर कई राज्यों
में जड़ जमा रहा है। इस बात पर बहुत कम लोग ध्यान देतें हैं कि भारत के राजस्थान से
सुदूर पाकिस्तान व उससे आगे तक फैले भीषण
रेगिस्तान से हर दिन लाखों टन रेत उड़ती है . खासकर गर्मी में यह धूल पूरे
परिवेश में छ जाती है और इसके रादुष्ण का मानवीय जीवन पर कुप्रभाव ठण्ड में दिखने
वाले स्मोग से अधिक होता है . रेत के बवंडर
खेती और हरियाली वाले इलाकों तक ना पहुंचे इसके लिए सुरक्षा-परत या शील्ड का काम अरावली पर्वतमाला सदियों से करती रही
है। विडंबना है कि बीते चार दशकों में यहां मानवीय हस्तक्षेप और खनन इतना बढ़ा कि
कई स्थानों पर पहाड़ की श्रंखला की जगह गहरी खाई हो गई और एक बड़ा कारण यह भी है कि
अब उपजाऊ जमीन पर रेत की परत का विस्तार हो रहा है।
गुजरात के खेड ब्रह्म से षुरू हो कर कोई 692
किलोमीटर तक फैली अरावली पर्वतमाला का विसर्जन देश के सबसे ताकतवर स्थान रायसीना
हिल्स पर होता है जहां राश्ट्रपति भवन स्थित है। अरावली पर्वतमाला को कोई 65 करोड़
साल पुराना माना जाता है और इसे दुनिया के सबसे प्राचीन पहाड़ों में एक गिना गया
है। ऐसी महत्वपूर्ण प्राकृतिक संरचना का बड़ा हिस्सा बीते चार दशक में पूरी तरह ना
केवल नदारद हुआ, बल्कि कई जगह उतूंग शिखर की जगह डेढ सौ फुट गहरी खाई हो गई। असल में अरावली पहाड़ रेगिस्तान से चलने वाली
आंधियों को रोकने का काम करते रहे हैं जिससे एक तो मरूभूमि का विस्तार नहीं हुआ
दूसरा इसकी हरियाली साफ हवा और बरसात का कारण बनती रही।
अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में छपी रिपोर्ट में
कहा गया है कि पिछले दो दशकों में कई अन्य पहाड़ियों के अलावा, ऊपरी अरावली पर्वतमाला की
हरियाणा और उत्तरी राजस्थान में कम और मध्य
उंचाई की कम से कम 31 पहाड़ियां पूरी तरह गायब हो गई
हैं । ऊपरी स्तर पर पहाड़ियों का गायब होना नरैना, कलवाड़,
कोटपुतली, झालाना और सरिस्का में समुद्र तल से
200 मीटर से 600 मीटर की ऊँचाई पर दर्ज किया गया था। याद करें कोई तीन साल पहले
सुप्रीम कोर्ट ने भे सरकार से पूछा था कि आखिर कौन हनुमान जे ये पहाड़ियां उठा कर
ले गए ? सन 1975 से 2019 के दौरान किए गए अध्ययन में, यह पता
चला कि वन क्षेत्र में सघन बस्तियां बस जाना ,पहाड़ियों के गायब होने के प्रमुख
कारणों में से एक थे।
अध्ययन के परिणामों से पता चला है कि 1975 से 2019
के बीच अरावली की 3676 वर्ग किमी भूमि बंजर हो गई . इस अवधी में अरावली
के वन क्षेत्र में 5772.7 वर्ग किमी (7.63 प्रतिशत) की कमी आई है . यदि यही
हाल रहे तो 2059 तक कुल 16360.8 वर्ग किमी (21.64 प्रतिशत) वन भूमि पर कंक्रीट के
जंग उगे दिखेंगे . ऐसे हालात में अंधड़ की मार का दायरा बढेगा . अरावली पहाड़ का
उजड़ना अर्थात वहां के जंगल और जल निधियों का उजड़ना, दुर्लभ वनस्पतियों का लुप्त
होना. इसके दुष्परिणाम सामने आरहे हैं .
तेंदुए, हिरण
और चिंकारा भोजन के लिए मानव बस्तियों में प्रवेश करते हैं और मानव- जानवर टकराव
के वाकिये बढ़ रहे हैं . जान लें अंधड़ बढ़ने से भी जानवरों के बस्ती में घुसने की
घटनाएँ बढती हैं .
यह रिपोर्ट दिल्ली से लेकर गुजरात तक पूरी रेंज में मार्बल
डंपिंग यार्ड की बढती संख्या को बेहद घटक निरुपित करती है . अवैध खनन और भूमि
अतिक्रमण को कम करने के लिए उपाय किए जाने चाहिए और लगातार क्षेत्र की निगरानी, वन की रोकथाम और समाशोधन
भी किया जाना चाहिए। जान लें यदि अरावली
को और अधिक नुकसान हुआ तो तेज अंधड़ की मार से दिल्ली भी नहीं बचेगा .
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