दिल्ली : उजड़तीं जल निधियां, बढ़ती प्यास
राजधानी दिल्ली की करीब 31 फीसद आबादी को स्वच्छ पेय जल घर में लगे नल से नहीं मिलता।
हजारों टैंकर हर दिन कालोनियों में जाते हैं, और टैंकरों के लिए पानी जुटाने के लिए पाताल को इतनी गहराई तक खोद दिया गया है कि सरकारी भाषा में इन जगहों में कई जगह अब ‘डार्क जोन’ बन गए हैं। केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी देश की जल निधियों की गणना की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में कोई 983 तालाब-झील-जोहड़ हैं, और इनमें से किसी को भी प्यास बुझाने के काबिल नहीं माना जाता। दुर्भाग्य है कि दिल्ली गंगा और भाखड़ा से सैकड़ों किमी. दूर से पानी मंगवाती है लेकिन अपने ही तालाबों को इस लायक नहीं रखती कि ये बरसात का जल जमा कर सकें।
सरकारी गणना बताती है कि दिल्ली की तीन-चौथाई जल निधियों का तो इस्तेमाल महज सीवर की गंदगी बहाने में ही होता है। दिल्ली देहात के कंझावला का जौंती गांव कभी मुगलों की पसंदीदा शिकारगाह था। वहां घने जंगल थे और जंगलों में रहने वाले जानवरों के लिए बेहतरीन तालाब। तालाब का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने करवाया था। आज इसका जिम्मा पुरातत्व विभाग के पास है, बस जिम्मा ही रह गया है क्योंकि तालाब तो कहीं नदारद हो चुका है। कुछ समय पहले ऐतिहासिक-सांस्कृतिक संस्था इंटैक को इसके रखरखाव का जिम्मा देने की बात आई थी, लेकिन मसला कागजों से आगे बढ़ा नहीं। न अब वहां जंगल बचा और न ही तालाब।
को चौपट करने का खमियाजा समाज ने किस तरह भुगता, इसकी सबसे बेहतर बानगी राजधानी दिल्ली ही है। यहां समाज, अदालत, सरकार सभी असहाय हैं जमीन माफिया के सामने। अवैध कब्जों से दिल्ली के तालाब बेहाल हो चुके हैं। थोड़ा पानी बरसा तो सारा शहर पानी-पानी हो जाता है और अगले ही दिन पानी की एक-एक बूंद के लिए हरियाणा या उत्तर प्रदेश की ओर ताकने लगता है। सब जानते हैं कि यह त्रासदी दिल्ली के नक्शे में शामिल उन तालाबों के गुमने से हुई है, जो हवा-पानी का संतुलन बनाए रखते थे, मगर दिल्ली को स्वच्छ और सुंदर बनाने के दावे करने वाली सरकार इन्हें दोबारा विकसित करने की बजाय इनकी लिस्ट छोटी करती जा रही है। इतना ही नहीं, हाई कोर्ट को दिए गए जवाब में जिन तालाबों को फिर से जीवित करने लायक बताया गया था, उनमें भी सही ढंग से काम नहीं हो रहा। यह अनदेखी दिल्ली के पर्यावरणीय संतुलन को बिगाड़ चुकी है।
2000 में दिल्ली के कुल 794 तालाबों का सर्वे किया गया था। ज्यादातर तालाबों पर अवैध कब्जा हो चुका था और जो तालाब थे भी, उनकी हालत खराब थी। इस बारे में दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई, जिसकी सुनवाई में तीन बार में दिल्ली सरकार ने 629 तालाबों की जानकारी दी जो दिल्ली सरकार, डीडीए, एएसआई, पीडब्ल्यूडी, एमसीडी, फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, सीपीडब्ल्यूडी और आईआईटी के तहत आते हैं। सरकार ने इनमें से 453 को ही पुनर्जीवन करने के लायक बताया था। इस मामले में हाई कोर्ट ने 2007 में आदेश दिया कि जीवित करने लायक 453 तालाबों को दोबारा विकसित किया जाए और इनकी देखरेख के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में कमिटी गठित की जाए। निर्देश दिया कि तालाबों के विकास संबंधी छमाही रिपोर्ट सौंपी जाए। मगर कोई रिपोर्ट नहीं दी गई।
जब अदालत ने सख्ती दिखाई तो फ्लड एंड इरिगेशन डिपार्टमेंट ने कह दिया कि दिल्ली सरकार के 476 तालाबों में से 185 की दोबारा खुदाई कर दी गई है, जब बारिश होगी तब इनमें पानी भरा जाएगा। बाकी 139 खुदाई के काबिल नहीं हैं, 43 गंदे पानी वाले हैं, और 89 तालाबों को विकसित करने के लिए डीएसआईडीसी को सौंपा गया है जबकि 20 तालाब ठीक-ठाक हैं। अब यह काम जमीन पर कितना हुआ, एक दशक बाद भी अनुत्तरित है। 2015 में केंद्र सरकार ने दिल्ली के सूखते जलाशयों की सुध लेने के लिए केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय के तहत कार्यदल गठित किया था। उस दल का क्या हुआ? कोई जानकारी नहीं है। अभी भी अमृत सरोवर के तहत कुछ तालाब का जिम्मा कभी दिल्ली सरकार लेती है तो कभी दिल्ली विकास प्राधिकरण लेकिन सभी आसपास चमक दिखने पर जोर देते हैं। तालाब में नैसर्गिक मार्ग से जल आए और उसमें गंदा पानी न मिले, इस पर कोई कार्ययोजना नहीं बनती।
विडंबना है कि जब दिल्ली हाई कोर्ट तालाबों का पुराना स्वरूप लौटाने के निर्देश दे रहा था तब राज्य सरकार ने तालाबों को दीगर कामों के लिए आवंटित कर दिया। डीडीए ने वसंत कुंज के सूखे तालाब को एक गैस एजेंसी को अलॉट कर दिया और घड़ोली के तालाब की जगह एक स्कूल को आवंटित कर दी। दिल्ली की प्यास का सवाल हो या थोड़ी बरसात में जल भराव का-निदान पुराने तालाबों को उनके मूल स्वरूप में लौटाने में ही छिपा है।
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