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मंगलवार, 11 जुलाई 2023

Let Panjim be "Ponzi" not smart

                 पंजिम को स्मार्ट नहीं “पोंजी” ही  रहने दें

पंकज चतुर्वेदी




यदि गोवा सरकार की वेब साइट  पर भरोसा करें  तो इस इलाके की जमीन ऐसी थी कि पानी को सोख लेती थी – पौंजी , इसी कारण इसका नाम पणजी हो गया .  इस बार पहली बरसात में ही पंजिम दरिया बन गया . जहां  सर्वाधिक गगनचुम्बी इमारते हैं , जस बाज़ार से सट कर नदी बहती है, जहां से कुछ दूरी पर समुद्र है – वे सभी कई-कई फूट पानी में डूब गए. बहाने वही पुराने – बरसात अधिक हो गई , नालों की क्षमता कम थी . असल में यह एक “वैश्विक_राज्य” कहलाने वाले गोवा के लिए चेतावनी है . जलवायु परिवर्तन की मार सबसे अधिक  तटीय नगरों पर पड़ना है और आने वाले दिन में और भीषण होना है, ऐसे में विचार करना होगा  कि क्या जिस स्मार्ट  सिटी परियोजना से  इस पुराने शहर का चेहरा चमकाने की कोशिश है , वह बनी किस्म की चुनोतियों से जूझ पायेगा या नहीं .

गोवा छोटा सा राज्य है , लेकिन वहां निवास करने वालों और आने वाले पर्यटकों  के वैविध्य ने इसे “ग्लोबल विलेज” बना दिया है . प्राकृतिक संसाधनों की भरमार है , सो व्यापार के भी अवसर है लेकिन यहाँ बरसात लम्बे समय तक डेरा डाले  रहती है और इस तरह का जलभराव यहाँ के नैसर्गिक सौन्दर्य और ऐतिहासिक विरासत के साथ-साथ पर्यटन और व्यापार के लिए भी नकारात्मक है . विदित हो 14  अक्तूबर -15 को यहाँ स्मार्ट सिटी परियोजना शुरू हुई . इसका बजट कोई 11 सौ करोड़ है और  इसकी आधी राशी खर्च हो चुकी है. यह परियोजना  अपने निर्धारित  समय सीमा से  बहुत पीछे है और बरसात ने बता दिया कि कार्य की या तो गुणवत्ता दोयम है या फिर यह भविष्योन्मुखी नहीं है .

पाट्टो  पंजिम का सबसे उभरता और महंगा  व्यावसायिक केंद्र है . यहा कई बड़े बड़े दफ्तर हैं, बेंक के मुख्यालय, होटल और मॉल हैं . यहीं राज्य की सबसे बड़ी लायब्रेरी गोवा स्टेट सेंट्रल लाइब्रेरी (जिसे अब कृष्णदास शर्मा  लाइब्रेरी भी कहा जाता है) और संस्कृति  केंद्र भी है, जिसके ठीक पीछे भारत का दूसरा मैंग्रोव बोर्डवॉक है (पहला अंडमान द्वीप समूह में है)।  यह पहला वॉकवे आगंतुकों के लिए क्षेत्र के वनस्पतियों और जीवों के बारे में अधिक जानने, खोजने और जानने के लिए है। ओरेम क्रीक के ऊपर स्थित, यह 1,100 वर्ग मीटर में फैला हुआ है और सभी के लिए नि:शुल्क है। कुछ समय पहले जनता के लिए खोला गया था, कोई भी दिन में कभी भी यहां घूमने के लिए जा सकता है, इन मैंग्रोव में रहने वाले मेंढकों, केकड़ों, पक्षियों और अन्य जीवों को देख सकता है। वहाँ 14 विभिन्न प्रकार के मैंग्रोव हैं।

इस इलाके का नाम पाट्टो  इस लिए पड़ा क्योंकि यह मंडोवी नदी और अरब सागर के बीच बनी एक पतली सी नहर, जिसे कोरम क्रीक कहते है, के पाट अर्थात कचार का मैदान था . इस नमकीन पानी की धरा में आगे नमक बनाने की खदान भी है. स्थानीय लोग इसे “लवण” कहते हैं अर्थात नमकीन धरती .  गोवा के मिजाज में बरसात  है, यहाँ जून से ले कर अक्तूबर तक लगभग छः महीने पानी गिरता है . शहर के बीच से गुजरने वाला यह क्रीक , उसके किनारे का पाट और लवणीय भूमि कभी यहाँ बरसात की हर बूँद को अपने में जज्ब कर लेती थी. शायद तभी यह पोंजी कहलाई . कभी ये मेंग्रोव पंजिम के लिए शुध्ध हवा हेतु फेंफडे जैसे थे और जल संरक्ष्ण के असीम भण्डार .

स्मार्ट सिटी के लिए सबसे पाट्टो  की जमीन पर कंक्रीट रोपी गई , फिर क्रीक के जलधारा को सिंकोड़ कर उस पर नए निर्माण के तयारी शुरू की गई . इस बात का ध्यान रखा नहीं गया कि तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को भारी बाढ़ और क्षति से बचाने में मैंग्रोव का बहुत अधिक महत्व है .

कोंकणी में मैंग्रोव को मार्वल कहते हैं। अर्थात मर्यादा वेल। यह जहां तक है वहीं तक खारे पानी की मर्यादा आगम की। शहर को दमकाने की फ़िराक में इस मर्यादा को जो लांघा गया तो जल ने अपना प्रतिरोध दर्ज कर दिया .

शहर में पानी भरने का एक और कारण हैं यहाँ बहने वाली मांडोवी और जुआरी नदियों का प्रदुषण,दोनों नदियों को उद्गम से पहले जोड़ने वाली कमबरजुआ नहर की क्षमता कम होना, दोनों नदियों का उथला होना और डौना पाउलो में उनके अरब सागर में मिलन स्थल का आमुख सिकुड़ जाना . मांडोवी जिसे महादायी भी कहा जाता है, कर्नाटक पठार के पश्चिमी किनारे पर स्थित कर्नाटक राज्य के बेलगाम जिले के डेगाओ गांव में केलिल घाट के ऊपर मुख्य सह्याद्रि में 600 मीटर की ऊंचाई से उदगमित होती है। कर्नाटक में  उत्तर कन्नड़ जिले से 29 किमी तक बहती हुई यह नदी उत्तरी गोवा जिले के सत्तारी तालुका से होते हुए गोवा राज्य में प्रवेश करती है। गोवा राज्य के भीतर 52 किमी की लंबाई में बहती हुई अरब सागर में गिरती है। दुर्भाग्य है कि इस नदी के दोनों किनारों पर जम कर खनन हो रहा है और इसके अवशेष नदी में गिर कर उसकी गहरे को कम करा रहे हैं और इसे दलदली बना रहे हैं . यह कीचड आगे चल कर समुद्र के रास्ते में भी एकत्र हो रहा है और तभी शहर में जल का अधिक्य जब इन नदियों के माध्यम से समुद्र तक जाता है तो वहां से उसे उलटा धक्का सहना अप्द्ता हर  इससे पानी नालियों के जरिये पलट कर सड़कों पर आ जाता है .

पणजी को स्मार्ट सिटी बनाने के लिए सबसे पहले जरुरी है कि यहाँ कि नदी, मेंग्रोव, उसके किनारे की जमीन,  बरसाती नालों के नदियों में जुड़ने और नदियों के समुद्र में जुड़ने के स्था, क्रीक आदि को उनके सौ साल पूरण स्वरुप में लाया जाए . ताकि बरसात के जल को  जल निधियों के तट पर फैलने और खेलने का अवसर मिले . यदि नदियों के समुद्र में मिल्न स्थल पर मेंग्रोव नष्ट नहीं होंगे , वहा कचरा जमा नहीं होगा, नदियों से आये मलवे की नियमित सफाई होगी तो  पंजिम फिर से “पोंजी “ शहर बन सकता है .

 

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