गाद से गहराता नदियों का संकट
पंकज चतुर्वेदी
पिछले महीने सम्पन्न सतलुज- यमुना जोड़ की बैठक में
पंजाब सरकार ने स्पष्ट किया कि उनके राज्य में सतलुज नदी अभी से सूख रही है ।
दिल्ली में यमुना हो या फिर गाजियाबाद-शामली में हिंडन, सभ की दर सिकुड़ रही है ।
अभी दो महीने पहले बरसात में तबाही मचाने वाली बिहार के गोपालगंज जिले से गुजरने
वाली घोघारी, धमई
व स्याही नदियों ने सूखने के लिए गर्मी का इंतजार नहीं किया ।
गत
12 जुलाई-22 को सी-गंगा यानी सेंटर फार
गंगा रिवर बेसिन मेनेजमेंट एंड स्टडीज ने जल शक्ति मंत्रालय को सौंपी गई रिपोर्ट
बताती है कि उप्र, बिहार,
उत्तराखंड, झारखंड की 65 नदियां बढ़ते गाद से हाँफ रही हैं. हालांकि गाद नदियों के
प्रवाह का नैसर्गिक उत्पाद है और देश के कई बड़े तीर्थ और प्राचीन शहर इसी गाद पर
विकसित हुए है , लेकिन जब नदी के साथ बह कर आई गाद को जब किनारों पर माकूल जगह
नहीं मिलती तो वह जल-धारा के मार्ग में व्यवधान बन जाता है . गाद नदी के
प्रवाह मार्ग में जमती रहती है और इसे नदियों उथली होती है , अकेले उत्तरप्रदेश
में ऐसी 36 नदियाँ हैं जिनकी
कोख में इतनी गाद है कि न केवल उनकी गति मंथर हो गिया बल्कि कुछ ने अपना मार्ग
बदला और उनका पाट संकरा हो गया, रही बची कसार अंधाधुंध बालू उत्खनन ने पूरी कर दी
. इनमें से कई का अस्त्तत्व खतरे में है .
प्रयागराज के फाफामऊ, दारागंज,
संगम, छतनाग और लीलापुर के पास टापू
बनते हो. संगम के आसपास गंगा नदी में चार
मिलीमीटर की दर से हर साल गाद जमा हो रहा है। पिछले कई सालों से यह सिलसिला जारी
है। गंगा की गहराई कम होने से उसकी धारा में भी परिवर्तन हो रहा है। आगे आने वाले
दिनों में गंगा नदी की धारा और तेजी से परिवर्तित होगी, क्योंकि जब नदी की गहराई कम हो जाएगी तो नदी का
स्वाभाविक बहाव रुक जाएगा। ऐसे में बाढ़ का खतरा स्वाभाविक है।गंगा में प्राकृतिक और
आबादी दोनों ओर से गाद पहुंच रही है।
तभी गंगा का पाट छिछला होता जा रहा है। यह
बात सरकारी रिकार्ड में हैं कि आज जहां पर संगम है, वहां यमुना की गहराई करीब 80 फीट है। वहीं, गंगा की गहराई इतनी कम है
कि संगम के किनारे नदी में खड़ा होकर कोई भी स्नान कर सकता है, जबकि सहायक नदी यमुना की
गहराई कम होनी चाहिए। यमुना की अधिक गहराई के चलते असंतुलन उत्पन्न हो रहा है। तभी
संगम पूरब की तरफ बढ़ रहा है। आज संगम का झुकाव अकबर के किले तक खिसक चुका है . कभी संगम सरस्वती घाट के पास
हुआ करता था,
लेकिन
गंगा की गहराई लगातार कम होने से संगम पूरब की तरफ खिसकते हुए किला के पास आ गया
है। यदि यही क्रम जारी रहा तो आने वाले दिनों में संगम और भी पूरब की तरफ खिसक
जाएगा।
आज़ादी के बाद तक गढ़ मुक्तेश्वर से
कोल्कता तक जहाज चला करते थे . गाद के चलते बीते पांच दशक में यहाँ गंगा की
धारा आठ किमी दूर खिसक गई है. बिजनौर के
गंगा बैराज पर गाद की आठ मीटर मोटी परत है. आगरा व मथुरा में यमुना गाद से भर गई
है. आजमगढ़ में घाघरा और तमसा के बीच गाद के कारण कई मीटर ऊँचे टापू बन गए
हैं। घाघरा, कर्मनाशा, बेसो, मंगई, चंद्रप्रभा, गरई, तमसा, वरुणा और असि नदियां गाद
से बेहाल हैं.
बिहार
में तो उथली हो रही नदी में गंगा सहित 29 नदियों का दर्द है .जो नदियाँ तेज बहाव से
आ ही हैं , उनके साथ आये मलवे से
भूमि कटाव भी हो रहा है, कई एक जगह नदी के बीच टापू बन गए हैं . अकेले फरक्का से होकर गंगा नदी पर हर साल 73.6 करोड़ टन गाद आती है जिसमें से 32.8 करोड़ टन गाद इस बराज के
प्रतिप्रवाह में ठहर जाती है। झारखंड के साहिबगंज में गंगा, अपने
पारंपरिक घाट से पांच किमी दूर चली गई है.
19वीं सदी में
बिहार में (जिसमें आज का झारखण्ड भी है ) 6000 से अधिक नदियां बहती थीं, जो आज सिमट कर 600 रह गई है. विदित हो सन 2016 में केंद्र सरकार द्वारा गठित चितले कमेटी ने साफ कहा था
कि नदी में बढती गाद गाद का एकमात्र निराकरण यही है कि नदी के पानी को फैलने का पर्याप्त स्थान मिले.
गाद को बहने का रास्ता मिलना चाहिए. तटबंध और नदी के बहाव क्षेत्रा में अतिक्रमण न
हो और अत्यधिक गाद वाली नदियों के संगम क्षेत्र से नियमित गाद निकालने का काम हो.
जाहिर है कि ये सिफारिशे किसी ठंडे बस्ते में बंद हो गई
यह
दुर्भाग्य है कि विकास के नाम पर नदियों के कछार
को सर्वाधिक हडपा गया . असल में कछार नदी का विस्तार होता , ताकि अधिकतम भी बरसात हो तो नदी के दोनों किनारों पर
पानी विस्तार के साथ अविरल बहता रहे. आमतौर पर कचार में केवल मानसून में जल होता
है, बाकी समय वहां की नर्म, नम भूमि पर नदी के साथ बह कर आये लावन, जीवाणु का डेरा
होता है . पहले इस जमीन पर मौसमी फसल-सब्जी लगाए जाते थे और शायद तभी ऐसे किसानों
को “काछी कहा गया—कछार का रखवाला. काछी,
को फ़र्ज़ था कि वह कछार में जमा गाद को आसपास के किसानों को खेत में डालने के लिए
दे , जोकि शानदार खाद हुआ करती थी . भूमि के लालच में कछार और उसकी गाद भी लुप्त
हो गए और काछी भी और कछार में आसरा पाने
वाले गाद को मज़बूरी में नदी के उदर में ही डेरा ज़माना पड़ता है
समझना
होगा कि गाद हर एक नदी का स्वाभाविक उत्पाद है
लेकिन उसका भली भांति प्रबंधन अनिवार्य
है . गाद जैसे ही नदी के बीच जमती है तो नदी का प्रवाह बदल जाता है । इससे नदी
कई धाराओं में बंटे जाती है , किनारें कटते हैं . यदि गाद किनारे से बाहर नहीं फैली, तो
नदी के मैदान का उपजाऊपन और ऊंचाई, दोनों घटने लग जाते हैं । ऊंचाई घटने से किनारों पर बाढ़ का दुष्प्रभाव अधिक
होता है.
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