My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शनिवार, 17 फ़रवरी 2024

Does Congress really want to stand again?

 

क्या सही में कांग्रेस फिर से खड़ी होना चाहती है ?

पंकज चतुर्वेदी



यह तो ते हो गया है कि कांग्रेस जिन दलों को लोकतंत्र बचाने के नाम पर एकत्र कर इंडिया गठबंधन बना रहा था, वह योजना फ्लॉप हो गई है और काँग्रेस में जिसने भी इस योजना को बनाया था, वह असल में चाहता ही नहीं था कि कांग्रेस अपने पैरों पर आए। इसमें कोई शक नहीं कि यदि आज भी देश के सबसे बड़े विपक्षी दल या हर राज्य में निर्णायक उपस्थिति रखने वाला कोई राजनैतिक दल है तो वह कांग्रेस ही है और यदि किसी की आस्था लोकतंत्र में है तो वह एक मजबूत विपक्ष की अपेक्षा रखेगा ही । 16वीं लोकसभा चुनाव के नतीजे हों या उसके बाद हुए विभिन्न राज्यों के विधान सभा चुनाव या फिर सत्ताधारी दलों के हमले , निर्विवाद है कि सत्ताधरी दल के बाद सबसे ज्यादा , और पूरे देश में, हर राज्य व जिले में वोट पाने वाला एकमात्र दल कांग्रेस ही है। अब स्पष्ट हो चुका है कि कांग्रेस के भीतर बैठे स्लीपर सेल ने इंडिया गठबंधन के नाम पर समूची कांग्रेस की आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों को बहुत पीछे कर दिया है। कांग्रेस असल मने एक राजनीतिक दल से अधिक शासन चलें का तरीका है और जो भी दल सत्ता में आता है, कांग्रेस हो जाता है । यही कारण है कि कांग्रेस के अधिकांश छत्रप बगैर सत्ता के रह नहीं सकते और तभी बैचेनई में कांग्रेस छोड़ छोड़ कर जा रहे हैं ।



 कांग्रेस का नेता और संभावित उम्मीदवार , आम कार्यकर्ता अब ऊब गया कि अगले दो महीने बाद उसे किसका झण्डा  उठाना होगा, नीतीश कुमार, ममता बेनरजी, और अब केजरीवाल का रूख बताया चुका है कि वे ऐसे हालात में समझौता करने के प्रस्ताव देंगे जिससे बात भी न बने और न ही उन पर गठबंधन तोड़ने का आरोप लगे। बीते दो दशक में जिस तरह कांग्रेस के टुकड़े हुए है, यह नेतृत्व के प्रति  अविश्वास या  मजबूत पकड़ ना होने से ही हुए हैं और अधिकांश राज्य स्तर के दलों या बीजेपी द्वारा बनाए गए मुख्यमंत्री का मूल गौत्र कांग्रेस है।  कांग्रेस को सबसे पहले इस बिखराव के कारणों को खोजने तथा अपने बिछुड़े साथियों को वापिस लाने की योजना पर काम करना चाहिए। हो सकता है, इसमें पार्टी के कतिपय पुराने क्षत्रपों के कुछ निजी हित टकराएं, लेकिन संगठन को आधे दर्जन राज्यों  में मोर्चे पर वापिस लाने के लिए कांग्रेस यदि कोई भी कीमत चुका कर यह काम करती है तो मान कर चलें कि बिखरा, टूटा, जनाघार खो चुकी कांग्रेस आगमी चुनावों में मुकाबले में  दिखेगी


नेहरूजी से लेकर इंदिराजी तक और आज भी- कांग्रेस ताकतवर नेताओं की गणेश परिक्रमा वाली पार्टी है, और तभी दल में ना तो नया नेत्ृत्व उभर रहा है और ना ही कार्यकर्ता। ऐसे में बिखराव रोकने के लिए कांग्रेस को सबसे पहले “इंडिया” के सपने को यही मार कर अपने पुराने “ यू पी ए “ को एकजुट कर उम्मीदवारों की घोषणा के काम पर आगे बढ़ना होगा । एक बात और,  बीजेपी और आरएसएस अच्छी तरह से जानता हैं कि कांग्रेस पार्टी का ‘मेगनेट या गोंद’ नेहरू-गांधी परिवार ही है और इसी लिए पहले सोनिया गांधी के विदेशी मूल के और उसके बाद राहुल गांधी को पप्पू, बेवकूफ या असरहीन करार देने का अच्छा प्रचार किया गया। जाहिर है कि विपक्षी दल अपने विरोधी की सबसे बड़ी ताकत को ही कमजोर करना चाहती है। हकीकत यह है कि राहुल गांधी की राजनीति में कही कोई गलती नहीं है, लेकिन उन्हें यह सोचना चाहिए था कि जब एक तरफ लाखों की भीड़ के साथ  यात्रा और सभा की चर्चा होती है तो उसे वोट में बदलने में कांग्रेस कार्यकर्ता असफल क्यों रहता  है ?


कांग्रेस का एक और प्रयोग असफल रहा, जिसमें सरकार व पार्टी का चेहरा अलग-अलग दिखाना था। जबकि भारत  में जनता एक ही नेतृत्व देखना चाहती है। अपने पारंपरिक वोट को पाने के लिए अब पार्टी में राज्य स्तर के क्षत्रप तैयार कर केंद्र पर एक ही चैहरे के प्रयोग की तरफ लौटना होगा। इसके लिए अनिवार्य है कि कांग्रेस अब विभिन्न दलों को जोड़ने के बजाय केवल अपने पुराने साथियों को जोड़ कर टिकट घोषित करे ।

हाल के राज्यसभा चुनाव में जिस तरह बीजू जनता दल ने बीजेपी का समर्थन किया , यह इशारा मात्र है कि विभिन्न राज्यों में केवल कांग्रेस का वइरोध कर उभरे दल किसी भी हालत में कांग्रेस के साथी हो नहीं सकते । इसमें वे सभी दल शामिल हैं जो कभी न कभी बीजेपी की उंगली से शहद चाट चुके हैं । कांग्रेस को यह भी विचार करना होगा कि वे कौन से नेता थे जिन्होंने अन्ना आंदोलन से उपजे सरकार-विरोधी असंतोष  की पूरी योजना को नजरअंदाज किया या फिर उसकी प्रतिरोध-योजना नहीं बनाई। आज मोदीजी की प्रचंड जीत की भूमिका अन्ना आंदोलन से ही लिख दी गई थी, जिसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सीधी भूमिका थी, फिर बाबा रामदेव प्रसंग हुआ, बीच में निर्भया वाला विरोध प्रकरण..... और देखें आंदोलन से निकले वी के सिंह हों या फिर रामदेव या आम आदमी पार्टी के कई अन्य नेता, बाद में भाजपा के अग्रणी चेहरे बन गए। पहले भीड़ जोड़ना, उसमें सरकार की नाकामियों  को दिखा कर विरोध की भावना पैदा करना, फिर उसी भीड़ को मोदीजी की सभा में ले जा कर उसे अपना वोट बनाने की योजना भाजपा की उत्कृष्ट  योजना रही, और मदमस्त, जनता के सरोकारों से विमुख कांग्रेसी अपने संगठन के लिए कुछ योगदान नहीं कर पाए। यह विडंबना है कि बड़े से बड़ा कांग्रेसी सोनिया, राहुल या प्रियंका की पीठ पर चढ कर अपनी सफलता की इबारत लिखना चाहता है, जबकि वह अपने कार्यकर्ताओं तक से ना केवल दुर्व्यवहार करता है, जनता से दूर ही रहता है।

एक बात समझ लें राम मंदिर मुद्दा अब धीरे धीरे शून्य की तरफ है और इसे बीजेपी भी चुनावी विषय बनाने से बचेगी। ऐसे में कांग्रेस को इस विषय पर मौन ही रहना होगा । यदि अब कांग्रेस चाहती है कि उसका अस्तित्व  बचा रहे तो उसे इस महीने के अंतिम दिनों तक पुराने यू पी ए के साथियों के साथ सीटें बाँट लेना चाहिए ।

कांग्रेस को अपने बूथ कार्यकर्ता को दल से जोड़ कर रखने के लिए कुछ करना होगा। जान लें कि कार्यकर्ता केववल निष्ठा  या विचारधारा के कारण दल से जुड़ता है, यदि उसे सम्मान नहीं मिलेगा तो वह  अपने व्यवसाय या परिवार का समय पार्टी को देने के बारे में सोचेगा भी नहीं। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में बीते विधान सभा चुनाव में कांग्रेस आखिरी हफ्ते में बूथ प्रबंधन में हार गई थी । कांग्रेस यदि वास्तव में अपन मटियामेट हो गई प्रतिष्ठा  को फिर से शिखर पर लाना चाहती है तो उसे नए गठबंधन के नाम पर भीड़ जोड़ने के बनिस्पत , आत्ममंथन, बिछड़े लोगों को वापिस लाने, कार्यकर्ता को सम्मान देने के कार्य तत्काल करने होंगे। हालांकि आज पार्टी जिस हाल में उसको देखते हुए तो मोदीजी को सन 2024  के चुनाव में भी कोई चुनौती नहीं दिख रही है।

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...