My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 12 जून 2024

Delhi Water crisis : lack of management

 

 

 

                    दिल्ली  : कमी पानी की नहीं प्रबंधन की

                                पंकज चतुर्वेदी


 

 

इस बार गर्मी तीखी और लंबी चल रही है , ऐसे में पानी की मांग बढ़ना लाजिमी है। बीते  आठ सालों की तरह  दिल्ली की सरकार का जल आपूर्ति में कमी के लिए हरियाणा को कोसना और फिर इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की शरण में जाना   इस बार भी  जारी रहा । इस बार यह तथ्य उभर कर आया कि राजधानी में पानी की उतनी कमी नहीं है , जितनी उसके प्रबंधन की ।  भारत सरकार के महाधिवक्ता तुषार मेहता ने जब इस बात के दस्तावेज अदालत के सामने पेश किए कि दिल्ली को मिल रहे पानी की बड़ी मात्रा में बर्बादी हो रही है तो अदालत ने भी इसए गंभीरता से लिया । श्री मेहता ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से बताया कि दिल्ली को मिलने वाले प्रत्येक 100 लीटर पानी में से केवल 48.65 लीटर पानी ही राजधानी के लोगों तक पहुंच पाता है। इसका 52.35% हिस्सा , रिसाव, टैंकर माफिया और औद्योगिक इकाइयों द्वारा चोरी का शिकार है । 

राजधानी दिल्ली में इस बार पूरी गर्मी जल संकट स्थाई रूप से डेरा डाले रहा। सरकारी अनुमान है कि दिल्ली की आबादी  तीन करोड़  चालीस लाख के करीब पहुँच गई है और यहाँ हर दिन पानी की मांग प्रतिदिन 1290 मिलियन गेलन (एम एल डी) है जबकि  उपलब्ध पानी महज 900 एम एल डी है । इसमें से लगभग आधे पानी का जरिया यमुना ही है , शेष जल  ऊपरी गंगा नहर, भाखड़ा बांध आदि से आता है। काफी कुछ जमीन की को खोद कर भी आपूर्ति होती है । दिल्ली के 9 में से  7 जल शोधन संयत्र तभी काम करते हैं जब उन्हें मुनक नहर से  यमुना का पानी मिले ।

मुनक नहर का निर्माण 2003 और 2012 के बीच हरियाणा सरकार ने किया था। यह करनाल जिले में यमुना का पानी लेकर खूबरू और मंडोरा बैराज से होकर दिल्ली के हैदरपुर पहुंचती है। करनाल के मुनक गाँव से दिल्ली के हैदरपुर तक नहर 102 किमी लंबी है और  यह दिल्ली में महज 16 किलोमीटर का ही सफर करती है ।  विदित हो सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर  यमुना जल कके बंटवारे के समझौते के ठीक से पालन  हेतु गठित ऊपरी यमुना नदी बोर्ड (यूवाईआरबी) के विशेषज्ञों का एक दल पिछले 10 जून  को नहर के निरीक्षण पर गया था । इनकी रिपोर्ट है कि हरियाँ से तो पर्याप्त पानी छोड़ जा रहा है लेकिन दिल्ली तक पहुंचते-पहुंचते उसका बड़ा हिस्सा गूम जा रहा है ।  जैसे कि हरियाणा ने मूनक नहर में 2,289 क्यूसेक पानी छोड़ा। काकोरी से भी निर्धारित मात्रा 1050 क्यूसेक की तुलना में 1161.084 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। काकोरी वह जगह है, जहां से पानी सीधे दिल्ली पहुंचता है। लेकिन 16 किलोमीटर के रास्ते चल कर बवाना में मूनक नहर को 960.78 क्यूसेक पानी ही पहुंचा। जाहीर है कि लगभग 200 क्यूसेक पानी  बीच में ही गायब हो गया।  नियमानुसार इस तरह के प्रवाह में पाँच फेसदी तक जल की क्षति हो सकती है लेकिन यहाँ तो 18 प्रतिशत पानी कम हो गया ।

आखिर जल प्रबंधन में दिल्ली का प्रशासन  किस तरह   पीछे है ? इसकी बानगी है वजीराबाद जल शोधन संयत्र । वजीराबाद बैराज के पास बने जलाशय से यह पानी लेता है । अब जलाशय की गहराई  हुआ करती थी  4.26 मीटर , इसकी गाद को किसी ने साफ करने की सोची नहीं और अब इसमें महज एक मीटर से भी काम 0. 42 मीटर जल- भराव अक्षमत रह गई । तभी 134 एम जी डी  क्षमता वाला संयत्र आधा पानी भी नहीं निकाल रहा ।

दिल्ली में पानी का कुप्रबंधन यहीं ही नहीं रुकता , 40 फीसदी पानी जल बोर्ड की पाइप से रिसाव व 18 फीसदी चोरी की वजह से  उपभोक्ता तक नहीं पहुंचता ।कितना दुखद है कि दिल्ली में जिस पानी को पीने लायक बनाने में भारी धन और तंत्र लगता है उसका 70 फीसदी सिंचाई, वाहनों की सफाई, शौचालय जैसे गैर पेयजल कार्यों में होता है । जबकि एसटीपी से शोधन कर निकला पानी नाले में बहा दिया जाता है । ईमानदारी से गैर पेयजल कार्यों के लिए इस पानी का इस्तेमाल हो तो दिल्ली में आठ से दस घंटे जल आपूर्ति संभव है ।

एक बात समझना होगा कि दिल्ली की आबादी अब तीन  करोड़ 40 लाख के करीब पहुँच रही है और इस विशाल जन समुदाय को  साल भर पर्याप्त पानी देने के लिए अस्थाई  या तदर्थ तरीकों से काम चल नहीं सकता । आज तो दिल्ली पानी के लिए पडोसी राज्यों पर निर्भर है लेकिन यह कोई  तकनीकी और दूरगामी हल नहीं है। दिल्ली शहर के पास यमुना जैसे सदा नीर नदी का 42 किलोमीटर लंबा हिस्सा है । इसके अलावा छह सौ से ज्यादा तालाब हैं जो कि बरसात की कम से कम मात्र होने पर भी सारे साल महानगर का गला तर रखने में सक्षम हैं । यदि दिल्ली में की सीमा में यमुना की सफाई के साथ – साथ गाद निकाल कर पूरी गहराई मिल जाए ।  इसमें सभी नाले गंदा पानी छोड़ना बंद कर दें तो महज  30 किलोमीटर नदी, जिसकी गहराई दो मीटर हो तो इसमें इतना निर्मल जल साल भर रह सकता है जिससे दिल्ली के हर घर को पर्याप्त जल मिल सकता है ।  विदित हो नदी का प्रवाह गर्मी में कम रहता है लेकिन यदि गहराई होगी तो पानी का स्थाई डेरा रहेगा । हरियाणा सरकार  इजराइल के साथ मिल कर यमुना के कायाकल्प की योजना बना रही है और इस दिशा में हरियाणा सिंचाई विभाग ने अपने सर्वे में पाया है कि यमुना में गंदगी के चलते दिल्ली में सात माह पानी की किल्लत रहती है। दिल्ली में यमुना, गंगा और भूजल से 1900 क्यूसेक पानी प्रतिदिन प्रयोग में लाया जाता है। इसका 60 फीसद यानी करीब 1100 क्यूसेक सीवरेज का पानी एकत्र होता है। यदि यह पानी शोधित कर यमुना में डाला जाए तो यमुना निर्मल रहेगी और दिल्ली में पेयजल की किल्लत भी दूर होगी।

एक बात और दिल्ली में यमुना का पानी अधिक या खतरे के निशान से ऊपर होने की दशा में सराय काले खान के पास बारा पूला , साकेत में खिड़की के पास सात पूला  जैसी संरचनाओं को फिर से जीवित कर दिया जाए तो महानगर के कई जलाशय  पानीदार हो जाएंगे । कभी दिल्ली में यमुना के पानी के घटने –बढ़ने को नियंत्रित करने वाली नजफ़गढ़ प्रकार्तिक नहर को नाला बना देने और नजफ़गढ़ झील को पुनर्जीवित आकर दिया जाए तो दिल्ली के पास अपनी क्षमता से दुगना जल होगा। नजफ़गढ़ वेट लेंड को ले कर गत पाँच सालों से एन जी टी आदेश देती है लेकिन दिल्ली सरकार ने इसए जींद रखने की कोई माकूल योजना ही तैयार नहीं की । नजफगढ़ नाला कभी जयपुर के जीतगढ़ से निकल कर अलवर, कोटपुतली, रेवाड़ी व रोहतक होते हुए नजफगढ़ झील व वहां से दिल्ली में यमुना से मिलने वाली साहिबी या रोहिणी नदी हुआ करती थी । इस नदी के जरिये नजफगढ़ झील का अतिरिक्त पानी यमुना में मिल जाया करता था। सन 1912 के आसपास दिल्ली  के ग्रामीण इलाकों में बाढ़ आई व अंग्रेजी हुकुमत ने नजफगढ़ नाले को गहरा कर उससे पानी निकासी की जुगाड़ की। उस दौर में इसे नाला नहीं बल्कि ‘‘नजफगढ लेक एस्केपकहा करते थे। इसके साथ ही नजफगढ झील के नाबदान और प्राकृतिक नहर के नाले में बदलने की दुखद कथा शुरू हो गई। यदि इस नाले को फिर नहर में तब्दील कर दें तो दिल्ली को हरियाणा को हर साल कोसना नहीं पड़ेगा।  यह केवल पानी की कमी ही नहीं , बल्कि  जलवायु परिवर्तन की मार के चलते चरम गर्मी, सर्दी और बारिश से जूझने में भी सक्षम हैं । और फिर पानी चाहे जितना भी हो, यदि लीकेज और चोरी नहीं रोकी जाए तो यमुना- तालाब लबालब होने के बाद भी दिल्ली  जल-कंगाल ही रह जाएगी  

 

 

 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Why do paramilitary forces commit suicide in Bastar?

  आखिर बस्तर में क्यों खुदकुशी करते हैं अर्ध सैनिक बल पंकज चतुर्वेदी गत् 26 अक्टूबर 24 को बस्तर के बीजापुर जिले के पातरपारा , भैरमगढ़ में...