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रविवार, 9 जून 2024

Sick lakes should not make the society sick

 

बीमार झीलें कहीं समाज को बीमार न कर दें

पंकज चतुर्वेदी


कब्जे के लिए सूखती , घरेलू व अन्य निस्तार के कारण बदबू मारती , पानी की आवक के रास्ते में खड़ी रुकावटों से सूखती , सफाई न होने से  उथली होती और  जलवायु परिवर्तन से जूझती  दुनियाभर की झीलें बीमार हो रही है।  इंसानों की तरह ही बीमार  और इसका असर समूची प्रकृति के साथ-साथ इंसान  पर भी पड़  रहा है । अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका “अर्थ फ्यूचर “ के ताजा अंक में प्रकाशित शोध “ ग्लोबल लेक हेल्थ इन एंथरोंपोसेन : सोशल इमपलिकेशन एण्ड ट्रेटमेंट स्ट्रेटेजिस ” में चेतावनी दी है कि जिस तरह मानव-स्वास्थ्य के लिए रणनीति बनाई जाती है, ठीक  उसी तरह झीलों की तंदरुस्ती के लिए व्यापक नीति जरूरी है । इसके लिए अनिवार्य है कि झीलों को भी प्राण वाले जीव की मानिंद समझा जाए । इस शोध में 10 हेक्टेयर से अधिक फैलाव  वाली दुनिया की 14,27,688 झीलों की सेहत का आकलन किया है , जिनमें भारत की 3043 जल निधियाँ भी हैं । जिन झीलों के आसपास  खेती हो रही है , वहाँ रासायनिक खाद और अन्य पोषक तत्व  अधिक हैं और इससे  झीलों में शैवाल बढ़ने से  झीलों की सेहत पर विपरीत असर पड़  रहा हैं ।

यह समझना होगा कि झीलें जीवित प्रणालियां हैं,  जिन्हें सांस लेने के लिए ऑक्सीजन,  प्रसन्न रहने के लिए स्वच्छ पानी, अपने भीतर जीव-जन्तु जीवित रखने  के लिए संतुलित ऊर्जा और पोषक तत्वों की आपूर्ति की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे इंसान झीलों के प्रति निर्मोही हो रहा है , अपने साथ प्रकृति की इन अमूल्य  धरोहरों  के अस्तित्व के लिए खतरा पैदा कर रहा है ।  इंसान की ही तरह झीलें विभिन्न रोगों की शिकार हो रही हैं, जैसे – बुखार आना अर्थात अधिक गरम होना, परिसंचरण (जैसे इंसान के शरीर में रक्त संचरण), श्वसन, पोषण और चयापचय संबंधी मुद्दों से लेकर संक्रमण और विषाक्तता।  तक कई झील स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं। एक बात और झीलें बरसात से जितना पानी  पाती हैं, उससे दुगना वाष्पित करती हैं। यदि बरसात काम होगी, गर्मी अधिक होने से वाष्पीकरण अधिक होगा और उथलेपन से उनकी भंडारण क्षमता घटेगी तो जाहीर है कि झील की सेहत गड़बड़ाएगी । यदि झील की सेहत से बेपरवाही रही तो  समूचे पर्यावरणीय तंत्र पर इसका असर होगा , जिसके चलते झील पर निर्भर बड़ी आबादी के सामाजीक-आर्थिक जीवन में भूचाल या जाएगा ।

भारत का हर तालाब अपने आसपास भूवैज्ञानिक इतिहास और पर्यावरणीय महत्व की एक अनूठी कहानी समेटे हुए है। स्वस्थ झील-तालाब वैश्विक सतत विकास लक्ष्यों को पाने की राह  में अतुलनीत पारिस्थितिकी तंत्र होते हैं।  यदि तालाब को बीमार होने से बचाने या फिर बीमाज झील के उपचार की  बेहतर रणनीति न बनाई जाए तो उसके आसपास रहने वाले लोग और वन्य जगत भी अस्वस्थ हो जाता है ।

एक झील के पानी का  निर्मल होना और पर्याप्त होना कई तरह से समूचे परिवेश के  बेहतर स्वास्थ्य का अपरिचायक होता है । यह जलचरों जैसे- कछुआ, मछली के पनपने और आवागमन मार्ग को प्रभावित करता ही है , पानी काम होने पर सामाजिक और राजनीतिक स्थानीय विग्रह भी उपजाता है । भारत जैसे देश में जहां, तालाबों के किनारे कई पर्व, मान्यताएं और धार्मिक गतिविधियां अनिवार्य मानी जाती हैं , उनका अस्तित्व ही झील की सेहत पर निर्भर है । झील-तालाब बीमार तो इलाके का कार्बन और ताप अवशोषण प्रभावित होता है , जो जैव विविधता को क्षति और बाढ़-सूखे के रूप में सामने आता है । स्थानीय समज का जल-स्रोत यदि सेहतमंद न हो हो तो जलजनित रोग तो बढ़ेंगे ही ।

आखिर कोई झील बीमार कैसे होती है ? समझ लें यदि जल निधि में पानी की मात्रा काम है तो थोड़ी गर्मी में ही उसका तापमान बढ़ेगा, अधिक गर्मी हुई तो तेजी से वाष्पीकरण हो कर जल- खजाना  जल्दी खाली होगा । किस तालाब- झील में ऑक्सीजन की मात्रा काम होना भी खतरनाक है । यह अन्य जलचरों और वनस्पति के लिए जानलेवा होता है । जलकुंभी या फिर पानी में अधिक मात्रा में दूषित अवशिष्ठ का मिलना , गंदे पानी का निस्तार ऑक्सीजन काम होने के मूल  कारक हैं । इससे पानी की क्षरीयता भी बढ़ती है जो किसी  तालाब  के गंभीर बीमार होने का लक्षण है। गौर करें  ठीक इंसान के स्वस्थ्य-शरीर की ही तरह झीलों को भी पर्याप्त ऑक्सीजन और अति –क्षारीयता या अम्लीयता से मुक्ति चाहिए होती है । एक बात और यदि दरिया का पानी हाष्ट-पुष्ट न हो तो उससे उगने वाले उत्पाद में भी पौष्टिकता के कमी होती है ।

जलवायु परिवर्तन और वैश्विक तापमान में वृद्धि  झीलों की सेहत को बुरी तरह प्रभावित कर रही है । गंभीर जल दोहन और बरसात की अनियमितता  के कारण कई झीलों में जल स्तर  तेजी से तेजी से नीचे गिरा, जबकि दूसरी तरफ पेय जल , सिंचाई और मछली पालन आदि में पानी की खपत बढ़ी । इससे झीलों का पोषण संतुलन तब गड़बड़ा जाता है जब उसमें पोषक तत्वों की सांद्रता या तो अधिक हो जाए या फिर बहुत काम हो जाए । इस तरह झील का पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है । पोषक तत्वों की अचानक अधिकता होने जल निधियों की ऊपरी साथ पर हरे रंग की परत जमने से  सभी पहले से वाकिफ हैं । इसए वैज्ञानिक भाषा में ‘यूट्रोफिकेशन’ कहते हैं । वास्तव में हरापन एक तरह के वैकटेरिया के कारण होता है जिसे सूक्ष्म या फिलामेंटस शैवाल कहा जाता है ।  गंदे पानी सीवरेज ,कारखानों  से निकल अपशिष्ट जल और खेतों से बह कर आए खाद-उर्वरक के अपवाह से इस तरह का विकार  जल्दी  वृद्धि करता है । इसके कारण पानी में ऑक्सीजन की मात्रा भी काम हो जाती है ।

 समझना होगा कि इस तरह के शैवाल का कुप्रभाव महज जल निधि तक सीमित नहीं रहता, यह सीधे तौर पर मानव स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है क्योंकि कुछ साइनोबैक्टीरियल से विषाक्त पदार्थों का उत्पादन होता  है, जो जिससे श्वसन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और त्वचा संबंधी समस्याएं पैदा कर देता है । इस अंतर्राष्ट्रीय शोध में बताया गया है कि इस तरह से  बीमार हुई झील के  न्यूरोटॉक्सिसिटी  प्रभाव होते हैं, जिससे सेलुलर और जीनोमिक क्षति, प्रोटीन संश्लेषण अवरोध और मनुष्यों और वन्यजीवों में संभावित कार्सिनोजेनेसिस होता है ।

झीलों के जल का अधिक गरम होना और आयनी करण के साथ अम्लीकरण, लवणीकरण और शैवाल के कारण बदरंग होना , ये सभी झील के चयापचय संतुलन को बिगाड़ सकते हैं। खनन गतिविधियों, औद्योगिक प्रदूषण, वायुमंडल में सल्फर और नाइट्रोजन युक्त रसायनों के बढ़ने से  पानी की पी एच कीमत छह से काम हो जाती है । यदि पानी मने पहले से नाइट्रिक और सल्फ्यूरिक एसिड हों तो यह  और कम हो सकती है । यह  तालाब-झील की पानी की गुणवत्ता के लिए घातक है और इससे कई पीएच संवेदनशील सूक्ष्मजीवों, पौधों और जानवरों के विकास और प्रजनन पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है।  कई बार  मछलियाँ  इसके चलते मर जाती हैं।

आज आवश्यकता है कि देश के हर जलाशय की साल में दो बार जल गुणवत्ता की जांच हो और यदि किसी तरह का असंतुलन हो तो  त्वरित  उपचार किया जाए । किसी भी तालब के आसपास पारंपरिक पेड़ों की प्रजातियों, उन  पर बसने  वाले पक्षियों  के पर्यावास और जल निधि में मछली या अन्य उत्पाद उगाने के लिए किसी भी तरह के रासायनिक कीटनाशक या पोषक के इस्तेमाल पर रोक लगे ।

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