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बुधवार, 9 दिसंबर 2015

Chennai is warning for other Cities

अन्य शहरों को चेन्नई से सबक लेने की जरूरत

 

Peoples samachar 10-12-15
चैन्नई व उसके आसपास के शहरी इलाकों की रिहाईशी बस्तियों के जलमग्न होने का जो हाहाकर आज मचा है, असल में वहां ऐसे हालात बीते एक महीने से थे। यह सच है कि वहां झमाझम बारिश ने सौ साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, लेकिन यह भी बड़ा सच है कि मद्रास शहर क पारंपरिक बुनावट और बसावट इस तरह की थी कि 15 मिमी तक पानी बरसने पर भी शहर की जल निधियां में ही पानी एकत्र होता और वे उफनते तो पानी समुद्र में चला जाता। वैसे गंभीरता से देखें तो देश के वे शहर जो अपनी आधुनिकता, चमक-दमक और रμतार के लिए जग-प्रसिद्ध हैं, थोड़ी सी बारिश में ही तरबतर हो जाते हैं। चाहे दिल्ली हो या मुंबई या फिर बंगलुरू या इंदौर, बादल बरसे नहीं कि पूरा महानगर ठिठक सा जाता है। विडंबना यह है कि गंगा जैसी बड़ी नदी या समुद्र के किनारों के शहर भी अब गलियों में जल-प्लावन का शिकार बन रहे हैं। अब चैन्नई को ही लें ,कभी समुद्र के किनारे का छोटा सा गांव मद्रासपट्टनम आज भारत का बड़ा नगर है। अनियोजित विकास, शरणार्थी समस्या औ जल निधियों की उपेक्षा के चलते आज यह महानगर बड़े शहरी-झुग्गी में बदल गया है। यहां की सड़कों की कुल लंबाई 2847 किलोमीटर है और इसका गंदा पानी ढ़ोने के लिए नालियों की लंबाई महज 855 किलोमीटर। लेकिन इस शहर में चाहे जितनी भी बारिश हो उसे सहेजने और सीमा से अधिक जल को समुद्र तक छोड़कर आने के लिए यहां नदियों, झीलों, तालाबों और नहरों की सुगठित व्यवस्था थी।
नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ डिजास्टर मैनेजमेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि 650 से अधिक जल निधियों में कूड़ा भर कर चौरस मैदान बना दिए गए । चैन्नई शहर की खूबसूरती व जीवन रेखा कहलाने वाल दो नदियों- अडयार और कूवम के सा थ समजा ने जो बुरा सलूक किया, प्रकृति ने इस बारिश में इसी का मजा जनता को चखाया। अडयार नदी कांचीपुरम जिले में स्थित विशाल तालाब चेंबरवक्कम के अतिरिक्त पानी के बहाव से पैदा हुई। यह पश्चिम से पूर्व की दिशा में बहते हुए कोई 42 किलोमीटर का सफर तय कर चैन्नई में सांथम व इलियट समुद्र तट के बीच बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह नदी शहर के दक्षिणी इलाके के बीचों बीच से गुजरती हैं और जहां से गुजरती है वहां की बस्तियों का कूड़ा गंदगी अपने साथ ले कर एक बदबूदार नाले में बदल जाती है। यही नहीं इस नदी के समुद्र के मिलन-स्थल बेहद संकरा हो गया है व वहां रेत का पहाड़ है। कूवम शब्द ‘कूपम’ से बना है, जिसका अर्थ होता हैं कुआं। कूवम नदी 75 से ज्यादा तालाबों के अतिरिक्त जल को अपने में सहजे कर तिरूवल्लूर जिले में कूपम नामक स्थल से उद्गमित होती है। दो सदी पहले तक इसका उद्गम धरमपुरा जिले था, भौगोलिक बदलाव के कारण इसका उदगम स्थल बदल गया। बंगलुरू जैसे शानदार शहर में अब थोड़े से बादल रसने पर जाम हो जाना आम बात है और वहां भी 160 से ज्यादा कॉलोनी, स्टेडियम, सड़कें पारंपरिक तालाबों को भरकर बनाए गए। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक नब्बे साल पहले बंगलुरू शहर में 2789 केरे यानी झील हुआ करती थीं। सन साठ आते-आते इनकी संख्या घट कर 230 रह गई। सन 1985 में शहर में केवल 34 तालाब बचे और अब इनकी संख्या तीस तक सिमट गई है। जल निधियों की बेरहम उपेक्षा का ही परिणाम है कि ना केवल शहर का मौसम बदल गया है, बल्कि लोग बूंद- बूंद पानी को भी तरस रहे हैं। वहीं ईएमपीआरई यानी सेंटर फार कन्सर्वेसन, इनवारमेंटल मेनेजमेंट एंड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने दिसंबर-2012 में जारी अपनी रपट में कहा है कि बंगलूरू में फिलहाल 81 जल िनधियों का अस्तित्व बचा है, जिनमें से नौ बुरी तरह और 22 बहुत कुछ दूषित हो चुकी हैं। जाहिर है कि इनमें एकत्र होने वाला पानी अब सड़कों पर जमा होता है। राजधानी दिल्ली वैसे तो बूंद-बूंद पानी को तरसती है, लेकिन थोड़ी सी बारिश में ही पूरे शहर में हाहाकार मच जाता है। विडंबना है कि शहर नियोजन के लिए गठित लंबे-चौड़े सरकारी अमले पानी के बहाव में शहरों के ठहरने पर खुद को असहाय पाते हैं । सारा दोष नालों की सफाई ना होने, बढ़ती आबादी, घटते संसाधनों और पर्यावरण से छेड़छाड़ पर थोप देते हैं। शहरों में बाढ़ रोकने के लिए सबसे पहला काम तो वहां के पारंपरिक जल स्त्रोतों में पानी की आवक और निकासी के पुराने रास्तों में बन गए स्थाई निर्माणों को हटाने का करना होगा । यदि किसी पहाड़ी से पानी नीचे बह कर आ रहा है तो उसका संकलन किसी तालाब में ही होगा । विडंबना है कि ऐसे जोहड़-तालाब कंक्रीट की नदियों में खो गए हैं । परिणामत: थोड़ी ही बारिश में पानी कहीं बहने को बहकने लगता है ।
                             

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