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सोमवार, 7 दिसंबर 2015

Only car are not cause of pollution in Delhi

अकेले कार नहीं कारण प्रदूषण

                                                                      पंकज चतुर्वेदी
राष्ट्रीय सहारा 8-12-15
इसमें कोई शक नहीं कि दिल्ली की आबाहवा इतनी जहरीली है कि यह एक ‘‘गैस चैंबर’ बन गई है। देश की राजधानी में 12 साल से कम उम्र के 15 लाख बच्चे एैसे हैं,जो अपने खेलने-दौड़ने की उम्र में पैदल चलने पर ही हांफ रहे हैं। इनमें से कई सौ को डाक्टर चेता चुके हैं कि यदि जीना चाहते हो तो दिल्ली से दूर चले जाएं। जापान, जर्मनी जैसे कई देशों ने दिल्ली में अपने राजनयिकों की नियुक्ति की अवधि कम करना शुरू कर दिया है, ताकि यहां का जहर उनकी सांसों में कुछ कम घुले। यह स्पट हो चुका है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण का बड़ा कारण यहां बढ़ रहे वाहन, ट्राफिक जाम और राजधानी से सटे जिलों में पर्यावरण के प्रति बरती जा रही कोताही है। हर दिन बाहर से आने वाले कोई अस्सी हजार ट्रक या बसें यहां के हालात को और गंभीर बना रहे हैं। दिल्ली की सरकार ने सम-विषम वाली कारों के एक दिन छोड़ कर एक दिन सड़क पर आने के निर्णय से स्वयं सरकार ज्यादा आशान्वित नहीं है, वहीं जनता का बड़ा वर्ग भी इससे संतुष्ट नहीं है। इसका कोई जवाब किसी के पास नहीं है कि जब 30 लाख कारें सड़क पर नहीं होंगी तो उस पर सवार करने वाले साठ लाख लोग सफर करेंगे। ना तो दिल्ली की सड़कें हजारों बसों को झेलने के काबिल हैं, और ना ही इतनी बसें उपलब्ध हैं। विडंबना है कि ओहदेदार लोग असल समस्या के कारकों को या तो समझना नहीं चाहते या फिर समझते ही नहीं हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि समस्या बेहद गंभीर है। याद करें कुछ साल पहले अदालत ने दिल्ली में आवासीय इलाकें में दुकानें बंद करने, अवैध कालोनियों में निर्माण रोकने जैेसे फैसले दिए थे, लेकिन वोट के लालच में सभी सियासती दल अदालत को

जनविरोधी बताते रहे। परिणाम सामने हैं कि सड़कों पर व्यक्ति व वाहन चलने की क्षमता से कई सौ गुणा भीड़ है। सुदूर राज्यों से काम की तलाश में आए लोग सड़कों पर वाहनों की मांग व उसकी पूर्ति के लिए वैध-अवैध साधन बढ़ा रहे हैं। दिल्ली में जगह-जगह चल रही ग्रामीण सेवा के नाम पर ओवरलोडेड वाहन, मेट्रो स्टेशनों तक लोगों को ढो ले जाने वाले दस-दस सवारी लादे तिपहिएं, पुराने स्कूटरों को जुगाड़ के जरिये रिक्शे के तौर पर दौड़ाए जा रहे पूरी तरह गैरकानूनी वाहन हवा को जहरीला करने में बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। सनद है कि वाहन सीएनजी से चले या फिर डीजल या पेट्रोल से, यदि उसमें क्षमता से ज्यादा वजन होगा तो उससे निकलने वाला धुआं जानलेवा ही होगा। यदि दिल्ली को एक अरबन स्लम बनने से बचाना है, तो इसमें कथित लोकप्रिय फैसलों से बचना होगा, जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है यहां बढ़ रही आबादी को कम करना। सनद रहे कि इतनी बड़ी आबादी के लिए चाहे मेट्रो चलाना हो या पानी की व्यवस्था करना, हर काम में लग रही ऊर्जा का उत्पादन दिल्ली की हवा को विषैला बनाने की ओर एक कदम होता है। दिल्ली में बढ़ते जहरीले धुएं के लिए आमतौर पर इससे सटे इलाकों में खेत में खड़े ढूंठ को जलाने से उपजे धुएं को दोषी ठहराया जाता है। हालांकि ऐसा साल भर में केवल कुछ ही दिनों के लिए होता है, जबकि इससे कई हजार गुना ज्यादा धुआं राजधानी की सीमा से सटे सैकड़ों ईट भट्ठों से चौबीसों घंटे उपजता है। एनसीआर में तेजी से बढ़ रही आवास की मांग या रियल एस्टेट के व्यापार ने ईटों की मांग को बेलगाम कर दिया है। दिल्ली की गली-गली में घूम कर हर तरह का कूड़ा, कबाड़ा जुटाने वाले जानते हैं कि पानी की बेकार बेतल से लेकर फटे जूते तक को किस तरह ट्रकों में भरकर इन भट्ठों में फूंका जाता है। उल्लेखनीय है कि इन दिनों भट्ठे में जलाने के लिए कोयला या लकड़ी बेहद महंगी है, जबकि प्लास्टिक का यह कबाड़ा अवांछित सा दर-दर पड़ा होता है। इस पर कागजों में भले ही कानून हों, लेकिन कभी भी जहर उगलने वाले भट्ठों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। यह भी जानना जरूरी है कि महज दिल्ली राज्य की भौगेलिक सीमा में कड़े कदम उठाने से हवा की सेहत सुधरने से रही। दिन के बारह घटों में जब दिल्ली की सड़कों पर भारी वाहन या ट्रक चलने पर पाबंदी होती है, इसकी सीमा से जीरो किलोमीटर दूर ज्ञानी बार्डर पर सैकड़ों ट्रक धुआं व धूल उड़ाते हैं, जाहिर है कि उसका हिस्सा दिल्ली में भी आता ही है। केंद्र की नई सरकार का अपने कर्मचारियों को दफ्तरों में आने-जाने के समय पर कड़ाई से निगाह रखना भी दिल्ली एनसीआर में सड़कों पर जाम व उसके कारण जहरीले धुएं के अधिक उत्सर्जन का कारण बन गया है। सभी जानते हैं कि नए मापदंड वाले वाहन यदि चालीस या उससे अधिक की स्पीड में चलते हैं, तो उनसे बेहद कम प्रदूषण होता है। लेकिन यदि ये पहले गियर में रेंगते हैं, तो इनसे सॉलिड पार्टिकल, सल्फर डायआक्साइड व कार्बन मोनोआक्साइड बेहिसाब उत्सर्जित होता है। कार्यालयों में उपस्थिति के नए कानून के चलते अब शहर में निजी व सरकारी, सभी कार्यालयों का आने-जाने का समय लगभग एक हो गया है, और इसीलिए एक साथ बड़ी संख्या में वाहन चालक सड़क पर होते हैं। कार्यालयों में समय को ले कर अनुशासन बहेद अनिवार्य और महत्वपूर्ण कदम हैं, लेकिन जहां कार्यालय आने-जाने के लिए लोग औसत चालीस से अस्सी किलोमीटर हर रोज सफर करते हों, वहां कार्यालयों के खुलने और बंद होने के समय में बदलाव करना बेहद जरूरी है। कुछ कार्यालयों की बंदी का दिन शनिवार-रविवार की जगह अन्य दिन किया जा सकता है, जिनमें अस्पताल, बिजली, पानी के बिल जमा होने वाले काउंटर आदि हैं। यदि कार्यालयों में साप्ताहिक दो दिन की बंदी के दिन अलग-अलग किए जाएं तो हर दिन कम से कम 30 प्रतिशत कम भीड़ सड़क पर होगी। कुछ कार्यालयों का समय आठ या साढ़े आठ से करने व उनके बंद होने का समय भी साढ़े चार या पांच होने से सड़क पर एक साथ भीड़ होने से रेाका जा सकेगा। यही नहीं इससे वाहनों की ओवरलोडिंग भी कम होगी। स्कूलों के समय में बदलाव भी बेहद जरूरी है। हर छोटी सी कालोनी में 50 स्कूल व 25 हजार बच्चे, सभी के स्कूल आने व छूटने का समय एक होता है, और यह जाम का कारण बनता है। जरा स्कूलों का समय सुबह 10 बजे से चार बजे तक कर दें, सुबह सड़कें खाली दिखेंगी जबकि आज लोगों के कार्यालय जाने व स्कूल खुलने का समय एक ही है। सबसे बड़ी बात दिल्ली में जो कार्यालय जरूरी ना हों, या जिनका मंत्रालयों से कोई सीधा ताल्लुक ना हों, उन्हें दो सौ किलोमीटर दूर के शहरों में भेजना भी एक परिणामकारी कदम हो सकता है। इससे नए शहरों में रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे व लोगों का दिल्ली की तरफ पलायन भी कम होगा। किया तो बहुत कुछ जा सकता है, बस कहीं हवा में बढ़ते जहर का हौवा ‘‘एयर प्यूरीफायर’ बेचने वाली किसी लॉबी का सुनियोजित मार्केटिंग फंडा ना हो, जो अपना टारगेट पूरा करने के बाद इस मसले को बिसरा बैठे।

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