My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

गुरुवार, 3 दिसंबर 2015

incrochment on water bodies makes Chenney misrable


नवम्बर-2015 में जब दीपावली सिर पर थी और पूरे देश से मानसून विदा हो चुका था, भारत के दक्षिणी राज्यों के कुछ हिस्सों में उत्तर-पश्चिमी मानसून ने तबाही मचा दी। आटोमोबाईल, इलेक्ट्रॉनिक्स व चमड़ा उद्योग के लिये दुनिया भर में नाम कमाने वाला चेन्नई शहर पन्द्रह दिनों तक गहरे पानी में डूबा रहा है।

जिन सड़कों पर वाहनों की भीड़ के कारण पैर रखने को जगह नहीं होती, वहाँ आज नाव चल रही हैं। 70 से ज्यादा लोग मारे गए हैं व अब बदबू, संक्रामक रोग और गन्दगी ने इस महानगर के लोगों का जीना दुश्वार कर दिया है। मद्रास या चेन्नई समुद्र तट पर है और यहाँ साल भर बारिश होती है।

लेकिन इस बार आसमान से बादलों के नाम पर जो आफत बरसी, उससे उबरने में इस शहर को कई-कई साल लगेंगे, कहा जा सकता है कि एक बरसात ने शहर को एक सदी पीछे धकेल दिया है। इस दुर्दशा का कारण बारिश से कहीं ज्यादा शहर के लेागों द्वारा अपने पारम्परिक जल संसाधनों के प्रति बेपरवाही व बेज्जती है।

कभी समुद्र के किनारे का छोटा सा गाँव मद्रासपट्टनम आज भारत का बड़ा नगर है। अनियोजित विकास, शरणार्थी समस्या और जल निधियों की उपेक्षा के चलते आज यह महानगर बड़े शहरी-झुग्गी में बदल गया है। यहाँ के सड़कों की कुल लम्बाई 2847 किलोमीटर है और इसका गन्दा पानी ढोने के लिये नालियों की लम्बाई महज 855 किलोमीटर।

लेकिन इस शहर में चाहे जितनी भी बारिश हो उसे सहेजने और सीमा से अधिक जल को समुद्र तक छोड़कर आने के लिये यहाँ नदियों, झीलों, तालाबों और नहरों की सुगठित व्यवस्था थी। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट की रिपोर्ट में बताया गया है कि 650 से अधिक जल निधियों में कूड़ा भर कर चौरस मैदान बना दिये गए।

यही वे पारम्परिक स्थल थे जहाँ बारिश का पानी टिकता था और जब उनकी जगह समाज ने घेर ली तो पानी समाज में घुस गया। उल्लेखनीय है कि नवम्बर-15 की बारिश में सबसे ज्यादा दुर्गति दो पुरानी बस्तियों-वेलाचेरी और तारामणि की हुई। वेलाचेरी यानि वेलायऐरी।

सनद रहे तमिल में ऐरी का अर्थ है तालाब व मद्रास की ऐरी व्यवस्था सामुदायिक जल प्रबन्धन का अनूठा उदाहरण है। आज वेलायऐरी के स्थान पर गगनचुंबी इमारते हैं। शहर का सबसे बड़ा मॉल ‘फोनिक्स’ भी इसी की छाती पर खड़ा है। जाहिर है कि ज्यादा बारिश होने पर पानी को तो अपने लिये निर्धारित स्थल ‘ऐरी’ की ही ओर जाना था।

[7]शहर के वर्षाजल व निकासी को सुनियोजित बनाने के लिये अंग्रेजों ने 400 किलोमीटर लम्बी बर्किंघम नहर बनवाई थी, जो आज पूरी तरह प्लास्टिक, कूड़े से पटी है कीचड़ के कारण इसकी गहराई एक चौथाई रह गई है। जब तेज बारिश हुई तो पलक झपकते ही इसका पानी उछलकर इसके दोनों तरफ बसी बस्तियों में घुस गया।

चेन्नई शहर की खूबसूरती व जीवनरेखा कहलाने वाली दो नदियों- अड्यार और कूवम के साथ समाज ने जो बुरा सलूक किया, प्रकृति ने इस बारिश में इसी का मजा जनता को चखाया। अड्यार नदी कांचीपुरम जिले में स्थित विशाल तालाब चेंबरवक्कम के अतिरिक्त पानी के बहाव से पैदा हुई।

यह पश्चिम से पूर्व की दिशा में बहते हुए कोई 42 किलोमीटर का सफर तय कर चेन्नई में सांथम व इलियट समुद्र तट के बीच बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह नदी शहर के दक्षिणी इलाके के बीचों-बीच से गुजरती हैं और जहाँ से गुजरती है वहाँ की बस्तियों का कूड़ा गन्दगी अपने साथ लेकर एक बदबूदार नाले में बदल जाती है।

यही नहीं इस नदी के समुद्र के मिलन-स्थल बेहद संकरा हो गया है व वहाँ रेत का पहाड़ है। हालात यह है कि नदी का समुद्र से मिलन हो ही नहीं पाता है और यह एक बन्द नाला बन गया है। समुद्र में ज्वार की स्थिति में ऊँची लहरें जब आती हैं तभी इसका मिलन अड्यार से होता है।

[8]तेज बारिश में जब शहर का पानी अड्यार में आया तो उसका दूसरा सिरा रेत के ढेर से बन्द था, इसी का परिणाम था कि पीछे ढकेले गए पानी ने शहर में जमकर तबाही मचाई व दो सप्ताह बीत जाने के बाद भी पानी को रास्ता नहीं मिल रहा है। अड्यार में शहर के 700 से ज्यादा नालों का पानी बगैर किसी परिशोधन के तो मिलता ही है, पंपल औद्योगिक क्षेत्र का रासायनिक अपशिष्ट भी इसको और जहरीला बनाता है।

कूवम शब्द ‘कूपम’ से बना है- जिसका अर्थ होता हैं कुआँ। कूवम नदी 75 से ज्यादा तालाबों के अतिरिक्त जल को अपने में सहेजकर तिरूवल्लूर जिले में कूपम नामक स्थल से उद्गमित होती है। दो सदी पहले तक इसका उद्गम धरमपुरा जिले था, भौगोलिक बदलाव के कारण इसका उद्गम स्थल बदल गया।

कूवम नदी चेन्नई शहर में अरूणाबक्कम नाम स्थान से प्रवेश करती है और फिर 18 किलोमीटर तक शहर के ठीक बीचों-बीच से निकलकर बंगाल की खाड़ी में मिलती है। इसके तट पर चूलायमेदू, चेरपेट, एग्मोर, चिंतारीपेट जैसी पुरानी बस्तियाँ हैं और इसका पूरा तट मलिन व झोपड़-झुग्गी बस्तियों से पटा है।

इस तरह कोई 30 लाख लोगों का जल-मल सीधे ही इसमें मिलता है। कहने की जरूरत नहीं है कि यह कहीं से नदी नहीं दिखती। गन्दगी, अतिक्रमण ने इसे लम्बाई, चौड़ाई और गहराई में बेहद संकरा कर दिया है। अब तो थोड़ी सी बारिश में ही यह उफन जाती है।

यह बारिश चेन्नई शहर के लिये गम्भीर चेतावनी है। आज जरूरत है कि शहर के पारम्परिक तालाबों व सरोवरों को अतिक्रमण मुक्त कर उनके जल-आगम के प्राकृतिक मार्गों को मुक्त करवाया जाये। नदियों व नहर के तटों से अवैध बस्तियों को विस्थापित कर महानगर की सीवर व्यवस्था का आधुनिकीकरण करना होगा।

[9]चूँकि ये नदियाँ सीधे-सीधे 100 से ज्यादा तालाबों से जुड़ी हैं, जाहिर है कि जब इनकी सहन करने की सीमा समाप्त हो जाएँगी तो इससे जुड़े पावन सरोवर भी गन्दगी व प्रदूषण से नहीं बचेंगे। यह तो सभी जानते ही हैं कि चेन्नई साल भर भीषण जल संकट का शिकार रहता है। आज मसला केवल जल का नहीं, बल्कि शहर के अस्तित्त्व का है और यह तभी सुरक्षित रहेगा जब यहाँ की जल निधियों को उनका पुराना वैभव व सम्मान वापिस मिलेगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...