जहर होता पाताल पानी
पंकज चतुर्वेदी
0 अग्निकांड के कारण चर्चा में आए मंडीडबवाली कस्बे के करीबी गांव जज्जल के लेाग पीने का पानी लेने सात किमी दूर गांव जाते हैं । कारण जज्जल व उससे सटे तीन गांवों में गत् कुछ वर्शों में सैंकड़ों लेाग केंसर से मारे गए हैं । कपास उत्पादन करने वाले इस इलाके में यह बात घर-घर तक फैल गई है कि उनके गांव के नलकूप व हैंडपंप पानी नहीं, जहर उगलते हैं । यह बात सरकार भी स्वीकार रही है कि अंधाधूंध कीटनाषकों के इस्तेमाल ने यहां के भूजल को विशेला बना दिया है ।
0 ‘‘ग्राउंडवाटर इन अर्बन इनवायरमेंट आफ इंडिया’’ प्रकाषक - केंद्रीय भूजल बोर्ड पुस्तक में उल्लेख है कि देष की राजधानी दिल्ली में आई.आई.टी. , एनसीईआरटी परिसर, नारायणा और षाहदरा के कुछ इलाकों के भूजल में नाईट्रेट की मात्रा 12.5 मिलीग्राम प्रति लीटर तक है, जबकि इसकी निर्धारित सीमा 1.5 मिग्रा से अधिक नहीं होना चाहिए ।
0 सी.पी.आर. इनवायरमंेटल एजुकेषन सेंटर द्वारा आयोजित किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि चैन्ने के भूजल में क्लोराईड और टी.डी.एस. की मात्रा पूरे षहर में निर्धारित सीमा से दुगना है ।
0 बिहार के नवादा जिले का कच्चारीडीह गांव ‘‘बांस के सहारे चलने वाले’’ गांव के नाम से कुख्यात है । यहां के 300 लोग, जिनमें 50 बच्चे भी हैं, बगैर सहारे के चलने में लाचार हैं । सरकारी जांच से पता चलता कि गांव के लोग ऐसा पानी पीने को मजबूर हैं, जिसमें फ्लोराईड की मात्रा 8 प्रतिषत तक है, जो निर्धारित सीमा के पांच गुना के बराबर है ।
0 गैरसरकारी संस्था ‘‘पर्यावरण सुरक्षा समिति’ की सर्वेक्षण रिपोर्ट बताती है कि गुजरात राज्य के कुल 184 तालुका में से 74 गंभीर भूजल प्रदूशण के षिकार हैं । अंकलेष्वर, अहमदाबाद आदि में तो केडमियम, तांबा और सीसे का आधिक्य है ।
जमीन की गहराईयों में पानी का अकूत भंडार है । यह पानी का सर्वसुलभ और स्वच्छ जरिया है, लेकिन यदि एक बार दूशित हो जाए तो इसका परिश्करण लगभग असंभव होता है । भारत में जनसंख्या बढ़ने के साथ घरेलू इस्तेमाल, खेती और औद्योगिक उपयोग के लिए भूगर्भ जल पर निर्भरता साल-दर-साल बढ़ती जा रही है । पाताल से पानी निचोड़ने की प्रक्रिया में सामाजिक व सरकारी कोताही के चलते भूजल खतरनाक स्तर तक जहरीला होता जा रहा है ।ं भारत में दुनिया की सर्वाधिक खेती होती है । यहां 50 मिलियन हेक्टर से अधिक जमीन पर जुताई होती है, इस पर 460 बी.सी.एन. पानी खर्च होता है । खेतों की जरूरत का 41 फीसदी पानी सतही स्त्रोतों से व 51 प्रतिषत भूगर्भ से मिलता है । गत् 50 सालों के दौरान भूजल के इस्तेमाल में 115 गुणा का इजाफा हुआ है । भूजल के बेतहाषा इस्तेमाल से एक तो जल स्तर बेहद नीचे पहंुच गया है, वहीं लापरवाहियों के लते प्रकृति की इस अनूठी सौगात जहरीली होती जा रही है ।
सनद रहे कि देष के 360 जिलों को भूजल स्तर में गिरावट के लिए खतरनाक स्तर पर चिन्हित किया गया है । भूजल रिचार्ज के लिए तो कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन खेती, औद्योगिकीकरण और षहरीकरण के कारण जहर होते भूजल को ले कर लगभग निश्क्रियता का माहौल है । बारिष, झील व तालाब, नदियों और भूजल के बीच यांत्रिकी अंतर्संबंध है । जंगल और पेड़ रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं । इसी प्रक्रिया में कई जहरीले रसायन जमीन के भीतर रिस जाते हैं । ऐसा ही दूशित पानी पीने के कारण देष के कई इलाकों में अपंगता, बहरापन, दांतों का खराब होना, त्वचा के रोग, पेट खराब होना आदि महामारी का रूप ले चुका है । ऐसे अधिकांष इलाके आदिवासी बाहुल्य हैं और वहां पीने के पानी के लिए भूजल के अलावा कोई विकल्प उपलब्ध नहीं हैं ।
दुनिया में चमड़े के काम का 13 फीसदी भारत में और भारत के कुल चमड़ा उद्योग का 60 फीसदी तमिलनाडु में है । मद्रास के आसपास पलार और कुंडावानुर नदियों के किनारे चमड़े के परिश्करण की अनगिनत इकाईयां हैं । चमड़े की टैनिंग की प्रक्रिया से निकले रसायनों के कारण राज्य के आठ जिलों के भूजल में नाईट्रेट की मात्रा का आधिक्य पाया गया है । दांतों व हड्डियों का दुष्मन फलोराईड सात जिलों में निर्धारित सीमा से कहीं अधिक है । दो जिलों में आर्सेनिक की मात्रा भूजल में बेतहाषा पाई गई है ।
संसद के दोनों सदनों में प्रस्तुत की गई जानकारी के मुताबिक आंध्रप्रदेष के 10 जिलों के भूजल में नाईट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम से भी अधिक पाई गई है । जबकि फ्लोराईड की मात्रा 1.5 मिलीग्राम के खतरनाक स्तर से अधिक का मात्रा वाला भूजल 11 जिलों में पाया गया है । भारी धातुओं व आर्सेनिक के आधिक्य वाले आठ जिले हैं । राज्य के प्रकाषम, अनंतपुर, नालगोंडा जिलों में गर्भ जल के पानी का प्रदूशण स्तर इस सीमा तक है कि वहां का पानी मवेषियों के लिए भी अनुपयोगी करार दिया गया है । दक्षिण भारत के कर्नाटक की राजधानी बंगलौर, झीलों की नगरी कहलाने वाले धारवाड़ सहित 12 जिलों के भूजल में नाईट्रेट का स्तर 45 मिग्रा से अधिक है । फ्लोरोईड के आधिक्य वाले तीन जिले व भारी धातुओं के प्रभाव वाला एक जिला भद्रावती है । सर्वाधिक साक्षर व जागरूक कहलाने वाले केरल का भूजल भी जहर होने से बच नहीं पाया है । यहां के पालघाट, मल्लापुरम, कोट्टायम सहित पांच जिले नाईट्रेट की अधिक मात्रा के षिकर हैं । पालघाट व अल्लेजी जिलों के भूजल में फ्लोराईड की अधिकता होना सरकार द्वारा स्वीकारा जा रहा है ।
पूर्वी भारत के पष्चिम बंगाल में पाताल का पानी बेहद खतरनाक स्तर तक जहरीला हो चुका है । यहां के नौ जिलों में नाईट्रेट और तीन जिलों में फ्लोराईड की अधिकता है । बर्धमान, 24 परगना, हावड़ा, हुगली सहित आठ जिलों में जहरीला आर्सेनिक पानी में बुरी तरह घुल चुका है । राज्य के 10 जिलों का भूजल भरी धातुओं के कारण बदरंग, बेस्वाद हो चुका है । ओडिषा के 14 जिलों में नाईट्रेट के आधिक्य के कारण पेट के रोगियों की संख्या लाखों में पहुंच चुकी है । जबकि बोलांगिर, खुर्दा और कालाहांडी जिलों फ्लोराईड के आधिक्य के कारण गांव-गांव में पैर टेढ़े होने का रोग फैल चुका है ।
अहमदनगर से वर्धा तक लगभग आधे महाराश्ट्र के 23 जिलों के जमीन के भीतर के पानी में नाईट्रेट की मात्रा 45 मिलीग्राम के स्तर से कहीं आगे जा चुकी है । इनमें मराठवाड़ा क्षेत्र के लगभग सभी तालुके षामिल हैं । भंडारा, चंद्रपुर, औरंगाबाद और नांदेड़ जिले के गांवों में हैंडपंप का पानी पीने वालों में दांत के रोगी बढ़ रहे हैं, क्योंकि इस पानी में फ्लोराईड की बेइंतिहरा मात्रा है । तेजी से हुए औद्योगिकीकरण व षहरीकरण का खामियाजा गुजरात के भूजल को चुकाना पड़ रहा है । यहां के आठ जिलों में नाईट्रेट और फ्लोराईड का स्तर जल को जहर बना रहा है ।
मध्यप्रदेष की राजधानी भोपाल के बड़े हिस्से के भूजल में यूनियन कार्बाइड कारखाने के जहरीले रसायन घुल जाने का मुद्दा अंतरराश्ट्रीय स्तर पर चर्चित रहा है । बावजूद इसके लोग हैंडपंपों का पानी पी रहे हैं औरर बीमार हो रहे हैं । राज्य के ग्वालियर सहित 13 जिलों के भूजल में नाईट्रेट का असर निर्धारित मात्रा से कई गुणा अधिक पाया गया है । फ्लोराईड के आधिक्य की मार झेल रहे जिलों की संख्या हर साल बढ़ रही है । इस समय ऐसे जिलों की संख्या नौ दर्ज है । नागदा, रतलात, रायसेन, षहडोल आदि जिलों में विभिन्न कारखानों से निकले अपषिश्ठ के रसायन जमीन में कई कई किलोमीटर गहराई तक घर कर चुके हैं और इससे पानी अछूता नहीं है । उत्तरप्रदेष का भूजल पदिृष्य तो बहद डरावना बन गया है । यहां लखनऊ, इलाहबाद, बनारस सहित 21 जिलों में फ्लोराईड का आधिक्य दर्ज किया गया है । जबकि बलिया का पानी आर्सेनिक की अधिकता से जहर हो चुका है । गाजियाबाद, कानपुर आदि औद्योगिक जिलों में नाईट्रेट व भारी धातुओं की मात्रा निर्धारित मापदंड से कहीं अधिक है । पष्चिमी उत्तर प्रदेष में भूजल में जहर का कहर बेहद डरावना हो गया है। यहां 120 से 150 फुट गहराई वाला पानी भी सुरक्षित नहीं है। यहां का पानी यदि मीठा लग रहा है तो यह ज्यादा खतरनाक है- क्योंकि उसमें आर्सेनिक की मात्रा अधिक होती है।
बस्तर के जंगलों में हर साल सैंकड़ो आदिवासी जहरीले पानी के कारण मरते हैं। यह बात सामने आ रही है कि नदी के किनारे बसे गांवों में उल्टी-दस्त का ज्यादा प्रकोप होता है। असल में यहां धान के खेतों में अंधाधुंध रसायन का प्रचलन बढने के बाद यहां के सभी प्राकृतिक जल-धाराएं जहरीली हो गई हैं। इलाके भर के हैंड पंपों पर फ्लोराईड या आयरन के आधिक्य के बोर्ड लगे हैं, लेकिन वे आदिवासी तो पढना ही नहीं जानते हैं और जो पानी मिलता है, पी लेते हैं। माढ़ के आदिवासी षौच के बाद भी जल का इस्तेमाल नहीं करते हैं। ऐसे में उनके षरीर पर बाहरी रसायन तत्काल तेजी से असर करते हैं।
देष की राजधानी दिल्ली , उससे सटे हरियाणा व पंजाब की जल कुंुंडली में जहरीले गृहों का बोलबाला है । यहां का भूजल खेतों में अंधाधुंध रासायनिक खादों के इस्तेमाल और कारखानों की गंदी निकासी के जमीन में रिसने से दूशित हुआ है । दिल्ली में नजफगढ् के आसपास के इलाके के भूजल को तो इंसानों के इस्तेमाल के लायक नहीं करार दिया गया है । गौरतलब है कि खेती में रासायनिक खादों व दवाईयों के बढ़ते प्रचलन ने जमीन की नैसर्गिक क्षमता और उसकी परतों के नीचे मौजूद पानी को अपूरणीय क्षति पहुंचाई है । उर्वरकों में मौजूद नाईट्रोजन, मिट्टी के अवयवों से मिल कर नाईट्रेट के रूप में परिवर्तित हो कर भूजल में घुल जाते हैं ।
राजस्थान के कोई 20 हजार गांवेंा में जल की आपूर्ति का एकमात्र जरिया भूजल ही है और उसमें नाईट्रेट व फ्लोराईड की मात्रा खतरनाक स्तर पर पाई गई है । एक तरफ प्यास है तो दूसरी ओर जहरीला पानी । लोग ट्यूबवेल का पानी पी रहे हैं और बीमार हो रहे हैं । हैं। ‘‘चमकते गुजरात’’ के तो 26 में से 21 जिले खारेपन की चपेट में हैं और 18 में फ्लोराईड की मार।
दिल्ली सहित कुछ राज्यों में भूजल के अंधाधुंध इस्तेमाल को रोकने के लिए कानून बनए गए हैं, लेकिन भूजल को दूशित करने वालों पर अंकुष के कानून किताबों से बाहर नहीं आ पाए हैं । यह अंदेषा सभी को है कि आने वाले दषकों में पानी को ले कर सरकार और समाज को बेहद मषक्कत करनी होगी । ऐसे में प्रकृतिजन्य भूजल का जहर होना मानव जाति के अस्तित्व पर प्रष्न चिन्ह लगा सकता है ।
पंकज चतुर्वेदी
नेषनल बुक ट्रस्ट
5 वसंत कुंज इंस्टीट्षनल एरिया फेज-2
वसंत कुंज
नई दिल्ली-110070
निर्मल नहीं रहा भूजल
क्रमांक राज्य नाईटेªट के आधिक्य से प्रभावित जिले
(45मिग्रा/लीटर से अधिक मात्रा) फ्लोराईड के आधिक्य से प्रभावित जिले
(1.5मिग्रा/लीटर से अधिक) आर्सेनिक की अधिकता वाले जिले(0.05मिग्रा/लीटर से अधिक) भारी धातु और आर्सेनिक के कारण दूशित जिले
1. आंध्रप्रदेष प्रकाषम, खम्माम, नलौर, नालगांेडा, निजामाबाद,गुंटुर,,कुरनूल,करीमनगर, महबूब नगर, विजयवाड़ा प्रकाषम, अनंतपुर, नल्लौर, नालगांेडा,रंगारेड्डी, आदिलाबाद, कृश्णा, करनूल, कडप्पा, गुटूर, करीमनगर, - अनंतपुर, कडप्पा, मेहबूबनगर, नालगोंडा,प्रकाषम, विषाखपत्तनम, मेदक जिले का बोलराम पटनचेरू क्षेत्र
2. असम लखीमपुर ररांग, नार्थ लखीमपुर, नगांव, करबी-अनलंाग दिग्बोई
3. बिहार गया, पटना, नालंदा, नवादा,भागलपुर, बांका जमुई भोजपुर, पटना बेगुसराय, भोजपुर, मुजफ्फरपुर
4. छत्तीसगढ़ रायपुर बस्तर, बिलासपुर, धमतरी, कांकेर, कारेबा, कोरिया,रायपुर, राजनांदगांव राजनांदगांव, बस्तर, कोरबा
5. दिल्ली पष्चिमी, पष्चिमी-दक्षिणी उत्तर-पष्चिमी, पष्चिमी, पष्चिमी-दक्षिणी ,केंद्रीय उत्तर-पष्चिमी, पष्चिमी, पष्चिमी-दक्षिणी ,केंद्रीय साथ में नजफगढ़ नाला
6. गुजरात अमरेली,,बनासकांठा,भावनगर, गांधीनगर, जामनगर, जूनागढ़, कच्छ, मेहसाणा बनासकांठा, कच्छ, सौराश्ट्र, पंचमहल, खेड़ा, मेहसाणा, साबरकांठा
7. हरियाणा अंबाला,भिवानी, फरीदाबाद,गुडगांव, हिसार, जींद, कुरूक्षेत्र, करनाल, महेन्द्रगढ, रोहतक, सोनीपत, सिरसा झज्जर ,भिवानी, फरीदाबाद,गुडगांव, हिसार,कैथल, रेवाड़ी,फतेहाबाद, जींद,कुरूक्षेत्र,करनाल, महेन्द्रगढ, रोहतक, सोनीपत, सिरसा फरीदाबाद
8. हिमाचल प्रदेष उना कलाअंबा, परवाणु
9. जम्मू-कष्मीर कठुआ,
10. झारखंड पलामू, साहेबगंज गिरीडीह, धनबाद धनबाद
11. कर्नाटक बीापुर, बैंगलोर, बेलगांव, बैल्लारी, चित्रदुर्ग, धारवाड़, गलुबर्गा, हासन,कोलार,मांडया,रायचूर,षिमोगा बीजापुर, गुलबर्ग, बैल्लारी, भद्रावती
12. केरल इदुक्की, केाट्टायम, पालघाट, पटानामिट्टा, मल्लापुरम पालघाट, अलेप्पी
13. मध्यप्रदेष भिंडद्व भापेाल, छिंदवाड़ा,धार,देवास, ग्वालियर, इंदौर, खंडवा, मंदसौर, मुरैना,षिवपुरी, सीहोर, उज्जैन भिंड, मुरैना, हौषंगाबाद, गुना, झाबुआ, टीकमगढ़, छिंवाड़ा सिवनी, मंडला नागदा, रतलाम
14. महाराश्ट्र अहमदनगर,अमरावती,अकोला,औरंगाबद, भंडारा, बीड, बुलडाना, चंद्रपुर, गढ़चिरोली, धुले, जलगांव, कोल्हापुर, जालना, लातुर, नागपुर, नांदेड़ उस्मानाबाद, पुणे, सांगली, सतारा, षोलापुर, ठाणे,वर्धा भंडारा, चंद्रपुर, नांदेड़, औरगांबाद
15. उड़ीसा अगंल, बरगड, बोलांगीर, बौध, कटक, गंजाम, जगतसिंहपुर, कालाहांडी, क्योंजर, मलकानगिरी,नवापारा, रायगढ़ा, संबलपुर, सुंदरगढ़ बोलांगिर, खुर्दा, कालाहांडी
16. पंजाब भटिंडा, फरीदकोट, फिरोजपुर,पटियाला संगरूर भटिंडा,मानसा,मोगा,मुक्तसर फरीदकोट, फिरोजपुर,पटियाला लुधियाना, फतेहगढ़ साहेब जिले का मंडी गोविंदगढ़,
17. तमिलनाडु कोयंबतूर,पेरियार,सालेम, अंबेडकरनगर,डिंडिगलु, पदयाची धरमपुरी, सालेम, नार्थ अराकोट,पदयाची, मुथुरमल्लीगांव,तिरूचिनापल्ली, पुदुकोट्टई मनाली, नार्थ अरकोट
18. राजस्थान अजमेर, अलवर, भरतपुर, बीकानेर, डूंगरपुर, गंगानगर हनुमानगढ़, जयपुर, जैसलमेर,जालौर, झंुझनू, जोधपुर, नागौर, सवाईमाधौपुर, उदयपुर अजमेर, बाडमेर,भीलवाड़ा, बीकानेर,डूंगरपुर, गंगानगर, हनुमानगढ़,जयपुर,जैसलमेर,जालौर, झंुझनू, जोधपुर, पाली, राजसमंद, नागौर, सवाईमाधौपुर, उदयपुर, सीकर, सिरोही झुंझनू, जोधपुर, पाली, उदयपुर
19. उत्तरप्रदेष अलीगढ़, आगरा, बांदा, इटावा, गाजियाबाद, हमीरपुर, जौनपुर, झंासी, कानपुर, मैनपुरी, मथुरा, पीलीभीत फतेहपुर,रायबरेली,लखीमपुर, खीरी, लखनऊ, उन्नाव, कानपुर, हरदोई, बुलंदषहर,अलीगढ़,आगरा,मथुरा,गाजियाबाद, मेरठ, फीरोजाबाद, एटा, मैनपुरी, महोबा, इलाहबाद, बनारस बलिया इलाहबाद, अलीगढ़, बस्ती, जौनपुर, कानपुर, सहारनपुर, सिंगरौली, बनारस
20. उत्तरांचल नैनीताल
21. प. बंगाल उ. दीनाजपुर, मालदा, बीरभूमि, मुर्षिदाबाद, नदिया, बांकुरा, पुरलिया, हावड़ा, मेदनीपुर बीरभूमि, हावड़ा, 24 परगना बर्धमान, हावड़ा, हुगली, माल्दा, मुर्षिदाबादख्, नदिया, 24 परगना बर्धमान, दुर्गापुर, हुगली, हावड़ा, मुर्षिदाबाद, मालदा, पदिया, 24 परगना
22. चंडीगढ़ षहर
विकलांग बनाता पानी
पंकज चतुर्वेदी
‘‘दस साल पहले तिलइपानी के बाशिंदों का जीवन देश के अन्य हजारों आदिवासी गांवों की ही तरह था । वहां थोड़ी बहुत दिक्कत पानी की जरूर थी । अचानक अफसरों को इन आदिवासियों की जल समस्या खटकने लगी । तुरत-फुरत हेंडपंप रोप दिए गए । लेकिन उन्हें क्या पता था कि यह जल जीवन दायी नहीं, जहर है । महज 542 आबादी वाले इस गांव में 85 बच्चे विकलांग हैं । तीन से बारह साल के अधिकांश बच्चों के हाथ-पैर टेढ़े हैं । वे
घिसट-घिसट कर चलते हैं और उनकी हड्डियों और जोड़ों में असहनीय दर्द रहता है ।’’
यह विदारक कहानी अकेले तिलइपानी की ही नहीं है । मध्यप्रदेश और उससे अलग हो कर बने छत्तीसगढ़ राज्य के आधा दर्जन जिलों के सैंकड़ों गांवों में ‘तिलइपानी’ देखा जा सकता है । पारंपरिक जल स्त्रोतों, नदी-नालों व तालाब-बावडियों से पटे मप्र में पिछला दशक जल समस्या का चरम काल रहा है । हालांकि इस समस्या को उपजाने में समाज के उन्हीं लोगों का योगदान अधिक रहा है, जो इन दिनों इसके निदान का एकमात्र जरिया भूगर्भ जल दोहन बता रहे हैं ।
टेकनालाजी मिशन नामक करामाती केंद्र सरकार पोषित प्रोजेक्ट के शुरुआती दिनों की बात है । नेता-इंजीनियर की साझा लाबी गांव-गांव में ट्रक पर लदी बोरिंग मशीनें लिए घूमते थे । जहां जिसने कहा कि पानी की दिक्कत है, तत्काल जमीन की छाती छेद कर नलकूप रोप दिए गए । हां, जनता की वाह-वाही तो मिलती ही, जो वोट की फसल बन कर कटती भी । यानि एक तीर से दो शिकार - नोट भी और वोट भी । पर जनता तो जानती नहीं थी और हैंडपंप मंडली जानबूझ कर अनभिज्ञ बनी रही कि इस तीर से दो नहीं तीन शिकार हो रहे हैं । बगैर जांच परख के लगाए गए नलकूपों ने पानी के साथ-साथ वो बीमारियां भी उगलीं, जिनसे लोगों की अगली पीढि़यां भी अछूती नहीं रहीं । ऐसा ही एक विकार पानी में फ्लोराइड के आधिक्य के कारण उपजा । फ्लोराइड पानी का एक स्वाभाविक- प्राकृतिक अंश है और इसकी 0.5 से 1.5 पीपीएम मात्रा मान्य है । लेकिन मप्र के हजारों हैंडपंपों से निकले पानी में यह मात्रा 4.66 से 10 पीपीएम और उससे भी अधिक है ।
फ्लोराइड की थोड़ी मात्रा दांतों के उचित विकास के लिए आवश्यक हैं । परंतु इसकी मात्रा निर्धारित सीमा से अधिक होने पर दांतों में गंदे धब्बे हो जाते हैं । लगातार अधिक फ्लोराइड पानी के साथ शरीर में जाते रहने से रीढ़, टांगों, पसलियों और खोपड़ी की हड्डियां प्रभावित होती हैं । ये हड्डियां बढ़ जाती हैं, जकड़ और झुक जाती हैं । जरा सा दवाब पड़ने पर ये टूट भी सकती हैं । ‘फ्लोरोसिस’ के नाम से पहचाने वाले इस रोग का कोई इलाज नहीं है ।
मप्र के झाबुआ, सिवनी, शिवपुरी, छतरपुर, बैतूल, मंडला और उज्जैन व छत्तीसगढ़ के बस्तर जिलों के भूमिगत पानी में फ्लोराइड की मात्रा निर्धारित सीमा से बहुत अधिक है । आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले के 78 गांवों में 178 हेंडपंप फ्लोराइड आधिक्य के कारण बंद किया जाना सरकारी रिकार्ड में दर्ज है । लेकिन उन सभी से पानी खींचा जाना यथावत जारी है । नानपुर कस्बे के सभी हेंडपंपांे को पीने अयोग्य घोषित किया गया है । जब सरकारी अमले उन्हें बंद करवाने पहुंचे तो जनता ने उन्हें खदेड़ दिया । ठीक यही बड़ी, राजावट, लक्षमणी, ढोलखेड़ा, सेजगांव और तीती में भी हुआ । चूंकि यहां पेय जल के अन्य कोई स्त्रोत शेष नहीं बचे हैं । सो हेंडपंप बंद होने पर जनता को नदी-पोखरों का पानी पीना होगा,जिससे हैजा,आंत्रशोथ,पीलिया जैसी बीमारियां होगीं । इससे अच्छा वे फ्लोरोसिस से तिल-तिल मरना मानते हैं । बगैर वैकल्पिक व्यवस्था किए फ्लोराइड वाले हेंडपंपों को बंद करना जनता को रास नहीं आ रहा है । परिणाम है कि जिले के हर गांव में 20 से 25 फीसदी लोग पीले दांत, टेढ़ी-मेढ़ी हड्डियों वाले हैं ।
शिवपुरी जिले के नरवर और करैरा विकास खंडों के दो दर्जन गांवों में फ्लोराइड की विनाश लीला का पता सन 1990 में ही लग गया था । तब यहां के पानी के नमूने राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी अनुसंधान संस्थान (नीरी) नागपुर भेजे गए थे । सर्वाधिक प्रभावित गांवों फूलपुर और हतैडा में सितंबर-92 में फ्लोराइड उपचार यंत्र लगाए गए थे । एक तो इन संयंत्रों का रखरखाव ठीक रहा, फिर आबादी बढ़ने के साथ बढ़ी पानी की मांग को पूरा करने के लिए नए हेंडपंप भी लगे । सो बनियानी, जरावनी, हतैडा गांवों में आधी से अधिक आबादी फ्लोरोसिस के अभिशाप से ग्रस्त है ।
मंडला जिले के तिलइपानी, मोहगांव, सिलपुरी, सिमरियामाल और घुघरी विकास खंडों मेें आठ हजार से अधिक हेंडपंप फ्लोराइड का जहर उगल रहे हैं । यहां बच्चों की समूची पीढ़ी ताजिंदगी अपाहिज है । तिलइपानी के करीबी रसोइदाना, शिवपुर, छपरी, सिमरिया में ही 2000 से अधिक रोगी हैं । जिले के कुल 2092 में से 2053 गांवों में फ्लोरोसिस का आधिक्य है । दर्दनाक बात यह है कि यहां लगाए गए हरेक हेंडपंप की सर्वे रिपोर्ट में फ्लोराइड की मात्रा 1.3 पीपीएम से अधिक नहीं लिखी है और उसे राज्य प्रदूषण निवारण बोर्ड ने भी सत्यापित किया है। वो तो जब गांवों में विकलांग बच्चों की संख्या बढ़ने लगी, तब जबलपुर मेडिकल कालेज के कुछ डाक्टरों का ध्यान इस ओर गया ।
सिवनी जिले के 82 गांवों में फ्लोराइड के खतरनाक सीमा पार कर जाने के बाद वहां 111 हेंडपंपों को बंद कर दिया गया है । सबसे अधिक बुरी हालत घनसौर ब्लाक की है, जहां 31 गांवों में फ्लोराइड का आतंक है । छपरा ब्लाक में 16, घनौरा में आठ और सिवनी में 27 गांवों के भूजल ने विकलांगता का कोहराम मचा रखा है । इन सभी गांवों में पानी की कोई अन्य व्यवस्था करे बगैर ही हैंडपंपों को बंद कर दिया गया है ।
गलत रिपोर्ट देने वाला कौन है ? इसकी जांच को हर स्तर पर दबा दिया गया । उसके बाद सरकार इन फ्लोराइड आधिक्य वाले गांवों को निहार रही है । चंूिक कहीं भी पेय जल के लिए और कोई व्यवस्था है नहीं, सो जनता जान कर भी जहर पी रही है । कई गांवों के हालात तो इतने बदतर हैं कि वहां मवेशी भी फ्लोराइड की चपेट में आ गए हैं । डाक्टरी रिपोर्ट बताती है कि गाय-भैंसों के दूध में फ्लोराइड की मात्रा बेतहाशा बढ़ी हुइ्र्र है , जिसका सेवन साक्षात विकलांगता को आमंत्रण देना है । लेकिन ऐसी कई और रिपोर्टें भी महज सरकारी लाल बस्तों में धूल खा रही हैं ।
जहां एक तरफ लाखों लोग फ्लोरोसिस के अभिशाप से घिसट रहे हैं, वहीं प्रदेश के लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग की रुचि अधिक से अधिक ‘फ्लोरोडीशन संयंत्र’ खरीदने में है । यह किसी से छिपा नहीं है कि सरकारी खरीद-फरोख्त में किन के और कैसे वारे-न्यारे होते हैं । इस बात को सभी स्वीकारते हैं कि जहां फ्लोरोसिस का आतंक इतना व्यापक हो, वहां ये इक्का-दुक्का संयंत्र फिजूल ही होते हैं । फ्लोराइड से निबटने में ‘नालगोंडा विधि ’ खासी कारगर रही है । इससे दस लीटर प्रति व्यक्ति हर रोज के हिसाब छह सदस्यों के एक परिवार को साल भर तक पानी शुद्ध करने का खर्चा मात्र 15 से 20 रुपए आता है । इसका उपयोग आधे घंटे की ट्रेनिंग के बाद लोग अपने ही घर में कर सकते हैं । काश सरकार या स्वयंसेवी संसथाओं ने इस दिशा में कुछ सार्थक व्रयास किए होते ।
फ्लोराइड आधिक्य वाले इन इलाकों में फ्लोराइड युक्त टूथ पेस्टों की बिक्री धड़ल्ले से जारी है । साथ ही कुछ ऐसी रासायनिक खादों की बिक्री भी हो रही है जिसमें मिलावट के तौर पर फ्लोराइड की कुछ मात्रा होती है । इन पर रोक के लिए किसी भी स्तर पर सोचा ही नहीं गया है ।