झीलें बचाते तो जन्नत का यह हाल न होता
पंकज चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
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DAINIK HINDUSTAN 16-9-14http://paper.hindustantimes.com/epaper/viewer.aspx |
कश्मीर का अधिकांश भाग चिनाब, झेलम और सिंधु नदी की घाटियों में बसा हुआ है। इस खूबसूरत राज्य के चप्पे-चप्पे पर अनेक नदी-नाले, सरोवर-झरने हैं। विडंबना है कि प्रकृति के इतने करीब व जल-निधियों से संपन्न इस राज्य ने कभी उनकी कदर नहीं की। मनमाने तरीके से झीलों को पाटकर बस्तियां और बाजार बनाए गए, झीलों के रास्तों को रोक कर सड़कें बना ली गईं। जल निधियों का प्राकृतिक स्वरूप बना रहता, तो बारिश का पानी दरिया में होता, न कि बस्तियों में। कश्मीर में आतंकवाद के हल्ले के बीच वहां की झीलों और जंगलों पर असरदार लोगों के नजायज कब्जे का मसला हर समय कहीं दब जाता है। कभी राज्य में छोटे-बड़े कोई 600 वेटलैंड थे, जो अब बमुश्किल 12-15 बचे हैं।
कश्मीर की अधिकांश झीलें आपस में जुड़ी हुई थीं और अभी कुछ दशक पहले तक यहां आवागमन के लिए जल-मार्ग का इस्तेमाल बेहद लोकप्रिय था। झीलों की मौत के साथ ही यह परिवहन भी दम तोड़ गया। अब कई झीलें दलदली जमीन में बदलती जा रही हैं। खुशलसार, गिलसार, मानसबल, बरारी नंबल, जैना लेक, अंचर झील, वसकुरसर, मीरगुड, हैईगाम, नरानबाग, नरकारा जैसी कई झीलों के नाम तो अब कश्मीरियों को भी याद नहीं हैं। डल झील जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी ङील है। यह श्रीनगर की ही नहीं, पूरे भारत की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक है। दो दशक पहले डल झील का दायरा 27 वर्ग किलोमीटर होता था, जो अब सिकुड़कर करीब 12 वर्ग किलोमीटर ही रह गया है। इसका एक बड़ा कारण, झील के किनारों और बीच में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण है। हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद अतिक्रमण को हटाने के लिए सरकार ने कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। पर्यावरणविदों के अनुसार, प्रदूषण के कारण पहाड़ों से घिरी डल झील अब कचरे की शरणस्थली बनती जा रही है।
श्रीनगर से कोई पचास किलोमीटर दूर स्थित मीठे पानी की एशिया की सबसे बड़ी ङील वुल्लर का सिकुड़ना साल-दर-साल जारी है। साल 1991 में इसका फैलाव 273 वर्ग किलोमीटर था, जो आज 58.71 वर्ग किलोमीटर रह गया है। वैसे इसकी लंबाई 16 किलोमीटर और चैड़ाई 10 किलोमीटर है। झील में मिलने वाली मछलियों की कई प्रजातियां- रोसी बार्ब, मच्छर मछली, कैट फिश, किल्ली आदि अब लुप्त हो गई हैं। आज भी कोई दस हजार मछुआरे अपना जीवन-यापन यहां की मछलियों पर करते हैं। वुल्लर झील श्रीनगर घाटी की जल-प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा थी। यहां की पहाड़ियों से गुजरने वाली तेज प्रवाह की नदियों में जब कभी पानी बढ़ता, तो यह झील बस्ती में बाढ़ आने से रोकती थी। सदियों तक बाढ़ का बहाव रोकने के कारण इसमें भरी गाद को कभी साफ नहीं किया गया। दरअसल, ज्यादा गाद होने से झील के किनारों पर कब्जा करना आसान हो जाता है। लेकिन इतनी भीषण बाढ़ के बाद क्या यह सिलसिला रुकेगा?
कश्मीर की अधिकांश झीलें आपस में जुड़ी हुई थीं और अभी कुछ दशक पहले तक यहां आवागमन के लिए जल-मार्ग का इस्तेमाल बेहद लोकप्रिय था। झीलों की मौत के साथ ही यह परिवहन भी दम तोड़ गया। अब कई झीलें दलदली जमीन में बदलती जा रही हैं। खुशलसार, गिलसार, मानसबल, बरारी नंबल, जैना लेक, अंचर झील, वसकुरसर, मीरगुड, हैईगाम, नरानबाग, नरकारा जैसी कई झीलों के नाम तो अब कश्मीरियों को भी याद नहीं हैं। डल झील जम्मू-कश्मीर की दूसरी सबसे बड़ी ङील है। यह श्रीनगर की ही नहीं, पूरे भारत की सबसे खूबसूरत झीलों में से एक है। दो दशक पहले डल झील का दायरा 27 वर्ग किलोमीटर होता था, जो अब सिकुड़कर करीब 12 वर्ग किलोमीटर ही रह गया है। इसका एक बड़ा कारण, झील के किनारों और बीच में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण है। हाईकोर्ट के निर्देशों के बावजूद अतिक्रमण को हटाने के लिए सरकार ने कोई गंभीर प्रयास नहीं किया। पर्यावरणविदों के अनुसार, प्रदूषण के कारण पहाड़ों से घिरी डल झील अब कचरे की शरणस्थली बनती जा रही है।
श्रीनगर से कोई पचास किलोमीटर दूर स्थित मीठे पानी की एशिया की सबसे बड़ी ङील वुल्लर का सिकुड़ना साल-दर-साल जारी है। साल 1991 में इसका फैलाव 273 वर्ग किलोमीटर था, जो आज 58.71 वर्ग किलोमीटर रह गया है। वैसे इसकी लंबाई 16 किलोमीटर और चैड़ाई 10 किलोमीटर है। झील में मिलने वाली मछलियों की कई प्रजातियां- रोसी बार्ब, मच्छर मछली, कैट फिश, किल्ली आदि अब लुप्त हो गई हैं। आज भी कोई दस हजार मछुआरे अपना जीवन-यापन यहां की मछलियों पर करते हैं। वुल्लर झील श्रीनगर घाटी की जल-प्रणाली का महत्वपूर्ण हिस्सा थी। यहां की पहाड़ियों से गुजरने वाली तेज प्रवाह की नदियों में जब कभी पानी बढ़ता, तो यह झील बस्ती में बाढ़ आने से रोकती थी। सदियों तक बाढ़ का बहाव रोकने के कारण इसमें भरी गाद को कभी साफ नहीं किया गया। दरअसल, ज्यादा गाद होने से झील के किनारों पर कब्जा करना आसान हो जाता है। लेकिन इतनी भीषण बाढ़ के बाद क्या यह सिलसिला रुकेगा?
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