भले ही बुंदेलखंड में कम बारशि व सूख रहे, लेकिन केन कई जगहों पर तबाही व बाढ लाती है, असल में यह मानव निर्मित समस्या है, बेतरतीब बनाए गए स्टाप डेम व पुराने तारीखों से बहुत आगे निकल गए बांधों का अभी भी इस्तेमाल इन नुकसान व पानी की बर्बादी का कारक है, यह लेख द सी एक्सप्रेस, आगरा के मेरे साप्ताहिक कालम में है, इसे यहां पर http://theseaexpress.com/Details.aspx?id=66559&boxid=160543056 या मेरे ब्लाग pankajbooks.blogspot.in पर पढ सकते हैं
केन ने क्यों मचाई तबाहीं ?
पंकज चतुर्वेदी
जुलाई के आखिरी सप्ताह तक बुंदेलखंड के बड़े हिस्से में पानी के लिए त्राहि-त्राहि थी । यहां खेत ढंग से जुत नहीं पाए हैं । मध्यप्रदेष व उत्तर प्रदेष के लगभग 14 जिलों में फैले बंुदेलखंड के सैंकडों गांव पानी के कारण वीरान हो गए थे । लेकिन इस बार भादौ का अंत होते-होते जम कर बारिष भी हुई और यहां की सूखी नदियों के आश्रय स्थल वाली बड़ी नदियों में पानी की आवक बढ गई। जिन गांवों में पानी का टोटा था, वहां अब पानी ही पानी है । सरकार में बैठे लोग राहत कार्यों पर खर्च किए जाने वाले धन का हिसाब-किताब लगा रहे हैं । षायद ही इस बारे में कोई विचार बन रहा है कि आमतौर पर षांत कही जाने वाली छोटी सी नदी केन अचानक क्यों उफन गई ? वास्तव में यह इस नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के प्र्यावरण के साथ किए जा रहे छेड़छाड़ का नतीजा है ।
केन नदी जबलपुर के मुवार गांव से निकलती है । पन्ना की तरफ 40 किमी आ कर यह कैमूर पर्वतमालाओं के ढलान पर उत्तर दिषा में आती है । तिगरा के पास इसमें सोनार नदी मिलती है । पन्ना जिले के अमानगंज से 17 किमी दूर पंडवा नामक स्थान पर छह नदियों - मिठासन, बंधने, फलने, ब्यारमा आदि का मिलन केन में होता है और यहीं से केन का विस्तार हो जाता है ।यहां से नदी छतरपुर जिले की पूर्वी सीमा को छूती हुई बहती है । आगे चल कर नदी का उत्तर बहाव विध्य पर्वत श्रंखलाओं के बीच संकुचित मार्ग में होता है । इस दौरान यह नदी 40 से 50 मीटर ऊंचाई के कई जल प्रपात निर्मित करती है । पलकोहां(छतरपुर) के करीब इसमें सामरी नामक नाला मिलता है । कुछ आगे चल कर नोनापंाजी के पास गंगउ तालाब है । इस पर एक बांध बना हुआ है । यहां से नदी उतार पर होती है । सो इसका बहाव भी तेज होता है । एक अन्य बांध बरियारपुर पर है ।
छतरपुर जिले की गौरीहार तहसील को छूती हुई यह नदी बांदा(उ.प्र.) जिले में प्रवेष करती है । रास्ते में इसमें बन्ने, कुटनी, कुसियार, लुहारी आदि इसकी सहायक नदियां हैं । बांदा जिले में इसके बाएं तट पर चंद्रावल नदी और दाएं तट पर मिरासन नाला आ जुड़ता है । कोई 30 हजार वर्ग किमी जल-ग्रहण क्षमता वाली इस नदी को 1906 में सबसे पहले बंाधा गया । खजुराहो से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर स्थित ,सन 1915 में बना गंगउ बांध इतना जर्जर हो चुका है कि किसी भी समय उसमें जमा अथाह जल-निधि दीवारें तोड़ कर बाहर आ सकती हैं। सनद रहे कि मध्यप्रदेष के छतरपुर की सीमा में पांच ऐसे बांध है जिनका मालिकाना हक उ.प्र. का है। लिहाजा इनमें जमा पानी तो उ.प्र. लेता है, लेकिन इनसे उपजे संकटों जैसे - सीलन, दलदल, बाढ़ आदि को म.प्र. झेलता है।
म.प्र. में केन और सिमरी नदी के मिलन स्थल पर बना गंगउ बांध गत कई सालों से बेकार घोशित हो चुका है। ऐसा नहीं है कि गंगउ की जर्जर हालत के बारे में उ.प्र. सरकार को जानकारी नहीं है। इस बांध की मुख्य वियर की निरीक्षण गैलेरी, चैनल गेट की रैलिंग और पुल नंबर चार की कोई 100 मीटर दीवार सन 2003 में ही खराब हो गई थी। चूंकि बांध के मुख्य हिस्से संरक्षित वन क्षेत्र‘ पन्ना राश्ट्रीय वन’ में आते हैं , सो सुप्रीम कोर्ट से इसकी मरम्म्त की अनुमति ली गई थी। कहा जाता है कि राज्य सरकार के पास बजट की कमी थी और मरम्मत का काम कामचलाउ किया गया। बीते चार सालों में कम बारिष के कारण यह बांध भरा ही नहीं सो इसके टूटे-फूटे हिस्सों पर किसी का ध्यान गया नहीं।
इस साल अभी तक 30 इंच से ज्यादा पानी बरस चुका है। सनद रहे कि गंगउ बांध की जल क्षमता 3500 क्यूबिक मिलियन फुट जलभराव की है। गाद के कारण यह घट कर 1200 क्यूबिक मिलियन फुट रह गई। बीते 45 दिनों में हुई घनघोर बारिष ने गंगउ को लबालब भर दिया है। पानी का दवाब नहीं सह पाने के कारण इसकी पष्चिमी पिचिंग का कोई 500 फीट हिस्सा बह गया है। पूर्वी पिच तो लगभग पूरा ही गायब है। इधर म.प्र. के कोई देा दर्जन गांव वालों की रातों की नींद हराम है तो उ.प्र. के सिंचाई महकमे के लोग इन चेतावनियों से बेखबर है।
विषेशज्ञों का कहना है कि यदि कुछ और बारिष हो गई तो गंगउ का टूट कर बिखर जाना तय है। ऐसे में सरकार के पास असहाय हो कर तबाही देखने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। सनद रहे कि गंगउ चारों ओर से पन्ना नेषनल पार्क से घिरा है और जल-प्लावन की स्थिति में वहां तिनका भी नहीं बचेगा। बांध में एकत्र पानी की मात्रा इतनी अणिक है कि बांध की दीवार अर्राने पर 25 से 30 मिनट में कई- फीट उंची पानी की लहरें खजुराहो तक पहुंच जाएंगी। इसकी चपेट में हवाई पट्टी और कई पांच सितारा होटल होंगे। उंचे चबूतरे पर बने कुछ मंदिरों को छोड़ दें तो खजुराहो के अधिकांष मंदिरों का पानी-बम से बचना असंभव होगा।
बगैर सोचे समझे नदी-नालों पर बंधान बनाने के कुप्रभावों का ताजातरीन उदाहरण मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बहने वाली छोटी नदी ‘‘केन’’ है । बुंदेलखंड सदैव से वाढ़ सुरक्षित माना जाता रहा है । गत डेढ दषक से केन अप्रत्याशित ढंग से उफन रही है, और पन्ना, छतरपुर और बांदा जिले में जबरदस्त नुकसान कर रही है । केन के अचानक रौद्र हो जाने के कारणों को खोजा तो पता चला कि यह सब तो छोटे-बड़े बांधों की कारिस्तानी है । सनद रहे केन नदी, बांदा जिले में चिल्ला घाट के पास यमुना में मिलती है । जब अधिक बारिश होती है, या किन्हीं कारणों से यमुना में जल आवक बढ़ती है तफ इसके बांधों के कारण इसका जल स्तर कुछ अधिक ही बढ़ जाता है । उधर केन और उसके सहायक नालों पर हर साल सैकड़ों ‘‘स्टाप-डेम’’ बनाए जा रहे हैं, जो इतने घटिया हैं कि थोड़ा ही जल संग्रहण होने पर टूट जाते है । केन में बारिश का पानी बढ़ता है, फिर ‘‘स्टाप-डेमों’’ के टूटने का जल-दबाव बढ़ता है । साथ ही केन की राह पर स्थित पुराने ‘‘ओवर-एज’’ हो गए बांधों में भी टूट-फूट होती है । यानी केन क्षमता से अधिक पानी ले कर यमुना की और लपलपाती है । वहां का जल स्तर इतना उंचा होता है कि केन के प्राकृतिक मिलन स्थल का स्तर नीचे रह जाता है । रौद्र यमुना, केन की जलनिधि को पीछे ढकेलती है । इसी कशमकश में नदियों की सीमाएं बढ़ कर गांवों-सड़कों -खेतों तक पहुंच जाती हैं । इन दिनों बांदा के भूरा गए़ में केन का जल स्तर 108.20 मीटर पर है और इसके बेक-स्ट्रोक का ही प्रभाव है कि बांदा से पन्ना तक इसके व इसकी सहायक नदियों - मिढासन, ब्यारमा, पतने, गलका आदि के किनारे बसे खेत-गांव पानी-पानी हो गए हैं।
केन ने क्यों मचाई तबाहीं ?
पंकज चतुर्वेदी
जुलाई के आखिरी सप्ताह तक बुंदेलखंड के बड़े हिस्से में पानी के लिए त्राहि-त्राहि थी । यहां खेत ढंग से जुत नहीं पाए हैं । मध्यप्रदेष व उत्तर प्रदेष के लगभग 14 जिलों में फैले बंुदेलखंड के सैंकडों गांव पानी के कारण वीरान हो गए थे । लेकिन इस बार भादौ का अंत होते-होते जम कर बारिष भी हुई और यहां की सूखी नदियों के आश्रय स्थल वाली बड़ी नदियों में पानी की आवक बढ गई। जिन गांवों में पानी का टोटा था, वहां अब पानी ही पानी है । सरकार में बैठे लोग राहत कार्यों पर खर्च किए जाने वाले धन का हिसाब-किताब लगा रहे हैं । षायद ही इस बारे में कोई विचार बन रहा है कि आमतौर पर षांत कही जाने वाली छोटी सी नदी केन अचानक क्यों उफन गई ? वास्तव में यह इस नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के प्र्यावरण के साथ किए जा रहे छेड़छाड़ का नतीजा है ।
केन नदी जबलपुर के मुवार गांव से निकलती है । पन्ना की तरफ 40 किमी आ कर यह कैमूर पर्वतमालाओं के ढलान पर उत्तर दिषा में आती है । तिगरा के पास इसमें सोनार नदी मिलती है । पन्ना जिले के अमानगंज से 17 किमी दूर पंडवा नामक स्थान पर छह नदियों - मिठासन, बंधने, फलने, ब्यारमा आदि का मिलन केन में होता है और यहीं से केन का विस्तार हो जाता है ।यहां से नदी छतरपुर जिले की पूर्वी सीमा को छूती हुई बहती है । आगे चल कर नदी का उत्तर बहाव विध्य पर्वत श्रंखलाओं के बीच संकुचित मार्ग में होता है । इस दौरान यह नदी 40 से 50 मीटर ऊंचाई के कई जल प्रपात निर्मित करती है । पलकोहां(छतरपुर) के करीब इसमें सामरी नामक नाला मिलता है । कुछ आगे चल कर नोनापंाजी के पास गंगउ तालाब है । इस पर एक बांध बना हुआ है । यहां से नदी उतार पर होती है । सो इसका बहाव भी तेज होता है । एक अन्य बांध बरियारपुर पर है ।
छतरपुर जिले की गौरीहार तहसील को छूती हुई यह नदी बांदा(उ.प्र.) जिले में प्रवेष करती है । रास्ते में इसमें बन्ने, कुटनी, कुसियार, लुहारी आदि इसकी सहायक नदियां हैं । बांदा जिले में इसके बाएं तट पर चंद्रावल नदी और दाएं तट पर मिरासन नाला आ जुड़ता है । कोई 30 हजार वर्ग किमी जल-ग्रहण क्षमता वाली इस नदी को 1906 में सबसे पहले बंाधा गया । खजुराहो से कुछ ही किलोमीटर दूरी पर स्थित ,सन 1915 में बना गंगउ बांध इतना जर्जर हो चुका है कि किसी भी समय उसमें जमा अथाह जल-निधि दीवारें तोड़ कर बाहर आ सकती हैं। सनद रहे कि मध्यप्रदेष के छतरपुर की सीमा में पांच ऐसे बांध है जिनका मालिकाना हक उ.प्र. का है। लिहाजा इनमें जमा पानी तो उ.प्र. लेता है, लेकिन इनसे उपजे संकटों जैसे - सीलन, दलदल, बाढ़ आदि को म.प्र. झेलता है।
म.प्र. में केन और सिमरी नदी के मिलन स्थल पर बना गंगउ बांध गत कई सालों से बेकार घोशित हो चुका है। ऐसा नहीं है कि गंगउ की जर्जर हालत के बारे में उ.प्र. सरकार को जानकारी नहीं है। इस बांध की मुख्य वियर की निरीक्षण गैलेरी, चैनल गेट की रैलिंग और पुल नंबर चार की कोई 100 मीटर दीवार सन 2003 में ही खराब हो गई थी। चूंकि बांध के मुख्य हिस्से संरक्षित वन क्षेत्र‘ पन्ना राश्ट्रीय वन’ में आते हैं , सो सुप्रीम कोर्ट से इसकी मरम्म्त की अनुमति ली गई थी। कहा जाता है कि राज्य सरकार के पास बजट की कमी थी और मरम्मत का काम कामचलाउ किया गया। बीते चार सालों में कम बारिष के कारण यह बांध भरा ही नहीं सो इसके टूटे-फूटे हिस्सों पर किसी का ध्यान गया नहीं।
इस साल अभी तक 30 इंच से ज्यादा पानी बरस चुका है। सनद रहे कि गंगउ बांध की जल क्षमता 3500 क्यूबिक मिलियन फुट जलभराव की है। गाद के कारण यह घट कर 1200 क्यूबिक मिलियन फुट रह गई। बीते 45 दिनों में हुई घनघोर बारिष ने गंगउ को लबालब भर दिया है। पानी का दवाब नहीं सह पाने के कारण इसकी पष्चिमी पिचिंग का कोई 500 फीट हिस्सा बह गया है। पूर्वी पिच तो लगभग पूरा ही गायब है। इधर म.प्र. के कोई देा दर्जन गांव वालों की रातों की नींद हराम है तो उ.प्र. के सिंचाई महकमे के लोग इन चेतावनियों से बेखबर है।
विषेशज्ञों का कहना है कि यदि कुछ और बारिष हो गई तो गंगउ का टूट कर बिखर जाना तय है। ऐसे में सरकार के पास असहाय हो कर तबाही देखने के अलावा कोई चारा नहीं होगा। सनद रहे कि गंगउ चारों ओर से पन्ना नेषनल पार्क से घिरा है और जल-प्लावन की स्थिति में वहां तिनका भी नहीं बचेगा। बांध में एकत्र पानी की मात्रा इतनी अणिक है कि बांध की दीवार अर्राने पर 25 से 30 मिनट में कई- फीट उंची पानी की लहरें खजुराहो तक पहुंच जाएंगी। इसकी चपेट में हवाई पट्टी और कई पांच सितारा होटल होंगे। उंचे चबूतरे पर बने कुछ मंदिरों को छोड़ दें तो खजुराहो के अधिकांष मंदिरों का पानी-बम से बचना असंभव होगा।
बगैर सोचे समझे नदी-नालों पर बंधान बनाने के कुप्रभावों का ताजातरीन उदाहरण मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में बहने वाली छोटी नदी ‘‘केन’’ है । बुंदेलखंड सदैव से वाढ़ सुरक्षित माना जाता रहा है । गत डेढ दषक से केन अप्रत्याशित ढंग से उफन रही है, और पन्ना, छतरपुर और बांदा जिले में जबरदस्त नुकसान कर रही है । केन के अचानक रौद्र हो जाने के कारणों को खोजा तो पता चला कि यह सब तो छोटे-बड़े बांधों की कारिस्तानी है । सनद रहे केन नदी, बांदा जिले में चिल्ला घाट के पास यमुना में मिलती है । जब अधिक बारिश होती है, या किन्हीं कारणों से यमुना में जल आवक बढ़ती है तफ इसके बांधों के कारण इसका जल स्तर कुछ अधिक ही बढ़ जाता है । उधर केन और उसके सहायक नालों पर हर साल सैकड़ों ‘‘स्टाप-डेम’’ बनाए जा रहे हैं, जो इतने घटिया हैं कि थोड़ा ही जल संग्रहण होने पर टूट जाते है । केन में बारिश का पानी बढ़ता है, फिर ‘‘स्टाप-डेमों’’ के टूटने का जल-दबाव बढ़ता है । साथ ही केन की राह पर स्थित पुराने ‘‘ओवर-एज’’ हो गए बांधों में भी टूट-फूट होती है । यानी केन क्षमता से अधिक पानी ले कर यमुना की और लपलपाती है । वहां का जल स्तर इतना उंचा होता है कि केन के प्राकृतिक मिलन स्थल का स्तर नीचे रह जाता है । रौद्र यमुना, केन की जलनिधि को पीछे ढकेलती है । इसी कशमकश में नदियों की सीमाएं बढ़ कर गांवों-सड़कों -खेतों तक पहुंच जाती हैं । इन दिनों बांदा के भूरा गए़ में केन का जल स्तर 108.20 मीटर पर है और इसके बेक-स्ट्रोक का ही प्रभाव है कि बांदा से पन्ना तक इसके व इसकी सहायक नदियों - मिढासन, ब्यारमा, पतने, गलका आदि के किनारे बसे खेत-गांव पानी-पानी हो गए हैं।
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