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शनिवार, 6 सितंबर 2014

Review of my book in Hindustan 7-9-14

आज के दैनिक हिंदुस्‍तान में मेरी पुस्‍तक पर एक छोटी सी टिप्‍पणी छापी है, वैसे पुस्‍तक के हार्ड बाउंड की कीमत भले ही 595 हो लेकिन यह पेपर बेक में भी है और रू 190/ में

Photo: आज के दैनिक हिंदुस्‍तान में मेरी पुस्‍तक पर एक छोटी सी टिप्‍पणी छापी है, वैसे पुस्‍तक के हार्ड बाउंड की कीमत भले ही 595 हो लेकिन यह पेपर बेक में भी है और रू 190/ में
   


पानी का मोल

यह किताब पारंपरिक जल-स्रोतों के प्रति हमारे गैर जिम्मेदार व्यवहार को उजागर करती है और बतलाती है कि यदि यही हाल रहा तो जल्द ही हम प्यासे रहने को विवश होंगे। गोकि आज ही हाल यह है कि देश की 32 फीसदी आबादी किसी न किसी समय पानी की किल्लत से जूझती रहती है। लेखक ने देश के तालाबों, कुओं और बावड़ियों की चर्चा की है। पानी को सहेजने के ये पारंपरिक उपादान आज तेजी से लुप्त हो रहे हैं। सच तो यह बड़ी संख्या में लुप्त हो चुके हैं। कथित आधुनिकता के जोर में हमने पारंपरिक ज्ञान व कौशल की उपेक्षा से क्या कुछ गंवाया है, इसके  प्रमाण हमारी देसी तालाब पद्धतियां हैं, जिनको जानने वाले भी अब गिने-चुने ही हैं। पुस्तक बताती है कि यदि पारंपरिक जल-स्नोत नहीं रहेंगे तो वास्तव में यह आत्मघाती कदम होगा।
दफन होते दरिया, पंकज चतुर्वेदी, यश पब्लिकेशंस, दिल्ली-32, मूल्य  595 रु.

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