देश की नदियों में पानी नहीं, पैसा बहता है
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हिंदुस्तान २७ फरवरी १५ |
दिल्ली में यमुना नदी को लंदन की टेम्स नदी-सा बनाने की चर्चा कई दशक से चली आ रही है। अब सुनने में आया है कि लखनऊ में शामे अवध की शान गोमती नदी को टेम्स नदी की तरह संवारा जाएगा। शहर में इसके आठ किलोमीटर के बहाव मार्ग को घाघरा और शारदा नहर से जोड़कर नदी को सदानीरा बनाया जाएगा। साथ ही, इसके सभी घाटों व तटों को चमकाया जाएगा। इस पर खर्च आएगा 600 करोड़ रुपये। पहले भी गोमती को पावन बनाने पर कोई 300 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, लेकिन इसकी निचली लहर में बॉयोऑक्सीजन डिमांड, यानी बीओडी की मात्रा तयशुदा मानक से बहुत नीचे जा चुकी है। यह हाल देश की लगभग सभी नदियों का है। पैसे को पानी की तरह बहाया जाता है, फिर भी नदियों का पानी ठीक तरह से नहीं बह पाता। एक अनुमान है कि आजादी के बाद से अभी तक गंगा की सफाई के नाम पर कोई 20 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। इसके लिए विश्व बैंक से कर्ज भी लिया गया, लेकिन न गंगा साफ हुई और न ही इसका प्रदूषण ही रुका। सरकारी रिकॉर्ड से मिलने वाली जानकारी तो दर्शाती है कि नदियों में पानी नहीं नोट बहते हैं, वह भी भ्रष्टाचार व अनियमितता की दलदल के साथ। साल 2000 से 2010 के बीच देश के 20 राज्यों को नदी संरक्षण योजना के तहत 2,607 करोड़ रुपये जारी किए गए। इस योजना में कुल 38 नदियां आती हैं। राष्ट्रीय नदी निदेशालय के अनुसार, 2001 से 2009-10 तक दिल्ली में यमुना की सफाई पर 322 करोड़ व हरियाणा में 85 करोड़ का खर्च कागजों पर दर्ज है। उत्तर प्रदेश में गंगा, यमुना, गोमती की सफाई में 463 करोड़ की सफाई हो जाना, बिहार में गंगा के शुद्धीकरण के लिए 50 करोड़ का खर्च सरकारी दस्तावेज स्वीकार करते हैं। गुजरात में साबरमती के संरक्षण पर 59 करोड़, कर्नाटक में भद्रा, तुंगभद्रा, कावेरी, तुंपा नदी को साफ करने पर 107 करोड़, मध्य प्रदेश में बेतवा, तापी, बाणगंगा, नर्मदा, कृष्णा, चंबल, मंदाकिनी को स्वच्छ बनाने के मद में 57 करोड़ का खर्चा किया गया। सतलुज को प्रदूषण मुक्त करने के लिए पंद्रह करोड़ से अधिक रुपये खर्च किए गए, जबकि तमिलनाडु में कावेरी, अडियार, बैगी, वेन्नार नदियों की सफाई का बिल 15 करोड़ का रहा। उत्तराखंड में गंगा को पावन रखने के मद में 47 करोड़ रुपये खर्च हुए। ऐसे ढेर सारे उदाहरण हैं। नदियों की सफाई, संरक्षण तो जरूरी है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है कि नदियों के नैसर्गिक मार्ग व बहाव से छेड़छाड़ न हो, उसके तटों पर लगे वनों में पारंपरिक वनों का संरक्षण हो, नदियों के जल-ग्रहण क्षेत्र में आने वाले इलाकों के खेतों में रासायनिक खाद व दवा का कम से कम इस्तेमाल हो। नदी अपने मार्ग में आने वाली गंदगी को पावन बना देती है, लेकिन मिलावट भी प्रकृति-सम्मत हो, तब तक ही। - See more at: http://www.livehindustan.com/news/editorial/guestcolumn/article1-Pankaj-Chaturvedi-senior-journalist-Delhi-Yamuna-River-London-Thames-57-62-472521.html#sthash.gu5sTJTg.dpuf
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