My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

सोमवार, 2 मार्च 2015

Only Idonin salt can not cure thyromegaly

जनसंदेश उप्र 2 मार्च 15
                                   केवल आयोडीन नमक ही नहीं है घेंघा का इलाज
                 
                         पंकज चतुर्वेदी

भारत सरकार प्रचार माध्यमों के दबाव में आकर ‘एड्स’ के भूत का पीछा कर रही है; जबकि देश में कई अन्य ऐसे रोग घर बनाते जा रहे हैं जो एड्स से अधिक खतरनाक और तेजी से फैल रहे हैं । ऐसा ही एक रोग है घेंघा या गायटर । इसके शिकार रोगी के गले में थैली की तरह मांस का लोथड़ा लटक आता हैं । गरीबी, कुपोषण और प्रकृति से हो रही छेड़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़़छाड़़़़ से उपजे इस रोग के प्रति जागरुकता पैदा करने के नाम पर सरकारी तंत्र महज आयोडिन-युक्त नमक का प्रचार कर, जाने-अनजाने में नमक निर्माता बहुराष्ट्ीय कंपनियों की झंड़ाबरदारी कर रहा है । जबकि हकीकत यह है कि आयोडिन युक्त नमक के अलावा भी दर्जनों ऐसे कारक हैं, जिनके चलते आज घेंघा महामारी का रूप लेता जा रहा है ।

शुरूआती दिनों में भारत के पहाडी क्षेत्र-हिमाचल, हिमालय की तराई, जम्मू-कश्मीर, पंजाब और मणिपुर और नगालैंड को ही घेंघा-ग्रस्त इलाका माना जाता था । लेकिन अब मध्यप्रदेश, बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश और तो और राजधानी दिल्ली में भी घेंघा-रोगियों की संख्या अप्रत्याशित ढं़ग से बढ़ रही है । अनुमान है कि देश में कोई पांच करोड़ 40 लाख से अधिक लोग गायटर के शिकार हैं । घेंघा रोग में गले की थायराईड ग्रंथि में वृद्धि का वजन 25 ग्रा. होता है । इसके ऊतकों के फूल जाने पर इसका वजन 200 से 500 ग्राम तक हो जाता है, यही घेंघा की अवस्था होती है ।
इस रोग का एक मूल कारण शरीर में आयोडि़न की कमी होना भी है । शरीर के लिए अत्यावश्यक हारमोन्स ‘थायरोक्सीन’ के निर्माण में आयोडिन की बेहद जरूरत होती है। ‘थायरोक्सीन’ का स्त्राव थायराईड ग्रंथि से होता है । यह गं्रथि श्वांस नली की बाहरी सतह पर चिपकी होती है । गुलाबी रंग की इस गं्रथि में एक लसदार कोलायड़ी तरल भरा होता है । इसी में आयोडि़न युक्त थायरोक्सीन होता हैं । यह शरीर की कई संक्रियाओं जैसे-रक्तचाप, जल, खनिज लवणों की मात्रा में सामजस्य आदि पर नियंत्रण रखता है । जनन अंगों के विकास और वृðि में भी यह हारमोंस सहायक होता है । शरीर को प्रतिदिन लगभग 200 माईक्रोग्राम आयोडीन की जरूरत होती है, जिसका तीन-चैथाई भाग थायराईड मे थायरोक्सीन निर्माण में खर्च हो जाता है ।
जब मनुष्य के शरीर को लगातार आयोडीन नहीं मिलता है तो थायरोक्सीन का निर्माण रुक जाता है । फलस्वरुप थायराईड ग्रंथि में वृद्धि होने लगती है । शरीर में अनावश्यक उत्तेजना, थकावट, चिड़चिड़ापन, घबराहट, अधिक पसीना, आंखे लाल व बडी होना, गरदन में सूजन इसके प्रारंभिक लक्षण हैं । अगर भूमि में आयोड़ीन की कमी होगी तो उसमें पैदा होने वाले खाद्य-पदार्थों में भी इसकी अल्पता रहेगी । अतएव इस कमी को पूरा करने के लिए आयोडिन-युक्त नमक प्रयोग में लाया जाता है । हर रोज मात्र सूई की नोक के बराबर यानि 150 माईक्रोग्राम आयोडीन का सेवन ही देह के लिए पर्याप्त है ।
यही नहीं कई ऐसे खाद्ध पदार्थ भी है जो आयोडीन की क्रियाशीलता को कम कर देते हैं, फलस्वरुप थायराक्सीन हारमोंस प्रभावित होता हैं । जैसे फूल गोभी और पत्ता गोभी, शलजम और सरसो । इनके अधिक सेवन से भी घेंघा की संभावना हो जाती है । इन सब्जियों में ‘थायोयूरिया’ पाया जाता है, जो ‘गायटर’ की वृðि में सहायक होता है । ब्रेसिका कुल के पौधों के अलावा मूंगफली और सोयाबीन में भी ऐसे लक्षण पाए गए हैं ।      
डेयरी के दूध में प्रिजरवेटिव के रूप में प्रयुक्त ‘थायोसाईनेट्स’ के अधिक सेवन से भी घेंघा हो जाता है । हालांकि साधारण दूध में यह प्रति लीटर 10 से 20 मिलीग्राम प्राकृतिक रूप से उपस्थित रहता है । कुछ साल पहले दिल्ली में स्कूली बच्चों के बीच किए गए एक सर्वेक्षण से पता चला था कि साधारण स्कूलों की अपेक्षा अमीर स्कूल के बच्चों में घेंघा रोग के लक्षण अधिक थे । यानि जो अधिक दूध पीते हैं, वे इसके ज्यादा शिकार हुए । वैसे आजकल ‘फास्ट-फूड’ में ऐसे प्रिजरवेटिव्स का उपयोग खासा बढ गया है । पानी की कठोरता भी घेंघा का कारण हो सकता है । 1954 में टेयलर नामक वैज्ञानिकों ने चूहों पर प्रयोग कर बताया था कि नियमित आयोड़ीन लेने पर भी घेंघा हो सकता है, यदि आहार में केल्शियम कार्बोनेट की दो प्रतिशत मात्रा हो । उल्लेखनीय है कि जल के भारीपन का प्रमुख अंश केल्शियम कार्बोनेट ही होता है ।
हमारे देश में घेंघा से निबटने के लिए ‘राष्ट्ीय घेंघा नियंत्रण कार्यक्रम’ कोई तीन दशकों तक चला । पिछले कुछ वर्षों से राजीव गांधी घेंघा मिशन के नाम पर आयोडीन-युक्त नमक का प्रचार जोरों पर है । लेकिन विभिन्न सर्वेक्षणों के नतीजे कुछ और ही कहते हैं । देश के कई हिस्से घेंघा के प्रकोप में नहीं थें और वहां की जनता सतत् आयोडीन-युक्त नमक खा रही थी । फलस्वरूप इस रोग में 35 फीसदी बढ़ौतरी हो गई । स्वास्थ्य विभाग की एक रपट में यह स्वीकारा गया है कि आयोडीन वाला नमक खाने से घेंघा प्रभावित क्षेत्रों में उतना अधिक फायदा तो हुआ नहीं, हां उलटे अधिक आयोडीन सेवन के कारण घेंघा रोगियों की संख्या जरूर बढ़ गई । गत 20 वर्षों से लगातार आयोडीन वाला नमक खाने के बावजूद हिमाचल प्रदेश में घेंघा के रोगियों कि संख्या 20.5 से 34.5 प्रतिशत हो गई । पंजाब में 9.5 से 45.8, चंडीगढ में 11.2 से 45.9 व बिहार में 40.3 से 64.5 फीसदी घेंघा रोगी बढे ।
नागपुर यूनिवर्सिटी में बायो केमेस्ट्ी विभाग के प्रमुख एच.एफ. गादोबिवाला ने एक गहन शोध के बाद बताया कि साधारण नमक में आयोडीन की मात्रा 6 से 8 माईक्रोग्राम प्रति किलो होती है । जबकि टाटा कंपनी के आयोडीन-युक्त नमक में यह 22 माईक्रोग्राम थी । साधारण नमक में मौजूद आयोड़ीन की मात्रा, शारीरिक श्रम करने वाले इलाकों के निवासियों के लिए पर्याप्त होती है ।
यह बात कई षोधों में सिद्ध हो चुकी है कि आयोडीन नमक की उपयोगिता के दावे महज लफ्फाजी हैं । इसका घेंघा रोग से कुछ लेना देना नहीं है । अलबत्ता तो आयोडीन युक्त नमक में आयोडीन की मात्रा का प्रभाव दो महीने से अधिक नही होता हैं, फिर साधारण दशा में इसका अतिरिक्त भक्षण नुकसानदेह अधिक है । आयोडीन नमक की चिकित्सीय वैधता पर चाहे कितने ही शक-सवाल हों, लेकिन यह बात अविवादित है कि इस महंगे नमक कानून के कारण 12 लाख कामगाार बेरोजगार हो गए हैं । पहले नमक छोटे स्तर के व्यापारियों के जरिए आम लोगों तक पहुंचता था, पर इस कड़ी के टूटने से इसके व्यापारियों और मजदूरों दोनो पर संकट आ गया है ।
एक बात और गौरतलब है कि भारत में नमक की सालाना खपत लगभग एक करोड़ पचास लाख टन है । इसमें से केवल 40 लाख टन ही खाð पदार्थ के रूप में होता है । शेष नमक का इस्तेमाल मछलियों आदि के संरक्षण, चमड़ा पकाने व अन्य औद्योगिक प्रक्रिया में होता है । चूंकि भारत में साधारण नमक की बिक्री पर पाबंदी है, अतः इन कामों में लगी कंपनियों को पचास पैसे किलो वाला नमक मजबूरी में छह रुपय की दर से खरीदना पड़ता है । जाहिर है कि इस समूचे तमाशों के पीछे आम आदमी के स्वास्थ्य का नहीं, कतिपय नमक उत्पादक कंपनियों के हितों का ध्यान रखा गया है ।
शरीर में आयोडीन की कमी को पूरा करने लिए किए जा रहे बाहरी प्रयास असफल ही रहे हैं । जरूरत इस बात की है कि प्रकृति में हो रहे आयोडीन के ह्नास को रोका जाए । जल, जंगल, जमीन में इस तत्व की कमी के कारणों और भारत के स्थानीय परिवेश में इस रोग के कारणों की खोज जरूरी है । बगैर सोचे समझे आयोडीन-युक्त नमक के सेवन को लागू करना जन-स्वास्थ्य के साथ ‘नमक-हरामी’ करना ही होगा ।
                      


पंकज चतुर्वेदी                       

3/186 सेक्टर-2 राजेन्द्र नगर साहिबाबाद
गाजियाबाद 201005
201005               

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Terrorist Doctors: Concerns of Society and Education ...Pankaj Chaturvedi

  आतंकवादी डॉक्टर्स : समाज और   शिक्षा के सरोकार ... पंकज चतुर्वेदी   एक-दो नहीं कोई आधे दर्जन  डॉक्टर्स एक ऐसे गिरोह में शामिल थे जो ...