आफत बनते भोंपू
PRABHAT, MEERUT, 5-7-15 |
PEOPLES SAMACHAR MP 9-7-15 |
हाईकोर्ट के इस आदेश के साथ ही साल भर चलने वाले त्योहारों और धार्मिक व सामाजिक समारोहों के दौरान उपयोग किए जाने वाले ध्वनि विस्तारकों व दूसरे उपकरणों से फैसले वाले शोर से मुक्त जीवन जीने का आम जनता का सपना साकार हो गया है। दुर्भाग्य है कि भले ही कानून कुछ भी कहता हो, अदालतें कड़े आदेष देती हों, लेकिन धर्म के कंघे पर सवार हो कर षोर मचाने वाले लाउडस्पीकर हैं कि मानते ही नहीं हैं। गत दो सालों के दौरान अकेले उत्तर प्रदेष में हुए 20 से ज्यादा दुर्भाग्यषाली दंगों का मुख्य अभियुक्त यही लाउडस्पीकर ही रहा हे। ये ना केवल कानून-व्यवस्था के लिए चुनौती बने हैं, बल्कि आम लोगों की सेहत और पर्यावरण के भी दुष्मन बने हुए है। सभी लोग इनसे तंग है, लेकिन चुनौती यही है कि इन पर कानून सम्मत कार्यवाही कौन व कैसे करे।
अभी इसी मंगलवार को अमरोहा के डिडौली कोतवाली के गांव खैया शेखूपुरा में मंगलवार रात तरावीह के दौरान दूसरे पक्ष द्वारा धार्मिक स्थल पर लाउडस्पीकर बजाने पर विवाद हो गया। विरोध जताने गए पक्ष के चार लोगों को दूसरे वर्ग ने पकड़कर उनकी पिटाई कर दी। जिस पर दोनों ओर पथराव हो गया। हालात बिगड़ते देख जनपद से आसपास का फोर्स गांव में बुलाना पड़ा। मंगलवार रात करीब साढ़े दस बजे तरावीह के दौरान ही गांव के पश्चिम में स्थित शिव मंदिर में कीर्तन के लिए लाउडस्पीकर बजने लगा। ग्रामीणों के मुताबिक दूसरे पक्ष ने इस पर एतराज जताया और चार-पांच युवक मंदिर पर पहुंचकर लाउडस्पीकर बंद करने के लिए कहने लगे। बताते हैं कि इस पर यह पक्ष राजी नहीं हुआ और तनातनी शुरू हो गई। गाली-गलौज के बीच मारपीट शुरू हो गई। उ.प्र में ही सन 2014 के जून-जुलाई में मुरादाबाद के कांठ कस्बे में एक मंंिदर पर लाउड स्पीकर लगाने का बवाल इतना बढा था कि वहां कई दिन कफ्र्यू लगाना पड़ा था। उस मामले में इलाहबाद हाई कोर्ट ने साफ कर दिया था कि मंदिर पर भोंपू नहीं लगेगा, इसके बावजूद वहां हंगामा हुआ। मेरठ के मुंडाली क्षेत्र के नंगलामल गांव में रोजा इफ्तार के दौरान करीबी मंदिर पर भोंपू बजाने के कारण हुए झगउ़े में दो लोग मारे गए थे। बरेली में तो लाउड स्पीकर बजाने को ले कर दो बार दंगे हो चुके हैं। दिल्ली में त्रिलांेकपुरी में दीवाली के पहले जागरण के लिए लाउड स्पीकर बजाने पर हुआ बवाल 15 दिनों तक चला था। धार्मिक जुलूस निकालने के दौरान कतिपय धार्मिक स्थल के सामने से लाउड स्पीकर या डीजे बजाने को लकर गत तीन सालों के दौरान देषभर में 100 से ज्यादा जगह आग लग चुकी है। ये लाउडस्पीकर केवल दंगों के कारक ही नहीं बनते हैं, ये उस आग में घी का काम भी करते हैं। छोटे से विवाद पर अपने समाज के लेागों को एकत्र करने, अफवाहें फैलाने, लोगों को उकसाने में भी इन भोंपू की खलनायकी भूमिका होती है।
यह त्रासदी है कि जहां अभी कुछ दषक पहले तक सुबह आंखे खुलने पर पक्षियों का कलरव हमारे कानों में मधु घोलता था, आज देष की बड़ी आबादी अनमने मन से धार्मिक स्थलों के बेतरतीब षोर के साथ अपना दिन षुरू करता है। यह षोर पक्षियों, प्रकृति प्रेमी कीट-पतंगों, पालतु जीवों के लिए भी खतरा बना है। बुजुर्गों, बीमार लोगों और बच्चों के लिए यह असहनीय षोर बड़ा संकट बन कर उभरा है। सारी रात तकरीर, जागरण या फिर षादी, जन्मदिन के लिए डीजे की तेज आवाज कई लोगों के लिए जानलेवा बन चुकी है। दुखद तो यह है कि अब यह बेकाबू रोग पूरी तरह निरंकुष हो चुका हे। सनद रहे कि देषभर में 21 लाख से ज्यादा गैरकानूनी धार्मिक स्थलों का आंकड़ा सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत किया गया है और ये सभी पूजा स्थलों के लिए जमीन कब्जा करने और लोगों को बरगलाने में लाउडस्पीकर बड़ा अस्त्र हैं।
ऐसा नहीं है कि इस बवाली भोंपू पर कानून नहीं है, लेकिन कमी है कि उन कानूनों-आदेषों का पालन कौन करवाए। अस्सी डेसीमल से जयादा आवाज ना करने, रात दस बजे से सुबह छह बजे तक ध्वनि विस्तारक यंत्र का इस्तेमाल किसी भी हालत में ना करने, धार्मिक सथ्लों पर आइ फुट से ज्यादा ऊंचाई पर भोंपू ना लगाने, अस्पताल-षैक्षिक संस्थाओं, अदालत व पूजा स्थल के 100 मीटर के आसपास दिन हो या रात, लाउडस्पीकर का इस्तेमाल ना करने, बगैर पूर्वानुमति के पीए सिस्टम का इस्तेमाल ना करने जैसे ढेर सारे नियम, उच्च अदालतों के आदेष सरकारी किताबों में दर्ज हैं, लेकिन गली-मुहल्ले के धार्मिक स्थलों में आए रोज आरति, तकरीर, प्रवचन, नमाज के नाम पर पूरी रात आम लोगों को तंग करने पर कोई रोक-टोक नहीं है। तेज ध्वनि के कारण झगड़े होना महज धार्मिक प्रयोजन तक ही सीमित नहीं हैं, आए दिन षादी-विवाह में डीजे बजाने, उस पर पसंदीदा गाना चलाने, उसकी आवाज कम या ज्यादा करने को लेकर पारिवारिक आयोजन खूनी संघर्श में बदल जाते हैं। समाज में संकट का बीज बोने वाले डीजे पर कहने को तो पूरी तरह रोक लगी है, लेकिन इसकी परवाह किसी को भी नहीं है। अब तो धार्मिक जुलूसों में छोटे ट्रकों पर डीजे की गूंजती आवाज दूसरों को भड़काने, चिढ़ाने का काम करती दिखती है।
यह बात सभी स्वीकारते हैं कि दंगे, झगड़े देष व समाज के विकास के दुष्मन है। यह भी सभी मानते हैं कि हल्ला-गुल्ला, या तेज आवाज में पूजा-अर्चना करने से भगवान ना तो खुष होता है और ना ही इससे धार्मिकता या परंपरा का कुछ लेना-देना है। यह भी सर्वसम्मत है कि यह सब गैरकानूनी व अवैध है। फिर इसे कड़ाई से रोकने में समस्या क्या है? इसके लिए सभी धार्मिक नेताओं, जन प्रतिनिधियों और कार्यपालिका को एकजुट हो कर त्वरित कदम उठाने चाहिए।
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