आबादी का दबाव बढ़ा रहा है रेगिस्तान
पंकज चतुर्वेदी, वरिष्ठ पत्रकार
Hindustan 30-12-15 |
भारत की कुल 32 करोड़, 87 लाख वर्ग किलोमीटर जमीन में से 10 करोड़, 51 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि पर बंजर ने डेरा जमा लिया है, जबकि आठ करोड़, 21 लाख वर्ग किलोमीटर भूमि रेगिस्तान में बदल रही है। यह चिंताजनक है कि देश के एक-चौथाई हिस्से के आगे अगलेे सौ वर्ष में मरुस्थल बनने का खतरा पैदा हो गया है।
हम वैश्विक प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के शिकार तो हो ही रहे हैं, जमीन की अधिक जुताई, जंगलों के विनाश और सिंचाई की दोषपूर्ण परियोजनाओं ने इस संकट को और बढ़ा दिया है। बेशक, इन कारकों का मूल कारण बढ़ती आबादी है। देश आबादी नियंत्रण में तो सफल हो रहा है, लेकिन मौजूदा आबादी का ही पेट भरने के लिए हमारे खेत और मवेशी कम पड़ रहे हैं।
ऐसे में, एक बार फिर मोटे अनाज को अपने आहार में शामिल करने, ज्यादा पानी की खपत वाली फसलों को अपने भोजन से कम करने जैसे प्रयास जरूरी हैं। सिंचाई के लिए भी स्थानीय तालाबों, कुओं पर निर्भर रहने की अपनी जड़ों की ओर लौटना होगा। साथ ही रासायनिक खाद व दवाओं का इस्तेमाल कम करना रेगिस्तान के बढ़ते कदमों पर लगाम लगा सकता है। भोजन व दूध के लिए मवेशी पालन तो बढ़ा, मगर उनके चरने की जगह कम हो गई।
ऐसे में, मवेशी अब बहुत छोटी-छोटी घास को भी चर जाते हैं और इससे जमीन बिलकुल नंगी हो जाती है। तेज हवाओं और पानी से जमीन खुद की रक्षा नहीं कर पाती। मिट्टी कमजोर पड़ जाती है और सूखे की स्थिति में मरुस्थलीकरण का शिकार बन जाती है। मरुस्थलों के विस्तार के साथ कई वनस्पतियों और पशु प्रजातियों की भी विलुप्ति हो सकती है।
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