जब हमारी ही सीमाएं सरंध्र हैं
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यह बात मीडिया में एक साल से उछल रही थी कि पंजाब फिर से पाकिस्तान की षैतान एजेंसी आईएसआई के निषाने पर है। यह सब जानते हैं कि पंजाब की पाकिस्तान से लगी सीमा से लगातार नषे की तस्करी हो रही है।अभी पांच महीने पहले ही पंजाब में बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था। इस बार भी लगभग उसी रास्ते से पाकिस्तानी उग्रवादी भारत में दाखिल होते हैं। एक पुलिस अधीक्षक की का अपरहण होता है, उसकी गाड़ी ले कर आतंकवादी भाग जाते हैं और 24 घंटों में गाड़ी तलाषी नहीं जाती है और जब मिलती है तो एयर बेस पर हमला हो चुका होता है। सनद रहे कि एसपी स्तर के अफसर की गाड़ी पर वायरलेस व संभवतया जीपीएस होता ही है और उसके बदौलत गाड़ी तलाषना कठिन नहीं था। कहा जा रहा है कि एनआईए ने एक जनवरी को ही अलर्ट दिया था, लेकिन फिर भी पांच आतंकी अतिसंवेदनषील इलाके में सुरक्षा के पदो घेरे तोड़ने में सफल रहे। आज कहा जा रहा है कि आतंकी छह महीने से बहावलपुर में ट्रैनिंग ले रहे थे तो पहले ही उन्हें सीमा पार आने से रेाकने में हम असफल क्यों रहे, वह भी वे अपने साथ भारीभरकम हथियार ले कर घुस आए। राश्ट्रवाद की अंध आंधी में यह सवाल किसी ने नहीं किया कि जब इतनी गंभीर साजिष चल रही थी तब हमारी खुफिया एजेंसियां क्या कर रही थीं। वह भी तब जब देष के राश्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एक ख्यातिलब जासूस है वह भी पाकिस्तान मामलों के विषेशज्ञ। दूसरी तरफ देष में इतनी अधिक सुरक्षा व खुफिया एजंसी हैं कि उनके बच कोई तालमेल होता ही नहीं है और उसके दुश्परिणाम अभी पठानकोट में साफ दिखे।
भारत में घटित होने वाले अपराध, खासतौर पर पिछले दो दशकों की आतंकवादी घटनाएं, अन्य किसी विकासशील देश की तुलना में कई गुना अधिक हैं । विपन्नता, भौगोलिक और सामाजिक स्तर पर गहरी होती खाईयां इन अपराधों का कारण कहे जाते हैं । सरकार ऐसे अपराधों के मूल कारकों को जाने बगैर उनसे जूझने के लिए डंडे का जोर बढ़ाती जा रही है । जबकि इस दिषा में यदि खुफिया तंत्र मजबूत हो तो अपराध होने के बाद होने वाली जगहंसाई, जांच के नाम पर खर्च और मेहनत से बचा जा सकता है। पठानकोट में एयर बेस पर हमले ने यह बात सिद्ध कर दी है कि हमतारे यहां सुरक्षा व खुफिया नाम पर जरूरत से ज्यादा एजंसियों हैं व उनके बीच कोई तालमेल नहीं है। आतंकियों के मोबाईल काल इंटरसेप्ट होने के बाद दिल्ली से एनएसजी कमांडो की टीम तो पठानकोट भेज दी गई, लेकिन पठानकोट षहर में नाकाबंदी या सुरक्षा चाकचौबंद करने के कोई कदम नहीं उठाए गए।, सनद रहे कि पठानकोट में सेना का बड़ा ठिकाना है और पांच मिनट में सेना को सड़क पर लाया जा सकता था। यह भी जानना जरूरी है कि एनएसजी आतंकवादियों के किसी स्थान पर छुपे हाने या लेागों को बंधक बना लेने जैसे मामलों में सिद्धहस्त होते हैं, जबकि पठानकोट में लड़ाई खुले में थी। जैसा कि हर बार होता है कि भारत में हुए किसी भी आतंकवादी हादसे के बाद लेाग मुंह-मिसाईलें चला कर पाकिस्तान को सबक सिखाने, उसे तोड़ देने जैसे बयान देते हैं। पाकिस्तान में लोकतंत्र के हालात कैसे हैं , यह किसी से छुपे नहीं है, यह भी सब जानते हैं कि पाकिस्तान में बहुत बड़ी संख्या में लोग अमनपसंद हैं। यह भी तथ्य है कि पाकिस्तान में कट्टरपंथी सेना, खुफिया एजेंसी में बड़ी संख्या में हैं जो जम्हूरियत के फैसलों के विपरीत भारत से पैंच लड़ाने की फिराक में रहते हैं।
सवाल यही उठता है कि ऐसे में हम क्या करें? क्या पाकिस्तान से बातचीत बंद कर दें? युद्ध या सीमित हमला या और कुछ? हकीकत तो यह है कि हमें अपने घर में हो गए छेदों को देखना होगा। बीते दो महीने में यदि पुलिस की कहानियों को सच माना जाए तो सेना, बीएसएफ, से ले कर पटवारी तक पाकिस्तान के लिए जासूसी करते पकड़े गए हैं। ऐसा हर देष करता है व दूसरे देष में अपने सूचनाप्रदायकर्ता तैयार करता है। यह हमारी कमी रही है कि हम अपने सुरक्षा बलों में देषभक्ति या विष्वसनीयता का जज्बा नहीं भर पाए। यह हमारी भूल है कि हम अपनी फौज में बैठे जासूसों को लंबे समय तक खुल कर खेलने का अवसर दे पाए। यदि पाकिस्तान से घुसपैठिये 45 किलो कारतूस व लगभग 100 किलो हथ्यिार ले कर घुसते हैं तो यह हमारे सीमा सुरक्षा बलों की काबिलियत पर सवाल है, इसके लिए पाकिस्तान से ज्यादा हमें अपने लेागों पर उंगली उठाने की आदत डालनी होगी। पजाब की पाकिस्तान से लगी सीमा से यदि सतत तस्करी व घुसपैठ होती है तो इसके लिए बीएसएफ को जिम्म्ेदारी तय करना महति है। यह तभी संभव है कि ऐसे बलों में आला पदों पर प्रमोषन व नियुक्ति निश्पक्ष हो। इसमें कोई षक नहीं कि हमारी फौज दुनिया की सबसे काबिल, अनुषसित फौज है, लेकिन हमारी फौज के ही लेाग ट्रेन में बालात्कार करते पकड़े जा रहे हैं। हमारी फौज के ही लेाग सेना की जमीन के घोटालों में षामिल हो रहे हैं। हमारे ही अफसर टमाटर सॉस लगा कर फर्जी एनकाउंटर महज पदक के लालच में कर देते हैं। जाहिर है कि हमारे सुरक्षा बलों की चयन प्रक्रिया , प्रषिक्षण व कार्य प्रणाली में कही आमूलचूल बदलाव की जरूरत है जिससे वर्दी पर दाग ना लगे। पाकिस्तान को गाली देने से पहले हमें देखना होगा कि हमारी खुफिया एजेंसियां देष से ज्यादा कुछ राजनेताओं के बारे में जानकारी एकत्र करने में क्यों ज्यादा समय लगाती हैं।
देश की अंदरूनी और बाहरी सुरक्षा के लिए लगभग 40 लाख से अधिक सिपाही है, जो कि अपनी निरंकुशता की वजह से आम आदमी की सहानुभूति खो चुके हैं । देश की सीमा की चौकसी के लिए तैनात 12 लाख से अधिक की फौज है । अभी तक आम लोगों का थोड़ा-बहुत भरोसा इन्हीं हरी वर्दी वालों पर बकाया है । तभी केवल सीमा की रक्षा बाहरी ताकतों से करने के लिए गठित इस बल का दुरूप्योग दंगे, बाढ़, भूकंप, छोटे-मोटे विवादों तक में किया जा रहा है । हो सकता है कि जनता के बीच में लगातार जाने के कारण इस फौज को भी अन्य लोगों का रोग लग गया है , तभी पिछले कुछ सालों के दौरान भ्रष्टाचार, फर्जी मुठभेड़, ट्रेन व सार्वजनिक स्थानों पर हुड़दंग जैसी घटनाओं में फौजियों के लिप्त होने की खबरें आए रोज सुनने को मिल रही हैं ।
सीमावर्ती इलाकों में नियमित गश्त करने, तस्करी व घुसपैठियों को रोकने, सीमा पार की अवांछित गतिविधियों पर नजर रखने के लिए गठित सीमा सुरक्षा बल(बी.एस.एफ.) को देश के भीतर दंगाग्रस्त इलाकों में तैनात कर दिया जा रहा है । देश के संवेदनशील इलाकों में कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए केंद्रीय आरक्षित पुलिस बल(सी.आर.पी.एफ.) की स्थापना की गई थी । आज इन्हें देश के अलावा विदेशों में भी भेजा जा रहा है । अभी कोस्टल गार्ड बेवजह की ड्यूटी से बचे हुए हैं ।
बर्फ से ढके इलाकों की लगातार चौकसी के लिए भारत तिब्बत सीमा पुलिस(आईटीबीपी) को बनाया गया था । इन दिनों इस बल के जवान सुरक्षा के नाम पर कई मंत्रियों व वीआईपी की चाकरी में लगे हैं । इसके अलावा बैंक व अन्य संस्थाओं की सुरक्षा व्यवस्था में इन्हें झोंकने पर कहीं कोई सुनवाई नहीं हैं । दूसरी ओर देखें तो अकेले सियाचीन ग्लेशियर की सुरक्षा के लिए भारतीय फौज की तैनाती पर हर रोज पांच करोड़ रूपए खर्च किए जा रहे हैं । यहां तैनात फौजियों को विशेष भत्ता दिया जाता है । चूंकि सैनिक इस क्षेत्र विशेष के लिए पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं होते, इस लिए अधिकांश जवान गंभीर बीमारियों की चपेट में आ जाते हैं ।
औद्योगिक ईकाइयों की सुरक्षा के लिए खासतौर से प्रशिक्षित केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल(सीआईएसएफ) की तैनाती दंगाग्रस्त इलाकों से ले कर हवाई अड्डेां तक की जा रही है । अब तो ताजमहल की सुरक्षा भी सीआईएसएफ के हाथों में ही है । उपद्रवग्रस्त इलाकों में त्वरित कार्यवाही के लिए नीली वर्दी वाले रेपिड एक्शन फोर्स का चयन सीआईएसएफ से ही होता है । अब इस बल के जवानों को निजी सुरक्षा में खपाया जा रहा है । दूसरी ओर कई सार्वजनिक उपक्रमों में उत्पादों की चोरी के कारण सालाना घाटे में बढ़ौतरी की बात सरकारी रिपोर्टें कहती हैं ।आतंकवादियों से जूझने के लिए अत्याधुनिक तरीके से प्रशिक्षित एनएसजी(राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड) की स्थापना की गई थी ।
सुरक्षा बलों की संख्या यहीं नहीं रूकती है । प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति व सोनिया गांधी के कुनबे की सुरक्षा के लिए स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप यानी एसपीजी है । रेलवे की सरुक्षा के लिए जीआरपी और आरपीएफ है । प्रत्येक राज्य का अपना आरक्षित बल है- उत्तरप्रदेश में पीएसी, मध्यप्रदेश में एसएएफ, राजस्थान में आरएसी आदि । होमगार्ड का अपना नेटवर्क है । जेल का अपना सुरक्षा तंत्र है । एक प्रादेशिक सेना भी है, इसके सदस्य वैसे तो सिविलियन होते हैं, लेकिन साल में एक बार उन्हें फौजी प्रशिक्षण के लिए जाना होता है । मुंबई में धमाकों के बाद एक और राश्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी गठित हो गई है। इतनी एजेंसियां क्या जरूरी है, क्या इनके बीच समन्वय का प्रयास नहीं होना चाहिए? पिछली सरकार ने ऐसी एक एजेंसी बनाने का ्रपयास किया था तो आज सत्ता में बैठे व उस समय विपक्ष में रहे दल ने इसे राज्यों के कार्य में दखल की साजिष बता कर नकार दिया था।
पंकज चतुर्वेदी
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