असम : अर्थव्यवस्था को चोट पहुंचाती बाढ़
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जब बाकी का हिंदुस्तान मॉनसून के लिए तरस रहा है, असम के पांच जिलों के कोई 120 गांव बारिश व बाढ़ से पूरी तरह तबाह हो गए हैं.
पांच हजार हैक्टेयर खेतों में खड़ी फसल बह गई. तिनसुखिया, सिबसागर, डिब्रूगढ़ में हजारों लोग राहत श्ििवरों में रह रहे हैं. ऐसे हालात अभी सितम्बर तक चलेंगे. यह विडंबना है कि राज्य का लगभग 40 फीसद हिस्सा नदियों के रौद्र रूप से पस्त रहता है. अनुमान है कि इसमें सालाना कोई 200 करोड़ का नुकसान होता है.
राज्य में बाढ़ से बर्बाद हुई मूलभूत सुविधाएं खड़ा करने में दस साल लगते हैं, जबकि हर साल औसतन इतना नुकसान हो जाता है. यानी असम हर साल विकास की राह पर 19 साल पिछड़ता जाता है. केन्द्र हो या राज्य, सरकारों का ध्यान बाढ़ के बाद राहत कार्यों व मुआवजा पर रहता है, यह दुखद ही है कि आजादी के 69 साल बाद भी हम वहां बाढ़ नियंत्रण की कोई मुकम्मल योजना नहीं दे पाए हैं. यदि, इस अवधि में राज्य में बाढ़ से हुए नुकसान व बांटी गई राहत राशि को जोड़े तो पाएंगे कि इतने धन में एक नया सुरक्षित असम खड़ा किया जा सकता था.
असम में हर साल तबाही मचाने वाली ब्रह्मपुत्र और बराक नदियां, उनकी कोई 48 सहायक नदियां और उनसे जुड़ी असंख्य सरिताओं पर सिंचाई व बिजली उत्पादन परियोजनाओं के अलावा, इनके जल प्रवाह को आबादी में घुसने से रोकने की योजनाएं बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है. असम की अर्थव्यवस्था का मूल आधार खेती-किसानी ही है, और बाढ़ का पानी हर साल लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसल को नष्ट कर देता है. ऐसे में वहां का किसान कभी भी कर्ज से उबर ही नहीं पाता है. एक बात और ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह का अनुमान लगाना भी बेहद कठिन है. इसकी धारा की दिशा कहीं भी, कभी भी बदल जाती है. परिणामस्वरूप जमीनों का कटाव, उपजाऊ जमीन का नुकसान भी होता रहता है. भूकंप के कारण जमीन खिसकने की घटनाएं भी यहां की खेती-किसानी को प्रभावित करती हैं.
असम में मई से ले कर सितम्बर तक बाढ़ रहती है और इसकी चपेट में तीन से पांच लाख हैक्टेयर खेत आते हैं. हालांकि खेती के तरीकों में बदलाव और जंगलों का बेतरतीब दोहन जैसी मानव-निर्मित दुर्घटनाओं ने जमीन के नुकसान के खतरे का दुगना कर दिया है.
दुनिया में नदियों पर बने सबसे बड़े द्वीप माजुली पर नदी के बहाव के
कारण जमीन कटान का सबसे अधिक असर पड़ा है. बाढ़ का असर यहां के वनों व वन्य
जीवों पर भी पड़ता है. राज्य में नदी पर बनाए गए अधिकांश तटबंध व बांध 60
के दश्क में बनाए गए थे. अब वे बढ़ते पानी को रोक पाने में असमर्थ हैं.
उनमें गाद भी जम गई है, जिसकी नियमित सफाई की कोई व्यवस्था नहीं हैं. पिछले
साल 50 से अधिक स्थानों पर बांध टूटे थे.
इस साल पहले ही महीने में 27 जगहों पर मेड़ टूटने से जलनिधि के गांव में फैलने की खबर है. वैसे मेढ़ टूटने की कई घटनाओं में खुद गांव वाले ही शामिल होते हैं. मिट्टी के कारण उथले हो गए बांध में जब पानी लबालब भर कर चटकने की कगार पर पहुंचता है, तो गांव वाले अपना घर-बार बचाने के लिए मेढ़ को तोड़ देते हैं. उनका गांव तो थोड़ा-सा बच जाता है, पर करीबी बस्तियां पूरी तरह जलमग्न हो जाती हैं. बराक नदी में उत्तर-पूर्वी भारत के कई सौ पहाड़ी नाले आकर मिलते हैं, जो इसमें पानी की मात्रा व उसका वेग बढ़ा देते हैं.
बाढ़ नियंत्रण विभाग का सालाना बजट महज सात करोड़ रुपये है, जिसमें से वेतन आदि बांटने के बाद बाढ़ नियंत्रण के लिए बमुश्किल एक करोड़ रु. बचता है. जबकि मौजूदा मेड़ व बांधों की सालाना मरम्मत के लिए कम से कम 70 करोड़ रु. चाहिए. ब्रह्मपुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंध के उपायों की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए दिसम्बर 1981 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना की गई थी. बोर्ड ने ब्रह्मपुत्र व बराक की सहायक नदियों से संबंधित योजना कई साल पहले तैयार भी कर ली थी.
केन्द्र सरकार के अधीन एक बाढ़ नियंत्रण महकमा कई सालों से काम कर रहा है और उसके रिकार्ड में ब्रह्मपुत्र घाटी देश के सर्वाधिक बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में से हैं. इन महकमों ने इस दिशा में अभी तक क्या कुछ किया? उससे कागज व आंकड़ों को जरूर संतुष्टि हो सकते हैं, असम के आम लोगों तक तो उनका काम पहुंचा नहीं हैं. असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध व तटबंधों की सफाई, नए बांधों को निर्माण जरूरी है.
राष्ट्रीयसहारा 24-6-16 |
पांच हजार हैक्टेयर खेतों में खड़ी फसल बह गई. तिनसुखिया, सिबसागर, डिब्रूगढ़ में हजारों लोग राहत श्ििवरों में रह रहे हैं. ऐसे हालात अभी सितम्बर तक चलेंगे. यह विडंबना है कि राज्य का लगभग 40 फीसद हिस्सा नदियों के रौद्र रूप से पस्त रहता है. अनुमान है कि इसमें सालाना कोई 200 करोड़ का नुकसान होता है.
राज्य में बाढ़ से बर्बाद हुई मूलभूत सुविधाएं खड़ा करने में दस साल लगते हैं, जबकि हर साल औसतन इतना नुकसान हो जाता है. यानी असम हर साल विकास की राह पर 19 साल पिछड़ता जाता है. केन्द्र हो या राज्य, सरकारों का ध्यान बाढ़ के बाद राहत कार्यों व मुआवजा पर रहता है, यह दुखद ही है कि आजादी के 69 साल बाद भी हम वहां बाढ़ नियंत्रण की कोई मुकम्मल योजना नहीं दे पाए हैं. यदि, इस अवधि में राज्य में बाढ़ से हुए नुकसान व बांटी गई राहत राशि को जोड़े तो पाएंगे कि इतने धन में एक नया सुरक्षित असम खड़ा किया जा सकता था.
असम में हर साल तबाही मचाने वाली ब्रह्मपुत्र और बराक नदियां, उनकी कोई 48 सहायक नदियां और उनसे जुड़ी असंख्य सरिताओं पर सिंचाई व बिजली उत्पादन परियोजनाओं के अलावा, इनके जल प्रवाह को आबादी में घुसने से रोकने की योजनाएं बनाने की मांग लंबे समय से उठती रही है. असम की अर्थव्यवस्था का मूल आधार खेती-किसानी ही है, और बाढ़ का पानी हर साल लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसल को नष्ट कर देता है. ऐसे में वहां का किसान कभी भी कर्ज से उबर ही नहीं पाता है. एक बात और ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह का अनुमान लगाना भी बेहद कठिन है. इसकी धारा की दिशा कहीं भी, कभी भी बदल जाती है. परिणामस्वरूप जमीनों का कटाव, उपजाऊ जमीन का नुकसान भी होता रहता है. भूकंप के कारण जमीन खिसकने की घटनाएं भी यहां की खेती-किसानी को प्रभावित करती हैं.
असम में मई से ले कर सितम्बर तक बाढ़ रहती है और इसकी चपेट में तीन से पांच लाख हैक्टेयर खेत आते हैं. हालांकि खेती के तरीकों में बदलाव और जंगलों का बेतरतीब दोहन जैसी मानव-निर्मित दुर्घटनाओं ने जमीन के नुकसान के खतरे का दुगना कर दिया है.
इस साल पहले ही महीने में 27 जगहों पर मेड़ टूटने से जलनिधि के गांव में फैलने की खबर है. वैसे मेढ़ टूटने की कई घटनाओं में खुद गांव वाले ही शामिल होते हैं. मिट्टी के कारण उथले हो गए बांध में जब पानी लबालब भर कर चटकने की कगार पर पहुंचता है, तो गांव वाले अपना घर-बार बचाने के लिए मेढ़ को तोड़ देते हैं. उनका गांव तो थोड़ा-सा बच जाता है, पर करीबी बस्तियां पूरी तरह जलमग्न हो जाती हैं. बराक नदी में उत्तर-पूर्वी भारत के कई सौ पहाड़ी नाले आकर मिलते हैं, जो इसमें पानी की मात्रा व उसका वेग बढ़ा देते हैं.
बाढ़ नियंत्रण विभाग का सालाना बजट महज सात करोड़ रुपये है, जिसमें से वेतन आदि बांटने के बाद बाढ़ नियंत्रण के लिए बमुश्किल एक करोड़ रु. बचता है. जबकि मौजूदा मेड़ व बांधों की सालाना मरम्मत के लिए कम से कम 70 करोड़ रु. चाहिए. ब्रह्मपुत्र घाटी में तट-कटाव और बाढ़ प्रबंध के उपायों की योजना बनाने और उसे लागू करने के लिए दिसम्बर 1981 में ब्रह्मपुत्र बोर्ड की स्थापना की गई थी. बोर्ड ने ब्रह्मपुत्र व बराक की सहायक नदियों से संबंधित योजना कई साल पहले तैयार भी कर ली थी.
केन्द्र सरकार के अधीन एक बाढ़ नियंत्रण महकमा कई सालों से काम कर रहा है और उसके रिकार्ड में ब्रह्मपुत्र घाटी देश के सर्वाधिक बाढ़ ग्रस्त क्षेत्रों में से हैं. इन महकमों ने इस दिशा में अभी तक क्या कुछ किया? उससे कागज व आंकड़ों को जरूर संतुष्टि हो सकते हैं, असम के आम लोगों तक तो उनका काम पहुंचा नहीं हैं. असम को सालाना बाढ़ के प्रकोप से बचाने के लिए ब्रह्मपुत्र व उसकी सहायक नदियों की गाद सफाई, पुराने बांध व तटबंधों की सफाई, नए बांधों को निर्माण जरूरी है.
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