My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शुक्रवार, 24 जून 2016

fear-of-flooding

बारिश शुरू होते ही बाढ़ का खौफ


आषाढ़ के पहले ही दिन देश के बड़े हिस्से में जिस तरह बरसात हुई, उससे मौसम विभाग की उस भविष्यवाणी के सच होने की संभावना दिख रही है कि इस साल बरसात औसत से ज्यादा होगी। फौरी तौर पर यह सूचना सुखद लगती है, पर बाढ़ के बढ़ते दायरे के आंकड़े खौफ पैदा करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में बारिश की मात्रा भले कम हुई हो, पर बाढ़ से तबाह हुए इलाके में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। कुछ दशक पहले तक जिन इलाकों को बाढ़ से मुक्त क्षेत्र माना जाता था, अब वहां की नदियां भी उफनने लगी हैं और मौसम बीतते ही वहां फिर पानी का संकट छा जाता है।
amar ujala 24-6-16
बाढ़ महज एक प्राकृतिक आपदा नहीं है, यह देश के गंभीर पर्यावरणीय, सामाजिक और आर्थिक संकट का कारक बन गया है। बाढ़ के विकराल होने के पीछे नदियों का उथला होना, जलवायु परिवर्तन, बढ़ती गर्मी, रेत की खुदाई व शहरी प्लास्टिक और मलबे का नदी में बढ़ना, जमीन के कटाव जैसे कारण हैं। वर्ष 1951 में देश की बाढ़ग्रस्त भूमि एक करोड़ हेक्टेयर थी, जो 1960 में ढाई करोड़ हेक्टेयर हो गई। वर्ष 1978 में बाढ़ से तबाह जमीन 3.4 करोड़ हेक्टेयर थी, तो आज चार करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आते हैं। वर्ष 1995-2005 के दशक में बाढ़ से हुए नुकसान का सरकारी अनुमान 1,805 करोड़ था जो अगले दशक में बढ़कर 4,745 करोड़ हो गया।

बिहार का 73 प्रतिशत हिस्सा आधे साल बाढ़ और शेष दिन सुखाड़ की दंश झेलता है और यही वहां के पिछड़ेपन और पलायन का कारण है। असम के 18 जिलों के साढ़े सात लाख लोग नदियों के रौद्र रूप के चलते घर-गांव से पलायन कर गए है। वहां बाढ़ से सालाना 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। उतनी आधारभूत सुविधाएं खड़ी करने में दस साल लग जाते हैं। यानी असम हर साल विकास की राह पर 19 साल पिछड़ता जाता है। उत्तर प्रदेश में बीते एक दशक में बाढ़ से 45,000 करोड़ की खड़ी फसल नष्ट हुई है। वर्ष 2013 में राज्य में नदियों के उफनने से 3,259.53 करोड़ रुपये की क्षति हुई थी। देश के 800 से ज्यादा शहर नदी किनारे बसे हैं, जहां जलभराव का संकट तो है ही, अनियोजित विकास के कारण अनेक कस्बे बाढ़ग्रस्त हो रहे हैं।

नदी प्रबंधन, बाढ़ चेतावनी केंद्र और बैराज निर्माण पर अब तक हजारों करोड़ की राशि खर्च की गई, पर ये उपाय बेअसर रहे हैं। हम अभी तक एक सदी पुराने ढर्रे पर ही बाढ़ को देख रहे हैं, जैसे कुछ बांध या तटबंध बनाना, राहत सामग्री बांट देना, कुछ ऐसे कार्यालय बना देना, जो बाढ़ की सूचना लोगों को दे सकें। जबकि बारिश के बदलते मिजाज और भू-उपयोग के तरीकों में परिवर्तन ने बाढ़ को जितना भयावह बनाया है, उसे देखते हुए तकनीक और योजना में बदलाव जरूरी है। शहरीकरण, वनों का विनाश और खनन बाढ़ की विभीषिका में उत्प्रेरक का काम कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश अनियंत्रित शहरीकरण के कारण बाढ़ग्रस्त हो रहे हैं। पहाड़ों पर खनन से वहां की हरियाली उजड़ती है, और खदानों से निकली धूल और मलबा नदी-नालों में अवरोध पैदा करता है।

मौजूदा हालात में बाढ़ प्राकृतिक प्रकोप नहीं, बल्कि मानवजन्य साधनों का त्रासदी है। ऐसे में पानी को स्थानीय स्तर पर रोकने, नदियों को उथला होने से बचाने, बड़े बांधों पर पाबंदी लगाने, नदियों के करीबी पहाड़ों पर खुदाई पर रोक लगाने तथा नदियों के प्राकृतिक मार्ग से छेड़छाड़ को रोकने जैसे कदम उठाकर बाढ़ की विभीषिका को कम किया जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...