पू रे देश में इस बात को लेकर हर्ष है कि इस बार मानसून बहुत अच्छा होगा- यहां तक कि सदी के सबसे बेहतरीन मानसून में से एक की भविष्यवाणी है, मौसम विभाग की. बारिश अकेले पानी की बूंदें नहीं लेकर आती, यह समृद्धि, संपन्नता की दस्तक होती है. लेकिन यदि बरसात वास्तव में औसत से छह फीसदी ज्यादा हो गई तो हमारी नदियों में इतनी जगह नहीं है कि वह उफान को सहेज पाए, नतीजतन बाढ. और तबाही के मंजर उतने ही भयावह हो सकते हैं जितने कि पानी के लिए तड.पते-तरसते बुंदेलखंड या मराठवाड.ा के लोग. पिछले साल चेन्नई की बाढ. बानगी है कि किस तरह शहर के बीच से बहने वाली नदियों को जब समाज ने उथला बनाया तो पानी उनके घरों में घुस गया था.
धरती के तापमान में हो रही बढ.ोत्तरी के चलते मौसम में बदलाव हो रहा है और इसी का परिणाम है कि या तो बारिश अनियमित हो रही है या फिर बेहद कम. मानसून के तीन महीनों में बमुश्किल चालीस दिन पानी बरसना या फिर एक सप्ताह में ही अंधाधुंध बारिश हो जाना या फिर बेहद कम बरसना, ये सभी परिस्थितियां नदियों के लिए अस्तित्व का संकट पैदा कर रही हैं. बड.ी नदियों में ब्रह्मपुत्र, गंगा, महानदी और ब्राह्मणी के रास्तों में पानी खूब बरसता है और इनमें न्यूनतम बहाव 4. 7 लाख घनमीटर प्रति वर्गकिलोमीटर होता है. वहीं कृष्णा, सिंधु, तापी, नर्मदा और गोदावरी का पथ कम वर्षा वाला है सो इसमें जल बहाव 2. 6 लाख घनमीटर प्रति वर्ग कि.मी. ही रहता है. कावेरी, पेन्नार, माही और साबरमती में तो बहाव 0.6 लाख घनमीटर ही रह जाता है. सिंचाई व अन्य कायरें के लिए नदियों के अधिक दोहन, बांध आदि के कारण नदियों के प्राकृतिक स्वरूपों के साथ भी छेड.छाड. हुई व इसके चलते नदियों में पानी कम हो रहा है.
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Peoples samachar 20.6.16 |
नदियां अपने साथ अपने रास्ते की मिट्टी, चट्टानों के टुकडे. व बहुत सा खनिज बहा कर लाती हैं. पहाड.ी व नदियों के मार्ग पर अंधाधुंध जंगल कटाई, खनन, पहाड.ों को काटने, विस्फोटकों के इस्तेमाल आदि के चलते थोड.ी सी बारिश में ही बहुत सा मलबा बहकर नदियों में गिर जाता है. परिणामस्वरूप नदियां उथली हो रही हैं, उनके रास्ते बदल रहे हैं और थोड.ा सा पानी आने पर ही वे बाढ. का रूप ले लेती हैं. यह भी खतरनाक है कि सरकार व समाज इंतजार करता है कि नदी सूखे व हम उसकी छोड.ी हुई जमीन पर कब्जा कर लें. इससे नदियों के पाट संकरे हो रहे हैं उसके करीब बसाहट बढ.ने से प्रदूषण की मात्रा बढ. रही है.
आधुनिक युग में नदियों को सबसे बड.ा खतरा प्रदूषण से है. कल-कारखानों की निकासी, घरों की गंदगी, खेतों में मिलाए जा रहे रासायनिक दवा व खादों का हिस्सा, भूमि कटाव, और भी कई ऐसे कारक हैं जो नदी के जल को जहर बना रहे हैं. अनुमान है कि जितने जल का उपयोग किया जाता है, उसके मात्र 20 प्रतिशत की ही खपत होती है, शेष 80 फीसदी सारा कचरा समेटे बाहर आ जाता है. यही अपशिष्ट या मल-जल कहा जाता है, जो नदियों का दुश्मन है. भले ही हम कारखानों को दोषी बताएं, लेकिन नदियों की गंदगी का तीन चौथाई हिस्सा घरेलू मल-जल ही है.
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