रेलवे के लायक तो मजबूत नहीं है ‘आधार’ का आधार
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राज एक्सप्रेस |
इसमें कोई शक नहीं है भारत में रेलवे 163 साल पुरानी होने के बाद भी यात्रियों की उम्मीदों की कसौटी पर खरी नहीं उतर पा रही है। भीड़ इसकी सबसे बड़ी दिक्कत है व उससे ही उपज रही है गंदगी, लेटलतीफी, सार्वजनिक सुविधाओं की कमी आदि। पिछले दो दशक के दौरान कंप्यूटर से आरक्षण व्यवस्था लागू होने के बाद से ही रेलवे की बड़ी चुनौती इसमें भ्रश्टाचार, बिचौलिये, दलाल व अत्याधुनिक तकनीक को भी गच्चा दे कर जायज यात्रियों की सीटें उड़ाकर बउ़े कमीशन में बेचना रहा है। फिलहाल रेलवे ने तय किया है कि अब हर टिक्ट खरीदने वाले को अपना आधा नंबर जरूर बताना होगा। यह योजना कुछ चरणों में लागू होगी व आने वाले छह महीने में इस पर पूरी तरह अमल हो जाएगा। इसमें कोई षक नहीं कि आधार से टिकट जुड़ने के कई लाभ हैं लेकिन हमारी ‘‘आधार -व्यवस्था’’ और रेल कर्मचारियों की कमजोर नियत को देखते हुए षक ही है कि यह योजना पूरी तरह कारगर होगी।
रेलवे टिकटों की कालाबाजरी रोकने और आरक्षित टिकटों के गोरखधंधे से निबटने में असफल रेलवे के लंबे-चौड़े अमले को अब सात साल पुरानी आधार याजना का सहारा है। गौर करना जरूरी है कि पिछले साल ही सुप्रीम कोर्ट सरकारी योजनओं में लाभ पाने के लिए आधार की अनिवार्यता पर पांबदी लगा चुकी है। ऐसे में रेलवे टिकट पर आधार की अनिवार्यता किस तरह लागू हो पाएगी, इस पर सवाल खड़े है।। शुरुआत में आधार कार्ड की जरूरत सिर्फ रिजर्वेशन कराने के लिए ही जरूरी होगा लेकिन बाद में इसे सभी प्रकार के टिकटों के लिए अनिवार्य कर दिया जाएगा। पहले चरण में वरिष्ठ नागरिक, स्वतंत्रता संग्राम सैनानी ,विकलांग जैसी विशेश छूट वालांे के लिए आधार कार्ड जरूरी किया जाएगा। अनुमान है कि जुलाई महीने के अंत तक यह लागू हो जाएगा। उसके बाद आधार कार्ड की जरूरत सिर्फ आरक्षित टिकट बुक कराने के लिए ही अनिवार्य होगी। आगे चल कर सभी प्रकार के टिकटों के लिए इसे अनिवार्य कर दिया जाएगा। सरकार का दावा है कि देश की 96 फीसदी आबादी आधार नंबर पा चुकी है। योजना के अनुसार टिकट बुकिंग के समय आधार कार्ड संख्या यात्रा टिकट पर छपी होगी। चलती ट्रेन में टिकट निरीक्षक एक डिवाईस के साथ चैकिंग करेंगे व आधार नंबर डालते ही उनके सामने यात्री का फोटो व अन्य विवरण होगा। ऐसे में फर्जी नाम से टिकट बुक करवाना या यात्रा करना असंभव हो जाएगा।
यह येाजना कितनी सफल होगी, उसके लिए पिछले साल राजस्थान के सीकर की इस घटना को याद कर लें, जहां .हनुमानजी के नाम से भी आधार कार्ड जारी हो चुका है। कार्ड पर उनकी तस्वीर छपी है। पिता के नाम के आगे ‘पवनजी’ लिखा है। उस पर पता ‘वार्ड नंबर-छह दांतारामगढ़, पंचायत समिति के पास, जिला सीकर’ लिखा है। फोटो भी हनुमानजी का। इस आधार कार्ड पर पंजीयन क्रमांक 1018/18252/01821 है। कार्ड का नंबर है 209470519541। देश के दूरस्थ अंचल की क्या कहें राजधानी दिल्ली के राश्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आने वाले गाजियाबाद जिले के षहरी इलाकों के आधार कार्ड आए रोज कूड़े में या लावारिस मिलते रहते हैं। यहां लेागों का आधार पंजीयन तो हो गया, लेकिन उन तक र्काउ नहीं पहुंचे। जो कंप्यूटर जानते हैं या जिनकी मजबूरी रही, उन्होंने तो खुद अपना कार्ड प्राप्त कर लिया, लेकिन नियमानुसार होने वाली सरकारी डिलेवरी यहां षत प्रतिशत असफल रही है। इन हालातों में आधार का रिकार्ड क्या वास्तव में 96 फीसदी आबादी का उपलब्ध है और वह प्रामाणिक है, इस पर सवालिया निशान तो है ही।
जहां तक रेलवे टिकटों के धंधे की बात है तो यह मान लें कि बगैर स्टाफ की मिलीभगत के यह होता नहीं है। हर ट्रैन के हर प्लेटफसर्म पर पहुंचने पर टीटी के पास खड़ी भीड़, अचानक एसी प्रथम में अवांछित लोगों को सोने को मिल जाना , आम बात है और यह सब बगैर किसी जायज टिकट या आरक्षण के रेलवे के चैकिंग कर्मचारियों की सहमति या मिलीभगत से ही हेाता है। ऐसे में आधार कार्ड कहां तक उपरी कमाई को रोक पाएगा। फिर बगैर आरक्षण के यात्रा करने वले गरीब लोगों या आकस्मिक यात्रा करने वलों का ट्रेन में चढ़ना संभव ही नहीं होगा, क्योंकि फिलहाल यह संभव नहीं लगता कि इंसान हर समय अपने साथ आधार कार्ड ले कर चलेगा।
ऐसा नहीं है कि आधार से यात्री टिकट को जोड़ने में कुछ गलती है। यह एक आदर्श स्थिति है और इससे रेलवे स्टेशन पर जमा होने वाली बेवहज की अवांछित भीड़ को नियंत्रित किया जा सकता है। दूसरा देलवे में होने वाले अपराध, आकस्मिक दुघर्टना की स्थिति में लापता लेागों की वास्तविक संख्या व पहचान को तलाशना भी सरल होगा। लेकिन यह भी जान लें कि यह तभी संभव है जब रेलवे की कुल भीड़ के लिए पर्याप्त सीट उपलब्ध हों, छोटे स्टेशनों पर आगमन व निर्गमन की चाक चौंबंद व्यवस्था हो और स्टाफ कर्मठ ,ईमानदार और प्रतिबद्ध हो।
आधार का पूरा डाटा रेलवे के कर्मचारियों को उपलब्ध करवा देने का बससे बड़ा संकट है कि पूरी आबादी के डाटा बेस के लीक होने, बेचने व दुरूप्योग की संभावना। यदि ऐसा होता है तो यह देश की सुरक्षा और व्यक्ति की निजता पर बड़ा खतरा होगा। रेलवे को आधार की अनिवार्यता षुरू करने से पहले एक बार फिर उपलब्ध सुविधाओं, ट्रैन में स्थान, गाडियों की लेटलतीफी, उसमें सफाई जैसी सुविधाओं पर ध्यान देना चाहिए। भारतीय रेल हमारे देश की कैसी छबि यात्रियों के समक्ष प्रस्तुत करती है, इसके लिए दिल्ली निजामुद्दन स्टेशन से फरीदाबाद का बामुश्किल 20 किलेामीटर का सफर बोगी के दरवाजे पर खड़े हो कर कर लें,- दोनेा तरफ कूड़ें गंदगी का अंबार, पटरी पर षराब पीते लोग, ख्ुाली नालियां, बदबू , बता देगी कि डिजिटल इंडिया के बनिस्पत मूलभूत सुविधाअें ंपर ध्यान देना जरूरी हे। हो सकता है कि किसी कंपनी से थोक में डाटा वाली हैंड डिवाईस खरीी का अनुबंध योजना की असली जड़ हो, तभी बगैर किसी तैयारी के इसे लागू करने पर रेल मंत्रालय अड़ा हुआ है।
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