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रविवार, 4 दिसंबर 2016

Neglecting Punjab separatist may cost high for country

भारी पड़ सकती है पंजाब की अनदेखी

देश की सबसे सुरक्षित माने जाने वाली जेल में कई साल से समानांतर दुनिया चल रही थी, अपराधी फेसबुक पर पोस्ट लगा कर धमकियां दे रहे थे, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का मुखिया स्काईप पर पाकिस्तान बात करता था। यह अकेले एक जेल के हालात नहीं हैं, राज्य में वे सभी जेल जहां जमींदोज हो चुके खालिस्तान अंदोलन से जुड़़े लोग बंद हैं, वहां बीते तीन सालों में अचानक ही सरगर्मियां बढ़ गई थीं ...
देश की सबसे सुरक्षित माने जाने वाली जेल में कई साल से समानांतर दुनिया चल रही थी, अपराधी फेसबुक पर पोस्ट लगा कर धमकियां दे रहे थे, खालिस्तान लिबरेशन फोर्स का मुखिया स्काईप पर पाकिस्तान बात करता था। यह अकेले एक जेल के हालात नहीं हैं, राज्य में वे सभी जेल जहां जमींदोज हो चुके खालिस्तान अंदोलन से जुड़़े लोग बंद हैं, वहां बीते तीन सालों में अचानक ही सरगर्मियां बढ़ गई थीं। यही नहीं सतलुज-यमुना लिंक विवाद के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद छोटे-छोटे गांव में इसे सिखों के साथ अन्याय व अलग देश की मांग एकमात्र हल जैसी सभाएं हुई, जिसे सरकार नजरअंदाज करती रही। यही नहीं खलिस्तान लिबरेशन फोर्स के प्रमुख हरमिंदर सिंह के भागने व अचानक दिल्ली में रेलवे स्टेशन पर पकड़े जाने पर भी सवालिया निशान है। समझा जा रहा है कि असल में यह साजिश का ही हिस्सा था कि बूढे, बेकार हो गए आतंकी को पकड़वा कर पुलिस की पीठ भी थपथपा ली जाए और असल में जिन्हे छूमंतर होना था, वे हो भी जाएं। सनद रहे पंजाब में बड़े बदमाश या गिरोहबाज थोड़े दिनों बाद खुद को ‘खाड़कू’ कहने लगते हैं। विडंबना है कि हमारे देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कभी पंजाब में आतंकवाद विरोधी मुहिम के विशेषज्ञ माने जाते थें और आज सुलगते पंजाब की अनदेखी की जा रही है।
पंजाब के पठानकोट के अकालगढ में वायु सेना के शिविर पर आतंकी हमले को लेकर कई बातें हवा में उड़ती रही और वहां मारे गए आतंकियों की पहचान अभी तक उजागर नहीं की गई। पूरे मामले में एक वरिष्ठ पुलिस अफसर की संदिग्ध भूमिका पर अभी भी शंकाओं के बादल छाए है, जिसकी गाड़ी लेकर आतंकी वायु सेना अड्डे तक पहुंचे थे। इस घटना के बाद मई में पंजाब की खुफिया एजेंसी ने एक रपट केंद्र को भेजी थी, जिसमें बताया गया था कि कनाडा में ब्रिटिश कोलंबिया के ‘‘मिशन सिटी’’ में पंजाब से भगोड़ा घोषित आतंकी हरदीप निज्जर खालिस्तान टेरर फोर्स के नाम से संगठन चला रहा है। जहां भारत के खिलाफ जहर उगलने व हथियारों की ट्रेनिंग भी दी जा रही है। रिपोर्ट में पाकसितान के रास्ते हथियार आने की भी चेतावनी थी। उधर खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के रंजीत सिंह नीता द्वारा पाकिस्तान में हिजबुल आतंकियों को सिख धर्म, परंपरा, गुरूमुखी, पंजाब के रास्तों, जंगलों का प्रशिक्षण देने के भी प्रमाण सरकार के पास हैं।
अभी एक साल पहले ही पाकिस्तान की सीमा के करीबी फरीदकोट जिले के बरगड़ी गांव में पवित्र ग्रंथ श्री गुरूग्रंथ सहिब के 110 पन्ने कटे-फटे हालात में सड़कों पर मिले। बताया गया कि यह पन्ने जून महीने में बुर्ज जवाहर सिंह गांव के गुरूद्वारे से चोरी किए गए ग्रंथ साहेब के थे। उसके बाद कोई दो दशक बाद वहां इतनी बड़ी संख्या में अर्धसैनिक बलों को उतारना पड़ा था। यही नहीं पंजाब की आग अब पड़ोसी राज्य हरियाणा तक फैल गई है। 23 अक्तूबर को सिरसा, अंबाला सहित कई जिलों में बंद व जुलूस निकाले गए जिससे जीटी रोड ठप रही। उस समय भी पंजाब पुलिस ने कहा था कि मसला और भी गंभीर है क्योंकि इस पूरे उपद्रव के तार दूर देशों से जुड़े हैं। पुलिस का दावा था कि पंजाब के पांच जिलों में कुछ संदिग्ध लोगों के पास विदेश से खूब पैसा आया था।
यही नहीं पिछले साल जून में खालिस्तान समर्थकों ने खूब सिर उठाया था, ब्लू स्टार की बरसी के नाम पर जगह-जगह जलसे हुए थे। सटे हुए जम्मू में तो कई दिन कर्फ्यू लगाना पड़ा था क्योंकि वहां पुलिस से भिड़ंत में कई मौत हुई थीं। जून महीने के आसपास ही मनिंदरजीत सिंह बिट्टा की हत्या के लिए बम फोड़कर नौ लोगों की हत्या के अपराधी देवेन्द्रपाल सिंह भुल्लर को दिल्ली की तिहाड़ जेल से तबादला करवा कर अमृतसर बुलाया गया और वहां एक अस्पताल में एसी कमरे में रखा गया।
यह किसी से छिपा नहीं है कि राज्य सरकार काफी कुछ पंथिक एजेंडे की ओर मुड़ रही है और इसमें वे लोग सहानुभूति पा रहे है। जो पृथकतावादी या हिंसा में सजायाफ्ता हैं। राज्य सरकार में साझा भाजपा को इस तरह के लेागों के प्रति नरम रूख रास नहीं आ रहा है और अपनी डोलती सरकार को साधने के लिए राज्य में यदा-कदा धर्म के नाम पर लोगों को उकसाया जाता है।
बेहतर आर्थिक स्थिति के मार्ग पर तेजी से आगे बढ़ने वाले पंजाब राज्य में आतंकवादियों पर नरम रवैया तथा अफवाहों का बाजार भी उतना ही तेजी से विकसित हो रहा है, जितनी वहां की समृद्धता। ऐसी सच्ची-झूठी खबरें लोगों के बीच भ्रम, डर व आशंकाएं पैदा कर रही हैं, आम जन-जीवन को प्रभावित कर रही हैं और कई बार भगदड़ के हालात निर्मित कर रही हैं। विडंबना है कि बेसिर पैर की इन लफ्फाजियों के पीछे असली मकसद को पता करने में सरकार व समाज दोनों ही असफल रहे हैं। यह जीवट, लगन और कर्मठता पंजाब की ही हो सकती है, जहां के लोगों ने खून-खराबे के दौर से बाहर निकल कर राज्य के विकास के मार्ग को चुना व उसे ताकतवर बनाया। बीते एक दशक के दौरान पंजाब के गांवों-गांवों तक विकास की धारा बही है। संचार तकनीक के सभी अत्याधुनिक साधन वहां जन-जन तक पहुंचे हैं, पिछले कुछ सालों में यही माध्यम वहां के अफवाहों का वाहक बना है।
फेसबुक या गूगल पर खोज करें तो खालिस्तान, बब्बर खालसा, भिंडरावाले जैसे नामों पर कई सौ पेज वबेसाईट पर उपलब्ध हैं। इनमें से अधिकांश विदेशों से संचालित है। कई एक पर टिप्पणी करने, समर्थन करने वाले पाकिस्तान के हैं। यह बात चुनावी मुद्दा बन कर कुछ हलकी कर दी गई थी कि पंजाब में बड़ी मात्रा में मादक दवाओं की तस्करी की जा रही है। युवा पीढ़ी को बड़ी चालाकी से नशे के संजाल में फंसाया जा रहा है। सारी दुनिया में आतंकवाद अफीम और ऐसे ही नशीले पदार्थों की अर्थ व्यवस्था पर सवार हो कर परवान चढा है। पंजाब में बीते दो सालों में कई सौ करोड़ की हेरोईन जब्त की गई है और उसमें से अधिकांष की आवक पाकिस्तान से ही हुई। स्थानीय प्रशासन ने इसे शायद महज तस्करी का मामला मान कर कुछ गिरफ्तारियों के साथ अपनी जांच की इतिश्री समझ ली, हकीकत में ये सभी मामले राज्य की फिजा को खराब करने का प्रयास रहे हैं।
जरा कुछ महीनों पीछे ही जाएं, सितंबर- 2014 में बब्बर खालसा का सन 2013 तक अध्यक्ष रहा। बीते कई दशकों से पाकिस्तान में अपना घर बनाएं रतनदीप सिंह की गिरफ्तारी पंजाब पुलिस ने की। उसके बाद नवंबर- 14 में ही दिल्ली हवाई अड्डे से खलिस्तान लिबरेशन फोर्स के प्रमुख हरमिंदर सिंह उर्फ मिंटू को एक साथी के साथ गिरफ्तार किया गया। ये लोग थाईलैंड से आ रहे थे। यही मिंटू नाभा जेल से भागा व दिल्ली में 27 नवंबर को ही पकड़ लिया गया। पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या के मामले में सजायाफ्ता व सन 2004 में अतिसुरक्षित कहे जाने वाली चंडीगढ की बुढैल जेल से सुरंग बना कर फरार हुए जगतार सिंह तारा को जनवरी-2015 में थाईलैंड से पकड़ा गया। एक साथ विदेशों में रह कर खालिस्तानी आंदोलन को जिंदा रखने वाले शीर्ष आतंकवादियों के भारत आने व गिरफ्तार होने पर भले ही सुरक्षा एजेंसिंयां अपनी पीठ ठोक रही हों, हकीकत तो यह है कि यह उन लोगों का भारत में आ कर अपने नेटवर्क विस्तार देने की योजना का अंग था। भारत में जेल अपराधियों के लिए सुरक्षित अरामगाह व साजिशों के लिए निरापद स्थल रही है। रही बची कसर जनवरी-15 में ही राज्य के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 13 कुख्यात सजा पाए आतंकवादियों को समय से पहले रिहा करने की मांग कर दी थी जिसमें जगतार सिंह तारा भी एक था। कुल मिला कर देखे तो जहां एक तरफ राज्य सरकार पंथक एजेंडे की ओर लौटती दिख रही है तो इलाके में मादक पदार्थों की तस्करी की जड़ तक जाने के प्रयास नहीं हो रहे हैं।
यह कैसी विडंबना है कि पंजाब के अखबारों में शहीदी समागम के नाम पर करोड़ो के विज्ञापन दिए जाते हैं और सरकार इस पर मौन रहती है। हाल ही में आम आदमी पार्टी के पोस्टरों पर केजरीवाल के साथ भिंडरावाले के फोटो भी दिखे। हालांकि पार्टी ने इसे विरोधियों की साजिश कहा, लेकिन समय-समय पर ऐसे तत्वों के सियासत में आने पर आरोप-प्रत्यारोप होते रहे हैं। जरा विचार करें कि यदि कश्मीर में मकबूल भट्ट या अशफाक गुरू के लिए ऐसे ही विज्ञापन अखबारों में छपे तो क्या सरकार, समाज व मीडिया इतना ही मौन रहेगा? इस बार सबसे बड़ी चिंता का विषय यह है कि सिख अतिवादियों के महिमामंडन का काम पंजाब से बाहर निकल कर जम्मू से शुरू हुआ व वहां भिंडरावाले समर्थकों ने तीन दिन तक सुरक्षा बलों को खूब दौड़ाया। जब वहां सेना तैनात की गई तो मामला शांत हुआ। आतंकवाद, अलगाववाद या ऐसी ही भड़काउ गतिविधियों के लिए आ रहे पैसे, प्रचार सामग्री और उत्तेजित करने वाली हरकतों पर निगाह रखने में हमारी खुफिया एजेंसियां या तो लापरवाह रही हैं या शासन ने उन्हें गंभीरता से नहीं लिया। फिर ऐसे में दो दशक पहले तक संवेदनशील रहे सीमावर्ती राज्य की सरकार में बैठे लोगों का इस मामले में आंखें मूंदे रखना कहीं कोई गंभीर परिणाम भी दे सकता है ।

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