दक्षिणी चीन समुद्र में सुलगती आग
असल झगडा तो उर्जा भंडार पर कब्जे का है
अभी 15 दिसंबर को चीन ने अमेरिका का एक पानी के भीतर काम करने वाले ड्रोन को दक्षिणी चीन समुद्र से जब्त कर लिया। हालांकि अमेरिका के सैन्य मुख्यालय ने अपने राजनयिक माध्यम का इस्तेमाल कर चीन को इस बात पर राजी कर लिया कि वह जब्त ड्रोन को वैधानिक तरीके से लौटा देगा। लेकिन इसी बीच अमेरिका के राश्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हो चुके डोनाल्ड ट्रंप के दो ट्वीट ने बात को बिगाड़ दिया। ट्रंप ने कह दिया कि चीन ने हमारे ड्रोन को चुराया है और वह अब हमें वापिस नहीं चाहिए, वह उसे अपने ही पास रख ले। यहां जानना जरूरी है कि दक्षिणी चीने के समु्रद में सुलग रही आग काफी सालों से भड़कते-भड़कते बच रही है। यह भी जानना जरूरी है कि कोई 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले दक्षिणी चीन समुद्र क्षेत्र का नाम ही चीन पर है और उस पर चीन का कोई ना तो पारंपरिक हक है और ना ही वैधानिक। इस पर मुहर इसी साल जुलाई में अंतरराश्ट्रीय न्यायालय लगा चुका है कि इस समुद्र के संसाधन आदि पर चीन का कोई हक नहीं बनता है।यह समुद्री क्षेत्र कई एशियाई देशों जिनमें वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया आदि षामिल हैं, के चीन के साथ तनाव का कारण बना हुआ है। चीन ने इस इलाके के कुछ द्वीप पर लड़ाकू विमानों के लिए पट्टी बना लीं तो अमेरिका के भी कान खड़े हो गए। अमेरिका ने इस पर सख्त आपत्ति जतायी और इसके बाद से दोनों देशों को बीच रिश्तों में भारी तनाव आ गया। हाल ही में अमेरिका की नौ सेना के समु्रदी सर्वेक्षण विभाग द्वारा समु्रद के खारेपन और तापमान बाबत एक सर्वेक्षण हेतु इस समुद्री क्षेत्र में एक ड्रोन को पानी की गहराई में छोड़ा था। चीन को इसकी खबर मिली तो उसने अपनी नौसेना के जरिये उस ड्रोन को पानी से निकलवा कर जब्त कर लिया। चीन का कहना था कि इस ड्रोन के कारण वहंा से गुजर रहे जहाजों के संचार व मार्गदर्शक उपकरणों में व्यवधान हो रहा था, सो उसे जब्त कर लिया गया। हालांकि यह बात किसी के गले उतर नहीं रही है। विेदश नीति के माहिर लेाग जानते हैं कि डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव जीतते ही उनके द्वारा ताईवान के राश्ट्रपति तसाई इंग वेनमे से फोन पर बात करना चीन को नागवार गुजरा था। चीन का कहना है कि ताईवान पर उसका कब्जा है और उसने ताईवान को केवल प्रशासिनक स्वात्तता प्रदान की है। वहीं ट्रंप ने ताईवान की चीने से मुक्ति को ले कर कई जाहिर बयान दे दिए।
दक्षिणी चीन समुद्र दक्षिणी-पूर्वी एशिया से प्रशांत महासागर के पश्चिमी किनारे तक स्थित कई देशों से घिरा है। इनमें चीन, ताइवान, फिलीपीन्स, मलयेशिया, इंडोनेशिया और वियतनाम हैं। ये सभी देश इस समुद्र पर अपने-अपने दावे कर रहे हैं। 1947 में चीन ने नक्शे के जरिए इस पर अपना दावा पेश किया था। यह सीमांकन काफी व्यापक था और उसने लगभग पूरे इलाके को शामिल कर लिया। इसके बाद कई एशियाई देशों ने चीन के इस कदम से असहमति जताई। वियतनाम, फिलीपीन्स और मलयेशिया ने भी कई द्वीपों पर दावा किया। वियतनाम ने कहा कि उसके पास जो नक्शा है उसमें पार्सेल और स्प्रैटली आइलैंड्स प्राचीन काल से उसका हिस्सा है। इसी तरह ताइवान ने भी दावा किया।17 साल से फिलीपींस कूटनीतिक प्रयासों के जरिये चीन से दक्षिण चीन सागर विवाद सुलझा लेना चाहता था. बात बनी नहीं, तो फिलिपींस ने 2013 में हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण ‘पीसीए’ का दरवाजा खटखटाया. न्यायाधिकरण ने 12 जुलाई को संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून के अनुच्छेद-258 को आधार बना कर फैसला दिया कि ‘नाइन डैश लाइन’ की परिधि में आनेवाले जल क्षेत्र पर चीन कोई ऐतिहासिक दावेदारी नहीं कर सकता. इस फैसले से बाकी देशों को भी राहत मिली है.
असल में यह समु्रद क्षेत्र दुनिया का महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग है। इस इलाके से हर साल कम से कम पांच सौ अरब डॉलर के सामान की आवाजाही होती है। यहां तेल और गैस का विशाल भंडार है। यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी के अनुमान के मुताबिक यहां 11 बिलियन बैरल्स ऑइल और 190 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस संरक्षित है। 1982 के यूनाइटेड नेशंस कन्वेंशन ऑन द लॉ ऑफ द सी के मुताबिक कोई भी देश अपने समुद्री तटों से 200 नॉटिकल मील की दूरी तक समुद्री संसाधनों- मछली, तेल, गैस आदि पर दावा कर सकता है। इस संधि को चीन, वियतनाम, फिलीपीन्स और मलयेशिया ने तो माना लेकिन अमेरकिा ने इस पर दस्तखत नहीं किए। वैेसे तो दक्षिणी समु्रद पर अमेरिका का ना तो कोई दवा है और ना ही इसकी सीमा उससे कहीं लगती है। लेकिन वह इस महत्वपूर्ण मार्ग व उर्जा के भंडार पर निगाह तो रखता ही है और उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा कोई है तो वह है चीन। गौरतलब है कि इस इलाके के उर्जा संसाधनों पर भारत की भी रूचि है। वियेतनाम तो भारत को बाकायदा यहां गैस व तेल की खोज के लिए आमंत्रित भी कर चुका है। सन 2011 में ओएनजीसी विदेश लिमिटेड ने जब वियतनाम में तेल की खोज आरंभ की, तो चीन काफी रोष में था. मई, 2014 में चीन ने पारासेल आइलैंड के पास तेल दोहन वाले रिग खड़े कर दिये, जिससे कई दुर्घटनाएं हुईं. चीन कई बार अमेरिका को धमका चुका है कि वह दक्षिण चीन सागर से दूर रहे. चीन ने इन दिनों कहना शुरू किया है कि भारत यदि वियतनाम में तेल की खोज कर सकता है, तो पाक अधिकृत कश्मीर में हमारे प्रोजेक्ट क्यों नहीं लग सकते। वहीं इसी साल जुलाई में इस इलाके में अमेरिकी जेट उड़ने को ले कर चीन व अमेरिका में गंभीर टकराव हो चुका हे। अमेरिका वहां चीन के दखल को गैरकानूनी कहता है तो चीन वहां अमेरिका की सनय गतिविधियों को नापसंद कर रहा है।
यह तो स्पश्ट हो गया है कि दक्षिणी समुद्र सीमा में ड्रोन पकड़ना या छोड़ना तो महज एक बहाना है, असल में यहां अपना रूतबा दिखाने और अधिक से अधिक हक पाने की चालें तो यहां के व्यावसायिक खजाने पर हिस्सेदारी को ले कर है। अमेरिका में यह सत्ता परिवर्तन का संक्रमण काल है और आने वाले राश्ट्रपति ने अपने चुनाव प्रचार में ही चीन को सबक सिखाने, एशिया में उसकी दादागिरी समाप्त करने के कई वायदे किए थे। वहीं तेल व गैस के लिए अरब देशों पर उसकी निर्भरता का आधार भी कमजोर होता जा रहा हे। एक तो तेल भ्ंाडार वाले अरब का बड़ा हिस्सा घरेलू हिंसा की चपेट में है, दूसरा घरेलू दवाब के चलते उस क्षेत्र में वह अब लंबे समय तक सेना रख नहीं पाएगा। ऐसे हालात में उसे तेल व गैस के नए भंडार चाहिए। जाहिर है कि इसके लिए वह अपने पुराने दुश्मन वियेतनाम से भी हाथ मिला सकता है। वहीं ताईवान, फिलीपींस आदि चीन के हाथो ंसे अपनी मुक्ति के लिए अमेरिका की षरण में जा सकते हैं। ऐसे में दक्षिणी समु्रद का इलाका टकरव, युद्ध और नए वैश्विक धु्रवीकरण का केंद भी बन सकता है।
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