My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

सोमवार, 2 अक्टूबर 2017

rivers can not be saved in such way

ऐसे तो न बच पाएंगी नदियां

सब को पता है कि बुंदेलखंड एक बार फिर भयंकर जल-संकट की ओर बढ़ रहा है, इसके बावजूद गत एक महीने से वहां के रहे-बचे जल-संसाधनों को जहरीला बनाने में समाज ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। पहले गणपति, फिर दुर्गा विसर्जन और ताजिये। हालांकि बुंदेलखंड में गणपित या दुर्गा पूजा स्थापना की कोई परंपरा नहीं रही है, लेकिन बाजारवाद और प्रचार माध्यमों के बल पर अकेले छतरपुर जिले में 300 से अधिक स्थान पर दुर्गा प्रतिमा बैठाई गई, यह संख्या अभी आठवें दशक तक पांच भी नहीं हुआ करती थी। अजीब विडम्बना है कि जो नेता अभी एक सप्ताह पहले इलाके को सूखाग्रस्त घेषित करने की मांग पर प्रदर्शन कर रहे थे, वे ही भगवा फटका बांधे सूख रहे तालाब-नदियों में देवी प्रतिमा का विसर्जन कर रहे थे। यह भी समझना जरूरी है कि एनजीटी से ले कर अदालतें तक ताकीद करती रही हैं कि जल-निधियों में प्रतिमा-विसर्जन गैरकानूनी है, प्रधानमंत्री अपने ‘‘मन की बात’ में प्लास्टर ऑफ पेरिस की प्रतिमाओं के बहिष्कार की अपील कर चुके हैं; लेकिन भीड़-तंत्र के सामने किसे परवाह होती है कानून की। 

बुंदेलखंड तो बहुत दूर है। देश की राजधानी दिल्ली के बीच से बहने वाली यमुना का देवी प्रतिमाओं ने दम निकाल दिया है। यहां बस अड्डे के करीब कुदेशिया और गीता घाट का नजारा भयावह है। दूर-दूर तक नदी में तेल की परत, रंग, कपड़ों, लकड़ी का ढेर है। मूर्तियां बनाने में लगा प्लास्टर ऑफ पेरिस की कीचड़ कई किलोमीटर तक नदी को मृत बना रही है। पूजा में इस्तेमाल फूल और फलों के सड़ने से बदबू दूर तक लोगों की सांस फूला रही है। केंद्रीय प्रदूषण नियंतण्रबोर्ड द्वारा दिल्ली में यमुना नदी का अध्ययन इस संबंध में आंखें खोलने वाला रहा है कि किस तरह नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है। बोर्ड के निष्कर्ष के मुताबिक नदी के पानी में पारा, निकल, जस्ता, लोहा, आर्सेनिक जैसी भारी धातुओं का अनुपात दिनोंदिन बढ़ रहा है। कोलकाता के हुगली तट पर हालात लगभग ऐसे ही ही हैं। उत्तर बंगाल में महानंदा व उसकी सहायक नदियों में हर साल तीन लाख प्रतिमाएं नदी के जल को पूरे साल के लिए जहरीला कर देती हैं। हाल ही में हुई बरसात से जैसे ही नदी में नया जल आता है गणोश चतुर्थी, विश्वकर्मा पूजा, दुर्गा पूजा, लक्ष्मी पूजा, काली पूजा और भंडारी पूजा के नाम पर मूर्तियों व पूजा सामग्री से नदी को हांफने पर मजबूर कर दिया जाता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी जी के शहर गोरखपुर में प्रशासन ने अदालती आदेश के चलते प्रतिमा विसर्जन के लिए कृत्रिम कुंड बनवाए थे, लेकिन जबरई से धर्मभीरुओं ने 6500 से ज्यादा प्रतिमाएं राप्ती नदी में ही विसर्जित कीं। जमशेदपुर में सुवर्णरेखा, खरकई नदी व अन्य घाटों पर आस्था के अवशेष बिखरे पड़े हैं। पूजन सामग्री, भगवान पर चढ़े कपड़े, चुनरी, कला घट, दीया, फोटो, छोटी-बड़ी सैकड़ों मूर्तियों के लिए बनाए गए (बांस-लकड़ी के स्ट्रक्चर) आदि प्रदूषण बढ़ा रहे हैं। सबसे अधिक गंदगी सुवर्णरेखा नदी घाट किनारे दिख रही है। अनुमान है कि हर साल देश में इन तीन महीनों के दौरान 10 लाख से ज्यादा प्रतिमाएं बनती हैं और इनमें से 90 फीसद प्लास्टर ऑफ पेरिस की होती है। इस तरह देश के ताल-तलैया, नदियों-समुद्र में नब्बे दिनों में कई सौ टन प्लास्टर ऑफ पेरिस, रासायनिक रंग, पूजा सामग्री मिल जाती है। पीओपी ऐसा पदार्थ है, जो कभी समाप्त नहीं होता है। इससे वातावरण में प्रदूषण बढ़ने की संभावना बहुत अधिक है। प्लास्टर ऑफ पेरिस, कैल्शियम सल्फेट हेमी हाइड्रेट होता है, जो कि जिप्सम (कैल्शियम सल्फेट डिहाइड्रेट) से बनता है। चूंकि ज्यादातर मूर्तियां पानी में न घुलने वाले प्लास्टर ऑफ पेरिस से बनी होती हैं, उन्हें विषैले एवं पानी में न घुलने वाले नन बायोडिग्रेडेबेल रंगों में रंगा जाता है, इसलिए हर साल इन मूर्तियों के विसर्जन के बाद पानी की बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड तेजी से घट जाती है, जो जल-जन्य जीवों के लिए कहर बनता है। देश के हर कस्बे-टोले के जल संसाधनों के यह दुखद हालात तब हैं, जब देश में मिस्ड-कॉल मार कर नदियों की सफाई के संकल्प के बड़े-बड़े विज्ञापन छप रहे हैं। स्वच्छता अभियान के नाम पर खूब नारे लगे, लेकिन जब आस्था के सवाल आए तो प्रकृति, पर्यावरण, कानून के सवाल गौण हो गए। पर्व-त्योहारों को अपने मूल स्वरूप में अक्षुण्ण रखने की जिम्मेदारी समाज की है। इस अनुशासन के बल पर ही प्रदूषण को कम किया जा सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How National Book Trust Become Narendra Book Trust

  नेशनल बुक ट्रस्ट , नेहरू और नफरत पंकज चतुर्वेदी नवजीवन 23 मार्च  देश की आजादी को दस साल ही हुए थे और उस समय देश के नीति निर्माताओं को ...