काहिरा जैसे खुले पुस्तक भारत में क्यों नहीं ?
पंकज चतुर्वेदीjansandesh times, lucknow 10-2-18 |
prayukti, delhi 8-2-18 |
सन 1969 में काहिरा या कायरो षहर की स्थापना का एक हजारवां साल था और तब से इस पुस्तक मेले की षुरूआत हुई। इस साल मेले का 49वां संस्करण है। अल्जीरिया को अतिथि देश का सम्मान दिया गया है। मेले में कुल 848 प्रकाशकों के 1200 से अधिक स्टॉल हैं। विदेश से 27 देशों की भागीदारी है जिनमें 17 देश अरब के ही है।। इसके अलावा रूस, चीन, इटली, से ले कर सूडान, फिलिस्तीन, जार्डन आदि सहभागी हैं। इतने पुराने पुस्तक मेले में भारत ने पहली बार हिस्सा लिया । इजीप्ट की संस्कृति मंत्री एनस अब्ेदल दायेम और अल्जीरिया के संस्कृति मंत्राी एजाज्दीन महबूबी ने पुस्तक मेले का प्रारंभ किया और इस अवसर पर इजीप्ट के अन्य चार केबिनेट मंत्री भी मौजूद थे। उद्धाटन एक दिन पहले षाम को हुआ और विदेशी भागीदारों के लिए अलग से एक षानदार इमारत में बनाए गए मंडप में मंत्रीद्वय छह घंटे तक प्रत्येक स्टॉल पर गए। भारत की ओर से नेशनल बुक ट्रस्ट ने भागीदारी की। भारत के स्टॉल पर ट्रस्ट व कई अन्य प्रकाशकों की 100 से अधिक पुस्तकें प्रदर्शित की गईं, जिनमें गांधी, योगा, विज्ञान बच्चों की पुस्तकें आदि षामिल हैं। उदघाटन के समय अल्जीरिया के मंत्री ने भारत के स्टॉल पर आ कर कमर तक झुक कर नमस्ते बोल कर भारत के प्रति अपना सम्मान जाहिर किया।
कायरो पुस्तक मेले के अंतरराश्ट्रीय पवेलियन में एक बात स्पश्ट होती है कि वहां के लोगों को अंग्रेजी सीखने का कोई मोह नहीं है। वे केवल अरबी में बात करते हैं, अरबी में ही उनके सूचना पट्ट व सामग्री हैं, यदि आप उसे पढ नहीं पाते तो यह आपकी दिक्कत है। दूसरा इजीप्ट की हर पीढ़ी के लोगों के लिए भारत बेहद आदर का प्रतीक है। बुजुर्ग लोग नेहरू-नासेर, इंदिरा गांधी-मुबारक की दोस्ती, सहयोग और इजीप्ट के आधुनिकीकरण में भारत के योगदान के प्रति कृतज्ञ महसूस करते हैं। यहां एक युवक ऐसा भी आया जिसका नाम नेहरू अहमद गांधी है। गांधी उसके बाबा का नाम है, वालिद का अहमद और उसका नेहरू।
इसके बाद वहां गांधी और टैगोर को याद किया जाता है। यहां कई स्टॉल पर गांधी की पुस्तकें अरबी में मौजूद है।। भारत के लोकतंत्र, धर्म आदि की भी कई पुस्तकें हैं। लेकिन सबसे ज्यादा कोई लोकप्रिय है तो वह है अमिताभ बच्चन, फिर षाहरूख और सलमान भी। बच्चों व युवाओं में होड़ रहती है कि वे अपना नाम हिंदी में कागज पर लिखवाएं । इस बात को भी वे सम्मान से देखते हैं कि वे भारत के स्टॉल पर रखे आगंतुक रजिस्टर में ‘आई लव इंडिया’ लिखते हैं। कुछ तो केवल दिल का निशान और उसमें बिधे तीर के एक तरफ इजीप्ट और दूसरे तरफ इंडिया लिख कर हाले-दिल का इजहार करते हैं।
कायरो के पुस्तक मेले में मर्द से कहीं ज्यादा औरतें दिखती हैं खरीदार के तौर पर और वहां काम करने वालों में भी। औरतें बुरके वाली, हिजाब वाली, जिंस-टीशर्ट वाली--- किसी भी पोशाक में, लेकिन कहीं कोई पांबदी नहीं। असल में यहां औरत व आदमी की जनसंख्या लगभग समान है। यहां की साक्षरता दर भी षानदार है - 83.24 प्रतिशत पुरूश और 67.29 प्रतिशत महिलाएं साक्षर हैं। 15 से 24 साल के युवाओं में साक्षरता का प्रतिशत 94.27 है और इसका असर पुस्तक मेले में साफ दिखता है। पिछले साल पुस्तक मेले में कुल बीस लाख लोग आए थे यानि हर दिन औसतन एक लाख तैंतीस हजार लोग। यह आंकड़े बानगी हैं कि अरब के इस आखिरी और अफ्रीका के षुरूआती देश में पढ़ने के प्रति कितना लगाव है। वैसे भी इजीप्ट में पुस्तक प्रकाशन एक महत्वपूर्ण उद्योग है। नील नदी की कृपासे पैदा होने वाली फसल में वे ‘‘पापयरस’ पेड़ भी है जिससे कागज बनता है और यहां से कागज दूर दूर निर्यात होता है। एक मोटा अनुमान है कि यहां पुस्तकों का व्यापार सालाना 204 मिलियन अमेरिकी डालर का है। कुछ ऐसे आंकड़े भी गौरतलब है जो दर्शाते हैं कि इजीप्ट के पुस्तक मेले में इतनी भीड़ क्यों होती है। असल में यहां गत तीन सालो में प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा जहां बढ़ रहा है वहीं इस अवधि में महंगाई की दर में तीन फीसदी की कमी आई और बेरोजगारी की दर लगभग स्थिर 12.4 फीसदी है। लोगों के पास अपने घर में ही रोजगार है, सो वे किसी विदेशी भाशा के महातजा नहीं हैं। तभी पुस्तक मेले में नब्बे फीसदी पुस्तकें अरबी में ही हैं। अमेरिका या यूरोप के देशों को रिमायंडर यानि कचरा होग या साहित्य यहां अरबी अनुवाद के तौर पर पटा पड़ा है। अरबी लेाग किसी श्री नए षब्द के लिए अपना खुद का लफ्ज गढते हैं और अंग्रेजी से उधार नहीं लेते जैसे -टेलीफोन को हातिब और कंप्यूटर को हासूब नाम दे रखा है।
एक बात और इजीप्ट पुस्तक मेला वैचारिक टकराव का भी बड़ा अड्डा है और यहां हर साल वामपंथी लेखकों व अरब के कट्टर मुस्लिम लेखकां की पुस्तकों को ले कर विवाद होते हैं। कई बार चेक गंणराज्य, लेबनान आदि देशोेंकं की पुस्तकें जब्त होने की नौबत भी आई है, लेकिन यहां के लेखक मंच सभी तरह के लेागों को स्थान देते हैं। यहां चे गोवेरा, मार्क्स, ओसाम बिन लादेन, गांधी , मार्लिन मुनरो, नासेर और कट्टर इस्लामिक विचार , सभी कुछ एक ही दुकान की पुस्तकों में साथ बैठे संवाद करते दिखते है। कुल मिला कर कायरो पुस्तक मेला महज खुले आसमान के नीचे ही नहीं होता, यहां विचारों, इंसानों, नस्लों सभी के लिए खुला स्थान है। इतना खुला कि यहां पुस्तकों के बीच सिगरेट पीने पर कोई रोक नहीं है, यहां तक कि जहां ‘नो स्मोकिंग’ लिखा हो वहां भी। हर दूसरे हाथ में सिगरेट यहां की खासियत ही त्रासदी है।
पन्द्रह दिन के इस पुस्तक मेले में औसतन हर दिन सवा लाख लोग आते हैं । इनमें चालीस फीसदी बच्चे होते हैं । वैसे तो पुस्तक मेले का प्रवेश षुल्क महज एक इजीप्ट पाउंउ यानि लगभग तीन रूपण् साठ पैसे हैं, लेकिन बच्चों के लिए प्रेवश निशुल्क है। जाहिर है कि पुस्तक मेले में बच्चों के लिए कुछ ख़ास तो होता ही है . यहाँ खुले मंच पर बच्चों के लिए दिनभर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं- इनमें गीत, नाटक, डांस--। कुछ बच्चों द्वारा और कई एक प्रोफेशनल समूहों द्वारा। यहां चल रहा जादू का शो में बिलकुल भारत के आम जादू की शो की ही तरह तमाशे थे । कागज जला कर बर्त में रखना और कबूतर निकालना, रंगबिरंगी चिंदियों को रूमाल में बदल देना अदि। यहां सर्कस के तमाशे, बच्चों का ग्रीक-रोमन डांस, गीत-संगीत, अरबी षछठों के उच्चारण की प्रतियोगिता आदि सारे दिन चलती हैं।
एक बात तो तय है कि भारत का जिस तरह यहां सम्मान और भरोसा है, उसको देखते हुए यहां बच्चों की पुस्तकें, भारतीय साहित्य, इतिहास व कला की पुस्तकें अधिक से अधिक अरबी में अनूदित कर बिक्री की व्यवस्था करना चहिए, क्योंकि इस खाली स्थान को चीन व पश्चिमी देश अपने रंग से भरने में लगे हैं।
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