My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

story for children on democracy

अपनी पसंद का मॉनीटर
पंकज चतुर्वेदी 


पूरी कक्षा ठसा-ठस भरी थी। लगता है कोई भी अनुपस्थित नहीं है। हो भी कैसे ! आज पहला दिन जो है- इतने दिनों की छुट्टियों के बाद अपने दोस्तों  से मिलने का अवसर आया है!! अभी शिक्षक  कक्षा में आए नहीं है और पवन सभी को चुप करवाने का प्रयास कर रहा है। वह कुछ बच्चों को आगे बैठा रहा है तो कुछ को पीछे कर रहा है। बहुत से बच्चे उसकी बात मानने को राजी नहीं हैं। वह हल्ला करने को मना करता तो वे हो....हो करने लगते। कक्षा में शोर-शराबा  हो रहा है,कोई कागज के रॉकेट बना कर चला रहा है।




‘‘अरे भाई, पहले दिन ही इतना हंगामा? आने में दो मिनट देर क्या हो गई, आप लोगों ने तो सारे स्कूल को सिर पर उठा लिया?’’ वंदना टीचर की कड़कती आवाज जैसे ही गूंजी, साठ बच्चों की क्लास में सन्नाटा छा गया। इतनी शांति  कि सुई गिरने की आवाज सुन लो।
‘‘ टीचर कोई मेरी बात ही नहीं सुन रहा था.. यह राजेश्  तो मुंह चिढ़ा रहा था और वह अकरम और जोर से हल्ला कर रहा था....’’ पवन रूआंसा हो गया। पवन पिछले साल क्लास का मॉनीटर था। चॉक-डस्टर लाना हो या ऑफिस में कॉपी पहुंचाना,, टीचर की अनुपस्थिति में  अनुषासन बनाए रखना हो या और कोई काम, पूरे पवन के जिम्मे थे।
‘‘क्यों, क्या छुट्टी के दो महीनों में भूल गए थे कि क्लास में कैसे व्यवहार करना है? और ये पवन की बात कौन -कौन नहीं सुन रहा था? क्यों......क्यों?’’ वंदना टीचर से वैसे ही सभी बच्चे डरते हें। आज तो उनका गुस्सा साँतवे आसमान पर है। सभी ने सिर नीचे कर लिए।
‘‘ राजेश् , आप ? आपके तो सबसे ज्यादा  नंबर आए हैं और आप भी पवन को चिढ़ा रहे थे?’’ वंदना टीचर के सुर थोड़े षांत हुए। शायद उन्हें भी लगा कि पहले ही दिन बच्चों से इतनी कड़ाई ठीक नहीं है।
राजेष खड़ा हो गया। उसने धीरे से निगाह उठा कर देखा- ‘लगता है टीचर का गुस्सा शांत  हो गया है।’ मन ही मन उसने सोचा।
‘‘बोलो राजेश , आपकी शिकायत  क्यों आई?’’ मेंडम ने फिर पूछा।
‘‘‘टीचर वो बात ऐसी है कि...’’ राजेश्  बोलने में कुछ संकोच कर रहा था।
‘‘हां.... हां....बोलो.... क्या हो गया है आपको?’’ वंदना टीचर की आवाज में कुछ स्नेह टपक रहा था। इससे राजेश् को हिम्मत मिली।
‘‘ टीचर मैं  बिल्कुल चुपचाप बैठा था, यह जो पवन है, वह मुझसे दुश्मनी  मानता है। पिछली से पिछली बार परीक्षा में मुझसे यह एक सवाल पूछ रहा था। मैंने बताया नहीं था, तभी से यह ऐसा ही करता है।’’ राजेश्  सरपट रफ्तार में बोल गया।
राजेश्  का बोलना था कि संजय भी खड़ा हो गया, ‘‘टीचर टीचर, राजेश्  सही कह रहा है......पवन की बात नहीं मानो तो वह बोर्ड पर नाम लिख देता है.....’’
अब तो क्लास में बच्चों की होड़ लग गई पवन की शिकायत  करने की। वंदना टीचर ने बच्चों को चुप करवाया, ‘‘‘यह अच्छी बात नहीं है, अपने किसी साथी की चुगली नहीं करते।’’ हालांकि टीचर भी जानती थीं कि पवन गत दो सालों से मॉनीटर है और वह अब ईमानदारी से काम नहीं कर रहा है।
क्लास में हर समय शिक्षक  रह नहीं सकता। कई काम ऐसे होते हैं कि वह बच्चों से ही करवाने पड़ते हैं, ऐसे में एक अच्छे मॉनीटर की जरूरत तो होती ही है। जब पवन कक्षा छह में था  तो दूसरे बच्चों से कुछ बड़ा दिख्ता था। उसके डील डौल से बच्चे डरते भी थे। उसके पिताजी कस्बे की नगर पंचायत के प्रधान भी थे, सो उसे क्लास का मॉनीटर बना दिया गया था। अब दो साल बाद ऊसकी बहुत शिकायतें आ रही हैं- वह भेदभाव करता है, वह खुद होम वर्क दूसरे बच्चों से करवाता है...... और भी बहुत सी। आज जो कक्षा में हुआ, उसी का परिणाम था।
टीचर समस्या को समझ चुकी थीं। ‘‘‘चलो-चलो, ये शिकायतें करना छोड़ो। पहला दिन है। नए लोगों से परिचय लेते हैं। बात करते हैं कि छुट्टी में किसने क्या किया।’’ और फिर स्कूल की छुट्टी तक बच्चों ने क्लास में खूब मजे किए। नई किताबें देखीं, नए बच्चों से बातचीत हुई । बच्चे तो नए दिन की उम्मीदों के साथ अपने-अपने घर चले गए, लेकिन वंदना टीचर को पूरे साल कक्षा को सही तरीके से चलाने की चिंता सता रही थी। वे समझ गई थीं कि अब पवन के भरोसे बहुत से काम होने से रहे।
अगले दिन बच्चों की हाजिरी हुई और उसके बाद वंदना टीचर ने पूछा, ‘‘अच्छा बताओ, कौन-कौन चाहता है कि क्लास में नया मॉनीटर बने?’’
पहले कुछ बच्चों ने हाथ खड़ किए, फिर उनकी देखा-देखी कुछ और ने हाथ खउ़े कर दिए, फिर तो पूरी क्लास के हाथ ऊपर थे, यहां तक कि पवन के भी।
‘‘‘पवन आप भी चाहते हैं कि नया मॉनीटर बने?’’ टीचर ने पूछा।
‘‘जी, टीचरजी, मुझे दो साल हो गए यह काम करते हुए। पहले सब मेरे दोस्त थे। पर, अब देखिए ना क्लास के अधिकांश्  बच्चे मुझसे दुश्मनी  मानने लगे हैं। ऐसी मॉनीटरी से क्या ?’’
‘‘ बात तो आप ठीक कह रहे हैं पवन, लेकिन यह जिम्मेदारी भी तो किसी ना किसी को निभाना ही पड़ेगा ना?’’ टीचर ने कहा।
‘‘ तो इस बार हम आप सभी पसंद का ही मॉनीटर रखेंगे।’’
‘‘हमारी पसंद का ?’’ एक साथ कई बच्चों के स्वर निकले। ‘कैसे....‘कैसे होगा?’’
‘हम चुनाव के जरिए मॉनीटर का चुनाव करेंगे।‘’ टीचर बोलीं।
‘‘चुनाव! जैसे प्रधानमंत्री वाला चुनाव हुआ था अभी?’’ कैलाष ने पूछा।
‘‘ हां.......हां वैसा ही चुनाव, लेकिन बेटे हमने प्रधान मंत्री का चुनाव नहीं किया था। जनता तो अपना सांसद चुनती है और सांसद प्रधानमंत्री।’’ टीचर ने समझाया।
‘‘ यानी हम वोट डालेंगे।, हम भी मॉनीटर बन सकते हैं । सुनो हम तो रजनीश्  को अपना मॉनीटर बनाएंगे ...........’’ ऐसे ही कई सवाल कक्षा में गूंजने लगे।
शोर  नहीं, और आप किसको चुनोगे यह बताना गलत बात हे। वोट हर समय गोपनीय रहता है। ‘और याद रखें जो ईमानदारी से काम करना चाहे, जो भेदभाव ना करे, वही आगे आए। आप लोगों के पास एक घंटा है, खुद ही तय कर लें कि कौन-कौन मॉनीटर बनना चाहता है। कल हम चुनाव करेंगे।’’ यह कहते हुए वंदना टीचर क्लास से बाहर निकल गईं।
अब बच्चों के गुट बन रहे थे। कोई खुद को खड़ा बता रहा था तो कोई अपने दोस्त को मॉनीटर बनता देखना चाहता था। इतने हंगामें में पवन एक कोने में बैठा था, उसके दो ही  दोस्त साथ थे। ‘देखना अभी  जितना कूद रहे हैं ना जब मॉनीटर बन जाएंगे, तब समझ आएगा।’’ पवन बोला।
पता ही चला कि कब एक घंटा निकल गया और वंदना टीचर, कुरैशी  सर के साथ क्लास में आ गईं। ‘‘ तो बताओ, कौन-कौन बनना चाहता है मॉनीटर?’’
सबसे पहले फहीम खड़ा हुआ, फिर राजेश् , और नमन और गुरमीत भी।
‘‘ तो आप चार लोग मॉनीटर बनना चाहते हैं?’’ कुरेषी सर ने पूछा।
‘‘जी ....’’ चारों एकसाथ बोले ।
‘‘एक बात याद रखें, जिसने आज हां कर दिया, वह कल ना नहीं करेगा। और मॉनीटर बनने के बाद काम से घबरा कर बीच में से छोड़ कर भागेगा भी नहीं ! ठीक है ना!!’ टीचर ने चारों से पूछा।
‘‘ जी..... हां।’’ चारों बच्चों ने जवाब दिया।
‘‘ चलो, चारों बच्चे एक कागज पर लिख कर आवेदन करों कि वे मॉनीटर का चुनाव लड़ना चाहते हैं। प्रत्येक आवेदन पर कम से कम दो बच्चों के हस्ताक्षर भी होंगे कि वे समर्थन करते हैं।’ कुरेशी  सर ने कहा।
क्लास में कभी इतनी स्वतंत्रता मिली नहीं थी और ना ही यह सबकुछ हुआ था, सो बच्चे बउ़े उत्साह में थे। चुनाव लड़ने वाले बच्चों के पास उनके दोस्त-समर्थक पहुंच गए थे और होड लगी थी कि कौन किसका समर्थक बनकर हस्ताक्षर करेगा।
‘कल हम प्रार्थना के बाद ही‘नया मॉनीटर चुन लंेंगे। याद रखें कल कोई छुट्टी नहीं करेगा। आज आप लोगों को छूट दी जाती हे कि अपने दोस्तों को समझाएं कि आप ही मॉनीटर क्यों बना। बस , याद रखना कि आपके हल्ले-गुल्ले से दूसरी कक्षाओं में व्यवधान ना हो। ’’ टीचर व सर यह कहते हुए क्लास से बाहर निकल गए।
फहीम, राजेश् , नमन और गुरमीत - इन चारों के साथ कुछ-कुछ बच्चे थे। फहीम ने पुराने मॉनीटर पवन को ही पकड़ लिया और पवन उसके साथ बच्चों को फहीम का समर्थन करने की कहने लगा। गुरमीत बच्चों को कह रहा था कि जो उसे वोट देगा, उसे वह अपनी गाड़ी में बैठा कर स्कूल लाया करेगा। राजेश्  लालच दे रहा था कि उसका साथ देने वालों को वह गोलगप्पे खिलाएगा। नमन भी कहां पीछे रहता, उसने कह दिया कि यदि उसका साथ नहीं दिया तो वह किसी को भी अपने होम वर्क की कॉपी नहीं देगा। कोई लालच दे रहा था  कि उसके राज में हल्ला करने वालों या देर से आने वालों के नाम वह टीचर को नहीं बताएगा।, कोई चुपके से टेस्ट पेपर के नंबर बताने का झांसा दे रहा था। अपने बडे भाई-बहन से दोस्ती, पड़ोस में रहने, पुरानी दोस्ती जैसी बातें भी याद करवाई जा रही थीं।
स्कूल की छुट्टी के बाद कुछ बच्चे एक दूसरे के घर भी पहुंच गए। अब यह बात स्कूल की दूसरी कक्षाओं व उसके जरिए छोटे से कस्बे में फैल गई कि स्कूल की कक्षा आठ में इलेक्षन होने वाले है। हालांकि बच्चों में यह भी चर्चा थी कि आखिर इन चारों में से एक को चुना कैसे जाएगा। डर था कि कहीं टीचर ने सबके सामने हाथ खड़े करने को कह दिया तो बाकी तीन नाराज हो जाएंगे। बच्चो को इस बात का डर भी था और मन में जिज्ञासा भी थी कि आखिर चार में से एक कैसे मॉनीटर बनेगा ? कहीं टीचर ने पिछले रिजल्ट के अच्छे नंबर वाले को बना दिया तो  कहीं हेडमास्टरजी ने अपने मर्जी से चुन लिया तो ?
 ऐसे ही कई सवालों के साथ बच्चों की सुबह हो गई और अधिकांश्  बच्चे समय से पहले स्कूल भी पहुंच गए। आज तो कक्षा आठ के बाहर दूसरी कक्षा के बच्चे भी तांक-झांक कर रहे थे।  कक्षा में कुरेशी  सर व वंदना टीचर पहुंचीं । उनके हाथ में एक बड़ा सा डिब्बा भी था। जल्दी से बच्चों की हाजिरी ली गई। उसके बाद चारों बच्चों को सामने बुलाया गया।
‘‘ अब आप चारों को तीन-तीन मिनट में यह बताना है कि आप ही क्यों सबसे अच्छे मॉनीटर होगे। ’’ कुरेषी सर ने कहा।
‘‘ मुझे पुराने मॉनीटर का समर्थन मिला है। वह मुझे आगे भी सहयोग करेगा, इस लिए मैं अच्छा  मॉनीटर बनूंगा।’’ फहीम ने ऐसा ही कुछ भाषण  दिया। राजेश्  ने भाषण  में कहा कि उसे हर बार परीक्षा में सबसे ज्यादा नंबर मिलते हैं, इस लिए उसे मॉनीटर बनना चाहिए।
‘‘ मुझे कोई डरा नहीं सकता , मैं ईमानदारी से उधम करने वाले बच्चों के नाम लिखूगा। और मैं ताकतवर भी हूं, बहुत सारी कॉपी-किताब एकसाथ उठा कर टीचर जी की टेबल तक पहुंचा सकता हू।’’  गुरमीत अपनी बांह के डोले दिखा कर बोला और क्लास ठहाकों से गूंज गई। नमन तो इतने बच्चों के सामने कुछ बोल ही नहीं पाया ।
‘‘‘एक बात जान लें कि मॉनीटर कोई राजा नहीं है, वह अपनी मनमर्जी कुछ नहीं कर सकता। वह तो कक्ष की समस्याओं को टीचर तक पहुंचाने का माध्यम होता हे। कक्षा में बहुत से काम , जो अकेली टीचर नहीं कर पाती, उनको मदद करने के लिए होता है। यदि आप कुछ करना चाहते हैं, अपनी पढ़ाई-खेल के साथ-साथ अपने मित्रों के लिए, अपने स्कूल के लिए, तो ही मॉनीटर बनने की सोचें।’’वंदना टीचर ने समझाया।
‘‘अब हम चुनाव के जरिये अपना मॉनीटर चुनेंगे। सभी बच्चे एक-एक कर चुपचाप एक पर्ची पर अपने पसंद का नाम लिखेंगे व उस उिब्बे में डाल देंगे। जिसे सबसे ज्यादा लोग पसंद करेंगे, वही मॉनीटर होगा।’’ कुरेशी  सर ने बताया।
‘‘टीचर, मेरे मन में एक सवाल है, क्या पूछ सकता हूं ?’’ नमन थोड़ा डरा हुआ लगा रहा था।
‘‘हां....हां जरूर ..’’ मेडम ने उसकी हिम्मत बढ़ाई।
‘‘ टीचर हम चार में से कोई एक ही मॉनीटर बनेगा ना? जिसे सबसे ज्यादा बच्चे पसंद करेगे!’’
‘हां, यही होगा। यही तो होता है चुनावों में जिसे सबसे ज्यादो वोट मिलते हैं वही जीतता है।’’
‘‘ तो फिर , वह सबकी पसंद का मॉनीटर कैसे होगा। मान लो यदि फहीम जीत जाता है, उसे तो मैंने वोट दिया ही नहीं तो वह मेरी पसंद का कैसे हुआ?’’
‘‘देखो बेटे, दुनिया में सबकुछ हमारी मर्जी से नहीं होता। कुछ जगह हमें दूसरों की भावनाओं का भी सम्मान करना होता है। बहुमत का अर्थ यह हुआ कि जिसे सबसे ज्यादा लोगों ने पसंद किया।  और फिर इस चुनाव का मतलब यह तो हुआ नहीं कि फहीम या गुरमीत या राजेश  से आपका झगड़ा हो गया। यह तो एक खेल है। मान लो कि आपसे ज्यादा किसी दूसरे को ज्यादा लोग पसंद करते हैं।’’ कुरेशी  सर ने लोकतंत्र के सही मायने समझााने का प्रयास किया।
इसके बाद हाजिरी रजिस्टर से बोल कर एक-एक बच्चे का नाम पुकारा गया। छात्र आते दूर टेबल की आड़ में अपने पसंद के बच्चे का नाम लिखते और डिब्बे में डाल देते। कुरेशी  सर के पास हरे रंग का पेन था, जिसे वे हर बच्चे की उंगली पर निशान बना देते। बच्चों को याद आया कि ऐसा ही नीला-काला निशान उनके माता-पिता की उंगली पर चुनाव में लगाया गया था।
अब इस चुनाव के परिणाम क्या हुए? यह तो गिनती के बाद ही पता चलेगा। लेकिन वंदना टीचर ने एक बात कह दी,-अर्ध वार्षिक  परीक्षा के बाद ना जीत पाए तीनों बच्चों से एक बार फिर बात की जाएगी। यदि वर्तमान मॉनीटर के काम से सभी संतुष्ट  नहीं हुए तो एक बार फिर चुनाव होगा। वह चुनाव होगा इस बात के लिए कि क्या इस मॉनीटर की जगह नए का चुनाव किया जाए या नहीं!!







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After all, why should there not be talks with Naxalites?

  आखिर क्यों ना हो नक्सलियों से बातचीत ? पंकज चतुर्वेदी गर्मी और चुनाव की तपन शुरू हुई   और   नक्सलियों ने धुंआधार हमले शुरू कर दिए , हा...