My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

car becoming disaster for India



कार से बेजार होती जिंदगी


पंकज चतुर्वेदी

हाल ही में दिल्ली के प्रगति मैदान और ग्रेटर नोएडा में गाड़ियों का सालाना मेला आटो एक्सपो संपन्न हुआ। जिस महानगर की छह लेन की सड़कें भी कारों का बोझ नहीं संभाल पा रही हैं वहां के लाखों बाशिंदे कारों के प्रति अपनी दीवानगी दिखाने 45 किलोमीटर दूर ग्रेटर नोएडा पहुंच गए। क्या जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, जहरीली हवा से हताश शहर के लिए यह एक स्वाभाविक या अनिवार्य व्यावसायिक गतिविधि या फिर मनोरंजन स्थल था? क्या हमारे यहां इस तरह की कार की नुमाइश या प्रोत्साहन जरूरी है?
‘कार के मालिक हर साल अपने जीवन के 1600 घंटे कार में बिताते हैं, चाहे कार चल रही हो या खड़ी हो। कभी गाड़ी की पार्किंग के लिए जगह तलाशनी होती है तो कभी पार्किंग से बाहर निकालने की मशक्कत, या फिर ट्रैफिक सिग्नल पर खड़ा होना पड़ता है। पहले व्यक्ति कार खरीदने के लिए पैसे खर्च करता है, फिर उसकी किश्तें भरता है। उसके बाद अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा पेट्रोल, बीमा, टैक्स, पार्किंग, जुर्माने, टूटफूट पर खर्च करता रहता है। इनसान की प्रतिदिन जाग्रत अवस्था 16 घंटे में से चार घंटे सड़क पर कार में होती है। हर कार मालिक 1600 घंटे कार के भीतर बिताने के बाद भी सफर करता है मात्र 7500 मील, यानी एक घंटे में पांच मील।’ सियाम यानी सोसायटी आफ इंडियन आटोमोबाइल मेन्यूफेक्चरर्स के हालिया आंकड़े के अनुसार पिछले साल की तुलना में इस साल नवंबर में 10.39 फीसदी कारें ज्यादा बिकीं। दूसरी ओर दिल्ली के माहौल को दमघोटू बनाने का पूरा आरोप कारों पर आ रहा है।
सुदूर कस्बे भी कारों की दीवानगी के शिकार हैं जहां देश का बड़ा हिस्सा खाने-पीने की चीजों की बेतहाशा महंगाई से हलकान है वहीं सियाम के मुताबिक आने वाले तीन-चार सालों में भारत में कार के क्षेत्र में कोई 25 हजार करोड़ का विदेशी निवेश होगा। हमारे देश की विदेशी मुद्रा के भंडार का बड़ा हिस्सा पेट्रो पदार्थ खरीदने में व्यय हो रहा है। भले ही कार कंपनियां आंकड़ें दें कि चीन या अन्य देशों की तुलना में भारत में प्रति व्यक्ति कार की संख्या बहुत कम है, लेकिन आए दिन लगने वाले जाम के कारण उपज रही अराजकता इस बात की साक्षी है कि हमारी सड़कें फिलहाल और अधिक वाहनों का बोझ झेलने में सक्षम नहीं हैं। बीते साल भारत सरकार ने पेट्रोल-डीजल व अन्य ईंधन पर 1,03,000 करोड़ की सब्सिडी दी है। भारत जैसेे देश में ऊंची जीवनशैली पाने के लिए कीमत क्या चुकानी पड़ रही है। दिल्ली और उसके आसपास, जहां जमीन-जायदाद की कीमतें बुलंदी पर हैं, अपने पुश्तैनी खेत बेचकर मिले एकमुश्त धन से कई-कई कारें खरीदने और फिर उन कारों के संचालन में अपनी जमापूंजी लुटाकर कंगाल बनने के हजारों उदाहरण देखने को मिल जाएंगे।
दरअसल, कारों का संसार आबाद करने की बड़ी कीमत उन लोगों को भी उठानी पड़ती है, जिनका कार से कोई वास्ता नहीं है। दुर्घटनाएं, असामयिक मौत व विकलांगता, प्रदूषण, पार्किंग व ट्रैफिक जाम व इसमें बहुमूल्य जमीनों का दुरुपयोग; ऐसी कुछ विकराल समस्याएं हैं जो कि कार को आवश्यकता से परे विलासिता की श्रेणी में खड़ा कर रही हैं। देश का बेशकीमती विदेशी मुद्रा भंडार का बड़ा हिस्सा महज दिखावों के निहितार्थ दौड़ रही कारों पर खर्च करना पड़ रहा है।

दिल्ली में कारों से सफर करने वाले बामुश्किल 15 फीसदी लोग होंगे लेकिन ये सड़क का 80 फीसदी हिस्सा घेरते हैं। यहां रिहायशी इलाकों का लगभग आधा हिस्सा कारों के कारण बेकार हो गया है। कई सोसायटियों में कार पार्किंग की कमी पूरा करने के लिए ग्रीन बेल्ट को ही उजाड़ दिया गया है। घर के सामने कार खड़ी करने की जगह की कमी के कारण अब लोग दूर-दूर बस रहे हैं।
कारों की बढ़ती संख्या सड़कों की उम्र घटा रही है। मशीनीकृत वाहनों की आवाजाही अधिक होने पर सड़कों की टूटफूट व घिसावट बढ़ती है। वाहनों के धुएं से हवा जहरीली होने व ध्वनि प्रदूषण से लोगों की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। इसके बावजूद सरकार की नीतियां कार खरीदी को बढ़ावा देने वाली हैं। आज जेब में एक रुपया न होने पर भी कार खरीदने के लिए कर्ज देने वाली संस्थाएं व बैंक कुकुरमुत्तों की तरह गली-गली, कस्बे-कस्बे तक पहुंच गये हैं। विदेशी निवेश के लालच में हम कार बनाने वालों को आमंत्रित तो कर रहे हैं लेकिन बढ़ती कारों के खतरों को जानने के बावजूद उसका बाजार भी यहीं बढ़ा रहे हैं।

कार पुलिस के लिए कानून-व्यवस्था का नया संकट बनती जा रही है। कारों की चोरी, दुर्घटनाएं, कारों के टकराने से होने वाले झगड़े; पुलिस की बड़ी ऊर्जा इनमें खर्च हो रही है। एक घर में एक से अधिक कार रखने पर कड़े कानून, सड़क पर नियम तोड़ने पर सख्त सजा, कार खरीदने से पहले उसकी पार्किंग की समुचित व्यवस्था होने का भरोसा प्राप्त करने जैसे कदम कारों की भीड़ रोकने में सक्षम हो सकते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Have to get into the habit of holding water

  पानी को पकडने की आदत डालना होगी पंकज चतुर्वेदी इस बार भी अनुमान है कि मानसून की कृपा देश   पर बनी रहेगी , ऐसा बीते दो साल भी हुआ उसके ...