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बुधवार, 21 फ़रवरी 2018

सभी के लिए चेतावनी है केपटाउन

केपटाउन में पानी की भयंकर किल्लत पूरी दुनिया के लिए खतरे का संकेत है। यदि इससे सही सबक नहीं लिया गया तो आने वाले वक्त में हालात बद से बदतर हो सकते हैं

Dainik Jagran 22 feb 2018

दुनिया के खूबसूरत शहरों में से एक के तौर पर मशहूर दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर का वर्तमान जल संकट भारत के महानगरों के लिए बड़ी चेतावनी है। पिछले दिनों भारत की क्रिकेट टीम जब वहां मैच खेलने गई तो उन्हें होटल के कमरे में शॉवर से स्नान के लिए केवल दो मिनट दिए गए। जनता को पहले ही बता दिया गया है कि अप्रैल महीने के बाद ‘जीरो डे’ के लिए तैयार रहें। जीरो डे यानी सभी घरों में पानी की सप्लाई बंद। शहर में कोई 200 सार्वजनिक स्थल बनेंगे जहां से लोग अपनी जरूरत का पानी ले सकेंगे। हालांकि इस समय भी उस शहर में ‘जल-आपातकाल’ लागू है। अधिकांश रिहाइशी इलाकों में पुलिस व सेना की निगरानी में पानी बांटा जा रहा है। हाथ धोने के लिए केवल सेनेटाइजर का इस्तेमाल हो रहा है। कार धोने और ऐसे ही कई कार्यो पर पाबंदी है। लोगों को हफ्ते में दो दिन से ज्यादा नहाने से रोका गया है। इसका उल्लंघन करने पर भारी जुर्माने और जेल का प्रावधान है।1केपटाउन शहर की आबादी कोई 43 लाख है और हर दिन एक लाख से ज्यादा पर्यटक वहां होते हैं। समुद्र तट पर बसे उस शहर के बाग-बगीचे, हरियाली सबकुछ इन दिनों संकट में हैं। यह सही है कि जलवायु परिवर्तन का कुप्रभाव इस इलाके में सबसे ज्यादा देखने को मिल रहा है। अभी दो दशक पहले तक यहां सालाना बरसात औसतन 600 मिलीमीटर होती थी, जो कि देखते-देखते 425 मिलीमीटर पर आ गई। पिछले तीन साल से वहां सिर्फ 153, 221 और 327 मिलीमीटर ही बारिश हुई है। यही नहीं एक तो बरसात देर से हो रही है, दूसरा बरसात के दिन भी घट गए हैं। इससे जल-संरक्षण उपाय बेकार हो गए हैं। शहर को 41 फीसद पानी सप्लाई करने वाले दी वाटर स्कल्फ में मात्र 15.7 प्रतिशत जल बचा है। हालांकि इस भीषण संकट के लिए केपटाउन के बाशिंदे भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। जहां दुनिया में प्रति व्यक्ति औसत जल खपत प्रति दिन 173 लीटर है वहीं केपटाउन में यह आंकड़ा 235 लीटर का है। दूसरा वहां सीवर से निकले महज 60 फीसद पानी का ही परिशोधन होता है। सबसे बड़ा संकट वहां की जल सप्लाई करने वाली पाइपलाइन का है। खुद स्थानीय प्रशासन मानता है कि कोई 30 प्रतिशत पानी या तो लीकेज में बह जाता है या फिर लोग चोरी कर लेते हैं। सबसे बड़ी बात 1995 में 24 लाख आबादी वाला शहर अब 43 लाख के पार पहुंच रहा है, लेकिन इस अवधि में पानी को सहेजकर रखने की क्षमता में मात्र 15 फीसद की ही बढ़ोतरी हुई है। यही नहीं मौजूदा बांधों और जलाशयों में कई-कई मीटर गाद भर गई है, सो बरसात होने पर जो जलनिधियां लबालब भरी दिखती थीं, वे तनिक गरमी में ही सूखने लगती हैं। जल संकट के चलते सरकार ने वहां हर रोज पानी के निजी इस्तेमाल की प्रति व्यक्ति सीमा 87 से 50 लीटर कर दी है। अभी तो अस्पताल, सरकारी कार्यालयों और मंत्री-अफसरों के आवासीय इलाकों में कटौती नहीं हुई है, पर जल्द ही सारे शहर में यह हालात बन सकते हैं।1संयुक्त राष्ट्र ने आने वाले दिनों में दुनिया के जिन 11 शहरों में पानी के हालात केपटाउन जैसे होने की चेतावनी दी है, उसमें भारत का साइबर हब बेंगलुरु भी शामिल है, लेकिन दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, इंदौर, जयपुर और पटना के हालात भी इससे अलग नहीं हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली के कुछ इलाके इस बात पर गर्व करते नहीं अघाते हैं कि उनके घर पर ‘गंगा वाटर’ आता है। वह गंगा जल, जिसकी एक छोटी शीशी पूजा के करीब रखने में करोड़ों लोगों को पवित्रता का अहसास होता है। तनिक गौर करें, पवित्र मानकर आचमन करने वाले गंगाजल का हमारे घरों में शौच से लेकर कार साफ करने तक में इस्तेमाल होता है। भले ही कम बरसात होने पर सूखा, पलायन जैसे मसलों पर हमारे यहां सालों-साल सियासत होती रही है, लेकिन कभी कोई सवाल नहीं उठाता कि हम पेयजल का इस्तेमाल शौच या खेत में और गंदे पानी का इस्तेमाल नदी-तालाब आदि को दूषित करने में कर रहे हैं। और यही जल संकट का बड़ा कारण है। अभी जाड़े के दिन चल रहे हैं और बस्तर, बुंदेलखंड, तेलंगाना, मराठवाड़ा आदि अंचलों में पानी की कमी की खबरें आने लगी हैं। गांव के पटवारी, सरपंच और सयाने लोग उपलब्ध जल, आने वाले दिनों की मांग, भयंकर गरमी का सटीक आकलन रखते हैं, लेकिन सरकारी अमला इंतजार करता है कि जब प्यास व पलायन से हालात भयावह हों, तब कागजी घोड़े दौड़ाए जाएं। हमने अपने पारंपरिक जल संसाधनों की जो दुर्गति की है, जिस तरह नदियों के साथ खिलवाड़ किया है, खेतों में रासायनिक खाद व दवा के प्रयोग से सिंचाई की जरूरत में इजाफा किया है, इसके साथ ही धरती का बढ़ता तापमान, भौतिक सुखों के लिए पानी की बढ़ती मांग सहित और भी कई कारक हैं जिनसे पानी की कमी तो होनी ही है। ऐसे में पूरे साल पूरे देश में कम पानी से बेहतर जीवन और जल-प्रबंधन, ग्रामीण अंचल में पलायन थामने और वैकल्पिक रोजगार मुहैया करवाने की योजनाएं बनाना अनिवार्य हो गया है।1इन सभी शहरों में केपटाउन की ही तरह बढ़ती आबादी, अनियोजित शहरीकरण, पारंपरिक जल-स्रोतों की दुर्गति, पानी का अंधाधुंध इस्तेमाल, खराब पानी का ठीक से पुनर्चक्रण नहीं करना, जल का असमान वितरण आदि विसंगतियां मौजूद हैं। असल में केपटाउन के हालात भारत के लिए तो भयंकर चेतावनी हैं, क्योंकि हम भी जलवायु परिवर्तन की मार के चलते बरसात ही नहीं मौसम के अस्वाभाविक बदलाव को ङोल रहे हैं। साथ ही विकास के नाम पर प्रकृति के साथ छेड़छाड़, बेशुमार कार्बन उत्सर्जन को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। यदि केपटाउन जैसा संकट हमारे यहां भी खड़ा हुआ तो लोगों को अपने गांव की ओर पलायन का भी रास्ता नहीं मिलेगा, क्योंकि हमारा समाज गांवों को पहले ही ‘उपेक्षितों, बुजुर्गो और मजबूरों’ के निवास स्थान के रूप में बदल चुका है। आज जरूरत है कि गांवों और कस्बों को शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य के रूप में इतना सक्षम बनाया जाए कि लोगों का महानगर की ओर पलायन कम हो।1(लेखक पर्यावरण मामलों के जानकार हैं)

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