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शुक्रवार, 13 अप्रैल 2018

house should be for residence not for investment

मकान को घर रहने दो, निवेश नहीं 

पंकज चतुर्वेदी

एक तरफ सरकार हर सिर पर छत के संकल्प को पूरा करने में लगी है, वहीं सरकार की ही एक रिपोर्ट कहती है कि इस समय देश के श हरी इलाकों के 12 प्रतिशत मकान खाली पड़े हैं। सन 2001 में यह आंकड़ा 65 लाख था और आज यह बढ़ कर एक करोड़ 11 लाख हो गया है। इनमें गांवों से रोजगार या अन्य कारणों से खाली -वीरान पड़े मकानों की संख्या जुड़ी नहीं है। यह किसी से नहीं छिपा है कि जब से गावंो में खेती लाभ का धंध नहीं रही, तबसे गांवों में केवल मजबूर, बुजुर्ग लोग ही रह रहे है।। किसी भी आंचलिक गांव में जा कर देखें तो पाएंगे कि विभिन्न कारणो ंसे पलायन  के चलते 40 प्रतिशत तक मकान खाली पड़े हैं। लेकिन षहरों में मकान खाली रहने के पीछे कोई मजबूरी नहीं, उससे ज्यादा मुनाफा कमाने की अभिलाषाएं  ज्यादा है।  महाराष्ट्र  में कोई 20 लाख मकान खाली पड़े हैं जिनमें से अकेले मुंबई में चार लाख हैं।  दिल्ली में तीन लाख मकानों में कोई नहीं रहता तो गुड़गांव जिसे प्रापर्टी का हॉट बाजार कहा जाता है- 26 प्रतिशत मकान वीरान हैं। 


 हालांकि मकान आदमी की मूलभूत जरूरत माना जाता है, लेकिन बाजार में आएं तो पाएंगे कि मकान महज व्यापार बना गया है । एक तरफ षहर में हजारों परिवार सिर पर छत के लिए व्याकुल हैं, दूसरी ओर सरकारी आंकड़े बताते हैं कि महानगर दिल्ली में साढ़े तीन लाख से अधिक मकान खाली पडे हैं । यदि करीबी उपनगरों नोएडा, गुडगांव, गाजियाबाद, फरीदाबाद को भी षामिल कर लिया जाए तो ऐसे मकानों की संख्या छह लाख से अधिक होगी, जिसके मालिक अन्यंत्र बेहतरीन मकान में रहते हैं और यह बंद पड़ा मकान उनके लिए शेयर 
बाजार में निवेश की तरह है । आखिर हो भी क्यों नहीं, बैंकों ने मकान कर्ज के लिए दरवाजे खोल रखे हैं , लोग कर्जा ले कर मकान खरीदते हैं , फिर कुछ महीनों बाद जब मकान के दाम देा गुना होते हैं तो उसे बेच कर नई प्रापर्टी खरीदने को घूमने लगते हैं । तुरत-फुरत आ रहे इस पैसे ने बाजार में दैनिक उपभोग की वस्तुओं के रेट भी बढ़ाए हैं, जिसका खामियाजा भी वे ही भोग रहे हैं, जिनके लिए सिर पर छत एक सपना बन गया है । 

दिल्ली से कोई 20 किलोमीटर दूर स्थित नोएडा एक्सटेंशन अभी तीन साल पहले तक वीरान था । यहां से नोएडा का बाजार आठ किमी व ग्रेटर नोएडा 12 किमी है । आज यहां दो बेड रूम का फ्लेट कम से कम 35 लाख का मिल रहा है । इलाके में कोई 20 हजार फ्लेट बन रहे हैं,। जो बन गए है, वे बिक गए हैं और अधिकांश खाली पड़े है। । ताजा जनगणना के मुताबिक देश में कोई साढ़े पांच लाख लोग बेघर थे, जबकि खाली पड़े मकानों की संख्या एक करोड़ 11 लाख थी । 


आज दिल्ली से प्रकाशित अंग्रेजी के अखबारों में कई-कई पन्नों में ऐसे विज्ञापन छप रहे हैं, जो लोगों को कुछ ही साल में पैसे को दुगना-तिगुना करने का भरोसा दे कर पैसा निवेश करने के लिए आमंत्रित करते हैं । यानी मकान रहने के लिए नहीं सुरक्षित निवेश का जरिया बन गया हैं । और इस तरह मकान के जरूरत के बनिस्पत बाजार बनने का सबसे बड़ा खामियाजा समाज का वह तबका उठा रहा है, जिसे मकान की वास्तव में जरूरत है । 

यदि केंद्र सरकार की नौकरी को आम आदमी का आर्थिक स्थिति का आधार माने तो दिल्ली या उसके आसपास के उपनगरों में  आम आदमी का मकान लेना एक सपने के मानिंद है । क्रेद सरकार के समूह ए वर्ग के कर्मचार को मिलने वाले वेतन और व्यय के गणित के बाद उसे बैक् से इतना कर्जा भी नहीं मिलता कि वह दो बेडरूम का फ्लेट खरीद सके। सनद रहे यदि वह अपने दफ्तर से मकान के लिए कर्ज लेना चाहे तो उसे उसके मूल वेतन के पचास गुणे के बराबर पैसा मिल सकता है । अन्य बैंक या वित्तीय संस्थाएं भी उसकी ग्रॉस सैलेरी का सौ गुणा देते हैं । दोनों स्थितियों में उसे मकान के लिए मिलने वाली रकम 30 से 40 लाख होती है । इतनी कीमत में दिल्ली के डीडीए या अन्य करीबी राज्यों के सरकारी निर्माण का एक बेडरूम का फ्लेट भी नहीं मिलेगा । गाजियाबाद के इंदिरापुरम में दो बेडरूम फ्लेट 50 लाख से कम नहीं है । गुडगांव और नोएडा के रेट तो इससे दुगने नहीं है । यदि कोई 20 लाख कर्ज लेता है और उसे दस या पंद्रह साल में चुकाने की योजना बनाता है तो उसे हर महीने न्यूनतम 23 हजार रूपए बतौर ईएमआई चुकाने होंगे । यह आंकड़े गवाह हैं कि इतना पैसे का मकान खरीदना आम आदमी के बस के बाहर है । मकान के कर्ज का दर्द भी अजीब है,  जितना कर्ज लिया जाता है लगभग उससे दुगना ही किश्तों में चुकाना होता है। जाहिर है कि सरकार लेागों को मकान मुहैया करवाने से कहींे ज्यादा बैंव व अन्य वित्तीय संस्थाओं, निर्माण सामग्री के उत्पादकों और बिल्डरांे के हित साधने के लिए ‘हर एक को मकान’ का नारा देती हे। 

इसके बावजूद दिल्ली के द्वारिका, ग्रेटर नोएडा, इंदिरापुरम से ले कर लखनऊ, जयपुर या भोपाल या पटना में आए रोज नए-नए प्रोजेक्ट लांच हो रहे हैं और धड़ल्ले से बिक रहे हैं । सोनीपत और भिवाड़ी तक, आगरा और अजमेर तक भी यह आग फैल चुकी है ।  बस्ती बसने से पहले ही मकान की कीमत दो-तीन गुना बढ़ जाती है।  यह खेल खुले आम हो रहा है और सरकार मुग्ध भाव से आदमी की जरूरत को बाजार बनते देख रही है । 

इन दिनों विकसित हो रही कालोनियां किस तरह पूंजीवादी मानसिकता की शिकार है कि इनमें गरीबों के लिए कोई स्थान नहीं रखे गए हैं । हर नवधनाढ्य को अपने घर का काम करने के लिए नौकर चाहिए, लेकिन इन कालोनियों में उनके रहने की कहीं व्यवस्था नहीं है । इसी तरह बिजली, नल जैसे मरम्मत वाले काम ,दैनिक उपयोग की छोटी दुकानें वहां रहने वालों की आवश्यकता तो हैं , लेकिन उन्हें पास बसाने का ध्यान नियोजक ने कतई नहीं रखा । दिल्ली षहर के बीच से झुग्गियां उजाड़ी जा रही है और उन्हें बवाना, नरेला, बकरवाल जैसे सुदूर ग्रामीण अंचलों में भेजा जा रहा है । सरकार यह भी प्रचार कर रही है कि झुग्गी वालों के लिए जल्दी ही बहुमंजिला फ्लेट बना दिए जाएंगे ।  लेकिन यह तो सोच नहीें  कि उन्हें घर के पास ही रोजगार कहां से मिलेगा । 

एक तरफ मकान आम नौकरीपेशा वर्ग के बूते के बाहर की बात है, वहीं जिन्हें वास्तव में मकान की जरूरत है वे अवैध कालोनियों, संकरे इलाकों में बने बहुमंजिली इमारतों और स्लम बनते गांवों में रह रहे हैं। इसके ठीक सामने वैध कालोनी-अपार्टमेंटस निवेश बन कर खाली पड़े हैं। 

एक तरफ मकान बाजार में महंगाई बढ़ाने का पूंजीवादी खेल बन रहे हैं तो दूसरी ओर सिर पर छत के लिए तड़पते लाखों-लाख लोग हैं । कहीं पर दो-तीन एकड़ कोठियों में पसरे लोकतंत्र के नवाब हैं तो पास में ही कीड़ों की तरह बिलबिलाती झोपड़-झुग्गियों में लाखों लोग । जिस तरह हर पेट की भूख रोटी की होती है, उसी तरह एक स्वस्थ्य- सौम्य समाज के लिए एक स्वच्छ, सुरक्षित आवास आवश्यक है । फिर जब मकान रहने के लिए न हो कर बाजार बनाने के लिए हो ! इससे बेहतर होगा कि मकानों का राश्ट्रीयकरण कर व्यक्ति की हैसियत, जरूरत, कार्य-स्थल से दूरी आदि को मानदंड बना कर उन्हें जरूरतमंदों को वितरित कर दिया जाए । साथ में षर्त हो कि जिस दिन उनकी जरूरत दिल्ली में समाप्त हो जाएगी, वे इसे खाली कर अपने पुश्तैनी बिरवों में लौट जाएंगे । इससे हर जरूरतमंद के सिर पर छत तो होगी ही, काले धन को प्रापर्टी में निवेश करने के रोग से भी मुक्ति मिलेगी। 


पंकज चतुर्वेदी

वसंत कुंज नई दिल्ली-110070

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