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सोमवार, 15 जुलाई 2019

Misuse of ground water is harmful

भूजल के दोहन से मंडराता खतरा



जमीन की गहराइयों में पानी का अकूत भंडार है। यह पानी का सर्वसुलभ और स्वच्छ जरिया है, लेकिन यदि एक बार यह दूषित हो जाए तो इसका परिष्करण लगभग असंभव होता है। भारत में आबादी बढ़ने के साथ-साथ घरेलू इस्तेमाल, खेती और औद्योगिक उपयोग के लिए भूगर्भ जल पर निर्भरता साल-दर-साल बढ़ती जा रही है। पाताल से पानी निचोड़ने की प्रक्रिया में सामाजिक और सरकारी कोताही के चलते भूजल खतरनाक स्तर तक नीचे तो जा ही रहा है, जहरीला भी होता जा रहा है।
भारत में दुनिया की सर्वाधिक खेती होती है। यहां पांच करोड़ हेक्टेयर से अधिक जमीन पर जोताई होती है, इस पर 460 बीसीएम (बिलियन क्यूसेक मीटर) पानी खर्च होता है। खेतों की जरूरत का 41 फीसद पानी सतही स्रोतों से और 51 प्रतिशत भूगर्भ से मिलता है। विगत पांच दशकों के दौरान भूजल के इस्तेमाल में 115 गुना का इजाफा हुआ है। देश की राजधानी दिल्ली इसकी बानगी है कि हम भूगर्भ से जल उलीचने के मामले में कितने लापरवाह हैं। राजधानी के भूगर्भ में 13,491 मिलियन क्यूसेक मीटर (एमसीएम) पानी मौजूद है। इसमें से 10,284 एमसीएम पानी लवण और रसायन युक्त है। सिर्फ 3,207 एमसीएम पानी ही साफ है। दिल्ली में हर साल 392 एमसीएम भूजल का दोहन होता है। जबकि 287 एमसीएम पानी ही रिचार्ज किया जाता है। इस तरह भूजल के स्टॉक से हर साल 105 एमसीएम पानी अधिक दोहन हो रहा है।
दिल्ली के निकट बसे गुरुग्राम को भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए पसंदीदा जगह माना जाता है। यहां की आबादी करीब 25 लाख है। वर्ष 2018 में यहां पानी की अधिकतम मांग रोजाना 410 एमजीडी थी। अनुमान है कि वर्ष 2021 तक यहां की आबादी 35 लाख हो जाएगी जिनके लिए पानी की मांग 600 एमजीडी होगी। आज गुरुग्राम की पानी की मांग का आधा हिस्सा भूजल से ही पूरा होता है। यमुना नदी से नहरों से लाए गए पानी के माध्यम से बसई जलशोधन संयंत्र से 270 एमजीडी और एक अन्य संयंत्र से 140 एमजीडी पानी आता है। शेष 90 एमजीडी पानी की आपूर्ति पर माफियाओं का कब्जा है जो जमीन के भीतर से पानी निकाल कर टैंकरों के माध्यम से बेचकर व्यापक पैमाने पर कमाई करते हैं।
गुरुग्राम में भूजल के हालात गंभीर हैं। यहां जल स्तर हर साल डेढ़ से दो मीटर नीचे गिर रहा है। यहां का पानी इस स्तर पर रसायनयुक्त हो चुका है कि साधारण फिल्टर से इसके कुप्रभावों को दूर किया ही नहीं जा सकता। दिल्ली से ही सटे उत्तर प्रदेश के बागपत जिले को भूजल के मामले में डार्क जोन घोषित कर दिया गया है। यहां गन्ने की खेती व्यापक पैमाने पर होती है और उसमें भूजल का इस्तेमाल होता है।
हरियाणा से सीखने की जरूरत
हरियाणा सरकार ने इस मामले में इस वर्ष एक क्रांतिकारी निर्णय लिया है। हरियाणा में धान की खेती छोड़ने वाले किसान को सरकार कई सुविधाआंे के साथ पांच हजार रुपये प्रति एकड़ का अनुदान भी दे रही है। दरअसल राज्य सरकार यह समझ गई है कि धान की खेती के लिए किसान जमीन को बहुत गहरा छेद कर सारा पानी निकाल चुके हैं। धान की जगह मोटा अनाज उगाने से कम पानी लगेगा और भूजल भी बचेगा। वैसे पंजाब सरकार ने भी धान की बोआई का समय घटाया है। लेकिन इसका असर भूजल दोहन पर विपरीत होने की आशंका है, क्योंकि किसान कम समय में बोआई के चलते बरसात का इंतजार करने के बनिस्पत बोरवेल चलाएगा।
दुरुपयोग होने से बचाव
भूजल कभी भी पेयजल के लिए नहीं होता। इसके बावजूद भारत की बड़ी आबादी खेती के अलावा पीने के पानी हेतु इस पर निर्भर है। भारत में भूजल की अपेक्षा सतही जल की उपलब्धता अधिक है। हमारे यहां हजारों नदियां, तालाब, जोहड़ आदि हैं। समाज ने उनकी दुर्गति कर दी और आसानी से उपलब्ध भूजल पर हमला कर दिया। भारत की कृषि और पेय जलापूर्ति में उसकी हिस्सेदारी बहुत बड़ी है। हर साल निकाले जाने वाले भूजल का 89 प्रतिशत हिस्सा सिंचाई क्षेत्र में प्रयोग किया जाता है। नौ फीसद पीने व घरेलू निस्तार में और कारखानों में दो फीसद पानी का इस्तेमाल होता है। शहरों में जल की 50 प्रतिशत और गांवों में जल की 85 प्रतिशत घरेलू आवश्यकता भूजल से पूरी होती है।
पानी निचोड़ने से बेहाल धरती
हाल ही में लोकसभा से साझा किए गए केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार देश के 16 फीसद तालुका, मंडल, ब्लॉक स्तरीय इकाइयों में भूजल का अत्यधिक दोहन हुआ है। जबकि देश के चार फीसद इलाकों में भूजल स्तर इतना गिर चुका है कि इसे ‘विकट स्थिति’ या डार्क जोन बताया जा रहा है। हद से ज्यादा भूजल का दोहन करने वाले राज्य हैं- पंजाब (76 फीसद), राजस्थान (66 फीसद), दिल्ली (56 फीसद) और हरियाणा (54 फीसद)। इस संस्थान ने 6,584 ब्लॉक, मंडलों, तहसीलों के भूजल स्तर का मुआयना किया है। इनमें से केवल 4,520 इकाइयां ही सुरक्षित हैं, जबकि 1,034 इकाइयों को अत्यधिक दोहन की जाने वाली श्रेणी में डाला गया है। इसमें 681 ब्लॉक, मंडल के भूजल स्तर में (जो कुल संख्या का 10 फीसद है) अर्ध विकट श्रेणी में रखा गया है, जबकि 253 को विकट श्रेणी में रखा गया है। ये आंकड़े 2013 के मूल्यांकन के आधार पर हैं जिसके अनुसार 6,584 ब्लॉक, तालुका, मंडलों, जल क्षेत्रों में 17 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों की 1,034 इकाइयों का अत्यधिक दोहन किया गया है। इससे भूजल स्तर नीचे चला गया है। अत्यधिक दोहन वाले वह स्थान कहे जाते हैं जहां लंबी अवधि में जलस्तर में कमी देखी गई हो।
और भी खतरे हैं इसके
देश के कई हिस्सों में जमीन फटने की घटनाएं आमतौर पर सामने आती रहती हैं। बुहत सी जगह कुओं के पानी का स्तर अचानक नीचे गिर जाने या तालाब का पानी गायब होने की बातें सुनने में आती हैं। असल में यह सब अनियोजित और अनियंत्रित भूजल दोहन का दुष्प्रभाव ही है। भूजल दोहन का सबसे बड़ा खतरा भूकंप है। हम जानते हैं कि भारत दुनिया के सबसे जवान पहाड़ हिमालय की गोद में बसा है। हिमालय लगातार बढ़ रहा है और इसके कारण हमारे भूगर्भ में सतत टकराव व गतिविधियां चलती रहती हैं। किसी स्थान से अचानक पानी निकालने या चट्टानों को मशीनों से तोड़ कर पाताल से पानी निकालने वालों के लिए स्पेन से सबक लेना होगा। स्पेन के लरका शहर में 2011 में आए एक भूकंप के कारणों ने हमारी पेशानी में बल दिए हैं। स्पेन के इस शहर में आया विनाशकारी भूकंप चंद सेकेंड में पूरे शहर को लील गया था। वैज्ञानिक जांच से पता चला था कि यहां भूकंप का कारण अत्यधिक जलदोहन था। यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑनटेरियो के प्रोफेसर पैब्लो गॉनजालेज और उनके सहयोगियों ने सेटेलाइट राडार के जरिये भेजे गए आंकड़ों के अध्ययन के बाद पाया कि स्पेन के शहर लरका में आए भूकंप में भूमि सतह के केवल तीन किलोमीटर नीचे जमीन का एक हिस्सा अपनी जगह से फिसला था। वैज्ञानिकों के अध्ययन से पता चला है कि किस तरह बोरिंग के जरिये वर्षो तक जमीन से पानी निकालने से भूकंप आने का खतरा बढ़ सकता है।
बरसात होने पर जो पानी चट्टानों और मिट्टी से रिस कर भूमि के नीचे जमा हो जाता है, वही भूजल या भूमिगत जल है। जिन चट्टानों की शरण में भूजल जमा होता है, उन्हें जलभृत (एक्विफर) कहा जाता है। सामान्य तौर पर, जलभृत बजरी, रेत, बलुआ पत्थर या चूना पत्थर से बने होते हैं। इन चट्टानों से पानी नीचे बह जाता है, क्योंकि इनके बीच में ऐसी बड़ी और परस्पर जुड़ी हुई जगहें होती हैं, जो चट्टानों को पारगम्य (प्रवेश के योग्य) बना देती हैं। जलभृतों में जिन जगहों पर पानी भरता है, वे संतृप्त जोन (सैचुरेटेड जोन) कहलाते हैं। सतह में जिस गहराई पर पानी मिलता है, वह जल स्तर कहलाता है। जल स्तर जमीन से नीचे एक फुट तक उथला भी हो सकता है और वह कई मीटर गहराई तक भी हो सकता है। भारी वर्षा से जल स्तर बढ़ सकता है और लगातार दोहन करने से इसका स्तर गिर भी सकता है। भारतीय प्रायद्वीप में कठोर चट्टान वाले जलभृत ज्यादा हैं, लगभग 65 फीसद। इनमें से अधिकांश मध्य भारत में ही हैं। यहां जमीन की कुछ गहराई के बाद कठोर चट्टानों का राज है। इन चट्टानों से सतह पर ऐसी जटिल और निम्न संग्रहण वाली जलभृत व्यवस्था तैयार होती है कि अगर एक बार जल स्तर में दो-छह मीटर से अधिक की गिरावट हो जाती है तो फिर जल स्तर तेजी से गिरने लगता है। इन जलभृत की भेद्यता बहुत कम है जिस कारण बारिश होने पर भी वे दोबारा जल्दी नहीं भरते। इसका अर्थ यह है कि इन जलभृतों का पानी दोबारा भरने योग्य नहीं है और निरंतर प्रयोग किए जाने के कारण सूख सकता है। सिंधु-गंगा के मैदानों में कछारी जलभृत में पानी के संग्रहण की अद्भुत क्षमता है। इसलिए इन्हें जलापूर्ति का बहुमूल्य स्नोत माना जाता है। फिर भी भूजल को बड़े पैमाने पर उलीचा जा रहा है, जबकि इन स्नोतों के दोबारा भरने की दर निम्न है।
देश के 360 जिलों को भूजल स्तर में गिरावट के लिए खतरनाक स्तर पर चिन्हित किया गया है। भूजल रिचार्ज के लिए तो कई प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन खेती, औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के कारण जहर होते भूजल को लेकर लगभग निष्क्रियता का माहौल है। बारिश, झील व तालाब, नदियों और भूजल के बीच यांत्रिकी अंर्तसबंध है। जंगल और वृक्ष वाटर रिचार्ज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी प्रक्रिया में कई जहरीले रसायन जमीन के भीतर रिस जाते हैं। दूषित पानी पीने के कारण कई इलाकों में त्वचा रोग, पेट खराब होना आदि महामारी का रूप ले चुका है।
भारत में खेती, पेयजल व अन्य कार्यो के लिए अत्यधिक जल दोहन से धरती का भूजल भंडार अब दम तोड़ रहा है। राष्ट्रीय स्तर पर 5,723 ब्लॉकों में से 1,820 ब्लॉक में जल स्तर खतरनाक हद पार कर चुका है। जल संरक्षण न होने और लगातार दोहन के चलते 200 से अधिक ब्लॉक ऐसे भी हैं, जिनके बारे में केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने संबंधित राज्य सरकारों को जल दोहन पर पाबंदी लगाने का सुझाव दिया है। लेकिन कई राज्यों में इस दिशा में कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया जा सका है। उत्तरी राज्यों में हरियाणा के 65 फीसद और उत्तर प्रदेश के 30 फीसद ब्लॉकों में भूजल का स्तर चिंताजनक हो चुका है। इन राज्यों को जल संसाधन मंत्रलय ने अंधाधुंध दोहन रोकने के कई उपाय भी सुझाए हैं। इनमें सामुदायिक भूजल प्रबंधन पर ज्यादा जोर दिया गया है। राजस्थान जैसे राज्य में 94 प्रतिशत पेयजल योजनाएं भूजल पर निर्भर हैं। और अब राज्य के 30 जिलों में जल स्तर का सब्र समाप्त हो गया है। भूजल विशेषज्ञों के मुताबिक आने वाले दो सालों में राजस्थान के 140 ब्लॉकों में शायद ही जमीन से पानी उलीचा जा सकेगा। ऐसे में यह समस्या और गहरा सकती है।

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