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शनिवार, 26 अक्तूबर 2019

Story for children on Diwali


हर घर हो दीवाली

पंकज चतुर्वेदी


मां का सुबह से फोन आ गया , ‘‘देखो बेटा, आज धन तेरस है, आज भी शाम  को रोशनी कर लेना। और देखो मिट्टी के दीये जरूर जलाना।’’ अचानक लाईन कट गई।
बड़ी दीदी के बेटा हुआ है। दशहरे के अगले दिन खबर आई और मां को अचानक ही अमेरिका जाना पड़ा। घर पर पीछे रह गए थे कन्हैया , दुलारी और उनके पापा।  अब पापा को तो अपने कामकाज से फुरसत नहीं मिल पाती। दीवाली के पहले तो जैसे सारी दुनिया का काम उनके सिर हो ! देर रात आते-- अल्ल सुबह हाथ में सेंडविच चबाते हुए कार की ओर भागते।
रास्ते से सेलफोन पर बात करते, ‘‘दुलारी, देखो घर पर वह सभी कुछ करना जो तुम्हारी मां करती रही हैं। साफ-सफाई, परदे बदल लेना..... और हां, काम वाली, चौकीदार, ड्रायवर के लिए कपड़े वगैरह खरीद लेना...... अच्छा फिर बात करता हूं... लाईन पर और कोई है--’’
इधर मां से आधी-अधूरी बात हुई और दुलारी के मन में सवाल घर कर गया, ‘‘ये मां मिट्टी के दीये के लिए क्यों कह रही थीं?’’
‘‘अरे छोड़ यार, हम ऐसी रोशनी करेंगे कि मां भी देखती रह जाएंगी, कंप्यूटर पर लाईव दिखाएंगे। मां.... ये हमारे जमाने की दीवाली है, कहां लुप-लुप करते दीए...।’’ कन्हैया ने मां की बात को मजाक में उड़ा दिया।
पापा घर के बाहर भागते दिखे। फिर भाई-बहन भी तैयार होने चले गए। नाश्ता किया और दोनो बाजार निकल गए।
‘‘उफ्फ ! ये बाजार को क्या हो गया है? सड़क तो जैसे गायब ही हो गई?’’ फुटपाथ के नीचे तक लग गईं दुकानों और भारी भीड़ को देख कर दुलारी बोली।
यह बात फुटपाथ पर मिट्टी के खिलौने बेचने वाले ने सुन ली, ‘‘बेटा इस त्योहर से सबको उम्मीदें होती हैंं आपका घर रोशन होगा तो रोशनी हम तक भी पहुंचेगी।’’ भीड़ के शोर में भाई-बहनों के कान तक बात आई और चली गई। चमकीले बंदनवार खरीदे गए, मोमबत्ती के बने रंगबिरंगे दीये, रंग बदलने वाली बिजली के बल्बों की ढेर सारी लड़ियां,। खील-बतासे, चांदी  के लक्ष्मी-गणेश, कपड़े़़़़........। लो चार बज गए। भूखे-प्यासे भाई-बहन घर की ओर भागे। काम वाली आंटी ने कुछ तो बना कर रखा होगा!
लगता है आज सूरज पश्चिम में निकला था !! पापा घर पर बैठे हुए थे। दोनो के मुंह से निकल गया, ‘‘ये क्या? कमाल हो गया!!’’ पापा समझ गए थे कि बच्चे क्या कहना चाह रहे हैं । वे मंद-मंद मुस्कुराए और अपने हाथ का एक कागज का पैकेटे खालने लगे।
‘‘ क्या , क्या लाए हो पापा?’’ कन्हैया ने पूछा।
पापा केवल मुस्कुराए। पैेकेट खोला, उसके मुंह से जो झांक रहा था, उसे देख दोनो बच्चों के मुंह पर मुस्कान दौड़ गई.... जैसे  मखौल उड़ा रहे हों। पापा के चैहरे पर अभी भी अपने तरह की मुस्कान थी, बच्चों की बेरूखी से बेखबर। पापा के हाथ का पैकेट दुलारी ने लिया और रसोईघर की ऊपरी अलमारी पर खिसका दिया।
तभी दरवाजे पर घंटी बजी, बिजली वाला आया था। दोनो बच्चे उसके साथ लग गए और पूरे घर को लाल, पीली बत्तियों से सजा दिया। अंधेरा घिर आया था। बटन दबाया तो घर की खूबसूरती देख कर दोनों की थकान कहीं गायब हो गई। बाल्कनी की रैलिंग पर लगी लाईट लगता था कि कोई गिलहरी अपनी पूंछ में बहुरंगी बत्तियां लगा कर दौड़ रही हो। दरवाजे की लाईटें पलक झपकते रंग बदल रही थीं।
नए बरतन के साथ पूजा हुई और दुलारी ने चट से  मोम वाले दीये जला कर रख दिए। फिर कंप्यूटर खोला गया, कैमरे को सैट किया  गया। हालांकि वहां दिन का उजाला था लेकिन जैसे मां ंइंतजार ही कर रही थीं, घर की सजावट देख कर वह बहुत खुश हुईं।  बड़ी दीदी , अमन जीजाजी सभी भारत के इस रोशनी के त्योहार को देख कर अभिभूत थे। शायद मां की आंखें कंप्यूटर की छोटी सी स्क्रीन पर कुछ तलाश रही थीं। उन्होंने पूछ ही लिया, ‘‘दुलारी बेटा दीये नहीं दिख रहे हैं ?’’  सुनते ही कन्हैया ने सिर पर हाथ रख लिया, ‘‘हे भगवान, इतना सजाया और ये हैं कि अभी भी मिट्टी के आउट डेटेड दीये के पीछे पड़ी हैं।’’
‘‘ नहीं मां, वह देखो दरवाजे के पास, दीया रखा तो है !’’ दुलारी ने इशारा किया।
‘‘लेकिन वह तो मोम वाला लगता है ?’’ मां ने पूछा।
‘‘ मां... आप भी ! अरे दीया तेल से जले या मोम से ,उजाला तो हो रहा है ना!’’  दुलारी ने कहा। आगे की बात पापा ने संभाल ली। वे दोनों नवजात बच्चे, वहां के माहौल और घर-गृहस्थी की बातें करने लगे।
अगले दिन दीवाली की धूम थी। लोगों का घर पर आना-जाना। शाम को जैसे ही पूरा घर पूजा करने बैठा दरवाजे की बिजली-सीरिज में एक-दो रंग ने काम करना बंद कर दिया। सभी ने सोचा चलो ठीक हो जाएगा।  अभी गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियां उठाई ही थीं कि सारे घर की बत्ती गोल हो गई। यह क्या ? इनवर्टर भी काम नहीं कर रहा है।  पापा ने मीटर के पास फ्यूज को खटपट किया लेकिन अंधेरा दूर नहीं हुआ।
कन्हैया ने तत्काल मोबाईल से बिजली वाले को फोन लगा दिया। ये क्या ! उसने फोन उठाया नहीं। कन्हैया को गुस्सा आ रहा था। पापा बोले, ‘‘ इसमें गुस्सा करने की क्या बात है ? बिजली वाला भी तो त्योहार मना रहा होगा !’’
दुलारी ने झट से मोम के दीये उठाए और जगमग कर दिए। इस बीच पापा ने कालोनी के दूसरे बिजली वाले को फोन किया, उसने कहा कि आज बहुत सारे फोन आ रहे हैं आने में देर हो जाएगी लेकिन आएगा जरूर।
मोम के दीयों में पूजा हो गई।  लेकिन पचास दीयों का मोम घंटे भर में चुकने लगा। बच्चों को याद आया मां ने कहा था कि पूजा के बाद एक दीया सुबह तक जलना चाहिए। एक तरफ घर पर अंधेरा छाने की खतरा, दूसरी तरफ पूजा की परंपरा की चिंता। दोनो बच्चांे की यह हालत देख कर भी पापा मुस्कुरा रहे थे और इससे कन्हैया को खीज आ रहा थी। लेकिन दुलारी कुछ-कुछ समझ गई।
वह दौड कर रसोई में गई, दिन में पापा द्वारा लाए गए जिस पैकेट को ऊपर अल्मारी में रख दिया गया था, उसे निकाला गया। उसमें से निकले गेरू से पुते लाल दीये और बड़ा सा बंडल रूई का । एक बड़े भगोने में पानी भरा । दीयों को पानी में जैसे से डाला उनमें से बुलबुले उठे, जैसे कह रहे हों, ‘क्यों चिंता करते हो, अंधेरा दूर करने का हम हैं ना।’
बड़े से दीये में घी भरा गया रूई से बत्ती बनाई और  पूजा वाली जगह का अंधेरा दूर हो गया। दुलारी जब बड़े से थाल में दीये सजा रही थी, कन्हैया भी पहंुंच गया। ‘‘ये .. ये कहां से आए ?  हम तो लाए नहीं थे ?’’
दुलारी ने पापा की ओर पलकें उठा दीं। अब कन्हैया की आंखें झुकी हुई थीं। भाई-बहन ने रूई से जल्दी से लंबी वाली बत्तियां कातीं। कुछ मिनट में ही घर का हर कोना जगमग कर रहा था। जहां लगता तेल कम है, दोनो में से कोई आ कर दीये में तेल भर देता। चारों तरफ बिजली की चकाचौंध और उसके बीच हवा की लय के साथ नाचते दीयों की रोशनी।
पटाखे चलाना तोे तीन साल पहले ही छोड़ चुके हैं। सो बालकनी में खड़े हो कर दीयों की लो के साथ बातें करना बेहद सुहावना लगा रहा था। मां को कंप्यूटर पर यह दृश्य दिखाया , लेकिन यह नहीं बताया कि बिजली खराब है। वह बहुत खुश थीं कि उनकी गैरमौजूदगी में बच्चों ने परंपराओं का पालन भली प्रकार किया।
पापा ने बच्चों को खील-बतासे, मिठाई खाने को बुलाया। पापा बोले, ‘‘ दीवाली के मायने हैं अपने चारों ओर का अंधेरा मिटाना।  मिट्टी का काम करने वाले कुम्हार के घर पर, तेल निकालने वाले के मकान पर, कपास बोने वाले किसान के खेत पर, तभी दीये जल पाएंगे जब हम पारंपरिक रूप से दीयों से प्रकाश करेंगे।’’
‘‘ और पापा हम हर साल एक दिन एक घंटे रात में बिजली बंद कर उर्जा बचत और पृथ्वी बचाने का जो संकल्प लेते हैं वह क्यों नहीं दीवाली की रात को ही हो! हजारों दीये, उससे हजारों लोगों को रोजगार और साथ में लक्ष्मी-गणेश-सरस्वती का स्वागत भी। ’’
तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। बिजली ठीक करने वाला आ चुका था। कुछ मिनट में उसने लाईन ठीक भी कर दी। इनवर्टर का फ्यूज चला गया था। कन्हैया ने धीरे से बिजली के सभी बटन ऑफ कर दिए। उसे दीयों के साथ दीवाली मनाना रास आ गया था।





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