नागरिकता
पंजी, नागरिकता संशोधन और छुपा अजेंडा
पंकज
चतुर्वेदी
यह
कानून कहता कुछ है, इसको लाने के इरादे कुछ और हैं और इसके
परिणाम और कुछ होंगे। गौरतलब है कि सन २०१९
से दिसंबर २०१९ तक कूल ४३१ अफगान और २३०७ पाकिस्तानी शरणार्थियों को
भारत की नागरिकता दी गयी . बीते पांच
सालों में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बंगलादेश के
५६० मुसलमानों को भारत का बाशिंदा बना लिया गया, लेकिन इनमें वह तस्लीमा
नसरीन नहीं है जो असल में सांप्रदायिक नफरत के कारण बंगलादेश से
निर्वासित हैं . इसमें कोई शक नहीं कि पाकिस्तान के आंचलिक क्षेत्रों में हिंदुओं
की हालत ख़राब है और कुछ हज़ार वहां से प्रताड़ित हो कर आये और उन्हें भारत की
नागरिकता देना चाहिए। इसके लिए हमारे पास पहले से कानून थे। बीते साढ़े पांच साल
में सरकार ने ऐसी हज़ारों अर्जियों पर विचार क्यों नहीं किया?
यह अब किसी से छुपा नहीं हैं कि साढ़े छ सौ करोड खर्च के साठ कई साल , हज़ारों
कर्मचारियों की मेहनत के बाद असम में तैयार एन आर सी में महज साढ़े उन्नीस लाख लोग
ही संदिग्ध विदेशी पाए गए, उन्हें भी अभी प्राधिकरण में अपील का अवसर है , चूँकि
उन साढ़े उन्नीस लाख में से कोई ग्यारह लाख
गैर मुस्लिम है ,सो ऐसे लोगों को भारत में शामिल करने के लिए नागरिकता संशोधन बील
लाया गया, चूँकि असम में सन १९७९ से १९८४
तक के छात्र आंदोलन का मूल प्रयेक घुसपैठिये को बाहर करना था अतः वहाँ के लोग
सांप्रदायिक आधार पर अवैध प्रवासियों को भारत का नागरिक बनाए के समर्थन में नहीं
हैं .
एन
आर सी के असम के अनुभव सामने हैं जहां अपनी नागरिकता साबित करने के
लिए 1971 से पहले के ये काग़ज़ात बतौर सबूत जमा करने थे। ये सबूत थे: 1. 1971 की मतदाता सूची में खुद का या माँ-बाप के नाम या 2. 1951 में, यानि बँटवारे के बाद बने एन आर सी में माँ-बाप/
दादा दादी आदि का जारी किया कोड नम्बर. साथ
ही, नीचे दिए गए दस्तावेज़ों में से 1971 से पहले का एक या अधिक सबूत:1. नागरिकता सर्टिफिकेट 2.
ज़मीन का रिकॉर्ड 3. किराये पर दी प्रापर्टी
का रिकार्ड 4. रिफ्यूजी सर्टिफिकेट 5. तब
का पासपोर्ट 6. तब का बैंक डाक्यूमेंट 7. तब की LIC पॉलिसी 8. उस वक्त
का स्कूल सर्टिफिकेट 9. विवाहित महिलाओं के लिए सर्किल ऑफिसर
या ग्राम पंचायत सचिव का सर्टिफिकेट. असम में जो ये दस्तावेज पेश नहीं कर पाए उनकी
नागरिकता संदिग्ध हो गयी . सारे देश में यदि ऐसीही पणजी बनी तो कल्पना कर लें एक सौ तीस करोड लोग कैसे, कहाँ से दस्तावेज जमा
कर्नेगे- खासकर कम पढ़े लिखे या गरीब लोग . यही नहीं इतने दस्तावेज तैयार करने,
उनको जांचने, उनका रिकार्ड बनने में असम से बीस गुना व्यय होगा अर्था साढ़े छः सौ
करोड का बीस गुना हम सभी जानते है कि देश कि बड़ी आबादी तक आधार पंजीकरण भी अभी
आधा-अधूरा है जबकि इसे अब कोई बारह साल होने को आ गए .
नागरिकता खोने का अर्थ होता है बैंक सुविधा, जमीन जायदाद के अधिकार, सरकारी नौकरी, सरकारी योजनाओं का लाभ , मतदान का हक आदि से मुक्ति . सरकारी आंकड़े बानगी हैं कि गत छह सालों में सरकार 4000 विदेशी घुसपैठियों को भी देश से निकाल नहीं पाई। वहीं कई हज़ार करोड़ खर्च
कर डिटेंशन सेंटर बनाये जा रहे है। वहां ऐसे लोगों को रखा जाएगा जिनका कोई देश
नहीं होगा। अभी भी हज़ार लोग ऐसे सेंटर में नारकीय जीवन जी रहे हैं। एनआरसी में
स्थान न पाए लाखों लोगों को ऐसे डिटेंशन सेंटर में रखने का खर्चा , उसकी सुरक्षा
और प्रबंधन का भारी भरकम भार भी हम ही उठाएंगे। बंग्लादेश पहले ही कह चुका है कि उनके
कोई अवैध रहवासी हैं ही नहीं और यदि है तो हम उसे तत्काल ले लेंगे .
जब नागरिकता रजिस्टर और संशोधन
बिल को साथ देखें तो स्पष्ट हो जाता है कि
यह साम्प्रदयिक मसला नहीं है, बल्कि यह हमारे संविधान की मूल आत्मा के विपरीत
भेदभाव का मसला है . इसके विरोध का यह कतई मतलब नहीं कि यह विरोध पाकिस्तान या बांग्लादेश से आये किसी
भी हिन्दू, सिख को नागरिकता देने का है। ऐसे उत्पीड़ित लोगों
को नागरिकता का प्रावधान पहले से भी था .
धर्म के नाम पर बने राज्य
में नफरत और विभाजन का सिलसिला जाती, भाषा, और कई रूपों
में होता है , आज का दिन उन बिहारियों को भी याद रखना होगा
जो "अपने इस्लामिक मुल्क" की आस में सन 1947 में
उस तरफ चले गए थे. टीम तरफ से नदियों से घिरे ढाका शहर के सडक मार्ग के सभी पुल
तोड़ डाले गये थे और भारतीय सेना के लड़ाकू जहाज ही ढाका की निगेहबानी कर रहे थे .
जैसे ही खबर फैली कि पाकिस्तानी सेना आत्म समर्पण कर रही है , बंगला मुक्ति वाहिनी के सशस्त्र लोग सड़कों पर आ गए . ढाका के कमला पुर,
शाहजहांपुर, पुराना पलटन, मौलवी बाज़ार. नवाब बाड़ी जैसे इलाकों में गैर बांग्ला भाषी कोई तीन लाख लोग
रहते थे- जिन्हें बिहारी कहा जाता था, ये सभी विभाजन पर उस
तरफ गए थे-- उन पर सबसे बड़ा हमला हुआ , कई हज़ार मार दिए गए-
जहाज़ से पर्चे गिराए जा रहे थे कि आम लोग रेसकोर्स मैदान में एकत्र हों-- वहीँ
पाकिस्तानी सेना का समर्पण हुआ - लेकिन उसके बाद जब तक भारतीय फौज बस्तियों में
जाती , बहुत से बिहारी मार दिए गए-- लूट लिए गए ---- नए
बंगलादेश के गठन की वेला में मुसलमान बिहारी फिर से भारत की और खुद को बचाने को
भाग रहे थे. उससे पहले पाकिस्तानी फौज के अत्याचार से त्रस्त हिन्दू शरणार्थी आ
रहे थे . शायद आप जानते हों कि हिन्दू शरणार्थियों को देश के आंतरिक हिस्सों में
बाकायदा बसाया गया -- छत्तीसगढ़ के बस्तर में ऐसे बंगालियों की घनी बस्तियां आज भी
हैं . भारत में बंगलादेश से आने वाले मुसलमान भी उतने ही पीड़ित थे जितने हिन्दू और
मुसलमान तो भारत से ही बीस साल पहले भाग कर गए थे . इसका यह भी मतलब नहीं कि भारत
में अवैध घुसपैठिये नहीं हैं , उनकी पहचान कर बाहर खदेडना ही
चाहिए .
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