My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

बुधवार, 25 दिसंबर 2019

Solar eclipse ; time for research , not fear

भय नहीं ज्ञान काल है ग्रहण


आज का सूर्य ग्रहण कई मायनों में महत्वपूर्ण है। एक तो यह वलयाकार ग्रहण है, अर्थात इसमें चंद्रमा सूर्य को इस तरह ढंक लेगा कि सूर्य एक अंगूठी की तरह दिखेगा। दूसरा इस ग्रहण की अवधि बहुत है, भारत में लगभग दो घंटा चालीस मिनट, लेकिन कुल अवधि साढ़े तीन घंटे से ज्यादा। एक अजीब विडंबना है कि ब्रह्मांड की अलौकिक घटना को भारत में ही नहीं, दुनिया के अनेक हिस्सों में अनिष्टकारी घटना के रूप में जाना जाता है। आज जब मानव चांद पर झंडे गाड़ चुका है, ग्रह-नक्षत्रों की हकीकत सामने आ चुकी है, ऐसे में पूर्ण सूर्यग्रहण की घटना प्रकृति के अनछुए रहस्यों के खुलासे का सटीक मौका है।
पृथ्वी और चंद्रमा दोनों अलग-अलग कक्षाओं में अपनी धुरी के चारों ओर घूमते हुए सूर्य के चक्कर लगा रहे हैं। सूर्य स्थिर है। पृथ्वी और चंद्रमा के भ्रमण की गति अलग-अलग है। सूर्य का आकार चंद्रमा से 400 गुणा बड़ा है। लेकिन पृथ्वी से सूर्य की दूरी, चंद्रमा की तुलना में बहुत अधिक है। इस निरंतर परिक्रमाओं के दौर में जब सूरज और धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है तो धरती से ऐसा दिखता है, जैसे सूर्य का एक भाग ढंक गया हो। होता यह है कि पृथ्वी पर चंद्रमा की छाया पड़ती है। इस छाया में खड़े होकर सूर्य को देखने पर ‘पूर्ण ग्रहण’ सरीखे दृश्य दिखते हैं। परछाई वाला क्षेत्र सूर्य की रोशनी से वंचित रह जाता है, सो वहां दिन में भी अंधेरा हो जाता है।
सूर्य प्रकाश का एक विशाल स्त्रोत है, अत: जब चंद्रमा इसके रास्ते में आता है तो इसकी दो छाया निर्मित होती है। पहली छाया को ‘अंब्रा’ या ‘प्रछाया’ कहते हैं। दूसरी छाया ‘पिनेंब्रा’ या ‘प्रतिछाया’ कहलाती है। इन छायाओं का स्वरूप कोन की तरह यानी शंकु के आकार का होता है। अंब्रा के कोन की नोक पृथ्वी की ओर तथा पिनेंब्रा की नोक चंद्रमा की ओर होती है। जब हम अंब्रा के क्षेत्र में खड़े होकर सूर्य की ओर देखते हैं तो वह पूरी तरह ढंका दिखता है। यही स्थिति पूर्ण सूर्य ग्रहण होती है। वहीं यदि हम पिनेंब्रा के इलाके में खड़े होकर सूर्य को देखते हैं तो हमें सूर्य का कुछ हिस्सा ढंका हुआ दिखेगा। यह स्थिति ‘आंशिक सूर्य ग्रहण’ कहलाती है।
सूर्य ग्रहण का एक प्रकार और है, जो सबसे अधिक रोमांचकारी होता है- इसमें सूर्य एक अंगूठी की तरह दिखता है। जब चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी इतनी कम हो जाए कि पृथ्वी तक पिनेंब्रा की छाया तो पहुंचे, लेकिन एंब्रा की नहीं। तब धरती पर पिनेंब्रा वाले इलाके के लोगों को ऐसा लगेगा कि काले चंद्रमा के चारों ओर सूर्य किरणों निकल रही है। इस प्रकार का सूर्य ग्रहण ‘एनुलर’ या वलयाकार कहलाता है।
यह समझना मुश्किल नहीं है कि ग्रहण के समय सूर्य देवता राहू का ग्रास कतई नहीं बनते हैं। जैसे-जैसे चंद्रमा सूर्य को ढंकता है, वैसे-वैसे पृथ्वी पर पहुंचने वाली सूर्य-प्रकाश की किरणों कम होती जाती हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण होने पर सूर्य की वास्तविक रोशनी का पांच लाख गुणा कम प्रकाश धरती तक पहुंच पाता है। एक भ्रम की स्थिति बनने लगती है कि कहीं शाम तो नहीं हो गई। तापमान भी कम हो जाता है। पशु-पक्षियों के पास कोई घड़ी तो होती नहीं है, सो अचानक सूरज डूबता देख उनमें बेचैनी होने लगती है।
पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के एक सीध में आने और हटने पर चार बिंदु दृष्टिगोचर होते हैं। इन्हें ‘संपर्क बिंदु’ कहा जाता है। जब सूर्य खग्रास की स्थिति में पहुंचने वाला होता है, तब कुछ लहरदार पट्टियां दिखती हैं। यदि जमीन पर एक सफेद कागज बिछा कर देखा जाए तो इन पट्टियों को देखा जा सकता है। जब चंद्रमा, सूरज को पूरी तरह ढंक लेता है तब सूर्य के चारों ओर हलकी वलयाकार धागेनुमा संरचनाएं दिखाई देती है। चंद्रमा के धरातल पर गहरी घाटियां हैं। इन घाटियों के ऊंचाई वाले हिस्से, सूरज की रोशनी को रोकते हैं, ऐसे में इसकी छाया कणिकाओं के रूप में दिखती है। यह स्थिति खग्रास के शुरू व समाप्त होते समय देखी जा सकती है।
पूर्ण सूर्य ग्रहण को यदि दूरबीन से देखा जाए तो चंद्रमा के चारों ओर लाल-नारंगी लपटें दिखेंगी। इन्हें ‘सौर ज्वाला’ कहते हैं। अभी तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार 18 अगस्त 1868 और 22 जनवरी 1898 को भारत में पूर्ण सूर्य ग्रहण देखा गया था। फिर 16 फरवरी 1980 और 24 अक्टूबर 1995 और 11 अगस्त 1999 को सौर मंडल का यह अद्भुत नजारा देखा गया था।
वैसे तो कई टीवी चैनल पूर्ण सूर्य ग्रहण का सीधा प्रसारण करेंगे, पर अपने छत से इसे निहारना जीवन की अविस्मरणीय स्मृति होगा। यह सही है कि नंगी आखों से ग्रहण देखने पर सूर्य की तीव्र किरणों आंखों को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकती है। इसके लिए ‘मायलर-फिल्म’ से बने चश्मे सुरक्षित माने गए हैं। पूरी तरह एक्सपोज की गई ब्लैक एंड व्हाइट कैमरा रील या आफसेट प्रिंटिंग में प्रयुक्त फिल्म का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन फिल्मों को दुहरा-तिहरा करें। इससे 40 वॉट के बल्ब को पांच फीट की दूरी से देखें, यदि बल्ब का फिलामेंट दिखने लगे तो समझ लें कि फिल्म की मोटाई को अभी और बढ़ाना होगा। वेल्डिंग में इस्तेमाल 14 नंबर का ग्लास या सोलर फिल्टर फिल्म भी सुरक्षित तरीके हैं। और हां, सूर्य ग्रहण को अधिक देर तक लगातार कतई ना देखें, और कुछ सेकेंड के बाद आंख झपकाते रहें। सूर्य ग्रहण के दौरान घर से बाहर निकलने में कोई खतरा नहीं है। यह पूर्ण सूर्य ग्रहण तो हमारे वैज्ञनिक ज्ञान के भंडार के कई अनुत्तरित सवालों को खोजने में मददगार होगा।


आज प्रात: काल ही सूर्य ग्रहण है। इस प्राकृतिक घटना को लेकर पूर्व काल से ही बहुत मिथक फैला है लोगों के बीच जिसकी वास्तविकता को समझने की जरूरत है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...