प्रवासी पक्षियों के लिए काल बनती सांभर
वे हजारों किमी दूर से जीवन की उम्मीद के साथ यहां आए थे, क्योंकि उनकी पिछली कई पुश्तें सदियों से इस मौसम में यहां आती थीं। इस बार वे जैसे ही इस खारे पानी की झील पर बसे, उनके पैरों और पंखों ने काम करना बंद कर दिया और देखते ही देखते हजारों की संख्या में उनकी लाशें बिछने लगीं। देश की सबसे बड़ी खारे पानी की झील कहे जाने वाली राजस्थान की सांभर झील में पिछले डेढ़ माह में 25 हजार से ज्यादा प्रवासी पक्षी मारे जा चुके हैं। शुरू में तो पक्षियों की मौत पर ध्यान ही नहीं गया, लेकिन जब हजारों लाशें दिखीं, और दूर-दूर से पक्षी विशेषज्ञ आने लगे तब यह पता चला कि उनके प्राकृतिक पर्यावास में लगातार हो रही छेड़छाड़ व बहुत कुछ जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हुआ है।
हर वर्ष भारत आने वाले पक्षियों में साइबेरिया से पिनटेल डक, शोवलर, डक, कॉमनटील, डेल चिक, मेलर्ड, पेचर्ड, गारगेनी टेल तो उत्तर-पूर्व और मध्य एशिया से पोचर्ड, कॉमन सैंड पाइपर के साथ-साथ फ्लेमिंगो जैसे कई पक्षी आते हैं। भारतीय पक्षियों में शिकरा, हरियल कबूतर, दर्जिन चिड़िया आदि प्रमुख हैं। यात्र के दौरान पक्षी अपने हिसाब से उड़ते हैं और उनकी ऊंचाई भी अपने हिसाब से निर्धारित करते हैं।
सांभर झील कभी समुद्र का हिस्सा था। धरती में हुए लगातार परिवर्तनों से रेगिस्तान विकसित हुए और इसी क्रम में भारत की सबसे विशाल खारे पानी की झील ‘सांभर’ अस्तित्व में आई। यह झील करीब 230 वर्ग किलोमीटर के दायरे में विस्तृत है, जबकि इसका जलग्रहण क्षेत्र इससे कई गुना अधिक है। अरावली पर्वतमाला की आड़ में स्थित यह झील राजस्थान के तीन जिलांे- जयपुर, अजमेर और नागौर तक विस्तारित है। भले ही इस झील का अतंरराष्ट्रीय महत्व हो, लेकिन समय की मार इस झील पर भी पड़ी। वर्ष 1996 में 5,700 वर्ग किमी जलग्रहण क्षेत्र वाली यह झील 2014 में 4,700 वर्ग किमी में सिमट गई। चूंकि यहां पर बड़ी मात्र में नमक उत्पादन किया जाता है, लिहाजा नमक माफिया भी यहां की जमीन पर कब्जा करता रहता है। इस विशाल झील के पानी में खारेपन का संतुलन बना रहे, इसके लिए इसमें मैया, रूपनगढ़, खारी, खंडेला जैसी छोटी नदियों से मीठा पानी लगातार मिलता रहता है तो उत्तर में कांतली, पूर्व में बांदी, दक्षिण में मासी और पश्चिम में लूनी नदी में इससे बाहर निकला पानी जाता रहा है।
हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी नवंबर के शुरू में सांभर झील में विदेशी पक्षियों के झुंड आने शुरू हो गए। वे नए परिवेश में खुद को व्यवस्थित कर पाते, उससे पहले ही उनकी गर्दन लटकने लगी। वे ना तो चल पा रहे थे और ना उड़ पा रहे थे। लकवा जैसी बीमारी से ग्रस्त पक्षी तेजी से मरने लगे। जब तक प्रशासन चेतता दस हजार से अधिक पक्षी मारे जा चुके थे। राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर की टीम सबसे पहले पहुंची। फिर एनआइएचएसएडी यानी नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ हाइ सिक्योरिटी नेशनल डिजीज भोपाल का दल आया व उसने सुनिश्चित किया कि ये मौतें बर्ड फ्लू के कारण नहीं हैं।
भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आइवीआरआइ) बरेली के दल ने जांच कर बताया कि मौत का कारण ‘एवियन बॉट्यूलिज्म’ नामक बीमारी है। यह बीमारी क्लोस्टिडियम बॉट्यूलिज्म नामक बैक्टीरिया की वजह से फैलती है। यह बीमारी आमतौर पर मांसाहारी पक्षियों को होती है। इसके बैक्टीरिया से ग्रस्त मछली खाने या इस बीमारी का शिकार हो कर मारे गए पक्षियों का मांस खाने से इसका विस्तार होता है। मारे गए सभी पक्षी मांसाहारी प्रजाति के थे।
हालांकि अधिकांश पक्षी वैज्ञानिकों की राय में पक्षियों के मरने का कारण एवियन बॉट्यूलिज्म ही है, लेकिन बहुत से वैज्ञानिक इसके पीछे ‘हाईपर न्यूटिनिया’ को भी मानते हैं। नमक में सोडियम की मात्र ज्यादा होने पर पक्षियों के तंत्रिका तंत्र पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। वे खानापीना छोड़ देते हैं व उनके पंख और पैर में लकवा हो जाता है। कमजोरी के चलते उनके प्राण निकल जाते हैं।
सांभर झील लंबे समय से लापरवाही का शिकार रही है। यहां नमक निकालने के ठेके कई कंपनियों को दिए गए हैं। ये मानकों की परवाह किए बगैर गहरे कुएं और झील के किनारे दूर तक नमकीन पानी एकत्र करने की खाई बना रहे हैं। फिर परिशोधन के बाद गंदगी को इसी में डाल दिया जाता है। विशाल झील को छूने वाले किसी भी नगर-कस्बे में घरों से निकलने वाले गंदे पानी को परिशेधित करने की व्यवस्था नहीं है और हजारों लीटर गंदा-रासायनिक पानी हर दिन इस झील में मिल रहा है। इस साल औसत से करीब 46 फीसद ज्यादा पानी बरसा। इससे झील के जल ग्रहण क्षेत्र का विस्तार हो गया। झील में नदियों से मीठे पानी की आवक और अतिरिक्त खारे पानी को नदियों में मिलने वाले मार्गो पर अतिक्रमण हो गए हैं, सो पानी में क्षारीयता का स्तर नैसर्गिक नहीं रह पाया। भारी बरसात के बाद यहां तापमान फिर से 27 डिग्री के पार चला गया। इससे पानी का क्षेत्र सिकुड़ गया व उसमें नमक की मात्र बढ़ गई जिसका असर झील के जलचरों पर पड़ा। हो सकता है कि इस कारण मरी मछलियों को पक्षियों ने खा लिया हो व उससे उन्हें एवियन बॉट्यूलिज्म हो गया हो। वैसे आइवीआरआइ की जांच में अच्छी बरसात के चलते पानी में नमक घटने व पानी में ऑक्सीजन की मात्र महज चार मिलीग्राम प्रति लीटर से भी कम रह जाने के चलते यह त्रसदी उपजने की बात कही गई है।
पर्यावरण के प्रति संवेदनशील पक्षी अपने पर्यावास में अत्यधिक मानव दखल, प्रदूषण, भोजन के अभाव से भी परेशान है। लिहाजा प्रवासी पक्षियों की घटती संख्या हमारे लिए भी चिंता का विषय है।
राजस्थान के तीन जिलों में विस्तृत सांभर झील में 25 हजार से अधिक पक्षियों की मौत चिंता का विषय है। प्राकृतिक संतुलन और जीवन-चक्र में प्रवासी पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इनका इस तरह से मारा जाना अनिष्टकारी है
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