अब दिल्ली को बीमारी बांट रहा है ंिहंडन का जहरीला जल
पंकज चतुर्वेदी
राजधानी दिल्ली से सटे पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कभी जीवन-रेखा रहीं हिंडन व उनकी सखा-सहेली कृश्णा और काली नदियों के हालात अब इतने खराब हो गए है कि उनका जहर अब दिल्ली के लोगों की सेहत भी खराब हो रही है। सहारनपुर, बागपत, मेरठ, षामली, मुजफ्फरनगर और गाजियाबाद के ग्रामीण अंचलों में नदियों ने भूजल को भी गहरे तक विशेैला कर दिया है। तीन साल पहले अक्तूबर 2016 में ही एनजीटी ने नदी के किनारे के हजारों हैंडपंप बंद कर गांवों में पानी की वैकल्पिक व्यवस्था का आदेश दिया था। कुछ हैंडपंप तो बंद भी हुए लेकिन विकल्प ना मिलने से मजबूर ग्रामीण वही जहर पी रहे हैं। एनजीटी ने यह भी यह मान ही लिया है कि पानी को प्रदूशण से बचाने के लिए धरातल पर कुछ काम हुआ ही नहीं।हिंडन नदी भले ही उत्तर प्रदेश में बहती हो और उसके विषमय जल ने गांव-गांव में तबाही मचा रखी हो, लेकिन अब दिल्ली भी इसके प्रकोप से अछूती नहीं है। जानना जरूरी है कि हिंडन के पानी से सिंची गई फसल, फल-सब्जी, आदि दिल्ली की जरूरतों को पूरा करती है। हिंडन के हालात इतने खराब हैं कि एक तरफ एनजीटी राज्य सरकार को ख्ीिंचती रहती है तो दूसरी तरफ राज्य सरकार बैठकें व योजनाओं की बात करती है लेकिन जमीन पर हालात सुधरने की जगह बदतर ही हो रहे हैं। अगस्त 2018 में एनजीटी के सामने बागपत जिले के गांगनोली गांव के बारे में एक अध्ययन प्रस्तुत किया गया जिसमें बताया गया कि गांव में अभी तक 71 लोग कैंसर के कारण मर चुके हैं और 47 अन्य अभी भी इसकी चपेट में हैं। गांव में हजार से अधिक लोग पेट के गंभीर रोगों से ग्रस्त हैं और इसका मुख्य कारण हिंडन व कृश्णा का जहर ही है। इस पर एनजीटी ने एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया जिसकी रिपोर्ट फरवरी 2019 पेश की गई। इस रिपोर्ट में बताया गया कि हिंडन व उसकी सहायक नदियों के प्रदूषण के लिए मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद और गौतमबुद्ध नगर जिलों में अनुपचारित सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट जिम्मेदार हैं। एनजीटी ने तब आदेश दिया कि यह सुनिश्चित किया जाए कि हिंडन का जल कम से कम नहाने काबिल तो हो। मार्च 2019 में कहा गया कि इसके लिए एक ठोस कार्ययोजना छह महीने में पेश की जाए। समय सीमा निकल गई लेकिन बात कागजी घोड़ो ंसे आगे बढ़ी ही नहीं।
गौर करने वाली बात है कि हिंडन का जहर अब दिल्ली के लिए भी काल बन रहा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश चूंकि गंगा-यमुना के दोआब की उपजाउ भूमि वाला है और यहां के किसान दिल्ली की सुरसामुख आबादी की जरूरतों के लिहाज से ही अपने खेतों में फल-सब्जी, अनाज उगाते हैं। सिंचाई भी हिंडन के जहरीले पानी से ही हो रही है और इसका जानलेवा असर इन खाद्य पदाथों के जरिये दिल्ली वालों को भी बीमारी बांट रहा है। अब यहां खेती नदी के जल से हीे रही हो या फिर भूजल से, भले ही कोई दावा करे कि उनकी खेती पूरी तरह रसायन-मुक्त या आर्गेंनिक है, हर तरह के पानी में इतना जहर घुला हुआ है कि उससे उपजे उत्पाद में उसका असर गहराई तक हो रहा है।
ऐसी कई रिपोर्ट सरकारी बस्तों में जज्ब है जिसमें कहा गया है कि अगर हिंडन नदी के पानी को पानी नहीं बल्कि जहरीले रसायनों का मिश्रण कहना बेहतर होगा। पानी में आक्सीजन षून्य है। पानी में किसी भी तरह का कोई जीव-जंतु बचा नहीं है। यदि पानी में अपना हाथ डुबो दें तो इससे त्वचा रोग हो सकता है और यदि आप इसे पीते हैं तो हेपेटाइटिस या कैंसर जैसी कई समस्याएं हो सकती हैं। हिंडन को सीवर से रिवर बनाने के लिए भले ही एनजीटी खूब आदेश दे लेकिन नीति-निर्मातओं को हिंडन की मूल समस्याओं को समझना होगा। एक तो इसके नैसर्गिक मार्ग को बदलना,दूसरा इसमें षहरी व औद्योगिक नालों का मिलना, तीसरा इसके जलग्रहण क्षेत्र में अतिक्रमण- इन तीनों पर एकसाथ काम किए बगैर नदी का बचना मुश्किल है।
दिक्कत यह भी है कि कतिपय कारखानों का बचाव कर रही सरकार मानने को तैयार नहीं है कि हिंडन का पानी जहर से बदतर है। कुछ साल पहले देश की नदियों में प्रदूषण की जांच में जुटे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने उत्तर प्रदेश की हिंडन नदी के पानी को नहाने लायक भी नहीं पाया है। बोर्ड ने यह जानकारी राष्ट्रीय हरित पंचाट (एनजीटी) के तत्कालीन प्रमुख स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली पीठ को सौंपे हलफनामे में दी थी। सीपीसीबी ने प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ और गाजियाबाद में नदी के पानी की जांच की। हलफनामे में बताया कि नदी का पानी पर्यावरण अधिनियम, 1986 के तहत तय नहाने के पानी के मानकों के अनुरूप नहीं है। इसके समाधान के लिए बोर्ड ने ठोस अवशिष्ट को नदी किनारे और नदी में न फेंकने की हिदायत दी है। इसके अलावा बोर्ड ने कहा है कि अशोधित कचरा नदी में न फेंका जाए बल्कि नगर पालिका अवशिष्ट प्रबंधन अधिनियम, 2000 के तहत इसकी सही व्यवस्था की जाए। इसके विपरीत उत्तर प्रदेश सरकार ने हिंडन नदी के पानी को जहरीला बताए जाने के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति के दावे को झुठला दिया है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण समिति ने कहा है कि नदी के पानी में कोई जहरीला पदार्थ नहीं है। जबकि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण समिति ने ट्रिब्यूनल में स्वीकार किया था कि सहारनपुर से लेकर गौतमबुद्ध नगर तक हिंडन नदी का पानी है दूषित हो गया है।
हिंडन नदी जहां भी षहरी क्षेत्रों से गुजर रही है, इसके जल-ग्रहण क्षेत्र में बहुमंजिला आवास बना दिए गए और इन कालोनियों के अपशिश्ट भी इसी में जाने लगे हैं। नए पुल, मेट्रो आदि के निर्माण में हिंडन को सुखा कर वहां कंक्रीट उगाने में हर कानून को निर्ममता से कुचला जाता रहा । आज भी गाजियाबाद जिले में हिंडन के तट पर कूड़ा फैंकने, मलवा या गंदा पानी डालने से किसी को ना तो भय है ना ही संकोच। अब नदी केजहर का दायरा विस्तारित होता जा रहा है और उसकी जद में वे सभी भी आएंगे जो नदी को जहर बनाने के पाप में लिप्त हैं।
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