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बुधवार, 25 मार्च 2020

Corona crisis : Do not forget Farmers

कोरोना के कारण  कहीं किसानों को ना भूल जाएं

पंकज चतुर्वेदी 

जनवाणी मेरठ 
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि नोबल कोरोनो जैसी  वैश्विक  महामारी का असर भारत की अर्थ व्यवस्था, रोजगार और आम जनजीवन पर पड़ना ही है। लंबे समय तक बाजार बंदी की मार से बड़े उद्योगपति से ले कर दिहाड़ी मजदूर तक आने वाले दिनों की आशंका  से भयभीत हैं। इन सारी चिंताओं के बीच किसान के प्रति बेपरवाही बहुत दुखद है। वैसे भी हमारे यहां किसानी घाटे का सौदा है जिससे लगातार खेती छोड़ने वालों की संख्या बढ़ रही है, फिर इस बार रबी की पकी फसल पर अचानक बरसात और ओलावश्टि ने कहर बरपा दिया। अनुमान है कि इससे लगभग पैतीस फीसदी फसल को नुकसान हुआ। और इसके बाद कोरोना के चलते किसान की रही बची उम्मीदें भी धराशाही  हो गई हैं। आज भी ग्रामीण भारत की अर्थ व्यवस्था का मूल आधार कृषि  है । विदित हो आजादी के तत्काल बाद देश  के सकल घरेलू उत्पाद में खेती की भूमिका 51.7 प्रतिशत थी ,जबकि आज यह घट कर 13.7 प्रतिशत हो गई है। यहां गौर करने लायक बात यह है कि तब भी और आज भी खेती पर आश्रित लोगों की आबादी 60 फीसदी के आसपास ही है। यह अजब संयोग है कि कोरोना जैसी महामारी हो या मौसम का बदलता मिजाज, दोनो के मूल में जलवायु पविर्तन ही है, लेकिन कोरोना के लिए सभी जगह चिंता है, किसान को अपने हाल पर छोड़ दिया गया।
राष्ट्रीय सहारा 

इस साल रबी की फसल की बुवाई का रकबा कोई 571.84 लाख हैक्टेयर था जिसमें सबसे ज्यादा 297.02 लाख हैक्टेयर में गेहूं, 140.12 में दलहन, 13.90 लाख हैक्टैयर जमीन में धान की  फसल बोई गई थी।  चूंकि पछिली बार बरसात सामान्य हुई थी सो फसल को पर्याप्त सिंचाई भी मिली । किसान खुष था कि इस बार मार्च-अप्रैल में वह खेतों से सोना काट कर अपने सपनों को पूरा कर लेगा।  गेहूं के दाने सुनहरे हो  गए थे, चने भी गदराने लगे थे, सरसो और मटर लगभग पक गई थी और मार्च के षुरू में ही जम कर बरसात और ओले गिर गए। गैरजरूरी बेमोसम बरसात की भयावहता भारतीय मौसम विभाग द्वारा 16 मार्च को जारी आंकड़ों में देखी जा सकती है। एक मार्च से लेकर 16 मार्च तक देश के 683 जिलों में से 381 में भारी  बरसात दर्ज की गई । यूपी के 75 जिलों में से 74 में भारी बारिश हुई है तो झारखंड के 24, बिहार के 38, हरियाणा के 21, पश्चिम बंगाल के 16, मध्य प्रदेश के 21, राजस्थान के 24, गुजरात के 16, छत्तीसगढ़ के 25 , पंजाब के 20 और तेलंगाना के 14 जिलों में भारी बारिश हुई है। सनद रहे यही फसल में बीज बनने का समय का  दौर था।  अधिक से अधिक पदं्रह दिन में कटाई षुरू हो जानी थी।  तेज बरसात और ओलों केकारण पहले से ही तंदरूस्त फसल के बोझ से झूल रहे पौधे जमीन पर बिछ गए।  इससे एक तो दाना बिखर जाता है, फिर ओले की मार से अन्न मिट्टी में चला जाता है। फसल भीगने से उसमें लगने वाले कीड़े या अंतिम समय में दाना के पूर्ण आकार लेने की क्षति सो अलग।

कृषि मंत्रालय ने इस साल गेहूं की रिकॉर्ड पैदावार 10.62 करोड़ टन होने की अनुमान जताया था, लेकिन अब ये उत्पादन गिर सकता है। साल 2019 में देश में 10.36 करोड़ टन गेहूं पैदा हुआ था। गेहूं के साथ दूसरी जो फसल को भारी नुकसान पहुंचा है वो सरसों है। राजस्थान, हरियाणा से लेकर यूपी तक सरसों को काफी नुकसान पहुंचा है। कृषि मंत्रालय अपने रबी फसल के पूर्वानुमान में पहले ही 1.56 फीसदी उत्पादन कम होने की आशांका जाहिर की थी। अकेले उत्त प्रदेष में 255 करोड़ की फसल का नुकसान हुआ है।
मौसम की मार ही किसान के दर्द के लिए काफी थी लेकिन कौरोना के संकट से उसकी अगली फसल के भी लाले पड़ते दिख रहे हैं।  जिसने कटाई षुरू कर दी थी या जिसका माल खलिहान में था, दोनों को बरसात ने चोट मारी है। यातायात बंद होने से चैत काटने वाले मजदूरों का टोटा भी अब हो रहा है।  यदि फसल कट जाए तो थ्रेषर व अन्य मषीनों का आवागमन बंद है।  षहरों से मषीनों के लिए डीजल लाना भी ठप पड़ गया है। वैसे तो फसल बीमा एक बेमानी है। फिर भी मौजूदा संकट में पूरा प्रषासन कोरोनो में लगा है और बारिष-ओले से हुए नुकसान के आकलन, उसकी जानकारी  कलेक्टर तक भेजने और कलेक्टर द्वारा मुआवजा निर्धारण की पूरी प्रक्रिया आने वाले एक महीने में षुरू होती दिख नहीं रही है।  फसल बीमा योजना के तो दस महीने पुराने दावों का अभी तक भुगतान हुआ नहीं है। यही नहीं कई राज्यों में बैंक किसानों से 31मार्च से पहले पुराना उधार चुकाने के नोटिस जारी कर रहे हैं। जबकि   आने वाले कई दिनों तक किसान की फसल मंडी तक जाती दिख नहीं रही है।

छोटे किसान को कौरोनो की मार दूसरे तरीके से भी पड़ रही है। नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक देश में 14 करोड़ हैक्टर खेत हैं।  विभाग की ‘‘भारत में पारिवारिक स्वामित्व एवं स्वकर्षित जोत’’ संबंधित रिपोर्ट का आकलन बेहद डरावना है। सन 1992 में ग्रामीण परिवारों के पास 11.7 करोड़ हैक्टर भूमि थी जो 2013 तक आते-आते महज 9.2 करोड़ हैक्टर रह गई।  यदि यही गति रही तो तीन साल बाद अर्थात 2023 तक खेती की जमीन आठ करोड़ हैक्टर ही रह जाएगी। इसके मूल कारण तो खेती का अलाभकारी कार्य होना, उत्पाद की माकूल दाम ना मिलना है। इसी लिए हर किसन परिवार से कोई ना कोई षहरों में चौकीदार से ले कर क्लर्क या कारखाना मजदूर की नौकरी करने जा रहा है। कौरोना के संकट ने बीते एक महरीने के दौरान षहरों में काम बंदी की समस्या को उपजाया और भय-आषंका और अफवाहों से मजबूर लोग गांव की तरफ लौट गए। इस तरह छोटे किसान पर षहर से आए लोगों का बोझ भी बढ़ रहा है।। कौरोनो के कारण ,खाद्यान में आई महंगाई से ग्रामीण अंचल भी अछूते नहीं हैं। एक बात और असमय बरसात कोरोना  ने  सब्जी, फूल जैसी ‘‘नगदी फसलों’’ की भी कमर तोड़ दी है। षहर बंद है, पूजा स्थल बंद हैं और विवाह और अन्य  आयोजन भी ठप्प  हैं और ऐसे में फूल उगाने वाले को खेतों में ही अपने फूल सड़ाने पड़ रहे हैं। ठीक इसी तरह गांव से षहर को चलने वाली बसें, ट्रैन व स्थानीय परिवहन की पूरी तरह बंदी से फल-सब्जी का किसान अपने उत्पाद सड़क पर लावारिस फैंक रहा है।
किसान भारत का स्वाभिमान है और देष के सामाजिक व आर्थिक ताने-बाने का महत्वपूर्ण जोड़ भी। उसे सम्मान चाहिए और यह दर्जा चाहिए कि देष के चहुंमुखी विकास में वह महत्वपूर्ण अंग है।  सरकार व समाज रोज ही षेयर बाजार के उतार चढ़ाव पर आहें भर रहा है, सोनो-चांदी के दाम पर चिंतित हो रहा है लेकिन किसान के ममाले में संवेदनहीनता कही हमारे देष की खाद्य सुरक्षा के दावों पर भारी न पड़ जाए।  कोरोना की चिंता के साथ किसान की परवाह भी देा के अस्तित्व के लिए अनिवार्य है।


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