पंकज चतुर्वेदी
अंधेरे, सुनसान कमरे में अचानक ही खलबली सी मच गई....... कबाड़ा होने से दुखी, अपने अंत का इंतजार कर रहे उन धूलभरे डिब्बों में अपने बचपन के दिनों का जेाष जैसे दौड़ गया। कहां तो दिन नहीं कटता था और अब ?...........दिन कम पड़ रहा है। जीवन इतना बदल जाएग ? यह उस दो सौ छियासी ने सोचा भी नहीं था। चार सौ छियासी की रग-रग में जोष भर गया था। और कई साथी भी थे उनके- सेलरान, सायरेक्स, पेंटियम -एक, दो , तीन--- कुछ सेवफल वाले भी थे। उफ्फ-- इस हड़बड़ी में तो हम ही भूल गए-- चलो पहले आपको इस कहानी के इन अजूबे नामों से तो मिलवा दें! यह है इस कंपनी के तहखाने में बना बड़ा सा कबाड़ा-घर। जो कुछ काम का नहीं होता, उसे यहीं फैंक दिया जाता है। यहां कुछ सदस्य तो कई सालों से हैं, लगता है कि उनको कंपनी वाले भूल ही गए हैं...... पुराने बड़े से कंप्यूटर.... सबसे बूढ़े दो सौ छियासी , फिर चार सौ छियासी......।
कंपनी का काम बढ़ता गया, जमाने में नई-नई तकनीकें आ गई, सो रफ्तार के लिए आए रोज नई मषीनें आ जातीं। ऐसे में पुराने कंप्यूटरों को इसी अंधेरे गुमनाम कमरे में जमा कर दिया जाता। फिर कर्मचारी नए चमकते कंप्यूटरों पर काम करने लगते और पुरानों की किसी को परवाह ही नहीं रहती। दो साल पहले जब एक सेलेरान यहां आया था, तब उसने बताया था कि किसी दिन सभी पुराने कंप्यूटरों को तोड़-फोड़ दिया जाएगा। प्लास्टिक अलग, लोहा अलग, चिप प्लेट अलग की जाएंगी। तभी से जब कभी गोदाम का दरवाजा खुलता, सभी को लगता कि आज षायद मुक्ति मिल जाए, लेकिन कभी कोई नया सदस्य इस बेकार-निकम्मों की जमात में जुड़ जाता तो कभी-कभार किसी मषीन का दिमाग ... नहीं समझे? हां....रैम निकाल कर ले जाता। फिर नीरसता सी छा जाती।
उस दिन हर बार की तरह दरवाजा खुला, बेचारे कई साल से कुछ बदलाव का इंतजार कर रहे कंप्यूटरों ने पलट कर भी नहीं देखा....निराष हो चुके थे। इस बार कुछ लगभग नए-चमचमाते सेट इस भीड़ में जुड़ गए। चार सौ छियासी को तो आष्चर्य हो रहा था- ‘‘चलो, हम तो कमजोर थे, काले-सफेद थे... लेकिन यह तो रंगीन है। दमक रहा है ... इन्हें क्यों फैंक दिया गया ?’’
‘‘पता नहीं इंसान कितनी तेजी से नई-नई खोज कर रहा है। लगता है कि कहीं हमारे नए साथियों का जीवन एक महीने से भी कम ना रहा जाए।’’ ऐसा लगा कि नए मेहमान ने चार सौ छियासी के मन की बात को पढ़ लिया। उसने खुद ही अपना परिचय दे दिया, ‘‘ में सीनियर पेंटियम हूं ... पेंटियम- फोर...पंेटियम सीरिज का आखिरी वारिस। जैसे ही ड्यूल कोर ई सीरिज का जमाना आया, मुझे किनारे बैठा दिया।’’
सेलरान षायद कई महीनों बाद बोला होगा, ‘‘जब आपका प्रचलन बढ़ा था तो हमें भी ऐसा ही विस्थापन झेलना पड़ा था।’’
‘‘अब देखो ना वहां जैसे ही पतले पापड़ जैसी स्क्रीन आई, मुझे चलता कर दिया। एक बार में पूरा खाली कर दिया मुझे और अब.....।’’ कुछ ही मिनट पहले आए पेंटियम ने अपने निवास की दुर्गति देख कर दुख प्रकट किया।
षांति छा गई कमरे में किसी के पास कुछ कहने को कुछ नहीं था। सभी का अपना-अपना समृद्ध इतिहास था, जिसे भुला दिया गया । ना बदन में दौड़ती बिजली, ना ही मधुर संगीत और ना ही माऊस-की बोर्ड का साथ।
पेंटियम के भीतर एक बैटरी अभी भी चल रही थी, जो उसकी घड़ी को संचालित करती थी। वैसे तो उसकी हार्ड डिस्क से सब कुछ निचोड़ कर खाली कर दिया गया था, लेकिन इस मषीन को पूरी तरह समझ पाना उस इंसान के बस की बात भी नहीं है जिसने इसे बनाया है। कहने को तो मषीन को कबाड़ा बना कर फैंक दिया गया था, लेकिन अभी भी उसमें बहुत कुछ चल रहा था। कंप्यूटर के भीतर किसी गुमनाम कोने में बैठा एक घोड़ा चुपचाप गुमनामी के दिन बिताने को तैयार नहीं था।
अरे! उसे वैसा घोड़ा मत समझ लेना, जो तांगे में लगता है, षादी में दूल्हा जिस पर बैठता है। हां, ताकत में यह चार पैरों वाले घोड़े से कम नहीं है, लेकिन है बहुत छोटा.... इतना छोटा...... नहीं ... नहीं... आंखें पूरी खोल लो, बिल्लोरी कांच लगा लो.... नहीं दिखेगा। बस उसके करतब ही दिखते हैं। तो यह ‘‘ट्राजन-हॉर्स’’ कुलबुला रहा था। छोटी सी बैटरी से उसने कुछ ताकत जुटाई और आ गया अपने रंग में।
इस घोड़े की खासियत है कि एक बार चल पड़ा तो यह लगातार दुगना-तिगना-चार गुना बढ़ता जाता है। जहां जाएगी वहां इसी का प्रभाव होगा। ट्राजन-हॉर्स के सक्रिय हेाते ही मषीन भी जागृत हो गई। सबसे पहले संगीत की फाईलें चल पड़ीं। जिस बंद, सीलन भरे कमरे में बरसों से केवल उदासी थी, गानों की मधुर लहरी से झंकृत हो गई। विचित्र घोड़े की ताकत से अब मषीन पर चित्र भी आने लगे। अपने अंतिम दिनों का इंतजार कर रहे दूसरे कंप्यूटरों के लिए यह आष्चर्य ही था कि जिस मषीन को ओंधे मुंह पड़ा होना था, वह धमाल पर उतारू है। कुछ पेंटियम एक-दो-तीन इस मषीन के करीब आए और पूछा, ‘‘ तुम अभी भी कैसे इतने तरोतजा हो ?’’
‘‘‘इसमें कौन सी बड़ी बात है ? जरा मुझे छू कर देखो, जरा करीब आओ। अपने नेटवर्क वाले तार को मुझसे सटा दो। फिर देखना।’’ पेंटियम चार इस समय गाना सुनने में मग्न था।
डरते-डरते पुराने पेंटियम-दो ने इस दीवाने से संपर्क कर ही लिया। पलक झपकते ही ‘घोड़ा’’ नई मषीन पर सवार हो गया।
‘‘अरे वाह ! इसमें तो पहले से ही ‘रेड टेप’ है।’’ घोड़े को जैसे बेषुमार हरा चारा मिल गया हो। अब घोडे़े के गले में लाल फीता बंध गया था। गति पहले से कई गुना तेज हो गई थी। धीरे-धीरे घोड़े का असर उस बेचारे दो सौ छियासी तक पहुंच गया जिसके दिमाग का आकार महज कुछ मेगाबाईट ही था। वह कहां झेल पाता इस बेलगाम घोड़े को।
कई सालों से जिस कंप्यूटर पर धूल अटी हुई थी, वह ‘ट्राजन हॉर्स’ के असर में आ कर पागलों की तरह झनझना गई। उसमें बची-खुची सामग्री पलक झपकते ही पूरी हार्ड-डिस्क पर फैल गई। उसमें अब और क्षमता नहीं थी, लेकिन घोड़े का असर ही ऐसा था कि आंख झपकते ही कई-कई गुणा बढ़ जाता था। अब तो पुरानी मषीन हवा में थी, इधर-उधर टकरा रही थी। चार सौ छिाासी भी पीछे नहीं थी, उसकी क्षमता कुछ जयादा थी, एसमें दबे-छिपे फोटो ब्लेक एंड वाईट फिल्मों की तरह उभर रहे थे। पेंटियम एक से ले कर चार तक ग्राफीक, संगीत, वीडियों का जलवा था। हंगामें में पूरा गोदाम आई पी एल के मैच के किसी स्टेडियम की तरह जीवंत लग रहा था।
तभी गोदाम का दरवाजा फिर खुला। कंपनी का कोई कर्मचारी एक लेपटाप कबाड़े में डालने आया था। भीतर से आ रहे हल्ले से वह चौंक गया। एकबारगी तो उसकी चीख ही निकल गई- आखिर यहां यह हो क्या रहा है ? एक सुनसान, बेकार कंप्यूटर के गोदाम में हर एक मॉनीटर कुछ कह रहा था, गुन रहा था-बुन रहा था। कोई उड़ रहा था, कोई दूसरे से जुड़ रहा था।
भरोसा नहीं हो रहा था खुद की आंखों पर। पता नहीं क्या है ? उसने लेपटाप को वैसे ही पटका और चीखते-चिललाते दौड पड़ा- ‘‘ भूत....प्रेत.... बचाओ......’’
इधर वह कर्मचारी सारे दफ्तर को बता रहा था कि उसने क्या देखा। उधर लेपटाप में बैठा नॉर्टन से कंप्यूटरों की यह षैतानी देखी नहीं जा रही थी। ‘‘अच्छा मेरे ना होने का फायदा उठा रहा है यह षैतान घोड़ा।’’ अब बारी थी नॉर्टन के सक्रिय होने की। सबसे पहले उसने विन-32 को पकड़ा फिर उसने ‘लव-बग’ को चबाया। नॉर्टन का असर होते ही रेड टेप का रंग उतर गया। फिर ट्राजन हॉर्स भी कब्जे में आ गया।
कुछ ही देर में नार्टन का पेट फूल कर गुब्बारे जैसा हो गया था और बाकी के कंप्यूटर ‘‘जैसे थे-जहां थे’’ की हालत में आ गए । उधर कंपनी के कुछ कर्मचारी हिम्मत कर नीचे गोदाम में आए तो वहां सब कुछ पहले जैसा षांत था। सभी ने उस कर्मचारी को नषेड़ी, सनकी और ना जाने क्या-क्या कह दिया। वह बेचारा बार-बार सफाई देता रहा, लेकिन उसकी सुनता कौन।
एक बार फिर कमरा बंद हो गया.... वीरान, अंधेरा, मौन । लेकिन घोड़ा कहां मानने वाला है ? वह इंतजार कर रहा है पांच दिन का। आज से पंाचवे दिन नार्टन की सक्रियता की तारीख खतम हो जाएगी। घोड़ा चुपचाप उसी लेपटाप में बैठा है, जिसके नार्टन ने उसकी लगाम थाम रखी है और अगला हंगामा भी वहीं से होगा।
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