बगैर शस्त्र के युद्धरत कोरोना के ये सिपाही
पंकज चतुर्वेदी
वे बगैर पर्याप्त अस्त्र-शस्त्र के मैदान में डट गए। वे जानते हैं कि उनकी संख्या शत्रु के लिए जरूरी बल की तुलना में बहुत कम है। वे उस अदृश्य षत्रु से केवल अपने भरोसे और निश्ठा के सहारे लड़ रहे हैं। कोरोना के विरूद्ध संघर्ष में देश के चिकित्साकर्मी जिस तरह जुटे , यह मिसाल है। देशभर के स्वास्थ्यकर्मी कोविड-19 के खि़लाफ़ चल रही लड़ाई की एक बड़ी कीमत चुका रहे हैं । दुर्भाग्य है कि ना तो उनके पास बचाव के उपकरण थे और ना ही अनुभव और इसी के चलते कोरोना पीड़ितों को ठीक करने में लगे दल के लोग बड़ी संख्या में खुद इस संक्रमण के शिकार हो गए। स्वास्थकर्मियों में सबसे बड़ा संकट उन मैदान में उतरे कार्यकर्ताओं का है जिन्हें अशिक्षित व भ्रमित लोगों के हमले भी झेलने पड़ रहे हैं। गौर करने वाली बात है कि देश पर मंडरा रहे इस स्वास्थ्य-आपातकाल का मुकाबला केवल सरकारी अस्पताल के भरोसे ही हो रहा है।इंदौर शहर में दो डॉक्टरों की मौत हो गई। एक आयुर्वेदिक डॉक्टर की बुलंदशहर में भी मौत हुई। हालांकि ये तीनों कहीं भी सीधे तौर पर कोरोना मरीजों की देखभाल में नहीं लगे थे, लेकिन यह भी सच है कि इन्हें रोग के वायरस का संक्रमण अपने निजी क्लीनिक में अन्य रोगों के मरीज देखते समय ही हुआ। कभी इटली के मीलान श हर की तरह कोरोना से संक्रमित हुए और बाद में स्वास्थ्यकर्मियों की मेहनत के कारण प्रसिद्धि पाए भीलवाड़ा में भी कोरोना की शुरुआत एक निजी डाक्टर व उनके परिवार के सदस्यों के साथ हुई थी। हालांकि अब वे पूरी तरह ठीक हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में कोरोना से संक्रमित 85 मरीज़ों में से 40 स्वास्थ्य विभाग के हैं जिनमें दो आईएएस अधिकारी - प्रमुख सचिव स्वास्थ्य, पल्लवी जैन-गोविल, और स्वास्थ्य निगम के एमडी जे. विजय कुमार भी हैं, इनके अलावा विभाग की अतिरिक्त निदेशक डॉ वीना सिन्हा भी संक्रमित हैं. भोपाल संभवतः देश में पहला शहर है जहां कोरोना से लड़ने वाले ही कोरोना के कैरियर बन गये हैं।
देश की राजधानी दिल्ली में राज्य सरकार का बड़ा स्वास्थ्य महकमा अभी तक कोरोना की चपेट में आ चुका है। यहां कोरोना संक्रमित प्रत्येक तीसवां व्यक्ति स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ा है। दो मोहल्ला क्लीनिक के डाक्टर के पोजिटिव पाए जाने के बाद इसका प्रसार तेजी से गरीब बस्तियों में हुआ। दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान को बंद कर दिया गया । दिल्ली के अलग-अलग अस्पतालों में काम कर रहे 23 स्वास्थ्यकर्मी अभी तक कोरोना के संक्रमण का शिकार हो चुके हैं। इनके संपर्क में आने वाले 200 से ज्यादा स्वास्थ्यकर्मी एहतियात के तौर पर आइसोलेशन में रखे गए हैं। इसमें सबसे बड़ी अड़चन यह है कि बेहतरीन गुणवत्ता वाले सुरक्षा उपकरण उपलब्ध नहीं हैं। दो अप्रैल को दिल्ली में एम्स के एक डॉक्टर कोरोना वायरस के टेस्ट में पॉज़िटिव पाए गए ।इसके बाद यह ख़बर आई कि उनकी नौ महीने की गर्भवती पत्नी भी इस वायरस की चपेट में हैं. उनकी पत्नी एम्स के ही इमर्जेंसी वार्ड में पोस्टेड हैं। इसके लिए एम्स आरडीए ने प्रधानमंत्री से मदद मांगी है। कोरोना की चपेट में आए इन 23 स्वास्थ्यकर्मियों में 11 डॉक्टर, 11 नर्स और पैरामेडिकल स्टाफ के अन्य कर्मचारी हैं। वहीं, दो सफाई कर्मचारी भी शामिल हैं। दिल्ली में दो अस्पतालों में सबसे अधिक स्वास्थ्यकर्मी संक्रमण की चपेट में आए हैं। इनमें दिल्ली राज्य कैंसर संस्थान और महाराजा अग्रसेन अस्पताल हैं। अग्रसेन अस्पताल में एक डॉक्टर और चार दूसरे कर्मचारी कोरोना के शिकार हुए हैं। सफदरजंग में भी दो डॉक्टर और एक डॉक्टर एम्स में भी संक्रमण का शिकार हो गए हैं। सफदरजंग में 21 कर्मचारी आइसोलेशन में हैं, वहीं एम्स में तीन प्रोफेसर समेत 11 लोग आइसोलेशन में हैं। कैंसर इंस्टिट्यूट में जांच के दौरान अभी तक तीन डॉक्टर और 18 नर्स सहित 24 लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके हैं। पॉजिटिव पाए गए लोगों में अस्पताल में भर्ती कैंसर रोगी भी शामिल है।
स्वास्थ्यकर्मी केवल मरीज और वायरस से ही नहीं लड़ रहे, उन्हें अपने परिवार से लगातार दूर रहने का तनाव, समाज में उनके साथ अभद्र व्यवहार का दर्द भी सालता रहता है। कई जगह स्वास्थ्यकर्मियों से घर खाली करवाने या उन्हें परिवहन ना मिलने पर लंबी दूरी पैदल तय करने और कई जगह पुलिस से पिटाई भी झेलनी पड़ रही है। यहां जानना जरूरी है कि भारत पहले से ही चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है। सरकारी अस्पतालों में एलोपेथी के उपलब्ध डॉक्टरों की संख्या प्रति 10926 व्यक्तियों पर महज एक है। इस तरह अंतरराश्ट्रीय मानक के मुताबिक हमारे यहां कोई पांच लाख डॉक्टरों की कमी है। नर्स व अन्य स्वास्थ्यकर्मी प्रति एक हजार पर मात्र 21 है। स्वास्थ्य विभाग का आंचलिक हिस्सा पूरी तरह अर्धकुशल, बेहद कम मानदेय पर काम करने वाले लोगों के बदौलत हैं। बस्तर के अबुझमाड़ इलाके में सुरक्षाकर्मी भी जाने से पहले सोचते है।। यहां किसी सरकारी मशीनरी का दखल है ही नहीं। ऐसे में महज पंद्रह सौ रूपए वेतन, वह भी अनियमित पाने वाली ‘मितानिनों’ के बदौलत सुदूर अंचलों तक कोरोना जागरूकता अभियान चल रहा है। ये महिलाएं कई-कई किलोमीटर पैदल चलती हैं। गांवों में पहुंच कर दीवारों पर स्थानीय बोली में कोरोना जागरूकता के नारे लिखती हैं, फिर लोगों को एकत्र करन उन्हें इस बीमारी से बचने के लक्षण आदि की जानकारी देती हैं। यहां से एकत्र सूचना को उपर तक पहुंचाना, जचकी जैसे काम भी उन्हें करने होते हैं। इन महिलाओं को सेनेटाईजर की बात छोड़ दें, ग्लब्स या मास्क जैसी सुविधा भी नहीं मिली है। देशभर में घर-घर सर्वे, बुखार मापने जैसे काम कर रहीं कोई नौ लाख आशा कार्यकर्ताओं के हालात भी मितानिन जैसे ही हैं। इन्हें तो षहरी इलाकों में आए दिन गाली, मारापीटी को भी ढेलना पड़ रहा हैं। कई जगह ये नर्स का भी काम कर रही हैं, लेकिन इन्हें मजबूरी में अपने घर ही जाना पड़ता है, इन्हें दिल्ली-भोपल की तरह होटल में ठहरने या खाने की सुविधा नहीं मिलती।
इस जटिल अवसर पर सफाईकर्मी भी बेहद चुनौती का सामना कर रहे हैं। वे कोरोना संक्रमित लोगों के सीधे संपर्क में आते हैं। वे ऐसे मृत लोगों के पोस्टमार्टम, इनके इलाज में प्रयुक्त गल्ब्स, कपड़ों आदि को नश्ट करने का काम करते हैं। इसके अलावा गली-मुहल्लों को साफ रखनते समय भी उनकी जान खतरा मंडराता रहता है। षायद याद हो कि मार्च-20 के आखिरी सप्ताह में उ.प्र के कोैशंाबी जिले सूबे के फतेहपुर जिला के हथगाम ब्लॉक के आलीमऊ गांव का रहने वाले संदीप वाल्मीकि कौशाम्बी के सिराथू नगर पंचायत में ठेकेदारी में सफाई मजदूर के रूप में काम करते थे। कीटनाशक दवा के घोल का छिड़काव करते समय वह बेहोश हो गए । जब तक अस्पताल ले कर गए उनकी मौत हो गई।
आने वाले दिन हमारे लिए बेहज जटिल हैं क्योंकि अब देश में कोरोना संक्रमण की जाच के काम ने तेजी पकड़ी हैं। संक्रमित व्यक्ति के पोजीटिव मिलने के बाद उसके संपर्क में आए अन्या लोगों को खोजना और उन्हें अस्पताल तक लाना जैसे काम में लगे स्वास्थ्यकर्मी, वाहनों के चालक से ले कर अस्पताल के डॉक्टर तक की सुरक्षा हमारी प्राथमिकता होना चाहिए। सुरक्षित कपड़े, मास्क और ग्लव्स पहनने के बावजूद डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मी बाकी लोगों के मुकाबले संक्रमण के ज्यादा शिकार हो रहे हैं। असल में इन सेवाकर्मियों को बेहतर क्वालिटी में पीपीई सूट, ग्लब्स और मास्क को त्वरित बदलने की सुविधा, अच्छी गुणवत्ता के सेनीटाईजर की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्वित करना जरूरी है। यही देश के सामाजिक-आथर््िाक भविश्य की दिशा तय करेंर्गे।
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