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गुरुवार, 11 जून 2020

Destroying cash crop in farm is threat to soil

जमीन की सेहत खराब कर रही है फसल की बर्बादी
पंकज चतुर्वेदी


इन दिनों पूरे देश में फल सब्जी के किसान तुडाई और परिवहन का व्यय भी ना निकाल पाने के कारण अगली फसल की तयारी के लिए खेत में ही  फसल पर रोटावेयर चलवा रहे हैं . इससे खेत की मिटटी को दूरगामी नुक्सान हो सकता है . यह लेख इस मसले पर है   



 हरियाणा के तोशाम में कोई तीन सौ एकड़ में टमाटर की बंपर फसल हुई। 70 हजार प्रति एकड़ का के खर्च से तैयार फसल के खरीदार हैं ही नहीं। भले ही बाजार में टमाटर के दाम पच्चीस रूपए  किलो हों, लेकिन मंडी में  बामुशिकल सात से दस पर बिक रहा है। इतनेमें तो किसान को टुडाई व ढुलाई का खर्चा भी नहीं निकलता। फलस्वरूप किसानों ने तय कर लिया कि यह घाटा सह लेंगे और अगली फसल के लिए पके टमाटर से लदे खेत पर ट्रेक्टर चला देंगे। इंदौर की चोईथराम मंडी को प्रदेश की सबसे बड़ी प्याज की आवक का दर्जा प्राप्त है। इन दिनों वहां सूना है। पिछले सालों तक इस समय यहां डेढ से दो लाख कट्टा हर दिन की आवक होती थी- एक कट्टे में कोई चालीस किलो प्याज। इन दिनों बाजार में प्याज की मांग है ही नहीं, सो मंडी में दाम पांस से छह रूपए किलो है।  प्याज को जमीन से निकालना, छांटना और उसे मंडी तक लाने का खर्च ही औसतन पांच रूपए किलो होता है। ऐसे में किसान मालवा के कई हजार हैक्टर में खड़ै प्याज पर रोटावेयर चलाया जा रहा है। लॉक डाउन के 31 मई तक बढ़ने से वे किसान लगभग बरबादी की कगार पर आ गए है जिन्होंने अधिक आय की उम्मीद में अपने खेतों में फल-सब्जी-फूल आदि की नगदी फसल लगाई थी। यह मसला केवल किसान के कंगाल होने तक ही सीमित नहीं है, हताश किसान जिस तरह खेत में फसल को मिट्टी में मिला रहा है, उससे खेती की जमीन की रासायनिक संरचना ही बदलने का अंदेशा है। यदि ऐसा होता है तो यह देश की खेती के लिए चेतावनी है। 

कर्नाटक में इस बार अंगूर की बंपर फसल हुई। अगूर को ना तो ज्यादा दिन बेलों पर रहने दिया जा सकता है और ना ही उसके वेयर हाउस की व्यवस्था है। राष्ट्रव्यापी तालाबंदी  के चलते परिवहन ठप्प है और थो मंडी व स्थानीय बाजार भी। इसके चलते बेंगलुरु ग्रामीण, चिक्काबल्लापुर और कोलार जिलों में 500-600 करोड़ रुपये की अंगूर बर्बाद हो गई। इस फसल का सबसे बड़ा संकट यह है कि यदि सूख कर अंगूर जमीन पर गिर गया तो मिट्टी की उर्वरता षक्ति समाप्त हो जाती है। कर्नाटक के ही श्रीरंगपट्टना के गंजम गाँव में दो टन चीकू हो या फिर राजस्थान में कई जगह खीरे ,या फिर मध्यप्रदेश के ंिछंदवाड़ा जिले का संतरों के लिए मशहूर गांव हर्लद, किसान इनकी तुडाई पर होने वाले व्यय से बचने के लिए उन पर वैसे ही ट्रैक्टर चलवा रहा है। यह जानना जरूरी है कि टमाटर , अंगूर या ऐसे ही फल-सब्जी के पौधेे प्रकृति ने न तो केवल एक फसल लेने के लिए बनाए थे और ना ही एकल फसल के लिए । पारंपरिक रूप से फल-सब्जी के पौधे ोत की मेढ या अतिरिक्त भूमि पर मिश्रित या अतिरिक्त फसल के लिए होते थे। यदि एक ही खेत से अधिक फसल लेने का लोभ ना हो तो खीरा या टमाटर या अंगूर को हर साल नश्ट करने की जरूरत नहीं होती।  साल में दो या तीन फसल लेने के लोभ ने वैसे ही खेत की मिट्टी का संतुलन बिगाड़ दिया। रही बची कसर गीली या हरी फसल वाले पौघों को खेत में ही मसल देने से मिट्टी की मूल संरचना में आ रहे परिवर्तन से पूरी हो रही है। 

मिट्टी खेती का मूल आधार है। वैसे तो भारत में बीस से अधिक किस्म की मिट्टियां पाई जाती हैं लेकिन सभी जगह ‘टॉप सॉईल’ अर्थात मिट्टी की ऊपरी परत ही समस्त उत्पादकता का स्त्रोत है।इस सतह की डाई सेंटीमीटर पतली परत बनने में 100 से 2500 साल लगते हैं। मिट्टी अपने आप में एक पर्यावरणीय तंत्र और जीवंत संरचना है। महज एक चम्म्च मिट्टी में 10 लाख जीवाणु, 10 हजार यीस्ट सेल या खमीर कोशिकाएं, पचास हजार किस्म की फफूंद होते हैं। मिट्टी की अम्लीयत और क्षारीयता का असंतुलन उसके बंजर या बांझ भूमि बना सकता है।  मिट्टी का यह जीव तंत्र उसके स्वास्थ्य और उर्वतता के लिए अनिवार्य तत्व है। लगातार एक-फसलीय चक्र, बेशुमार रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग ने इन अदृश्य लेकिन मिट्टी-मित्र जीव संसार को जबरदस्त नुकसान किया है। मिट्टी का जन्म जैविक पदार्थों और चट्टानों के क्षरण से होता है । जीवित पदार्थों के समान, मिट्टी का भी धीरे-धीरे विकास होता है और इसकी परिपक्व अवस्था में कई प्रकार की परतों के रूप में विकसित होती है। मिट्टी में पौधे तथा जंतु निरंतर सक्रिय रहते हैं जिससे इसमें लगातार परिवर्तन होता रहता है। तभी मिट्टी को सतत सक्रिय कार्बिनक एवं खनिज पदार्थों का प्राकृतिक समुच्चय भी कहते है।
यदि अत्यधिक अम्लीय या क्षारीय फसल जीवति अवस्था में  मिट्टी में मिला दी जाए तो सबसे पहले तो उसकी पीएच कीमत पर असर पड़ता है, फिर फल-सब्जी की सड़न के साथ आए जीवणु मिट्टी के नैसर्गिक जीवाणुओं से भिड़ जाते हैं। इसका सबसे विपरीत असर होता है कि खेत में फंगल संक्रमण की संभावना बढ़ जाती है। यह अधिक खरपतवार का कारक भी है। इसे निबटने के लिए रासायनिक कीटनाशक का इस्तेमाल हुआ तो एक बार फिर मिट्टी की मूल संरचना प्रभावित होती है।  लगातार ऐसा करने से मिट्टी के मूल स्वरूप पर बेहद विपरीत असर पड़ता है। हालांकि फसल अवशेश जोकि पूरी तरह सूख होते हैं, को मिट्टी में पूरी तरह घोंट देने के अच्छै परिणाम आते हैं। लेकिन जिस तरह हरी पत्ती या अन्य अवशेश को कंपोस्अ बनाए बगैर खेत में डालना खतरे से खाली नहीं, ठीक उसी तरह पके फल-सब्जी मिट्टी के लिए दीर्घकालीन समस्या खड़ी कर सकते है।  

यह जानना जरूरी है कि सभी पेड़-पौधों की वृद्धि के लिए मुख्यतया 20 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। जैसे -कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम, सल्फर तथा अन्य सूक्ष्म तत्व आयरन, बोरोन, मैगनीज, कॉपर, जस्ता, मोलिबिडीनम, सोडियम, क्लोरीन, तथा सिलिकॉन आदि। पौधों की नाइट्रोजन की जरूरत हवा और मिट्टी दोनों से पूरी होती है।  हवा और पानी के जरिए कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन की आपूर्ति होती है । यदि केेला का हताश किसान सड़े हुए केले खेत में ही डाल देता है तो एक बड़ै स्तर पर संक्रमण का खतरा तो है ही जमीन में पोटेशियत की मात्रा बेवजह बढ़ने का खामियाजा भी अगली फसल में किसान को उठाना होगा। 
आज खेत में पड़ी फसल को उठवाने या तुड़वाना केवल किसान को घाटे से बचाने के लिए ही नहीं, बल्कि खेत और जमीन की सेहत को अक्षुण्ण रखने के लिए भी अनिवार्य है। एक बार टॉप सॉईल नश्ट होने का अर्थ है धरती के बीते कई सौ साल के विकास को नश्ट कर देना।

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