जब सुबह हो जाएगी रात !
इस साल का पहला सूर्य ग्रहण 21 जून को होगा और यह पूर्ण ग्रहण ‘‘रिंग ऑफ फॉयर’’ की तरह लगेगा। इसे ‘कंकण ग्रहण’ दृष्य भी कहते हैं। इसलिए दिन में रात लगने लगेगी। इसमें चंद्रमा सूरज को पूरी तरह ढंक लेगा। चमकते सूर्य का केवल बाहरी हिस्स दमकता दिखेगा, एक मुद्रिका के मानिंद । हालांकि रिंग ऑफ फायर का यह नजारा कुछ सेकेंड से लेकर 12 मिनट तक ही देखा जा सकेगा । यह ग्रहण भारतीय समय के अनुसार सुबह 9 बजे से शुरू होगा और दोपहर 3 बजे तक रहेगा। पूर्ण ग्रहण 10 बजकर 17 मिनट पर होगा। यह ग्रहण अफ्रीका, पाकिस्तान के दक्षिण भाग में, उत्तरी भारत और चीन में देखा जा सकेगा। भारत में यह खंडग्रास चंद्र ग्रहण होगा। जान लें 21 जून का दिन, सबसे बड़ा दिन होता है और उस दिन इतने लंबे समय तक सूर्य ग्रहण एक विलक्षण वैज्ञानिक घटना है। ऐसा अवसर कोई नौ सौ साल बाद आया है।
भारत में सूर्य ग्रहण
भारत में राजस्थान में दो जगहों पर सूर्यग्रहण के दौरान सूर्य का सिर्फ एक प्रतिशत भाग ही दिखाई देगा। इसकी आकृति कंगन जैसी दिखेगी। यह अद्भुद नजारा राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के घडसाना और सूरतगढ़ में देखा जा सकेगां ं। उत्तरी राजस्थान में करीब 20 किमी की पट्टी में सूर्य का 99 प्रतिशत भाग ग्रहण में नजर आएगा। शेष राजस्थान के लोगों को आंशिक सूर्य ग्रहण दिखेगा। राजस्थान के लोग पहली बार वलयाकार सूर्य ग्रहण देख सकेंगे। भारत में देहरादून, कुरूक्षेत्र, चमोली, मसूरी, टोहाना अदि स्थान पर कंकण ग्रहण के दर्षन बहुत स्पश्ट होंगे। दिल्ली व उसके आसपास ग्रहण घना होगा लेकिन पूर्ण सूर्य ग्रहण नहीं होगा। यहां चंद्रमा सूरज को लगभग 95 फीसदी घेर लेगा। इस इलाके में सुबह 10.19 बजे षुरू हो करतीन घंटे 28 मिनट और 36 सेकंड के लंबे काल में ग्रहण का प्रभाव होगा। वैसे यह सूर्य ग्रहण अफ्रीका से सुबह 9.16 मिनट पर षुरू होगा। भारत में सुबह 9.56 मिनट पर गुजरात के द्वारका इसका प्रतिपादन होगा। यहां यह दिन में 1बज कर 20 मिनट तक रहेगा। हमारे देष में इसका समापन कोहिमा में दिन में दो बज कर 28 मिनिट पर होगा। यहां इसका प्रारंभ दिन 11 बज कर चार मिनिट से होगा।
जानें ग्रहण के समय कितनी होगी सूर्य और पृथ्वी के बीच दूरी
21 जून रविवार के दिन सूर्य और पृथ्वी के बीच 15 करोड़ 2 लाख 35 हजार 882 किमी की दूरी होगी। इस समय पर चांद अपने पथ पर चलते हुए 3 लाख 91 हजार 482 किमी की दूरी बनाए रखेगा।
अकेले भारत में ही नहीं , पूरी दुनिया में यह धारणा रही है कि पूर्ण ग्रहण कोई अनिश्टकारी घटना है। अंग्रेजी में ‘ग्रहण’ को ‘एक्लिप्स’ कहते हैं। वास्तव में यह एक ग्रीक षब्द है, जिसका अर्थ होता है-बुरा प्रभाव। आज जब मानव चांद पर झंडे गाड़ चुका है, ग्रह-नक्षत्रों की हकीकत सबके सामने आ चुकी है;ऐसे में पूर्ण सूर्यग्रहण की विरली घटना प्रकृति के अनछुए रहस्यों के खुलासे का सटीक मौका हैं। सूर्य या चंद्र ग्रहण महज परछाईयों का खेल है। जैसा कि हम जानते हैं कि पृथ्वी और चंद्रमा दोनों अलग-अलग कक्षाओं में अपनी ध्ुारी के चारों ओर घूमते हुए सूर्य के चक्कर लगा रहे हैं। सूर्य स्थिर है। पृथ्वी और चंद्रमा के भ्रमण की गति अलग-अलग है। सूर्य का आकार चंद्रमा से 400 गुणा अधिक बड़ा है। लेकिन पृथ्वी से सूर्य की दूरी, चंद्रमा की तुलना में अधिक है। इंस निरंतर परिक्रमाओं के दौर में जब सूरज और धरती के बीच चंद्रमा आ जाता है तो धरती से ऐसा दिखता है, जैसे कि सूर्य का एक भाग ढंक गया हो। वास्तव में होता यह है कि पृथ्वी पर चंद्रमा की छाया पड़ती है। इस छाया में खड़े हो कर सूर्य को देखने पर ‘‘पूर्ण ग्रहण’ सरीखे दृष्य दिखते हैं। परछाईं वाला क्षेत्र सूर्य की रोषनी से वंचित रह जाता है, सो वहां दिन में भी अंधेरा हो जाता है।
वैसे तो हर महीने अमावस्या के दिन चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है, लेकिन हर बार ग्रहण नहीं लगता है। सनद रहे कि ग्रहण तभी दिखाई देगा, जब चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के तल की सीध में आती है। चूंकि चंद्रमा की कक्षा पृथ्वी की कक्षा के तल की ओर पांच अंष का झुकाव लिए हुए है अतः हर अमावस्या को इन तीनों का एक सीध में आना संभव नहीं होता है। एक षताब्दी में औसतन 238 सूर्य ग्रहण पड़ते हैं जिनमें से 28 प्रतिषत सूर्य ग्रहण, एक तिहाई वलयाकार और षेश आंषिक सूर्य ग्रहण होते हैं। वैसे पूर्ण सूर्य ग्रहण की अधिकतम अवधि 450 सेकंड होती है।
सूर्य ग्रहण कैसे
सूर्य प्रकाष का एक विषाल स्त्रोत है, अतः जब चंद्रमा इसके रास्ते में आता है तो इसकी दो छाया निर्मित होती हैं। पहली छाया को ‘अंब्रा’ या ‘प्रछाया’ कहते हैं।दूसरी छाया ‘पिनेंब्रा’ या ‘प्रतिछाया’ कहलाती है। इन छायाओं का स्वरूप कोन की तरह यानी षंक्वाकार होता है। अंब्रा के कोन की नोक पृथ्वी की ओर और पिनेंब्रा की नोक चंद्रमा की ओर होती है। जब हमा अंब्रा के क्षेत्र में खड़े हो कर सूर्य की ओर देखते हैं तो सूरज पूरी तरह ढंका दिखता है। यही स्थिति पूर्ण सूर्य ग्रहण होती है। वहीं यदि हम पिनेंब्रा के इलाके में खड़े हो कर सूर्य को देखते हैं तो हमें सूर्य का कुछ हिस्सा ढंका हुआ दिखेगा। यह स्थिति ‘आंषिक सूर्य ग्रहण’ कहलाती है। यहां जानना जरूरी है कि जब पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा, धरती के किसी ना किसी हिस्से में आंषिक सूर्य ग्रहण भी होगा। सूर्य ग्रहण का एक प्रकार और है, जो सबसे अधिक रोमांचकारी होता है- इसमें सूर्य एक अंगूठी की तरह दिखता हैं । जब चंद्रमा और पृथ्वी के बीच की दूरी इतनी कम हो जताए कि पृथ्वी तक पिनेंब्रा की छाया तो पहुंचे, लेकिन एंब्रा की नहीं। तब धरती पर पिनेंब्रा वाले इलाके के लोगों को ऐसा लगेगा कि काले चंद्रमा के चारों ओर सूर्य किरणें निकल रही है। इस प्रकार का सूर्य ग्रहण ‘एनुलर’ या वलयाकार कहलाता है।
अब यह समझना मुष्किल नहीं है कि ग्रहण के समय सूर्य देवता राहू का ग्रास कतई नहीं बनते हैं। जैसे-जैसे चंद्रमा सूर्य को ढंकता है, वैसे-वैसे पृथ्वी पर पहुंचने वाली सूर्य-प्रकाष की किरणें कम होती जाती हैं। पूर्ण सूर्य ग्रहण होने पर सूर्य की वास्तविक रोषनी का पांच लाख गुणा कम प्रकाष धरती तक पहुंच पाता है। एक भ्रम की स्थिति बनने लगती हैकि कहीं षाम तो नहीें हो गई। तापमान भी कम हो जाता है। कभी-कभी ओस गिरने लगती है। अब पषु-पक्षियों के पास कोई घड़ी तो होती नहीं हैं, सो अचानक सूरज डूबता देख उनमें बैचेनी होने लगती है।
पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य के एक सीध में आने और हटने पर चार बिंदु दृश्टिगोचर होते हैं। इन्हें ‘संपर्क ंिबदु’ कहा जाता है। जब सूर्य खग्रास की स्थिति में पहुंचने वाला होता है, तब कुछ लहरदार पट्टियां दिखती हैं। यदि जमीन पर एक सफेद कागज बिछा कर देखा जाए तो इन पट्टियों को साफतौर पर देखा जा सकता है। जब चंद्रमा, सूरज को पूरी तरह ढंक लेता है तब सूर्य के चारों ओर हलकी वलयाकार धागेनुमा संरचनाएं दिखाई देती है। हम जानते ही हैं कि चंद्रमा के धरातल पर गहरी घाटियां हैं। इन घाटियों के उंचाई वाले हिस्से, सूरज की रोषनी को रोकते हैं, ऐसे में इसकी छाया कणिकाओं के रूप में दिखती है। यह स्थिति खग्रास के षुश्आत और समाप्त होते समय देखी जा सकती है। इस घटना की खोज सन 1836 में फ्रांसिस बैल नामक वैज्ञानिक ने की थी, तभी इन कणिकाओं को ‘‘बेजीज बीड्स’’ कहा जाता है।
पूर्ण सूर्य ग्रहण को यदि दूरबीन से देखा जाए तो चंद्रमा के चारों ओर लाल-नारंगी लपटें दिखेंगी। इन्हें ‘‘सौर ज्वाला’’ कहते हैं। सूर्य और चंद्रमा के ये रोचक दर्षन 22 जुलाई 2009 के सुबह किए जा सकते है। यह इस सदी का पहला पूर्ण सूर्य ग्रहण है। अभी तक उपलब्ध जानकारी के अनुसार 18 अगस्त 1868 और 22 जनवरी 1898 को भारत में पूर्ण सूर्य ग्रहण देखा गया था। फिर 16 फरवरी 1980 और 24 अक्तूबर 1995 और 11 अगस्त 1999 को सौर मंडल का यह अद्भुत नजारा देखा गया था। 22 जुलाई 2009 का ेहुए सूर्य ग्रहण को अभी तक का सबसे लंबी अवधि का ‘पूर्ण ग्रहण’ माना जाता है। तब छह मिनिट और 39 सेकंड तक पूरी तरह ग्रहण का काल था। इतनी लंबी का ग्रहण अब 13 जून सन 2132 में ही होगा। पिछले साल 26 दिसंबर 2019 को भी पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ा था।
वैसे तो दूरदर्षन सहित कई टीवी चैनल पूर्ण सूर्य ग्रहण का सीधा प्रसारण करेंगे ही, लेकिन अपने अंागन-छत से इसे निहारना जीवन की अविस्मरणीय स्मृति होगा। यह सही है कि नंगी आखों से ग्रहण देखने पर सूर्य की तीव्र किरणें आंखों को बुरी तरह नुकसान पहुंचा सकती है। इसके लिए ‘‘मायलर-फिल्म’’ से बने चष्मे सुरक्षित माने गए है। पूरी तरह एक्सपोज की गई ब्लेक-एंड व्हाईट कैमरा रील या आफसेट प्रिंटिंग में प्रयुक्त फिल्म को इस्तेमाल किया जा सकता है। इन फिल्मों को दुहरा-तिहरा करें। इससे 40 वाट के बल्ब को पांच फीट की दूरी से देखें, यदि बल्ब का फिलामेंट दिखने लगे तो समझ लें कि फिल्म की मोटाई अभी और बढ़ा होगा। वेल्डिंग में इस्तेमाल 14 नंबर का ग्लास या सोलर फिल्टर फिल्म भी सुरक्षित तरीके हैं। और हां, सूर्य ग्रहण को अधिक देर तक लगातार कतई ना देखें। कुछ सेकंड देख कर पलकों को झपकाएं जरूर। सूर्य ग्रहण के दौरान घर से बाहर निकलने में कोई खतरा नहीं है। अभी तक घटित पूर्ण सूर्य ग्रहणों में वैज्ञानिक यह भी जांच चुके हैं कि ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाओं का ना तो ब्लड प्रेष्सर बढ़ता है और ना ही गर्भस्थ षिषु में कोई विकृति होती है। यह पूर्ण सूर्य ग्रहण तो हमारे वैज्ञनिक ज्ञान के भंडार के कई अनुत्तरित सवालों को खोजने में मददगार होगा। तो आप भी तैयार हैं ना पूर्ण सूर्य प्रहण के दर्षन के लिए ?
बड़े काम के हैं पूर्ण सूर्य
दिन में अंधेरा होने की प्राकृतिक घटना को भले ही कुछ लोग अनहोनी की आषंका मानते हों, लेकिन वैज्ञानिकों के लिए तो यह बहुत कुछ खोज लेने का अवसर होता है। सूर्य एक दहकता हुआ गोला है, ंजिसमे 90 प्रतिषत हाईड्रोजन, षेश हीलियम व कुछ अन्य गैस है। इसका प्रकाष और उश्मा 93 लाख मील का सफर तय कर धरती पहुंचती है। सूर्य का व्यास चंद्रमा से 400 गुणा अधिक है। सूर्य की गतिविधयों की जानकारी प्राप्त ,करने का संबसे सटीक सूय होता है पूर्ण ग्रहण ; क्योंकि इस दौरान सूर्य की तीव्रता सबसे कम होती है। 18 अगस्त 1868 को हुए पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान पियरे जूल्स जान्सन नामक वैज्ञानिक बड़ी मुष्किलें झेल कर भारत आया और उसने ऐसी जानकारियां एकत्र कीं, जिसके आधार पर अं्रग्रेज खगोलविद् लाकियर ने सूर्य पर हीलियम की मौजूदगी की पुश्टि की। इसके तीस साल बाद धरती पर हीलियम मिलने की खोज हुई।
आईंस्टीन की थ्योरी आफ रिलेटिविटी की पुश्टि भी 29 मई 1919 को ब्राजील में लगे एक पूर्ण सूर्य ग्रहण का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों के एक दल ने की थी। इसके अनुसार प्रकाष की किरणें गुरूत्वाकर्शण प्रभाव से अपने रास्ते से विक्षेपित हो जाती है। पराबैंगनी किरणों, अवमुक्त विकिरण , धूमकेतु जैसे कई षोध पूर्ण सूर्य ग्रहण के कारण ही स्थापित हो सके हैं। सूर्य के प्रभामंडल का सबसे पहला चित्र 28 जुलाई 1851 को पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान ही लिया जा सका था।
कैसा अनांेखा है सूर्य
0 सूर्य एक तारा है। इसे गृह मानना हमारी भूल है।
0 सूर्य की सतह का तापमान 6000 डिग्री सेल्सियस है। इसके कंेद्रक की ओर बढ़ने पर तापमान बढ़ता जाता है जो डेढ़ करोड डिग्री तक हो जाता है।
0 सूर्य का वजन धरती से तीन लाख 33 हजार गुणा अधिक है। इसकी परिधि पर 109 पृथ्वी रखी जा सकती है। इसमें दस लाख से अधिक पृथ्वी समा सकती है।
0 यदि सूर्य ऐसे ही जलता रहा तो 500 करोड़ वर्शों तक यह धरती को प्रकाष व उश्मा देता रहेगा।
ऐसा भी होता है पूर्ण सूर्य ग्रहण में
कुमुदिनी धोखा खा गई !
फतेहपुर सीकरी और खानवा के बीच एक छोटा सा गांव है- आषा का नगला। यहां के तालाब में हजारों कुमुदिनियां खिलती है। 25 अक्तूबर 1995 को जब पूर्ण सूर्य ग्रहण पड़ा तो कुमुदनी के फूल प्रकृति की इस बाजीगरी में चकरा गए और उनका खिलना षुरू हो गया। कुछ मिनटों बाद जब फिर से सूर्य चमका तो फूलों का खिलना रूक गया।
पषु-पक्षियों की बैचेनी!
अभी तक घटित सभी पूर्ण सूर्य ग्रहणो के दौरान प्रकृति को अपनी धड़ी मानने वाले जीव-जंतु जरूर परेषा दिखे हैं। जब चिड़िया के नीड छोड़ने का वक्त होता है , या जब गाय अपने बछड़े को दूध पिलाना चाहती है ; अचानक अंधेरा होने पर वे हड़बड़ा जाते हैं। कु कीट पतंगे आवाज भी करने लगते हैं। आकाष में तारे दिखने की भी संभावना होती है।
आंखें गईं ग्रहण में !
भले ही वैज्ञानिक चेताते रहे, लेकिन कुछ अंध विष्वास के मारे थे तो कुछ जिद्दी- पिछले पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान भारत में एक दर्जन लोगों की आंखों के सामने दिन में छाए अंधेरे के कारण सदा के लिए अंधेरा छा गया। सूर्य ग्रहण देखते समय वैज्ञानिकों के निर्देषों का कड़ाई से पालन करें।
पंकज चतुर्वेदी
सहायक संपादक
नेषनल बुक ट्रस्ट इंडिया
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