My writings can be read here मेरे लेख मेरे विचार, Awarded By ABP News As best Blogger Award-2014 एबीपी न्‍यूज द्वारा हिंदी दिवस पर पर श्रेष्‍ठ ब्‍लाॅग के पुरस्‍कार से सम्‍मानित

शुक्रवार, 4 सितंबर 2020

Technology can prepare excellent teacher for New Education policy

 नई शिक्षा नीति के लिए महिला हो सकती हैं बेहतर नई शिक्षक 

पंकज चतुर्वेदी 




33 साल बाद देश के लिए बनी नई शिक्षा. नीति का दर्शन भारतीय लोकाचार में निहित एक ऐसी शिक्षा प्रणाली का विकास करना है जो कि  जो “इंडिया” को “भारत” में बदलने की षक्ति बन सके। कोई तीन साल तक देश के हजारों लोगों से विमर्श के बाद तैयार इस दस्तावेज में शिक्षा को डिगरी से कहीं ज्यादा व्यावसायिक कौशल से जोड़ने और समतामूलक और जीवंत ज्ञान समाज के निर्माण की बात कही गई है।  सभी को उच्च-गुणवत्ता की शिक्षा मिले, ताकि भारत एक वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बन सके , इसके लिए ढेर सारे प्रायोगिक, ई-लर्निंग और आर्टिफिशयल इंटेलीजेंस जैसी तकनीक के इस्तेमाल के साथ शिक्षण संस्थाओं को साधन संपन्न बनाने पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। गौर करने वाली बात है कि वैसे भी शिक्षिका का कार्य महिलाओं की पहली पसंद होता है। अब बदलने वाले पढ़ने-पढ़ाने के रंग-ढंग में महिलाओं के लिए संभावना और प्राथमिकता भी अधिक दिख रही है।

इस नीति का असल उद्देशय है कि हमारे संस्थानों के पाठ्यक्रम और शिक्षाशास्त्र इस तरह हों ताकि मौलिक कर्तव्यों और संवैधानिक मूल्यों के प्रति सम्मान की गहरी भावना, अपने देश के साथ अटूट संबंध, और एक बदलती दुनिया में अपनी  भूमिकाओं और जिम्मेदारियों के बारे में जागरूकता विकसित की जा सके । न केवल विचार में, बल्कि आत्मा, बुद्धि और कर्मों में, बल्कि भारतीय होने में एक गहन-गर्वित गर्व पैदा करने के लिए, साथ ही साथ ज्ञान, कौशल, मूल्यों और प्रस्तावों को विकसित करने के लिए, जो मानव अधिकारों के लिए जिम्मेदार प्रतिबद्धता का समर्थन करते हैं, सतत विकास और जीवन ,और वैश्विक कल्याण, जिससे वास्तव में एक वैश्विक नागरिक प्रतिबिंबित हो। जाहिर है कि इस तरह की एक सामाजिक भावना का संचार करने में एक मां या बहन की भूमिका ज्यादा कारगर होगी क्योंकि वह अपने परिवार में यह भूमिका निभाती रहती है। 

नई शिक्षा नीति में प्रौद्योगिकी के उपयोग और एकीकरण पर सर्वाधिक जोर दिया गया है। विद्यालयीन और उच्च शिक्षा दोनों के लिए , एक स्वायत्त निकाय, राष्ट्रीय शैक्षिक प्रौद्योगिकी फोरम (एनईटीएफ) का गठन होगा जो , सीखने, मूल्यांकन, नियोजन, प्रशासन, आदि के लिए प्रौद्योगिकी के उपयोग पर विचारों के मुक्त आदान-प्रदान के लिए एक मंच प्रदान करेगा । एनईटीएफ ,शैक्षिक प्रौद्योगिकी में बौद्धिक और संस्थागत क्षमता का निर्माण, अनुसंधान और नवाचार के लिए नई दिशाओं को विकसित करना जैसे कार्य करेगी। सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में तकनीकी हस्तक्षेप  के साथ मूल्यांकन, टीचर-ट्रैनिंग और वंचित और अभी तक शिक्षा से दूर समुदाय तक अक्षर ज्योति पहुंचाने का कार्य किया जाएगा। 

इस नई नीति में शिक्षकों के अत्याधुनिक तकनीक के साथ प्रशिक्षण, उन्हें  विभिन्न दूरस्थ शिक्षा उपकरणों पर काम करने, ई लर्निंग के नए पाठ्यक्रम खुद तैयार  करने, स्थानीय भाशा बोली में शिक्षा और एक से अधिक भाशा के ज्ञान के लिए सॉफ्टवेयर के प्रयोग के सतत प्रशिक्षण की बात की गई है। 

स्पश्ट है कि अब दूरस्थ अंचलों तक भवन बनाने, उसमें शिक्षक व अन्य स्टाफ की नियुक्ति, वे सही समय पर पहुच रहे हैं कि नहीं, इसकी मानिटरिंग जैसे खर्चीले काम के बनिस्पत सरकार हर हाथ में स्मार्ट फोन या टैबलेट देना चाहती है ताकि कहीं दूर बैठा एक शिक्षक इन्हें पाठ पढ़ा सके, उनकी परीक्षा भी ले सके। अभी तक ग्रामीण क्षेत्रों में मलिा शिक्षक की नियुक्ति में सबसे बड़ी दिक्कत उनका वहां तक आना-जाना या वहां रह नहीं पाना होता था। नए प्रणाली में श्क्षििका जो उर्जा व समय आने-जाने में व्यय करती, उसका इस्तेमाल बेहतर दूरस्थ कक्षा प्रबध्ंान में कर पाएंगी।

इस नीति के मूल में शिक्षक को बदलती दुनिया के मुताबिक प्रशिक्षित करने पर बहुत अधिक और समयबद्व जोर दिया गया है। कहा गया है कि स्कूलों में शिक्षकों के लिए ऐसे उपयुक्त उपकरण उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि वे सीखने-सीखाने के तरीकों का ई-सामग्री के साथ सामंजस्य बैठा सकें  और ऑन लाइन ओर डिजिटल शिक्षा-तकनीक का उचित इस्तेमाल सुनिश्चित कर सर्कें  । ऑनलाइन शिक्षण मंच और उपकरण ,मौजूदा ई-लर्निंग प्लेटफॉर्म जैसे स्वयं, दीक्षा आदि को इस तरह विस्तारित किया जाएगा ताकि शिक्षकों को शिक्षार्थियों की प्रगति की निगरानी के लिए एक संरचित, उपयोगकर्ता के अनुकूल, समृद्ध माध्यम मिल सके।

जब भारत के समााजिक-आर्थिक समीकरण बदल रहे हैं, जाति-समाज-लिंग की दीवारें छोटी हो रही हैं, जब शिक्षा बदलाव, रोजगार का साधन बन रही है, तब भारत की शिक्षा नीति महज आंकड़ों, दावों और नारों में उलझी है। सरकारें बदलते ही भाषा और इतिहास को बदलने की सियासत शुरू हो जाती है। आजादी के बाद हमारी सरकार ने शिक्षा विभाग को कभी गंभीरता से नहीं लिया । इसमें इतने प्रयोग हुए कि आम आदमी लगातार कुंद दिमाग होता गया । हम गुणात्मक दृष्टि से पीछे जाते गए, मात्रात्मक वृद्वि भी नहीं हुई । कुल मिला कर देखें तो शिक्षा प्रणाली का उद्देश्य और पाठ्यक्रम के लक्ष्य एक दूसरे में उलझ गए व एक गफलत की स्थिति बन गई । शिक्षा या स्कूल एक पाठ्यक्रम को पूरा करने की जल्दी, कक्षा में ब्लेक बोर्ड, प्रश्नों को हल करने की जुगत में उलझ कर रह गया । दूसरी तरफ बच्चे के लिए शिक्षा एकालाप है, एक तरफ से सवाल दूसरी तरफ से जवाब और उसी से तय हो जाता है कि बच्चा कितना योग्य है। योग्य? किस बात के लिए योग्य? समाज में जीने के लिए प्रकृति को पहचानने के , रोजगार के या -- ऐसे ही किसी जमीनी धरातल के ? नहीं महज एक ऐसा कागज का टुकड़ा पाने के योग्य हो जाता है जिससे उसका स्कूल का कमरा तो बदल जाता है लेकिन जीवन की असलियत से सामना करने की क्षमता बढ़ती नहीं। 

जिस देश में मोबाईल कनेक्शन की संख्या देश की कुल आबादी के लगभग करीब पहुंच रही हो, जहां किशोर ही नहीं 12 साल के बच्चे के लिए मोबाईल स्कूली-बस्ते की तरह अनिवार्य बनता जा रहा है, वहां बच्चों को डिजिटल साक्षरता, जिज्ञासा, सृजनशीलता, पहल और सामाजिक कौशलों की ज़रूरत । हालांकि यह भी सच है कि स्कूल में बच्चों को मोबाईल का इस्तेमाल शिक्षा के राते में बाधक माना जाता है, परिवार भी बच्चों को अनचाहे तरीके से कड़ी निगरानी(जहां तक संभव हो) के बीच मोबाईल थमाते हैं। वास्तविकता यह है कि सस्ते डाटा के साथ हाथों में बढ़ रहे मोबाईल का सही तरीके से इस्तेमाल खुद को शिक्षक कहने वालों के लिए एक खतरा सरीखा है। हमारे यहां बच्चों को मोबाईल के सटीक इस्तेमाल का कोई पाठ किताबांें में हैं ही नहीं। 

भारत में शिक्षा का अधिकार  व कई अन्य कानूनों के जरिये बच्चों के स्कूल में पंजीयन का आंकड़ा और साक्षरता दर में वृद्धि निश्चित ही उत्साहवर्धक है लेकिन जब गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की बात आती है तो यह आंकड़ा हमें शर्माने को मजबूर करता है कि हमारे यहां आज भी 10 लाख शिक्षकों की कमी है। जो शिक्षक हैं भी वे महज उनको दिए गए कोर्स को पढ़ाने को ही अपनी ड्यूटी समझते हैं। कुछ इक्का-दुक्का नवाचार की बात करते हैं तो उन्हें सिस्टम का सहयोग मिलता नहीं है। 

आज स्कूली बच्चे को मिडडे मील लेना हो या फिर वजीफा हर जगह डिजिटल साक्षरता की जरूरत महसूस हो रही है।  हम पुस्तकों में पढ़ाते हैं कि गाय रंभाती है या शेर दहाड़ता है। कोई भी शिक्षक यह सब अब मोबाईल पर सहजता से बच्चों को दिखा कर  अपने पाठ को कम शब्दों में सहजता से समझा सकता है। मोबाईल पर सर्च इंजन का इस्तेमाल, वेबसाईट पर उपलब्ध सामग्री में यह चीन्हना कि कोैन सी पुष्ट-तथ्य वाली नहीं है,  अपने पाठ में पढ़ाए जा रहे स्थान, ध्वनि, रंग , आकृति को तलाशना व बूझना प्राथमिक शिक्षा में शमिल होना चाहिए। किसी दृश्य को  चित्र या वीडिया के रूप में सुरक्षित रखना एक कला के साथ-साथ सतर्कता का भी पाठ है। मैंने अपने रास्ते में कठफोडवा देखा, यह जंगल महकमे के लिए सूचना हो सकती है कि हमारे यहां यह पक्षी भी आ गया है। साथ ही आवाजों को रिकार्ड करना, भी महत्वूपर्ण कार्य है। 

दुखद है कि जब डिजिटल गजेट्स हमारे लेन-देन, व्यापार, परिवहन, यहां तक कि अपनी पहचान के लिए अनिवार्य होते जा रहे हैं हम बच्चों को वहीं घिसे-पिटे विषयों पर ना केवल पढ़ा रहे हैं, बल्कि रटवा रहे हैं। हाथ व समाज में गहरे तक घुस गए मोबाईल का इस्तेमाल छोटेपन से ही सही तरीके से ना सिखा पाने का ही कुपरिणाम है कि बच्चे पोर्न, अपराध देखने के लिए इस ज्ञान के भंडार का इस्तेमाल कर रहे हैं। यूट्यूब ऐसे वीडियो से पटी पड़ी  है जिनमें सुदूर गांव-देहात में किन्हीं लड़के-लड़कियों के मिलन के दृश्य होते हैं।  काश अपने पाठ के एक हिस्से से संबंधित फिल्म बनाने जैसा कोई अभ्यास इन बच्चों के सामने होता तो वे काले अक्ष्रों में छपी अपनी पाठ्य पुस्तक को दृश्य-श्रव्य से सहजता से प्रस्तुत करते। जान लें इस यंत्र को जागरूकता के लिए इस्तेमाल करने का प्रारंभ स्कूली स्तर से ही होना है। 

हमारे शिक्षक आज भी बीएड, एलटी या बीएलएड पाठ्यक्रमांे को उर्त्तीण कर आ रहे है जहां कागज के चार्ट, थर्माकोल के मॉडल या बेकार पड़ी माचिस, आईसक्रीम की डंडी से कुछ बना कर बच्चों को विषय समझाने की प्रक्रिया से गुणवत्ता का निर्धारण होता है। रंग और परिकल्पना के क्षेत्र में वैचारिक रूप से कंगाल हो रहे बच्चों को नकल या नदी-झोपड़ी-पहाड़ वाली सीनरी खींचने से उबारने के लिए शिक्षकों को नई तकनीक का सहरा लेना होगा। एक मोटा अनुमान है कि अभी हमें ऐसे कोई साढ़े छह लाख शिक्षक चाहिए जो कि सूचना-विस्फोट के युग में तेजी से किशोर हो रहे बच्चों में शिक्षा की उदासी व उबासी दूर कर, नए तरीके से , नई दुनिया की समझ विकसित करने में सहायक हों।  इस तरह के नए माध्यम में एक महिला की सृजनात्मक अभिरूचि, सकारात्मक दृश्टिकोण और बालमन को परखने की क्षमता जादूई असर कर सकती हैं।


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

How will the country's 10 crore population reduce?

                                    कैसे   कम होगी देश की दस करोड आबादी ? पंकज चतुर्वेदी   हालांकि   झारखंड की कोई भी सीमा   बांग्...