पूर्वोत्तर भारत में म्यांमार
शरणार्थी : भारत की विदेश नीति की दुविधा
पंकज चतुर्वेदी
हालांकि मणिपुर सरकार जनता के विरोध की आगे झुकना पड़ा और वह आदेश वतीन
दिन में ही वापिस लेना पड़ा है जिसके अनुसार पड़ोसी देश म्यांमार से भाग कर आ रहे
शरणार्थियों को भोजन एवं आश्रय मुहैया कराने के लिए शिविर न लगाने का आदेश दिया
गया था। अभी तक हज़ार से ज्यादा शरणार्थी म्यांमार से भाग कर इस तरफ आ चुके हैं और
इनमें से कई तो वहाँ की पुलिस और अन्य सराकरी सेवाओं के लोग हैं जिन्होंने सैनिक
तख्ता पलट का सरेआम विरोध किया और अब जब म्यांमार की सेना हर विरोधी को गोली मारने
पर उतारू है सो उन्हें अपनी जान बचने को सबसे मुफीद जगह भारत ही दिख रही हैं. लेकिन यह कड़वा
सच है कि पूर्वोत्तर भारत में म्यामार से शरणार्थियों का संकट बढ़ रहा है.
भारत के लिए यह विकट
दुविधा की स्थिति है कि उसी म्यांमार से आये रोहंगीया के खिलाफ देश भर में अभियान और माहौल बनाया जा
रहा है लेकिन अब जो शरणार्थी आ रहे हैं वे गैर मुस्लिम ही हैं -- यही नहीं
रोहंगियाँ के खिलाफ हिंसक अभियान चलाने वाले बोद्ध संगठन अब म्यांमार फौज के
समर्थक बन गए हैं . म्यांमार के
बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय को रोहिंग्या के ख़िलाफ नफरत का ज़हर भरने वाला अशीन
विराथु अब उस सेना का समर्थन कर रहा है जो निर्वाचित आंग सांग सूकी को गिरफ्तार कर
लोकतंत्र को समाप्त कर चुकी है .
पूर्वोत्तर भारत से सटे हुए पड़ोसी देश म्यांमार सैनिक शासन
के बाद से सैकड़ों बागी पुलिसवाले और दूसरे सुरक्षाकर्मी चोरी-छिपे मिजोरम में आ
रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक बड़ा वर्ग उन लोगों को सुरक्षित निकालने और इस
तरफ पानाह देने की काम में लगा है . ये लोग सीमा के घने जंगलों को अपने निजी
वाहनों जैसे,कार
, मोटरसाइकिल और यहाँ तक कि पैदल चलकर पार कर रहे हैं . भारत में उनके रुकने, भोजन
स्वास्थ्य आदि के लिए कई संगठन काम कर रहे हैं .
मिजोरम से राज्यसभा सांसद के वनलालवेना बताते हैं कि म्यांमार पुलिस के कोई 280
कर्मचारी और फायर ब्रिगेड के २६ लोग इस तरफ आ गए हैं म्यांमार
से भागकर आने वाले ज्यादातर लोग 18 मार्च से 20 मार्च के बीच भारत में दाखिल हुए। सबसे अधिक शरणार्थी चंपई जिले में रह
रहे हैं। कुल 324 चिन्हित शरणार्थी चंपई जिले में हैं और 91
व्यक्तियों का एक नया जत्था, जिनका अब तक कोई
रिकॉर्ड नहीं है, वे भी इसी जिले में रह रहे हैं। चंपई के
बाद, सीमावर्ती जिले सियाहा में कुल 144 शरणार्थी रह रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक 83 लोग
हेंथिअल में, 55 लॉन्गतालाई में, 15 सेर्चिप
में, 14 आइजोल में, तीन सैटुएल में और
दो-दो नागरिक कोलासिब और लुंगलेई में रह रहे हैं।
म्यांमार से आ रहे शरणार्थियों का यह जत्था केन्द्र सरकार
के लिए दुविधा बना हुआ है . असल में केन्द्र नहीं चाहती कि म्यांमार से कोई भी
शरणार्थी यहाँ आ कर बसे क्योंकि रोहंगीय के मामले में केन्द्र का स्पष्ट नज़रिया
हैं लेकिन यदि इन नए आगंतुकों का स्वागत किया जाता है तो धार्मिक आधार पर शरणार्थियों से दुभात करने की आरोप से दुनिया में भारत की किरकिरी हो सकती हैं . उधर
मिजोरम और मणिपुर में बड़े बड़े प्रदर्शन हुए जिनमें शरणार्थियों को सुरक्षित स्थान
देनी और पनाह देने का समर्थन किया गया . यहा जानना जरुरी है कि मिजोरम की कई जनजातियों और सीमाई इलाके के बड़े चिन
समुदाय में रोटी-बेटी के ताल्लुकात हैं .
भारत और म्यांमार के बीच कोई 1,643 किलोमीटर की
सीमा हैं जिनमें मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड का बड़ा
हिस्सा है . अकेले मिजोरम की सीमा 510
किलोमीटर है .
एक फरवरी को म्यांमार
की फौज ने 8 नवंबर
को संपन्न हुए चुनावों में सू की की पार्टी की जीत को धोखाधड़ी करार देते हुए तख्ता
पलट कर दिया था . वहाँ के चुनाव आयोग ने सेना के आदेश को स्वीकार नहीं किया तो फौज
ने वहाँ आपातकाल लगा दिया .हालांकि भारत ने इसे म्यांमार का अंदरूनी मामला बता कर लगभग चुप्पी साधी हुई है
लेकिन भारत इसी बीच कई रोहन्ग्याओं को वापिस म्यांमार भेजनी की कार्यवाही कर रहा
है और उस पार के सुक्षा बलों से जुड़े शरणार्थियों को सौंपने का भी दवाब है , जबकि
स्थानीय लोग इसके विरोध में हैं . १८ मार्च को मिजोरम के मुख्यमंत्री
जोर्नाथान्ग्मा इस बारे में अपना प्रतिरोध भी एक खत के जरिये जता चुके हैं -- यह
महज म्यांमार का अंदरूनी मामला नहीं रह गया लगभग पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लादेश
के रूप में उदय की तरह शरणार्थी समस्या बन गया है .
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