अब हरमू ढूंढे नहीं मिलती
पंकज चतुर्वेदी
जिस राज्य में
बड़ी आबादी के जीवकोपार्जन का जरिया खेती या जंगल हों, वहां नदियों का लुप्त होना
असल में मानव- सभ्यता की अविरल धारा में व्यवधान की तरह है . जल धाराओं के प्रति
समाज की बेपरवाही की बानगी है झारखण्ड राज्य की राजधानी रांची की कभी जीवन रेखा
कही जाने वाली हरमू नदी. यह सुबर्नरेखा नदी की बहुत छोटी सहायक नदी है .जलवायु परिवर्तन की मार से झारखंड भी अछूता नहीं है और यहाँ अनियमित और कम बरसात दर्ज की जा रही है , इसका
सीधा असर हरमू के अस्तित्व पर पड़ा . अब महज चार महीने इसमें नदी जल होता है शेष दिनों नगर का गन्दा निस्तार
ही इसमें तैरता है , जाहिर है कि कुछ दशकों में इसे एक नाला घोषित कर दिया जाएगा .
अगर हरमू नदी के उद्गम स्थान को देखा , तो वहां पत्थरों का
भी कटाव हो गया है. इसके चलते भी इस नदी पर खतरा मंडरा रहा है.
राज्य विभाजन
से पहले झारखण्ड में छोटी-बड़ी करीब 141 सदानीरा नदियां थीं
. अब इनमें से कई तो गम गईं और अधिकांश गर्मी शुरू होते ही लुप्त हो जाती हैं इसकी
सबसे बड़ी वजह है, नदियों के किनारे बेतरतीब ढंग से अवैध
बसावट. हरमू जैसी शहरी नदी के बहाव क्षेत्र को भरकर अतिक्रमण कर लिया गया है. वर्ष
1928 और 1932 के नक्शे को अगर देखा
जाये, तो रांची में छोटी-छोटी नदियों का जाल था. जो अब कंक्रीट
में समाया दिखता है.
रांची शहर में हरमू नदी की चौड़ाई 25 मीटर से घट कर कई स्थानों
पर एक मीटर से कम हो गयी है। राची नगर-निगम की ओर से हरमू नदी के सौंदर्यीकरण के
लिए करोड़ों रुपये खर्च किये जा चुके हैं। कई स्थानों पर चेकडैम भी बनाये जा रहे
हैं, ताकि नदी के अस्तित्व को बचाया जा सके, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद हरमू नदी को पुनर्जीवित करने का प्रयास सफल
नहीं होता दिख रहा है, बरसात में दो-तीन महीने को छोड़ कर
अन्य दिनों में इसकी स्थिति एक बड़े नाले की तरह हो जाती है। गंदगी के कारण छठ
महापर्व के दौरान श्रद्धालु यहा अर्घ्य अर्पित करने से भी कतराते है।
आज हरमू नदी
विनाश के कगार पर खड़ी है. हर जगह प्रदूषण फैला हुआ है. हरमू नदी का उद्गम लेटराइट
मिट्टी से है और इसमें जल-प्रवाह बरसात पर
निर्भर है. इधर, कुछ वर्षों से बारिश में भी
कमी आयी है, जिसके चलते भी इस नदी केवल चार महीने ही
प्राकृतिक जल रहता है. बाकी समय ये सिर्फ गंदे पानी से भरा रहता है. अगर हरमू नदी
के उद्गम स्थान को देखा , तो वहां पत्थरों का भी कटाव हो गया
है. इसके चलते भी इस नदी पर खतरा मंडरा रहा है. सरकारी स्तर पर
अभी तक कोई सौ करोड़ रूपये नदी को बचाने के लिए खर्च हुए लेकिन नदी का संकुचन रूक
नहीं रहा है . आबादी बढ़ने के साथ ही नदी के आसपास के
मोहल्लों से निकलने वाला गंदा पानी और गंदगी दोनों ही इस नदी में गिराये जाने लगे, जिसकी वजह से आज यह नदी पूरी तरह दूषित हो चुकी है. कभी साफ पानी के साथ
कलकल कर बहने वाली इस नदी का पानी पूरी तरह काला हो चुका है. जो हरमू नदी के बारे
में नहीं जानता है, उसे यह किसी बड़े और गंदे नाले की तरह
दिखती है. बल्कि, आज राजधानी के ज्यादातर लोग इसे हरमू नाला
कहकर ही पुकारते हैं.
हरमू नदी के
अस्तित्व पर संकट का सबसे बड़ा कारण इसका शहर के बीचों बीच से बहना और राजधानी बनाने के बाद रांची में जमीन के दाम
आसमान को छूना है , इस नदी के मुख्य
प्रवाह में हर आधा किलोमीटर पर 45
मकान बने हैं. कुछ जगह तो पूरा प्रवाह ही
अवैध निर्माण ने रोक लिया है . नदी के दोनों तरफ झुग्गी बस्ती हैं और यहाँ रहने वाले लोग
कबाड़े या कूड़ा जमा करने का काम करते हैं . जब नदी पूरी तरह सूख जाती है तो हर साल इसमें
एक से दो फूट तक प्लास्टिक व् अन्य कचरा जमा हो जाता है . अब इसमें बालू भी नहीं
मिलती . तभी जब बरसात होती है तो रांची शहर में बाढ़ आ जाती है . हज़ारों साल से
अविरल बह रही नदी मात्र तीन दशक में नाबदान बन गई . नदी में जब तब पानी होता है तो
वह जहर ही होता है क्योंकि उसमें आर्सेनिक, क्रोमियम, शीशा, पारा, निकल इत्यादि
जहरीले धातु निर्धारित मात्रा से कई सौ गुना अधिक भरे हुए हैं. नदी का पानी तो काम
का है नहीं लेकिन इसके कारण दूर दूर तक भूजल भी जहरीला हो चुका है . इसमें पनपे
बैक्टीरिया और रासायनिक दूषण से चर्मरोग,
पेट की बीमारी, लिवर की बीमारी, आंत की बीमारी, डायरिया, पीलिया
आदि फ़ैल रहा है
पिछले कुछ
वर्षों में हरमू नदी को अतिक्रमण से मुक्त करने
और सुंदर बनाने के लिए कई अभियान चलाये गये. साथ ही नदी को दोबारा जिंदा
करने का प्रयास शुरू हुआ. लेकिन हरमू नदी की तकदीर और तसवीर नहीं बदली है. उल्टे
नदी के सौंदर्यीकरण के नाम पर इसके प्राकृतिक बहाव को खत्म कर दिया गया. किनारों
पर पत्थर लगाये गये. साथ ही नदी के किनारे-किनारे नाली बनाने और पैदल चलने के लिए
पाथ-वे बनाने का भी शुरू हुआ. पर काम की गुणवत्ता इतनी निम्न स्तर की रही कि महीनों में ही निष्प्रभावी हो गई.
हरमू बाइपास के
पास एक बोर्ड लगाया गया है, जिसपर चेतावनी लिखी गयी है
कि हरमू नदी में कचरा फेंकना संगीन अपराध है. पकड़े जाने पर जुर्माना सहित कारावास
होगा. पर शहरी क्षेत्र में तकरीबन सभी स्थानों पर नदी में कचरा दिखता है. भट्ठा
मोहल्ला, विद्यानगर, चालानगर, नदी ग्राउंड हिंदपीढ़ी, हरमू कॉलोनी, कडरू का निचला हिस्सा, पुलटोली से होकर स्वर्णरेखा
में मिलने के पूरे रास्ते में जहां कहीं भी नदी के आसपास बस्तियां आबाद हैं,
वहां के लोग अपना कचरा नदी में ही फेंकते हैं. मुक्तिधाम के पास,
पीपी कंपाउंड के पास के इलाके में कई अपार्टमेंट का गंदे पानी का
बहाव नदी में ही मोड़ दिया गया है. हरमू मुक्तिधाम अौर विद्यानगर पुल आनंदपुरी के
पास तीन-चार खटाल हैं, जिन्हें कई बार हटाया गया है, लेकिन ये दोबारा वहीं बस जाते हैं. इनकी सारी गंदगी नदी में ही गिरती है.
जुड़को कंपनी
द्वारा हरमू मुक्तिधाम अौर हरमू फल मंडी के पास दो सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाये
गये हैं. बावजूद नदी में गंदगी और गंदा पानी गिरने से नहीं रोका जा सका है. यहां
तैनात गार्ड इसके बारे में कुछ भी नहीं बता पाया. मुक्तिधाम के पास नदी में कुछ
दूर तक पाथ-वे बनाया गया है. हरमू बाइपास पुल के पास नदी के ढलान पर घास अौर
सजावटी पौधे भी लगाये गये, लेकिन रख-रखाव के अभाव में
ये सूखने लगे हैं. मुक्तिधाम से लेकर नदी के रास्ते में शौचालय बनाये गए परन्तु ,
सभी शौचालयों में ताला बंद रहता है. ऐसे में अब भी आसपास की
बस्तियों के लोग नदी के किनारे ही शौच करते हैं.
हरमू का साल
दुश्मन रांची शहर है, इसका प्रमाण हैं करमसोकड़ा, उससे आगे मुड़ला
पहाड़, हेहल पीपरटोली, हेहल नदी पार
जैसे इलाकों में हरमू की पवन धारा . यहाँ ग्रामीणों
ने नदी में जगह-जगह मिट्टी से बांध बनाकर पानी रोका है और इस तरह बने छोटे जलाशयों
में लोग नहाते हैं, कपड़ा-बर्तन धोते हैं और मवेशियों को
पानी पिलाते हैं. जब तक नदी में पानी रहता है तब तक आसपास के खेतों की सिंचाई भी
इसी से होती है.
एक बात समझना
होगा की रांची शहर का अस्तित्व सडक, भवन या ब्रिज से नहीं, बल्कि हरमू, कर्म जैसे
नदियों से हैं – ये नदियाँ केवल जल मार्ग नहीं होतीं, शहरों में बढती गर्मी को
नियंत्रित करने, भू जल का स्तर बनाये रखने और साफ़ हवा का नैसर्गिक साधन होती हैं .
यदि रांची मने मनुष्य जीवन को स्वस्थ रखना है तो हरमू का स्वच्छ होना अनिवार्य है
.
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