इतना आसान नहीं है पांकिस्तान का पानी
रोकनापंकज चतुर्वेदी
पुलवामा हमले के बाद पाकिस्तान के
सरकार पोषित आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत ने पाकिस्तान को जाने वाली
नदियों का पानी रोकने पर विचार की घोषणा क्या की थी, कुछ लोग मान बैठे थे कि यह रातों-रात संभव है। अभी भी यदा-कदा अखबारों में
खबरें छपती हैं कि भारत पाकिस्तान को जाने वाले पानी को रोक देगा जिससे शत्रु को मुंह की खानी पड़ेगी। हालांकि जमीन पर दोनो देशों के बीच पानी के
बंटवारे को ले कर कोई तनाव नहीं है और अभी
भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि पर 31 मई को 118वीं द्विपक्षीय बैठक हुई। इसके लिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की
ओर से नियुक्त पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली पहुंचा। बाढ़ की अग्रिम सूचना
और सिंधु जल के स्थायी आयोग की सालाना रिपोर्ट पर भी चर्चा हुई। भारत और पाकिस्तान
के बीच सिंधु जल समझौते के तहत 1,000 मेगावाट पकाल दुल,
भारत द्वारा बनाई जा रही 48 मेगावाट लोअर
कालनाई और 624 मेगावाट किरुहाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर भी
चर्चा हुई।
दुनिया की सबसे बड़ी नदी-घाटी
प्रणालियों में से एक सिंधु नदी की लंबाई कोई 2880 किलोमीटर है । सिंधु नदी का इलाका करीब 11.2 लाख
किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. ये इलाका पाकिस्तान (47
प्रतिशत), भारत (39 प्रतिशत), चीन (8 प्रतिशत) और अफ़गानिस्तान (6 प्रतिशत) में है । अनुमान है कि कोई 30 करोड़ लोग
सिंधु नदी के आसपास के इलाकों में रहते हैं।
इसमें पानी की मात्रा दुनिया की सबसे बड़ी नदी कहलाने वाली
नील नदी से भी दुगनी है। तिब्बत में कैलाश पर्वत श्रंखला से बोखार-चू नामक
ग्लेशियर (4164 मीटर) के पास से अवतरित सिंधु
नदी भारत में लेह क्षेत्र से ही गुजरती है। लद्दाख सीमा को पार करते हुए
जम्मू-कश्मीर में गिलगित के पास दार्दिस्तान क्षेत्र में इसका प्रवेश पाकिस्तान
में होता है। पंजाब का जिन पांच नदियों
राबी, चिनाब, झेलम, ब्यास और सतलुज के कारण नाम पड़ा, वे सभी िंसंधु की
जल-धारा को समृद्ध करती हैं। सतलुज पर ही भाखडा-नंगल बांध हैं। भले ही भारत व पाकिस्तान के बीच भौगालिक सीमाएं
खिंच चुकी हैं लेकिन यहां की नदियां, मौसम, संस्कृति, सहित कई बातें चाह कर भी बंट नहीं पाईं।
सन 1947 में आजादी के बाद से ही दोनो देशों के बीच अंतरराष्ट्रीय नदियों के जल बंटवारे को ले कर विवाद चलता रहा। कई विदेशी विशेषझों के दखल के साथ दस साल तक बातचीत चलती रही और 19 सितंबर 1960 को कराची में दोनों देशों ंके बीच जल बंटवारे को ले कर समझौता हुआ। भारत-पाकिस्तान के बीच इस समझौते की नजीर सारी दुनिया में दी जाती है कि तीन-तीन युद्ध और लगातार तनावग्रस्त ताल्लुकातों के बावजूद दोनों में से किसी भी देश ने कभी इस संधि को नहीं तोड़ा। इस समझौते के मुताबिक सिंधु नदी की सहायक नदियों को दे हिस्सों - पूर्वी और पश्चिमी नदियों में बांटा गया। सतलज, ब्यास और रावी नदियों को पूर्वी जबकि झेलम, चेनाब और सिंधु को पश्चिमी क्षेत्र की नदी कहा गया। पूर्वी नदियों के पानी का पूरा हक भारत के पास है तो पश्चिमी नदियों का पाकिस्तान के पास। बिजली, सिंचाई जैसे कुछ सीमित मामलों में भारत पश्चिमी नदियों के जल का भी इस्तेमाल कर सकता है। समझौता भलीभांति लागू हो इसके लिए एक सिंधु आयोग है और दोनों देशो की तरफ से कमिश्नर नियमित बैठकें करते हैं।
सिंधु-तास समझौते के तहत पश्चिमी नदियों यानी झेलम, सिंध और चिनाब का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया है. इसके तहत इन नदियों के अस्सी फ़ीसदी पानी पर पाकिस्तान का हक़ है। भारत को इन नदियों के बहते हुए पानी से बिजली बनाने का हक़ है लेकिन पानी को रोकने या नदियों की धारा में बदलाव करने का हक़ नहीं है। पूर्वी नदियों यानी रावी, सतलुज और ब्यास का नियंत्रण भारत के हाथ में दिया गया है। भारत को इन नदियों पर प्रोजेक्ट बगैरह बनाने का हक़ हासिल है, जिन पर पाकिस्तान विरोध नहीं कर सकता है। यह समझौता बहुत सोच-समझकर किया गया था. नदियों का विभाजन, उनका जल विज्ञान, उनका प्रवाह, वे कहाँ जा रही हैं, उनमें कितना पानी है. इन सब बातों को ध्यान में रखकर यह समझौता किया गया है. हम चाहकर भी पाकिस्तान में बहने वाली नदियों को नहीं मोड़ सकते, क्योंकि वे ढलान की ओर (पाकिस्तान में) उतरेंगी.
यहां जानना जरूरी है कि पानी की बात
केवल सिंधु नदी की नहीं होती, इसके साथ असल में पंजाब
की पांच नदियों के पानी का मसला है। पाकिस्तान का कहना है कि भारत को अपने हिस्से
की पूर्वी नदियों का पानी रोकने और उसका पूरा इस्तेमाल करने का पूरा हक है। सनद
रहे कि भारत रावी नदी पर शाहपुरकंडी बांध बनाना चाहता था, लेकिन
इस परियोजना को सन 1995 से रोका गया है। ठीक इसी तरह से
समय-समय पर भारत ने अपने हिस्से की पूर्वी नदियों का पानी रोकने के प्रयास किए
लेकिन सामरिक दृष्टि से ऐसी योजनाएं परवान नहीं चढ़ पाईं।
वैसे भी भारत-पाकिस्तान की जल-संधि
में विश्व बैंक सहित कई अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं शामिल हैं और उन्हें नजरअंदाज कर
पाकिस्तान का पानी रोकना कठिन होगा। हां, पाकिस्तान की सरकार का आतंकवदी गतिविधियों में सीधी भागीदारी सिद्ध करने
के बाद ही यह संभव होगा। लेकिन असल सवाल है कि
हम पानी रोक सकते हैं क्या ? यदि हम नदी का पानी
रोकते हें तो उसे सहेज कर रखने के लिए बड़़े जलाशय, बांध
चाहिए और वहां जमा पानी के लिए नहरें भी। सिंधु घाटी के नदी तंत्र को गांगेय नदी
तंत्र अर्थात गंगा-यमुना से जोड़ना तकनीकी रूप से संभव ही नहीं है। गौरतलब है कि
केन-बेतवा नदियों को जोड़ने की परियोजना 20 साल बाद भी धरातल
पर नहीं आ पाई है। ऐसे में यमुना में सिंधु-तंत्र की नदियों को मिलाना तात्कालीक
तो क्या दूरगामी भी संभव नहीं है। यदि
पानी रोकने का प्रयास किया गया तो जम्मू, कश्मीर , पंजाब आदि में जलभराव हो जाएगा और इससे जमीन पर उर्वर क्षमता प्रभावित
होने की पूरी गुंजाईश है।
आजादी के इतने साल बाद भी अपने हिस्से
की नदियों का पूरा पानी इस्तेमाल करने के लिए बांध आदि ना बना पाने का असल कारण
सुरक्षा व प्रतिरक्षा नीतियां हैं। सीमा के पार साझा नदी पर कोई भी विशाल
जल-संग्रह दुश्मनी के हालात में पाकिस्तान के लिए ‘जल-बम’
के रूप में काम आ सकता है। यहां जानना जरूरी है कि भारत में ये
नदियों उंचाई से पाकिस्तान में जाती हैं। इनके प्राकृतिक जल-प्रवाह पर कोई भी रोक
समूचे उत्तरी भारत के लिए बड़ा संकट हो जाएगा। हम पानी एकत्र भी कर लें तो हमारी
उतनी ही बेशकीमती जमीन दल-दल में बदल सकती है।
यह संकट केवल इतना ही नहीं हैं, भारत से पाकिस्तान जाने वाली नदियों पर चीन के निवेश
से कई बिजली परियोजनाएं हैं। यदि उन पर कोई विपरीत असर पड़ा तो चीन ब्रहंपुत्र के
प्रवाह के माध्यम से हमारे समूचे पूर्वोत्तर राज्यों को संकट में डाल सकता है।
अरूणाचल व मणिपुर की कई नदियों चीन की हरकतों के कारण अचानक बाढ़, प्रदूषण और सूखे को झेल रही हैं।
अब तो नेपाल भी चीन की गोद में बैठा है और बहुत सी हिमालयी नदियां नेपाले से ही
हमोर यहां आती है।
पाकिस्तान के आतंकवादी तंत्र पर
निर्णायक चोट हर भारतीय चाहता है लेकिन नदी के पानी या टमाटर-भिंडी या फिर महज
गाने-बजाने वाले कलाकारों पर पाबंदी से यह लक्ष्य हासिल होने से रहा। वैसे भी नदी
सारे संसार की हैं , उसे अपने बदले के लिए
इस्तेमाल करने का विचार नैसर्गिक नहीं है।