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सोमवार, 5 सितंबर 2022

Loktak Lake can not be survive by throwing out community from water

 समाज को उजाड़ कर बस ना पाएगी लोकतक झील

पंकज चतुर्वेदी

 


उत्तर-पूर्वी राज्यों का रमणिक स्थल मणिपुर का नाम मणिपड़ने का यदि कोई सबसे सशक्त कारण नजर आता है तो वह है यहां की लोकटक झील। लगभग 770 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस झील का क्षेत्रफल 26 हजार हैक्टर हुआ करता था। मणिपुर घाटी के दक्षिण में विष्णुपुर जिले में स्थित यह झील पूर्वी भारत की सबसे विशाल प्राकृतिक जल निधि है।  हाल ही में लोकटक विकास प्राधिकरण  ने झील में बनी  झोपड़ियों और मछली पकड़ने को स्थापित “अथाफुम्स “ को हटाने के आदेश दे दिए हैं. इससे इस झील पर पुश्तों से निर्भर मैतै  जनजाति के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो गया है , असल में यही समुदाय पीढयों से इस अनूठी झील की देखभाल करता रहा है और स्पष्ट है कि जनभागीदारी और जनसरोकार के बगैर किसी भी प्राकृतिक संरचना को संरक्षित करना संभव्  होता नहीं .

 

लोकटक का अर्थ है - ‘‘धारा का अंत’’।  यहां कई सरिताओं , नदियों का प्रयाण स्थल जो है। यह झील राज्य के सामाजिक-आर्थिक, र्प्यावरण, सांस्कृतिक, परिवहन, जल मुर्गियों के आवास, कई अन्य जानवरों , मछलियों और वनस्पियों को समेटे हुए है। कुछ साल पहले तक यह 223,000 हैक्टर में विस्तारित थी जो सिकुड़ कर 26 हजार हैक्टर पर पहुंच गई है।  आज भी इसकी अधिकतम लंबाई 26 किलोमीटर , चौड़ाई 13 किलोमीटर व गहराई 4.58 मीटर तक है। इसका जल ग्रहण क्षेत्रा 98 हजार हैक्टर और पानी का कुल आयतन 5980.36 लाख घनमीटर है। इस झील में 12 द्वीप है, जिनमें से चार पर आबादी है। इसके किनारे पर पांच शहर व 54 गांव हैं। झील की खासियत है इसमें तैरते हुए 600 से अधिक मकान । पानी में उगने वाली घास, वनस्पति और मिट्टी के मिश्रण से बनी मोटी परतों को स्थानीय भाषा  में फुगदी या फुमडीज कहा जाता है, इस झील की खासियत है। इन फुगदी के स्थलीय भाग का पांचवा हिस्सा जल की सतह पर तैरता है जबकि शेष  भाग पानी में डूबा होता है। इस लिए ये तैरते हुए विशाल द्वीप दिखते हैं। लोकटक में इन्ही तैरते फुगदी पर बस्तियां तो हैं ही, इसके दक्षिण में दुनिया का एकमात्र ‘‘तैरता हुआ संरक्षित वन’’-केईबुल लामजाओ नेशनल पार्क’’ भी है।  यहां देशज, दुर्लभ और संकटापन्न संगईहिरणों का डेरा है। मैतै आदिवासी इस फुगदी को एक छल्ले के आकार मे ढालते हैं और उसमें मछली का जाल लगा देते हैं . यहाँ जाल में आ गई मछलियों को अच्छा पौष्टिक आहार मिलता है और वे कुछ ही समय में आकार में बड़ी व् भारी हो जाती हैं . इस संरचना को ही “अथाफुम्स “ खा जाता है जिसे हटाने के लिए सरकार आमदा है . सरकार का कहना है कि चूँकि यह झील रामासर सूची में शामिल है और इसमें मानवीय दखल के कारण हो रहे पर्यावरणीय नुक्सान से बचाना जरुरी है , सो स्थानीय लोगों द्वारा पर्यटकों के लिए  झील के भीतर बना दी गई झोपड़ियों को हटाना जरुरी है  सरकार मणिपुर लोकटक झील संरक्षण अधिनियम 2006 का हवाला दे कर बताती है कि इस संरक्षित क्षेत्र में झोपडी बनाना अवैध है.

उधर स्थानीय समुदाय का दावा है कि वे तो कई सदियों से इस झील में ही झोपडी बना कर रहते रहे हैं , चूँकि कुछ सालों से स्थानीय समुदाय पर्यटकों को यहाँ ठहरा के कुछ कमा लेता है , वही सरकार को खटक रहा है और सरकार “ईको टूरिज्म” के नाम पर यहाँ बड़ी कंपनियों के होटल खोलने की योजना पर काम कर रही हैं . विदित हो नवम्बर 2011 में भी यहाँ सुरक्षा बलों ने कोई 777 झोपड़ियों  को आग लगा दी थी और उस समय भी व्यापक हिंसा हुई थी . जान लें यदि सरकार अपनी मंशा में सफल हुई तो कोई तीस हज़ार लोगों  का रोजगार और घर  संकट में होगा .

यह भी समझना होगा कि क्या  लोकटक में प्रदुषण का कारण समाज है या और कई अन्य गतिविधियाँ ? अनंत काल से लोकटक लोगों की उम्मीद, हजारों किस्म की वनस्पतियां व जंतुओं को अपने आंचल में आसरा देती रही है।  पूर्वोत्तर के स्वर्ग पर संकट की शुरुआत सन 1971 में सिंचाई व बिजली मंत्रालय की  ‘‘लोकटक बहुउद्देशीय बिजली परियोजना’’  से हुई जिसका संचालन 1983 में राष्ट्रिय  जल विद्धुत निगम ने प्रारंभ किया। 1979 में लोकटक व इंफाल नदी को जोड़ने वाले खोरडक कट पर स्थाई बांध बन गया।  इस योजना के तहत इंफाल नदी की निचली धारा पर इथाई बांधनिर्मित किया गया। यहां 35-35 मेगावाट के तीन यानी कुल 105 मेगावाट क्षमता के टरबाईन लगाए गए। गौर करना होगा  कि इंफाल नदी, लोकटक झील का एक प्रमुख जल आवक मार्ग है और मणिपुर की केंदीय घाटी में जल निकास का एक मात्र जरिया है। बांध बनने से पूर्व  झील पर जीम गाद, गंदगी और फुगदी के बड़े बडे टुकड़े खारडक कट से बह जाते थे। मानसून के दौरान जल द्वारा फुगदी को बहा ले जाना और मानसून के बाद झील के वेट लैंड का सूख जाना, इस क्षेत्र के पर्यावरण संतुलन  को बनाए रखता था।  बांध बनने के बाद झील की प्राकृतिक सफाई होना बंद हो गई, फुगदी व जलीय पौधे यहीं जमा हो रहे हैं, इससे सूर्य की किरणें व आक्सीजन पानी तक पर्याप्त नहीं पहुंच पा रही है , परिणाम है कि यहां के पानी  की हालत खराब हो रही है।  फिर जब जमीन के बड़े हिस्से पर डूब का असर हुआ, लोगों ने पलायन किया तो वे आ कर झील के तैरते इलाकें में बस गए। इससे वहां इंसान की गतिविधियां बढ़ीं, कृषि  इस्तेमाल बढ़ा, पानी का संतुलन गड़बड़ाया और झील के शुभचिंतक होने के दावों पर सरकार व समाज का टकराव बढ़ गया।

इथाई बांध के कारण कोई 83,450 हैक्टर बेहद उर्वरा जमीन डूब गई। इसमें से लगभग बीस हजार हैक्टर जमीन का इस्तेमाल साल में दो फसल लेने के लिए पहले ही होता था।  मेईती जनजाति के तीस हजार लोगों के विस्थापन का कारण बने इस बांध के बनने के बाद लोकटक झील में मिलने वाली मछलियों की कई प्रजातियां जैसे -  नगटोन, खबक, पेंगवा, थराक, नगारा, नगतिन, आदि विलुप्त हो गई।  ये मछलियां पूर्व में म्यांमार के चिंडविन-इरावदी नदी तंत्रसे पलायन कर मणिपुर घाटी की सरिताओं में प्रजनन किया करती थ्ीं। बांध के कारण उनके आवागमन का प्राकृतिक रास्ता ही बंद हो गया। यही नहीं इसके चलते झील में पैदा होने वाली कई साग-सब्जियों -  हैकाक,थांगजींग, थारो, थांबल, लोकेई, पुलई आदि का उगना रूक गया।

लोकटक पर आबादी बढ़ने की शुरूआत बिजली घर परियोजना के समय हो गई थी। जब बांध के लिए लोगों को उनके पुश्तैनी गांव-घरों से भगाया गया तो उन्हें लोकटक पर तैरते घरों का विकल्प ही मुफीद लगा। झील के चार हजार हैक्टर पर पहले से ही खेती हो रही है। आबादी बढ़ने के साथ ही पेट पालने के लिए लोगों द्वारा इसकी जमीन पर कब्जा कर खेती करने का रकबा भी बढ़ रहा है। साथ ही मछली और जंगली बत्तखों का अंधाधुंध शिकार, जंगल कटाई  ने इस इलाके में कई संकट गढ़ दिए हैं। यहां की जमीन बेहद सख्त है और 200 मीटर से कम गहराई पर भूजल नहीं मिलता है। ऐसे में लो गों की जल के लिए पूरी तरह निर्भरता इसी झील पर है। सरकार ने भी झील के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचने के लिए पक्की सड़कों के निर्माण के जैसे कुकर्म  किए, जिसने झील में पानी को और घटा दिया।  झील पर आबादी बढ़ने से दैनिक गंदगी, मल -मूत्र की बेतहाशा मात्रा इसमें  सीधे मिल रही है।

लोकटक जल ग्रहण क्षेत्र में  बेतहाशा जंगल कटाई और उसके कारण हो रहे मिट्टी के क्षरण ने झील को उथला बना दिया है। हर साल पांच हजार हैक्टर जमीन झूम खती के चपेट में आ रही हे। झूम खेती के एक हैक्टर से 41 टन मिट्टी कटती है। जाहिर है कि लोकटक में हर साल दो लाख टन मिट्टी तो झूम खेती के कारण ही जुड़ रही है। परिणाम सामने है , जो झील कभी दस मीटर गहरी होती थी, आज  पांच मीटर गहराई रह गई है।

विडंबना यह है कि झील संरक्षण के संकल्प के साथ अभियान चला रहे कई समूह आपस में कोई संवाद नहीं करते हैं और एकदूसरे को दुश्मन की तरह देखते हैं। परिणाम सामने है - सरकारी सिस्टम लोगों को उजाड़ता है तो आम लोग हताश हो कर सरकारी सिस्टम को झील उजाड़ने का आरोप लगाते हैं। दुर्भाग्य है कि सरकारी लोग विज्ञान और र्प्यावरण के तो माहिर हैं लेकिन स्थानीय नागरिकों को पर्यावरण संरक्षण से जोडने में असफल रहे हैं। कोई भी विकास आम लोगों की भागीदारी के बगैर सार्थक नहीं होता और यही लोकटक की त्रासदी है।

# Loktak lake 

#manipur 

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